For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

April 2023 Blog Posts (22)

श्रमिक दिवस के दोहे

थकन भले ही देह में, किन्तु न माने हार

स्वर्ग श्रम से नित करे, वह नीरस संसार।१।

*

लहू देह से बन बहे, जिसके पलपल स्वेद

जग में बाँटे  हर्ष  जो, सब  से  लेकर खेद।२।

*

कर्मलीन जो हर समय, दिवस रात्रि में जाग

जगने  देते  पर  नहीं, शोषक  उस का भाग।३।

*

श्रम से उस के  हो  गये, चन्द  लोग धनवान

जिसकी हालत को कहे, जग दोषी भगवान।४।

*

हिस्से में ले जी रहा, भले भूख मजदूर

गाली, लाठी, गोलियाँ, मिलें उसे भरपूर।५।

*

गुजर किया मजदूर ने,…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2023 at 11:50am — 2 Comments

गजल -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

बातों में सिर्फ देश का उद्धार हो रहा

बाँकी स्वयं के वास्ते व्यापार हो रहा।१।

*

चमकेगी उनकी और सियासत पता उन्हें

बेवश युवा यहाँ  का  जो मिस्मार हो रहा।२।

*

कीमत बढ़े ही जा रही हर एक चीज की

निर्धन का जीना  रोज  ही दुश्वार हो रहा।३।

*

कुर्सी पे जब  से  बैठे  हैं  ईमानदार ढब

नेता वतन का और भी मक्कार हो रहा।४।

*

आँधी चली है देश में कैसी विकास की

लाचार अब तो और भी लाचार हो रहा।५।

*…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 28, 2023 at 9:55pm — 2 Comments

जीवन और सत्य

उषा अवस्थी

क्षमाशीलता प्रेम की नदी बहे जिस गाँव

जिसको जो भी चाहिए, मिले वहीं उस ठाँव

करुणा औ वैराग्य का जिसमें जगा विवेक

जन्म उसी का इस धरा पर सार्थक,नि:शेष

जीवन अभिनय की विधा,चले श्रॄंखलाबद्ध

इच्छाओं , आशाओं की उलझन से सन्नद्ध

जिसने तोड़ी यह कड़ी , हुआ सत्य,उन्मुक्त

पार सभी सीमाओं से जाग्रत ,शुद्ध , प्रबुद्ध

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on April 28, 2023 at 10:00am — 1 Comment

गीत -२३ (लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

फागुन  बनकर  डाकिया, लाया  यह संदेश।

घर भेजो ऋतुराज को, पतझड़ जा परदेश।।

*

माघ पठाता  चैत  को, फागुन कर उपहार।

फूल शूल सब आस  में, आ  उमड़े हैं द्वार।।

हवा किरण अब गंध का, करते हैं आभार।

नूतन कोंपल  देख  कर, नाच रहा सन्सार।।

*

उमड़े झट यह देखने, सुख का गेह प्रवेश।

फागुन  बनकर  डाकिया, लाया  यह संदेश।।

*

मधुबन में मन के जहाँ, बैठा था पतझार।

नीरसता की ही सहज, नित बहती थी धार।।

फूटी कोंपल आस की, है हर्षित घर द्वार।

उल्लासों का फिर… Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 27, 2023 at 9:03pm — 4 Comments

नफ़रत का पौधा (नवगीत)

महावृक्ष बनकर लहराता

नफ़रत का पौधा

पत्ते हरे फूल केसरिया

लाल-लाल फल आते

प्यास लहू की लगती जिनको

आकर यहाँ बुझाते

सबसे ज्यादा फल खाने की…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 26, 2023 at 9:53am — 4 Comments

अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

2122   2122    2122   212

हमने तो मुद्दत से उनका ख्वाब भी देखा नहीं

लग रहा है इस दिए में तेल अब ज्यादा नहीं

ज़िन्दगी का क्या भरोसा डगमगाते दौर में

आप तक ले जाये ऐसा तो कोई रस्ता नहीं

शायरी भी बोझ दिल का बन गयी है दोस्तो

वो कोई कैसे पढ़ेगा जो मैं लिख सकता नहीं

तुम अगर आ जाओ अब भी तो ही क्या हो जाएगा

मैं नहीं,तुम भी नहीं वो,वक़्त भी वैसा नहीं

एक सूरत लेकिन अब भी है मेरे उद्धार की

पर सिवा तेरे किसी में ध्यान भी…

Continue

Added by मनोज अहसास on April 25, 2023 at 11:43pm — 5 Comments

चुटकुला(लघुकथा)

दोनों के ठहाकों की गूँज सुन एकत्र हुई भीड़ से आवाज आई, "मौन माहौल में ऐसी हँसी क्यूं, भाई?"
"खुद पर हँस रहा हूं।" पहले व्यक्ति ने जवाब दिया।
"कारण?" भीड़ ने जानना चाहा।
"अपने मत से मैंने ऐसी सरकार चुनी। मति मारी गई थी मेरी।"
"और तुम....?" दूसरे से सवाल हुआ।
"मैंने मत नहीं दिया था। खुश हूं।"
फिर भीड़ शराबियों की तलाश में आई पुलिस के पीछे दौड़ी जो एक अधनंगे भिखारी को नशाखोरी के आरोप में पकड़कर ले जाने लगी थी।
"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Added by Manan Kumar singh on April 25, 2023 at 1:53pm — 2 Comments

पुश्तैनी कर्ज़

चार रुपये लिए थे, मेरे दादा ने कर्ज़ में

कल तक बाबा चुका रहे थे, ब्याज उसका फर्ज़ में

 

रकम बढ़ी फिर किश्त की, हर साल के अंत में

मूलधन खड़ा है अब भी, ब्याज दर के द्वंद में

 

चार बीघा ज़मीन थी, अपना खेत खलिहान था

हँसता खेलता घर हमारा, स्वर्ग के समान था

 

बाढ़ आयी सब तबाह हुआ, बाबा की हिम्मत टूट गयी

कल तक जो खिली हुई थी, किस्मत जैसे…

Continue

Added by AMAN SINHA on April 23, 2023 at 8:32am — 2 Comments

दोहा मुक्तक .....

दोहा मुक्तक 

मन को जब मन में मिली , मन चाही पहचान ।
मन  में   जागे   प्यार   के, अनजाने    तूफान ।
मन  की  मोहक  कल्पना, मन के  सुन्दर तीर -
मन ही मन मुस्का रहे, मन  के  सब  अरमान ।
                      * * *
पागल  इच्छा  सो   गई,  स्वप्न  हुए  साकार ।
चातक  नैनों  को  मिला, तृष्णा  का  उपहार ।
शापित अभिलाषा हुई, मन को मिला न मीत -
क्षीण  बिम्ब  सब हो  गए, धधक  पड़े शृंगार ।

सुशील सरना / 22-4-23

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on April 22, 2023 at 2:54pm — 2 Comments

ग़ज़ल

212 212 212 212

मैं उसी मोड़ पर सोचता रह गया

वो गया याद का सिलसिला रह गया



उसके होंठो पे कुछ बात सी रह गयी

मेरे मन में भी कुछ अनकहा रह गया



देख कर सब मुझे बात करने लगे

हाय क्या शख़्स था और क्या रह गया



आज फिर आँखों में है नमी अज़नबी

आज फिर आइना ताकता रह गया



मिट गया प्यार मायूस नाकाम हो

प्यार का दर्द लेकिन बचा रह गया



कहकहों से भरी चाँद की महफ़िलें

इक चकोरा उसे टेरता रह गया



दोस्त दामन बचाकर बिछड़ते…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 21, 2023 at 8:00am — 2 Comments

