लुढ़क के वहीं आ खड़ी हुई ज़िंदगी
जहाँ थे कभी खड़े,
कदम थे कितने नपे तुले
किस राह पर , कहाँ फिसल के रह गये.
मुड़कर देखना क्या ?
सोच के पछ्ताना क्या ?
हवा भी कुछ ऐसी बही,
चट्टान ढलान में ठहरता क्या ?
दूर दूर तक था रेगिस्तान
नैनों में कितने रेत पड़े,
आँसू किसके बहकर रहे
अतीत के या आने वाले कल के.
फूलों पर चलते थे कभी -
कब पंखुड़ियाँ रह गये मुरझा के,
एक शुष्क पात भी नहीं रहा
देखूँ जिसे कभी नज़र भर के.
जिधर भी गये हाथ…
ContinueAdded by coontee mukerji on March 20, 2013 at 9:50pm — 7 Comments
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।
दिल में ज़ख्म बनकर हँसते हैं आँसू।।
ग़म से जब दिल बेज़ार होता है,
ऐसे हाल में मुस्कुराना भी बेकार होता है,
तभी मोती बनकर चमकते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।
बुरे वक़्त का दर्द सीने में छुपाया नहीं जाता,
क्या करें,जब किसी को ये बताया नहीं जाता,
यही दर्द के मोती बनकर चमकते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।
इस दर्द को सीने में संभालना होता है मुश्किल,
इस बाढ़ को बढ़ने से रोकना होता है…
Added by Savitri Rathore on March 20, 2013 at 8:57pm — 13 Comments
!!जय हिन्द!!
दुइ-दुइ आॅख करो तो करो तुम
कायरता में छिपाओ नहिं
नजरिया।
दुइ-दुइ हाथ करो तो करो तुम
घमण्ड में सुनाओ नहिं
बड़बतिया।
दुइ-दुइ कृपाण रखो तो रखो तुम
दो धार रखाओ नहिं
कटरिया।
इक-इक कदम बढ़ो तो बढ़ो तुम
गुमराह कर दिखाओ नहिं
चैारहिया।
सत्यम इक धर्म चलो तो चलो सब
वतन खिलाफ बढ़ाओ नहिं
मजहबिया!
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 20, 2013 at 8:36pm — 5 Comments
( ये कविता सूरज को दीपक दिखाने के बराबर है फिर भी मेरी तरफ से ओबीओ के सम्मान मे एक तुच्छ सी भेट, )
खुली किताब ( OPEN BOOK )
ये खुली किताब है बडी अनोखी, है गद्य-पद्य रचना की…
Continueमौसम में भी मच रही, फागुन की अब धूम|
झूमें हँस-हँस मंजरी, भँवरे जाते चूम||
डाल-डाल पर खिल रहे,केसर टेसू फूल|
आपस में घुल मिल गए ,बैर भाव को भूल||
महकी डाली आम की,मादक-मादक भोर|
लिखती पाती प्रेम की,होकर मस्त विभोर||
कान्हा को फुसला रही,फागुन प्रीत बयार|
राधा जी को भा रही,स्नेहिल रंग फुहार||
चन्दा ने फैला दिया,चाँदी भरा रूमाल|
सूरज ने बिखरा दिया,पीला ,लाल गुलाल||
क्यारी-क्यारी दे…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 20, 2013 at 4:32pm — 10 Comments
गंगा जमुना भारती ,सर्व गुणों की खान
मैला करते नीर को ,यह पापी इंसान .
सिमट रही गंगा नदी ,अस्तित्व का सवाल
कूड़े करकट से हुआ ,जल जीवन बेहाल .
गंगा को पावन करे , प्रथम यही अभियान
जीवन जल निर्मल बहे ,सदा करे सम्मान .
--- शशि पुरवार
Added by shashi purwar on March 20, 2013 at 4:08pm — 12 Comments
कुछ रिश्ते अनाम होते हें
बन जाते हें
यूँ हीं, बेवजह, बिना समझे
बिना देखे, बिना मिले ....
महसूस कर लेते हें एकदूजे को
जैसे हवा महसूस कर ले खुशबु को
मानो मन महसूस कर ले आरजू को
मानो रूह महसूस कर ले बदन…
Added by Amod Kumar Srivastava on March 20, 2013 at 2:00pm — 7 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 20, 2013 at 11:00am — 2 Comments
जब जिक्र मेरा हुआ होगा
वो कुछ पिघल तो गया होगा
जी भर तुझे देख ही लेता
ओझल कहीं हो गया होगा
अब सांस भर जी नहीं सकते
इस शहर में कुछ धुंआ होगा…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on March 19, 2013 at 8:02pm — 12 Comments
चतुष्पदी ,चैापैया.(10, 8, 12 अन्त में दो गुरू)
जय पाप नाशनी जीवन दानी जन मानस हितकारी!
शंकर शीश जटा उलझी सुलझी जस महदेव विचारी!!
कॅापें दिश देवा भय सब भावा सुलोक विस्मयकारी!
श्री शंभु पुरारे नाथ हमारे धावत दीनन वारी!!1
रस रस कर धारा विष तन सारा अमृत चरनहि सुखारी!
तुम दीन दयाला चॅंद सो हाला देवन की महतारी!!
हे!सुरसरि माता दुख हर जाता आवत शरण तिहारी!
तुम जाति धर्म नहि अवगुण जानहि फल जनत बिन…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 19, 2013 at 7:10pm — 7 Comments
मौलिक अप्रकाशित
धनुही ताके फाग में, आसमानि सुनसान |
नीलकंठ नीलांग को, बैंगनिया पकवान |
बैंगनिया पकवान, सभी को चढ़ी हरेरी |
पीले…
जामवंत ने याद दिलाया, सारी शक्ति पास बुलाया!
