एक प्रयोग “चौपाई-त्रिभंगी” गीत
दृग सरिता मुख चन्द्र चकोरी, केश मेघ तन स्वर्ण किशोरी
कैसे करूँ कल्पना कोरी, होय नहीं समता भी थोरी
अधरों में रस भर, लाज शर्म धर, नैन झुकाए, मुस्काती
सकुचाती काया, लगती माया, दूर खड़ी हो, इठलाती
मन आह भरे है, चाह करे है, चंचल मन अस, उकसाती
हर रात जगे हम, भर भर कर दम, चैन नहीं है, दिन राती
अंतर्मन की जोरा जोरी, कहूँ दशा क्या तुमसे गोरी
दृग सरिता मुख चन्द्र चकोरी, केश मेघ तन स्वर्ण…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on February 17, 2013 at 6:00pm — 11 Comments
मंद -मंद बयार का झोका ,
पेड़ की टहनियों का झुकना!
झरने से निकलती कल-२ ध्वनि ,
दिनकर का बदली में छुपना!
प्रसून से निकलती सुगंध,
वृक्षों का आलिंगन करना !
चिड़ियों का मधुर गुनगुनाना ,
खुशियों भरा सुन्दर बहाना !
नदियों वृक्षों संग गुज़ारा ,
प्रकृति का अनुपम खज़ाना !
स्वर्ग इसी धरा पर ही है ,
सभी प्राणियों को बतलाना !
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on February 17, 2013 at 12:13pm — 11 Comments
मिला राज्य सम्मान- (दोहे)
-लक्ष्मण लडीवाला
तामस सात्विक राजसी, तीनो ही अभिमान,
रावण और कुम्भ करण, तामस राजस जान।
सात्विक मन से आदमी, करे प्रभु गुणगान,
देख विभीषण को जरा, वे इसके प्रतिमान ।
कुम्भ करण सोता रहा, दिल में भरा प्रमाद,
अहंकार था तामसी, जीवन भर अवसाद ।
राजसी अहंकार वश, आजाये अभिमान,
अभिमानी…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 17, 2013 at 12:00pm — 28 Comments
सामयिक लघुकथा:
ढपोरशंख '
*
कल राहुल के पिता उसके जन्म के बाद घर छोड़कर सन्यासी हो गए थे, बहुत तप किया और बुद्ध बने. राहुल की माँ ने उसे बहुत अरमानों से पाला-पोसा बड़ा किया पर इतिहास में कहीं राहुल का कोई योगदान नहीं दीखता.
आज राहुल के किशोर होते ही उसके पिता आतंकवादियों द्वारा मारे गए. राहुल की माँ ने उसे…
Added by sanjiv verma 'salil' on February 17, 2013 at 10:00am — 16 Comments
यहां कोई क्रांति नहीं होने वाली
लाख हो-हल्ला हो
धरने और अनशन हों
क्रांति की सामग्री मौजूद नहीं यहां
जाति, धर्म, क्षेत्र में बंटे
लोग क्रांति नहीं करते
अपने पेट की फिकर में…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 17, 2013 at 9:48am — 10 Comments
आखिरी बार कब चिल्लाए थे तुम
याद है तुम्हें?
जब पैदा हुए थे
तब शायद
गला फाड़कर
पूरी ताकत के साथ
चीखकर रोए थे तुम
क्योंकि तब…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on February 17, 2013 at 8:56am — 16 Comments
प्रियतम मेरे
Added by Rekha Joshi on February 16, 2013 at 11:30pm — 21 Comments
*
कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य नहीं होता यह सच है.
फिर भी समय-यक्ष प्रश्नों से प्राण-पांडवी रहा बेधता...
*
ढाई आखर की पोथी से हमने संग-संग पाठ पढ़े हैं.
शंकाओं के चक्रव्यूह भेदे, विश्वासी किले गढ़े है..
मिलन-क्षणों में मन-मंदिर में एक-दूसरे को पाया है.
मुक्त भाव से निजता तजकर, प्रेम-पन्थ को अपनाया है..
ज्यों की त्यों हो कर्म चदरिया मर्म धर्म का इतना जाना-
दूर किया अंतर से अंतर, भुला पावना-देना सच है..
कुछ प्रश्नों का कोई भी औचित्य…
Added by sanjiv verma 'salil' on February 16, 2013 at 7:30pm — 10 Comments
कंधों पर तू ढो रहा ,क्यों कागज का भार|
आरक्षण तुझको मिले,पढ़ना है बेकार||-------(व्यंग्य)
मन कागज पर जब चले ,होकर कलम अधीर|
शब्द-शब्द मिलते गले ,बह जाती है पीर||
भावों-शब्दों में चले,जब आपस में द्वंद|
मन के कागज पर तभी,रचता कोई छंद||
टूटे रिश्ते जोड़ दे ,सुन, नन्हीं सी जान|
कोप सुनामी मोड़ दे ,बालक की मुस्कान||
फूलों से साबित करें ,कैसी है ये रीत|
कागज का दिल दे रहे ,कैसे समझें प्रीत||
रिश्ते कागज पर बने ,कागज पर…
Added by rajesh kumari on February 16, 2013 at 6:30pm — 33 Comments
ग़म की बस्ती में पड़ा हूँ ,
इस दर्द से उबार दो !