असत्य स्वीकार नहीं

उषा अवस्थी

धरा पाँव जब सत्य मार्ग पर
मुश्किल पथ,आसान नहीं

सही वस्तु की ग़लत व्याख्या
इस मन का आधार नहीं

तीव्र धार की असि ग्रीवा पर
हो, असत्य स्वीकार नहीं

शान्त,अडिग,निःशंक,अकेला
"मै", लव भर का भार नहीं

दृष्टा पर अवलम्ब दृश्य
दृष्टा तो मुक्त , विकार नहीं

अकथ,अलौकिक,अतुल,अनामय
को मिथ्या स्वीकार्य नहीं

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on April 19, 2023 at 10:22pm — 2 Comments

अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

एक ताज़ा ग़ज़ल जो अधूरी लगती है

122 122 1212 122 122 1212

मेरे साथ लम्हें गुज़ार ले,मुझे भूलने का ख्याल क्यों?

मुझे इस भंवर से उबार ले,मुझे भूलने का ख्याल क्यों?

भले आज तुझसे मैं दूर हूँ, किसी बेबसी का सुरूर हूँ

मुझे फिर से दिल में उतार ले,मुझे भूलने का ख्याल क्यों?

मैं तेरी नज़र का करार था ,तेरे सूने मन की बहार था।

मुझे गौर से तो निहार ले ,मुझे भूलने का ख्याल क्यों?

मुझे देख ले फिर उसी तरह,मेरे पास आजा किसी तरह

मुझे चाँद कह के पुकार ले,मुझे भूलने…

Continue

Added by मनोज अहसास on April 18, 2023 at 11:17pm — 2 Comments

एहसास (कविता)

बदलते मौसम-से बदल गए 

बढाते हुए कदम और आगे बढ़ गए 

कौन कहता है कि हरजाई हो 

बदलना था तुमको और तुम बदल गए|

छूट गए गलियारे कितने ही! 

रूठ गए सुखद पल उतने ही 

अब बहार आये लगता नहीं है 

 क्यारियाँ महके लगता नहीं है| 

नहीं! नहीं! कुछ अलग नहीं हुआ है 

दुनिया का दस्तूर ही तो निभाया है 

भावनाओं का कुचलना स्वाभाविक था 

यूँ कदम-तले रौंद देना ही ठीक था | 

खुश हैं गलियारे तुम्हारे करीब…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 17, 2023 at 6:35pm — No Comments

अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास :इस्लाह के लिए

2122 1122 1122 22

उठ के चल राह में तू मेरी उजाले कर दे

या कि चुपचाप मुझे मेरे हवाले कर दे

तुझको पीना है मेरा खून अभी मुद्दत तक

मेरे हिस्से में भी दो चार निवाले कर दे

अपनी तकदीर से ज्यादा तुझे शक है मुझपर

मेरे पीछे तू कईं देखने वाले कर दे

ये भी मुमकिन है बदल दे मुझे रस्तों का मिजाज़

ये भी मुमकिन है तेरे पाँवों में छाले कर दे

तोड़ डाला है हवाओं ने भरम मेरा तो

कहीं ये दौर तेरे…

Continue

Added by मनोज अहसास on April 13, 2023 at 11:22pm — No Comments

श्रम चोर

उषा अवस्थी

सुबह सबेरे थैलियाँ लेकर निकलें आप

तोड़ पुष्प झोली भरें प्रभु-पूजा के काज

भगवन भूखे भाव के, न जानें यह मर्म

दूजों के श्रम की करें चोरी, नित्य अधर्म

माली से ले आज्ञा, गुरु के हित, सुखधाम

फुलवारी में जनक की, फूल चुने तब राम

मन्दिर में प्रभु को प्रसन्न करने के हित,भोर

गलियों - गलियों डोलते हैं प्रसून के चोर

पाले, पोसे , सींच कर बड़ा करे कोई और

नष्ट करें शाखाओं को खींच-खींच…

Continue

Added by Usha Awasthi on April 13, 2023 at 5:58pm — 2 Comments

ग़ज़ल 'नूर' की - कोई हुस्न-परस्त जो अपने रब की बातें करता है

कोई हुस्न-परस्त जो अपने रब की बातें करता है

तिल की बातें करता है या लब की बातें करता है.