तुम हो धीर वीर बलवाना, तुम्हरे गुरू सूर्य भगवाना!!
पवन पुत्र तुम वेगि समाना, इन्द्रादि सब करे प्रनामा!
तुम्ह सागर को तालहि मानो, आप ही सकल बृह्महि जानो!1 बम बम..
काल कूट हर अमृत धारो, भूत प्रेत पटक कर मारो!
तुम हो अटल ज्ञान के राशी, दुष्ट दानव सबके गल फाॅसी!!
तुम हो सब संकट से पारा, सब गुन आगर करो विचारा!
लॅाघि करो तुम सागर पारा, जयति राम श्री राम पुकारा!!2 बम…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 19, 2013 at 10:21am — 8 Comments
जिन्दगी एक कठपुतली सी है
जिसकी डोर .....
वो जो ऊपर बैठा है
उसके हाथो में है
वो जो दीखता नही
मगर है तो सही .....
कोई कहता है कि
भगवान नही हैं
और कोई…
Added by Sonam Saini on March 19, 2013 at 9:30am — 7 Comments
घोंसलों से पलायन करते परिंदे
आकाश की ऊँचाई नापने निकलते हैं
पंख फैलाने की सीख घर से लेके
मदमस्त गगन में उड़ते हैं
जहाँ दाना देखा उतर जाते
फिर नये झुंड के साथ , नयी दिशा में मुड़ जाते
नीले गगन की सैर, इंद्रधनुष की अंगड़ाई में लीन
कभी आसमान में स्वतंतरा, कभी हवा के बहाव के आधीन
घोंसले की गर्मी और मा के दुलार को भूल
नये चेहरों को आँखटे, उनके संग हो…
Added by अनुपम ध्यानी on March 19, 2013 at 12:10am — 1 Comment
अपने अपने भीतर हैं सब
चिेकने-चुपड़े बाहर हैं सब
किस की प्यास बुझा पाएँगे
इ्क टूटी-सी गागर हैं सब
कौन समझ पाएगा इनको
बस…
Added by shyamskha on March 18, 2013 at 10:00pm — 5 Comments
जब पाप कियो तुम भोर भये, दिन रात भला तुम का करिहो!
सब नाचत - गावत ताल दियो, तुम ताल तलैयन डूब रहो!!
फिर गंग तरंग बहे न बहे, रखि आपन मान बढ़ाय रहो!
इत डारि रहे खर-मैल बढे, उत गंग कषाय बढ़ाय रहो!!1
नित डारत हैं मल नालन कै, नहि दूसर देखि उपाय रहो!
तुम बालक गंग तरंगिनि कै, कलि कालहि मातु लजाय रहो!!
अब तो सिर सौं तुम लाज करो, यह देश तुझे ललकार रहो!
तुम शान कमान धरे उर मा, गण मान कहाय लुकाय रहो!!2
अपनी छतरी अपने लड़के, नहि होत सहाय तलाड़…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 18, 2013 at 9:52pm — 6 Comments
इक और व्यंग्य कविता पसंद आई के नही बताना जी
इस बस्ती में भेडियें रहते उनको बाहर निकाले कौन,
सब के घर अब शीशे के है पत्थर क्यों उछाले कौन।
इकलौते बेटे नें माँ बाप को ही घर से निकाल दिया,
वृद्धआश्रम में भी गद्दारी है बुजुर्गों को सम्भाले कौन।
नामी गुंडे इश्तयारी मुजरिम देखो जेल मंत्री बन बैठे,
चोरों का जब राज हो गया देखे गा अब तालें कौन।
महंगाई पे निरन्तर चढ़े जवानी ऊंचा उंचा कूद रही,
सारथी जब अनजान हुआ…
ContinueAdded by rajinder sharma "raina" on March 18, 2013 at 4:00pm — 1 Comment
हो गई होली
जलाई चन्द लकड़ियाँ, तो हो गई होली
खाई गुजिया पपड़ियाँ, तो हो गई होली
हुए हुड्दंगों मै शुमार, तो हो गई होली
निकाले दिल के गुबार, तो हो गई होली
पी दो घूँट शुरा, तो हो गई होली
निकाले चाकू छुरा, तो हो गई होली
छानी ठंडाई भांग, तो हो गई होली
खींची अपनों की टांग, तो हो गई होली
छेड़ी वेसुरी तान ,तो हो गई होली
किया नाली मै स्नान, तो हो गई होली
देखे रंगीन माल, तो हो गई…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on March 18, 2013 at 10:46am — 2 Comments
‘साठ हजार मरे पुरखे कहॅ, नाम नहीं कछु जात पुकारत!
देवनदी यदि पैर पड़े तब, मान समान बढ़े निज भारत!!
सोच विचारि करें उर नारद, बात भगीरथ को समझावत!
सारद शंकर शेष महेशहि, को अब जाय मनावहु राजत!!
जाप जपे हरि नाम रटे तप, बीत गये कइ साल युगो दिन!
शंकर होत सहाय नरायन, छोड़ रहे…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 17, 2013 at 11:30pm — 4 Comments
होली गीत
अर र र र देखो सखी तो पूरी लाल हुई
रंग ना गुलाल मै तो शर्म से लाल हुई।
पीर ना दहन मोरे तन मन में आग लगी -2
चाम ना वसन जले मै तो जल लाल हुई।
रंग ना-------------
ले के रस रंग चली देवरों की टोली - 2
घेर घेर घेर मई तो जय कन्हैया लाल हुई।
रंग ना -------------
आज तो बाबा भी करे हैं ठिठोली - 2
लाज की चुनर ओढ़ मै हँस हँस निहाल हुई।
रंग ना…
ContinueAdded by mrs manjari pandey on March 17, 2013 at 11:07pm — 9 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |