गरीबी में हुआ गीला आटा,
फिर से लगा ज़ोरदार चांटा !
रोटी छीन गयी क्षण भर में ,
खड़ा हो गया गरीबी के रण में !!
क्या रोटी हो गयी अनमोल ,
इश्वर अब तो कोई पथ खोल !
मै अधीर ,व्यग्र ,व्याकुल मन से ,
कब दूर होगी गरीबी इस जीवन से !
इश्वर कब दूर होगा दुःख दाह,
अब तो दिखा दो कोई राह !!!!
ईश्वर !
गरीबी का करो अभिषेक ,
थोड़ा लगाओ अपना विवेक !
यदि इमानदारी की रोटी खाओगे ,
सदैव गीला आटा पाओगे !
हटाओ ये गरीब की ओट,
तू…
Added by ram shiromani pathak on February 2, 2013 at 6:30pm — 7 Comments
उल्लाला मुक्तिका:
दिल पर दिल बलिहार है
संजीव 'सलिल'
*
दिल पर दिल बलिहार है,
हर सूं नवल निखार है..
प्यार चुकाया है नगद,
नफरत रखी उधार है..
कहीं हार में जीत…
Added by sanjiv verma 'salil' on February 2, 2013 at 4:30pm — 9 Comments
========ग़ज़ल=======
संदली सा बदन है क्या कहिये
फूल जैसी छुअन है क्या कहिये
जल उठा है बदन तुझे छूकर
हुश्न है या अगन है क्या कहिये
सर से पा तक तुझे वो छूता है
आपका पैरहन है क्या कहिये
तीर…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 3:47pm — 16 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 2, 2013 at 12:30pm — 17 Comments
Added by भावना तिवारी on February 2, 2013 at 11:30am — 16 Comments
गणतंत्र की जय !
गणराज्य की जय !
गणतन्त्र की सरहदें,
, गणराज्य की सरहदें,
जो तय की थी हमने,
वो टूट क्यों जाती हैं,
प्रजा के जुटने पर ?
प्रजातंत्र / लोकतंत्र /गणतन्त्र !
प्रजा से डरता क्यों है ?
उसे तो हमने ही बुना था,
अपने लिए !
आज वो खोखला हो गया है !
या खोखला कर दिया गया है !!
वो अपनी ही शक्ति से,
गण से प्रजा से,
कतराता क्यों है ?
शायद गणतंत्र के रखवालों ने,
बदल दी…
ContinueAdded by RAJESH BHARDWAJ on February 1, 2013 at 9:16pm — 4 Comments
आपकी नज़रें इनायत हो गई,
दूर बरसों की, शिकायत हो गई ।
आप हैं तो धडकनों में गीत है,
जिंदगी जैसे, रवायत हो गई ।
बात उनकी मानना बस!फ़र्ज़ है,
जो, जहाँ, जैसी, हिदायत हो गई ।
आपकी खामोशियों को देखकर,
बात अपनी बस! हिकायत हो गई |
फूल सी लम्बी थी उनकी जिंदगी,
साँस लेने में, किफायत हो गई |
मेरी नज़रों का ,करें वो शुक्रिया,
खूबसूरत वो, निहायत हो गई ।
बात टेढ़ी कब, तलक रहती भला,
सादगी बोली, हिमायत हो गई |…
Added by AVINASH S BAGDE on February 1, 2013 at 7:30pm — 13 Comments
आज सुबह उठ कर घर का काम निपटाया बेटे को स्कूल भेज दिया | पतिदेव की तबियत कुछ ठीक नही तो वो अभी सो ही रहे थे |मैंने अपनी चाय ली और किचेन के दरवाजे पर ही बैठ गई कारण ये था कि आज आँगन में बहुत दिनों बाद कुछ गौरैया आयी थीं वो चहकते हुए इधर उधर फुदक रही थीं और मैं नही चाहती थी कि वो मेरी वजह से उड़ जाएँ | तो मैं वहीँ बैठ के उनको देखते हुएचाय पीने लगी | थोड़ी देर बाद गोरैया तो उड़…
ContinueAdded by Meena Pathak on February 1, 2013 at 5:00pm — 19 Comments