सच्चा ना सही ,
पर झूठा ही प्यार दो !
नफ़रत के इस रेगिस्तान में ,
प्यार की एक फुहार दो!
हमेशा के लिए ना सही,
पल भर के लिए उधार दो!
ग़मों को जो काट सके,
एक ऐसा औज़ार दो!
रस्ते से जो ना भटकाए,
एक ऐसा मददगार दो!
काट दूँ पूरी ज़िन्दगी,
पल ऐसा यादगार दो!
हो हमेशा खुशियाँ ही खुशियाँ,
एक ऐसा त्यौहार दो !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on February 16, 2013 at 3:24pm — 6 Comments
Added by Tushar Raj Rastogi on February 16, 2013 at 1:00pm — 8 Comments
ज़िन्दगी इतने गम क्यूँ देती है
गम के संग आंसू भी देती है
आंसुओं संग दर्द भी देती है
दर्द के संग तनहाइयाँ भी देती है
तनहाइयों संग फिर रुस्वाइयाँ भी देती है ……
फिर भी हर किसी को जीने की ही चाह होगी
हर पल हर किसी को जीवन की…
ContinueAdded by Parveen Malik on February 16, 2013 at 1:00pm — 12 Comments
"बसंत"
मैंने देखा है
आज दीवार के पीछे से
*ढूंक रहा था
कहीं कोई देख न ले
उसको ऐसे नग्न
इस बार प्रेम की
तेज हवाएं
उतार के ले गयीं
उसके पीले वस्त्र
और
बदले में दे गयीं थी
कुछ ताज़ा गुलाब
जिनकी पंखुड़ी पंखुड़ी …
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 16, 2013 at 12:00pm — 12 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 15, 2013 at 10:38pm — 28 Comments
मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
हृदयाश्रुओं का अर्घ्य दे
हर भाव को सामर्थ्य दे
विह्वल हृदय में गूँजती
मृदुनाद सी सुरधीत है....
मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
सूर्यास्त नें चूमा उदय
दे हस्त…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on February 15, 2013 at 8:00pm — 35 Comments
||ग़ज़ल|
हमसफ़र तुमसा प्यारा मिले न मिले !
साथ मुझको तुम्हारा मिले न मिले !
इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो !
ऐसा मौक़ा दुबारा मिले न मिले !
जीले खुशिओं की पतवार है हाँथ में…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on February 15, 2013 at 7:00pm — 13 Comments
निशा की आँखे दर्द कर रही थी, कई दिनों से जलन हो रही थी बस हर बार खुद का ख्याल न रखने की आदत और हर बार अपना ही इलाज टाल जाना उसकी आदतों में शुमार हो गया था । सुनील आज जबरदस्ती उसको दृष्टि क्लिनिक ले ही गये .. . सामने कतार लगी थी । इतने लोग अपनी आँखे टेस्ट करने आये हैं, सोच कर निशा को हैरानी हुई । अपना नंबर आने पर भीतर गयी और डाक्टर की बताई जगह पर चुपचाप बैठ गयी .. आँखे टेस्ट करते हुए डाक्टर की आँखों में खिंच आई चिंता की लकीरों को निशा ने…
ContinueAdded by Neelima Sharma Nivia on February 15, 2013 at 6:30pm — 9 Comments
सभी आदरणीय सदस्यों को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं
"माँ शारदा स्तुति"
दोहा-
विद्या दाती शारदे, दो विद्या का दान
मोह लोभ का नाश हो , मिटे दंभ अभिमान
चौपाई-
वागीश्वरि माँ शारद प्यारी| पूजें तुमको सब नर नारी ।।
माँ सब तुमसे वाणी पाते| देव दनुज नर सारे ध्याते ।।
श्वेत वर्ण सम चन्द्र सुशोभित| चार भुजा मुख मंडल…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 15, 2013 at 4:00pm — 8 Comments
करुणा निधान माया तेरी.
करूं गुणगान किस मुख से
कैसे करूँ बखान हस्ती तेरी...
मै नादान, माया तेरी
समझ न पाई छाया तेरी
कण कण तू, ज़र्रे ज़र्रे तू
है पत्ते पत्ते झांकी तेरी...
भवरा भी तू,और फूल भी
जीवन बगिया महकी मेरी
कर नूर तेरे की बारिश से
तर…
ContinueAdded by Aarti Sharma on February 15, 2013 at 2:00pm — 14 Comments
माँ सरस्वती के चरणों में अर्पित आज का पुष्प
कल की पयस्विनी पय को भटक रही,
ममता की मारी माँ मय को गटक रही।
आँचल में दूध नहीं पानी आँख का गया,
सहरी सैलाब में सील वो सटक रही।
खिलने दिया नहीं वो बीज ही मसल दिया,
बागवां खामोश सब कलियाँ चटक रही।
दूध में ही पी के दर्द भर लिया कलेजे में,
कदर कोई नहीं बात ये खटक रही।
पूजनीया देवों की अब लूट नीया हो गई,
बच्चों की जमात भी कितना…
Added by mrs manjari pandey on February 15, 2013 at 11:00am — 12 Comments
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