Added by कमल वर्मा "गुरु जी" on May 16, 2011 at 4:34pm — No Comments
ज़िन्दगी के कैनवास पर
जीवन का मनमोहक चित्र
बनाता है वो
रंग भी मुरीद हैं
उसकी इस कला के ,
रंग प्यार के
रंग अपनेपन के
रंग दोस्ती के
रंग करुणा…
ContinueAdded by Veerendra Jain on May 16, 2011 at 11:50am — 4 Comments
अभी अभी मैं नींद से जागा…
ContinueAdded by Ravindra Koshti on May 16, 2011 at 12:26am — 2 Comments
Added by Abhinav Arun on May 15, 2011 at 8:30pm — 6 Comments
ग़ज़ल : - राग मुझको सुहाता नहीं दोस्तो !
राग मुझको सुहाता नहीं दोस्तो ,
मैं कोई गीत गाता नहीं…
ContinueAdded by Abhinav Arun on May 15, 2011 at 8:00pm — 6 Comments
Added by R N Tiwari on May 15, 2011 at 7:00pm — 2 Comments
गजल
मुफलिसी बेबाक हो गई।
भूख ही खुराक हो गई।।
जिसने किया खुदी को बुलंद
जहाँ में उसकी धाक हो गई।।
जो पल में छीन लेते थे जिंदगी।
वो हस्तियां भीं खाक हो गई।।
किसी को गरज नहीं यहां जहाँ की।
सबको अपनी प्यारी नाक हो गई।।
जिसने इंकलाब का बिगुल बजाया।
उसकी बात "चंदन" मजाक हो गई।।
Added by nemichandpuniyachandan on May 15, 2011 at 5:30pm — 1 Comment
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on May 15, 2011 at 8:25am — 5 Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 15, 2011 at 1:30am — 9 Comments
आप सभी ने मेरी ग़ज़लों को सराहा...धन्यवाद के साथ हिंदी का एक गीत आप सबके समक्ष रख रहा हूँ...आशा करता हूँ कि इसके लिए भी आप लोगों का आशीर्वाद मुझे पूर्ववत मिलेगा...
= सावन के अनुबंध =
सावन के अनुबंध...
नयन संग सावन के अनुबंध.....
रिश्तों की ये तपन कर गई, मन…
ContinueAdded by डॉ. नमन दत्त on May 14, 2011 at 4:49pm — 4 Comments
Added by Ravindra Koshti on May 14, 2011 at 1:30pm — 2 Comments
साथियो,
सादर वंदे,
मैं संगीत की साधना में रत उसका एक छोटा सा विद्यार्थी हूँ और कला एवं संगीत को समर्पित एशिया के सबसे प्राचीन " इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ " में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हूँ...मुझे भी ग़ज़लें कहने का शौक़ है...मैं " साबिर " तख़ल्लुस से लिखता हूँ... अपनी लिखी दो ग़ज़लें आप सबकी नज़र कर रहा हूँ...नवाज़िश की उम्मीद के साथ......
= एक =
रूह शादाब कर गया कोई.…
ContinueAdded by डॉ. नमन दत्त on May 14, 2011 at 9:00am — 13 Comments
Added by Hilal Badayuni on May 14, 2011 at 5:30am — 8 Comments
Added by vikas rana janumanu 'fikr' on May 13, 2011 at 1:00pm — 9 Comments
ग़ज़लContinue
अज़ीज़ बेलगामी
हर शब ये फ़िक्र चाँद के हाले कहाँ गए
हर सुबह ये खयाल उजाले कहाँ गए
अब है शराब पर या दवाओं पे इन्हेसार
जो नींद बख्श दें वो निवाले कहाँ गए
वो इल्तेजायें मेरी तहज्जुद की क्या हुईं
थी अर्श तक रसाई, वो नाले कहाँ गए
मंजिल पे आप धूम मचाने लगे जनाब
मुझ को ये फ़िक्र, पांव के छाले कहाँ गए
दस्ते कलम में आज भी अखलाक सोज़ियाँ
किरदारसाज थे जो रिसाले, कहाँ गए
गुलशन के बीच खिलने लगे…
Added by Azeez Belgaumi on May 13, 2011 at 10:11am — 16 Comments
Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on May 13, 2011 at 6:00am — 5 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on May 12, 2011 at 3:57pm — 2 Comments
Added by vimla bhandari on May 11, 2011 at 1:37pm — 3 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 11, 2011 at 1:04pm — 5 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on May 11, 2011 at 8:42am — No Comments
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