.

दिल तो फिर भी धड़कन धड़कन सब की बातें करता है

ज़ह’न है साहूकार फ़क़त मतलब की बातें करता है.

.

लड़ते लड़ते दुश्मन से भी हो जाता है इश्क़ अजब

जुगनू भी अक्सर दीये से शब् की बातें करता है.

.

इक मुद्दत से यार! चलन से बाहर है ये लफ़्ज़-ए-वफ़ा  

दिल नादान मुअर्रिख़ जैसा; कब की बातें करता है.                         मुअर्रिख़- इतिहास-कार…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 13, 2023 at 4:00pm — 6 Comments

क़िस्मत के मेरे पन्ने ही कोरे निकल गए (ग़ज़ल)

दिल में जो मेरे ख़्वाब मुहब्बत के पल गए

इस ज़िन्दगी के सारे मआनी बदल गए

ग़ैरों में इतना दम कहाँ था मात दे सकें 

अपने समर के बीच विभीषण निकल गए 

आहों का मेरी उन प नहीं कुछ असर हुआ

सुन कर मगर उसे कई पत्थर पिघल गए

उसकी जुदाई में मेरी हालत को देख कर

यमराज के भी भेजे फ़रिश्ते दहल गए

दावा था जिनका साथ निभाएँगे उम्र भर

ग़ुर्बत में जीता देख के रस्ते बदल गए 

उसको मैं बेवफ़ाई का दूँ दोष किस…

Continue

Added by Ajay Kumar on April 11, 2023 at 8:48pm — No Comments

कुछ कर न सका

वो मुझसे दूर होती गई

और मैं देख्ता रहा चुपचाप

कुछ कर न सका

दुख की सीमा मत पूंछो

कितना कम्मपित था हृदय अरे

मन भीषण सन्ताप से पीडित था

कुछ कर न सका

कुछ कर न सका हे नाथ

वो मुझसे दूर होती गई

और मैं देख्ता रहा चुपचाप

मानव हृदय भी कैसा है

कुछ सोच रहा कुछ होता है

मानव हृदय भी कैसा है

कुछ सोच रहा कुछ होता है

बस में इसके कुछ भी तो नहीं

बस पडा पडा ये रोता है

वो दूर गई जाती ही रही…

Continue

Added by DR ARUN KUMAR SHASTRI on April 10, 2023 at 1:30am — No Comments

दोहा मुक्तक .....

दोहा मुक्तक 

नाम बदलने से कहाँ , खुलें भाग्य के द्वार ।

बिना  कर्म  संसार  में, कब  होता  उद्धार ।

जब तक चलती जिन्दगी, चले जीव संग्राम -

जीवन के हर मोड़ का, हार  जीत  शृंगार ।

                         ***

काहे  अपने  रूप  पर, करता  जीव गुमान ।

कहते   हैं   रहती  नहीं, उम्र  ढले  पहचान ।

बुझ कर भी बुझती नहीं, अरमानों की आँच -

मुट्ठी   भर    की   जिंदगी, तेरी  है   इंसान ।

सुशील सरना /

मौलिक एवं…

Continue

Added by Sushil Sarna on April 5, 2023 at 1:01pm — 2 Comments

(ग़ज़ल) जो सच का पैरोकार नहीं

22     22     22     22

 

जो सच का पैरोकार नहीं 

वो काग़ज़ है अख़बार नहीं 

 

बेशक मैं गुल का हार नहीं

पर नफ़रत का भण्डार नहीं 

 …

Continue

Added by Ajay Kumar on April 4, 2023 at 9:00pm — 2 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के।लिए सादर"
3 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए सादर"
3 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
6 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, आपका टिप्पणी व सुझाव के लिए हार्दिक आभार। एक निवेदन है कि — काम की कोई मानता…"
36 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय Dayaram Methani जी आदाब  ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है।  ग़ज़ल 2122 1212 22 .. इश्क क्या…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम चंद गुप्ता जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service