ख़ुशी को ये भिगाते हैं ग़मों को ये जलाते हैं
बिना बोले कभी आंसू बहुत कुछ बोल जाते हैं
समझने के लिए इनको मोहोब्बत का सहारा है
......नहीं तो देखने वाले तमाशा ही बनाते हैं ||
सिसक हो बेवफाई की कसक चाहे जुदाई की
पिघलता है सभी का दिल हवन की आहुती जैसे
ख़ुशी नमकीन पानी से अधिक रंगीन बनती है
कभी आंसू लगे सैनिक कभी हो सारथी जैसे ||
कहीं जब दूर जाए लाडला माँ से जुदा होकर
बहाए प्रेम के मोती दुआएं जब निकलती हैं
करे जब याद माँ का घर बहू जो बन…
Added by Manoj Nautiyal on February 1, 2013 at 4:30pm — 8 Comments
मेरे आने और तुम्हारे जाने के बीच
बस चंद कदमों का फासला रहा
न मै जल्दी आया कभी
न कभी तुमने इंतज़ार किया
ये फासला ही तो था
जिसे हमने
संजीदगी और ईमानदारी के साथ निभाया
फासले को…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on February 1, 2013 at 11:30am — 15 Comments
मन में अक्षय स्नेह सभी के
समरस भाव प्रवणता है
फिर भी जाने क्योंकर सबने
बांटी कलुष,कृपणता है
छूत-पाक का लावा-लश्कर
हुलस चूम कब यम आया
कसक धकेले, सदा अकेले
बूंद-बूंद कब ग़म आया
फंसा जुए में गला सभी का
पगतल अतल विकलता है
जाने फिर भी हर लिलार पर
किसने मली खरलता है
तपिश उड़ेले स्वाद कषैले
लिए जागते दीप कहां
रूचिर अधर पर लुटे प्राण को
मिला दूसरा सीप…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on February 1, 2013 at 11:19am — 10 Comments
(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम)
(वज्न: १२२, १२२, १२२, १२२)
बुना कैसे जाये फ़साना न आया,
दिलों का ये रिश्ता निभाना न आया,
लुटाते रहे दौलतें दूसरों पर,
पिता माँ का खर्चा उठाना न आया,
चला कारवां चार कंधों पे सजकर,
हुनर था बहुत…
Added by अरुन 'अनन्त' on February 1, 2013 at 10:59am — 21 Comments
अभिनव प्रयोग-
उल्लाला गीत:
जीवन सुख का धाम है
संजीव 'सलिल'
*
जीवन सुख का धाम है,
ऊषा-साँझ ललाम है.
कभी छाँह शीतल रहा-
कभी धूप अविराम है...*
दर्पण निर्मल नीर सा,
वारिद, गगन, समीर सा,
प्रेमी युवा अधीर सा-
हर्ष, उदासी, पीर सा.
हरी का नाम अनाम है
जीवन सुख का धाम है...
*
बाँका राँझा-हीर सा,
बुद्ध-सुजाता-खीर सा,
हर उर-वेधी तीर सा-
बृज के चपल अहीर सा.
अनुरागी निष्काम है
जीवन सुख का धाम…
Added by sanjiv verma 'salil' on February 1, 2013 at 10:30am — 6 Comments
रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!
उठती भाप,
बढ़ता ताप,
खौलता धमनियों में खून
मचल पड़ते नाखून
खरोंचने को ...खुद को
चिमटा,बेलन घर के अपने थे
आग पर चढ़ा दिया
जला दिया
इच्छाओं को ..
मैं चुपके से देखती हूँ
इन रोटियों में अक्स अपना !!
आती जाती हर आँख
सेंकती नज़र आती है रोटियाँ
भीतर उठता है धुआँ
और गहरे डूब जातीं हैं
भूख में मौन मन
विवश
देखता है
रोटियाँ सिंक रहीं हैं ..!!
~भावना
Added by भावना तिवारी on February 1, 2013 at 8:46am — 9 Comments
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