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May 2011 Blog Posts (84)

बड़ा वक़्त हो गया

यह रचना मेरे छोटे से (उम्र से तो २८ साल का है पर लगता मेरे बेटे जैसा ही है), बहुत प्यारे से भाई के लिए लिखी है, वो दिल्ली में रहता है और उससे मिले करीब ढाई साल हो गए हैं... मेरे दो भाई हैं एक बड़ा और एक छोटा, इश्वर करे सब को ऐसे भाई मिलें

 

शानू के हाथों में तेरे हाथ नज़र आते हैं,

मगर तेरे हाथों को हाथ में लिए बड़ा वक़्त हो गया

 

स्काइप पे तुझे देख-सुन लेती हूँ,

पर तुझे गले से लगाए बड़ा वक़्त हो गया

 

कोई ख़ास बात होती है तो ही…

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Added by Anjana Dayal de Prewitt on May 31, 2011 at 9:00pm — No Comments

दारू का दानव

निम्नांकित पद्यों में घनाक्षरी छंद है, ‘कवित्त’ और ‘मनहरण’ भी इसी छन्द के अन्य नाम हैं। इसमें चार पंक्तियाँ होती है और प्रत्येक पंक्ति में ३१, ३१ वर्ण होते हैं। क्रमशः ८, ८, ८, ७ पर यति और विराम का विधान है, परन्तु सिद्धहस्त कतिपय कवि प्रवाह की परिपक्वता के कारण यति-नियम की परवाह नहीं भी करते हैं। यह छन्द यों तो सभी रसों के लिए उपयुक्त है, परन्तु वीर और शृंगार रस का परिपाक उसमें पूर्णतया होता है। इसीलिए हिन्दी साहित्य के इतिहास के चारों कालों में इसका बोलबाला रहा है। मैं इस छन्द को छन्दों का…

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Added by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on May 31, 2011 at 8:19am — 9 Comments

बेवफ़ाओं से दोस्ती

मुझसे तन्हाई मेरी ये पूछती है,

बेवफ़ाओं से तेरी क्यूं दोस्ती है।

 

चल पड़ा हूं मुहब्बत के सफ़र में,

पैरों पर छाले रगों में बेखुदी है।

 

पानी के व्यापार में पैसा बहुत है,

अब तराजू की गिरह में हर नदी है।

 

एक तारा टूटा है आसमां पर,

शौक़ की धरती सुकूं से सो रही है।

 

बिल्डरों के द्वारा संवरेगा नगर अब,

सुन ये, पेड़ों के मुहल्ले में ग़मी है।

 

हां अंधेरों का मुसाफ़िर चांद भी है,

चांदनी के…

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Added by Dr. Sanjay dani on May 31, 2011 at 7:08am — 2 Comments

ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है ..

सुनी मैंने दिल की जब जब मुझे  रुस्वा कराया है
खुदा तुझको बताकर मुझ से  फिर  सजदा कराया है |
फकत हालात  ही रचते हैं ये  साजिश मेरी खातिर  
कभी तुमसे कभी खुदसे मेरा फासला कराया है |
जिसे सींचा लहू से मेरे अपने  आज उसकी ही
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है |
कभी मेरी कभी तेरी कभी इसकी कभी उसकी
लगा बोली सभी की रूह से धंधा कराया है |
बनाती है, मिटाती है, मिटाकर फिर बनाती…
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Added by Veerendra Jain on May 31, 2011 at 12:27am — No Comments

मुक्तिका : भंग हुआ हर सपना संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :
भंग हुआ हर सपना

संजीव 'सलिल'

*
भंग हुआ हर सपना,
टूट गया हर नपना.

माया जाल में उलझे
भूले माला जपना..

तम में साथ न कोई
किसे कहें हम अपना?

पिंगल-छंद न जाने
किन्तु चाहते छपना..

बर्तन बनने खातिर
पड़ता माटी को तपना..

************

Added by sanjiv verma 'salil' on May 31, 2011 at 12:02am — No Comments

दूर कहीं शोर सुनाई देता है

लिखने, पढ़ने और रोज़मर्रा के कामों सारा दिन निकल जाता है,

दिल करता है की यहीं दिल लगा लूं,

घर वालों की देख रेख करूँ, उनका…
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Added by Anjana Dayal de Prewitt on May 30, 2011 at 9:30pm — 2 Comments


प्रधान संपादक
घनाक्षरी छंद

(1)

 

(भ्रूण हत्या)

 

जैसे बेटा पैदा होना, इक वरदान कहा,

घर में न बेटी होना, एक बड़ा श्राप है !

 

होती न जो बेटियां तो, होते कैसे बेटे भला

इन्ही की वजह से तो, शिवा है - प्रताप है !

 

पैदा ही न होने देना, कोख में ही मार देना,

हर मज़हब में ये, घोर महापाप है !

 

महामृत्युंजय सम, वंश के लिए जो बेटा,

उसी तरह कन्या भी, गायत्री का जाप है…

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Added by योगराज प्रभाकर on May 30, 2011 at 9:20pm — 20 Comments

कविता : - ये स्वप्न नहीं

कविता : - ये स्वप्न नहीं

कहाँ मानव रहे हम
हमारे शहर सारे बन गए वन
भटकता रास्तों में सारा जनगण
सभी संशय में फंस कर बंद तरकश
प्रतीक्षा कर रहे हैं
मर रहे हैं !

नहीं है स्वप्न कोई
और न यथार्थ ही ये
चिंकोटी काटता खुद को
गड़ाता खुद ही पंजे
चमड़ी खुद ही उधेड़ता आप अपनी
मैं खाता खुद ही अपना मांस - टुकड़ा
चिल्लाता फिर रहा हूँ
की हाँ मैं आदमी हूँ !!

Added by Abhinav Arun on May 29, 2011 at 10:57am — 2 Comments

जिंदगी है प्यासी सुधा के लिए..

  जिंदगी है प्यासी सुधा के…
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Added by R N Tiwari on May 28, 2011 at 8:00pm — 5 Comments

अट्टालिका पर अटका हुआ बयान

अट्टालिका पर अटका हुआ बयान

...........................

रतन टाटा ने मुकेश अम्बानी की उस शानदार अट्टालिका पर आश्चर्य व्यक्त किया,जिसमें वह सपरिवार रहते हैं और जिसकी कीमत इतनी है कि दस डिजिट के कैल्कुलेटर में भी न समाये.उन्होंने मुकेश अम्बानी को संवेदनशील बनने की सलाह देते हुए कहा कि अकूत धन सम्पदाधारी लोगों को जनसामान्य के  जीवन स्तर में सुधार के लिए कुछ न कुछ ज़रूर करना चाहिये.

रतन टाटा बाद में अपने बयान से यह कहते हुए मुकर गए कि उनके कहे को मीडिया ने तोडमरोड कर शरारतपूर्ण अंदाज़ में… Continue

Added by nirmal gupt on May 28, 2011 at 12:48pm — 1 Comment

रात से हमने दोस्ती कर ली

रात  से हमने दोस्ती कर ली

लोग कहते है, दिल्लगी कर ली

 

ये फ़िज़ा बहकी, हवा महकी सी

शाम ने तेरी मुख़बिरी कर ली

 

ये हिज़्र मेरे बस की बात नहीं

लो सजा अपनी मुलतवी कर ली

 

तेरा ख्याल ले के सोये थे

ख्वाब में हमनें रोशनी कर ली

 

जो इल्म आया महोब्बत का 'अमि'

आशिको ने शायरी कर ली                                  ~अमि'अज़ीम'

Added by अमि तेष on May 28, 2011 at 12:13am — No Comments

इंतज़ार, अँधेरा और अकेलापन

कभी महफ़िल हुआ करती थी यहाँ,
अब सब है धुआं-धुआं,
इंतज़ार, अँधेरा और अकेलापन
बसता है अब यहाँ 
किसी की आहट, कोई दस्तक,
किसी का आना, कहाँ होता है अब यहाँ?
शायद इस कुँए में वो मिठास ही नहीं रही  
के कोई प्यासा रुकता यहाँ 
बस बेरंग पर्दों से खेलती है हवा आजकल,
शमा कहाँ जलती है अब यहाँ?
साज़ खामोश ही रहते हैं अक्सर,
मोसिक़ी-ए-ख़ामोशी बजती है अब यहाँ 
सब कद्रदान…
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Added by Anjana Dayal de Prewitt on May 27, 2011 at 6:58pm — No Comments

अच्छा है

तेरी यादों में खुदको इस तरह से झोंक रखा है
के मैंने कुछ पलों को तेरी खातिर रोक रखा है

तडपता देखकर मुझको अगर तू खुश हुआ तो क्या
मेरी उम्मीद बंधती है तेरा ये शौक़ अच्छा है

सिर्फ तू हो ख्यालों में, मेरी हर सोच में तू हो
न कोई पास आये मैंने सबको टोक रखा है

ये बेटे कल तुम्हारी सब ज़मीनें बाँट ही लेंगे
तो इनकी छह में तुम न उजाडो कोख अच्छा है

Added by Vishal Bagh on May 27, 2011 at 1:35pm — No Comments

प्यार करते हैं बेइन्तहा

प्यार करते हैं बेइन्तहा इम्तहां चाहे ले ले जहाँ।

हम ना होंगे जुदा जाने जाँ, हम हैं दो जिस्म और एक जां।।



चाँदनी चाँद में ज्यों बसी, फूल में है ज्यों मीठी हँसी।

त्योंही उर में बसी उर्वसी छोड़कर तुम ये सारा जहां।।



सुन हकीकत ऐ हुस्ने परी, मैं हूँ शायर हो तुम शायरी।

चश्मो दिल में हो कब से मेरी, कह नहीं सकती है ये जुबां।।



बिन पिये भी नहीं होश है क्या नशीला ये आगोश है।

जामे लब  में भरा जोश है, हैं मिलाये जमीं आसमां।।



मय मयस्सर हुई ही नहीं, हमको… Continue

Added by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on May 27, 2011 at 8:46am — 1 Comment

ऐ ज़िन्दगी कभी तो मुझपे मेहरबां हो जा

ऐ ज़िन्दगी कभी तो मुझपे मेहरबां हो जा,…

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Added by Anshumali Srivastava on May 27, 2011 at 8:00am — No Comments

सरदार भगत सिंह के आत्मा की आवाज

सरदार भगत सिंह के आत्मा की आवाज



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एक दिन कलम ने आके चुपके से मुझसे ये राज खोला ,



कि रात को भगत सिंह ने सपने में  आकर उससे  बोला,







कहाँ  गया वो  मेरा इन्कलाब कहाँ गया वो  बसंती… Continue

Added by Rajeev Kumar Pandey on May 27, 2011 at 3:30am — No Comments

अनुभव..

जिन्दगीं हर घड़ी

एक नया अनुभव लाती है

पर मैं क्या करु मेरा हर नया अनुभव

मेरे हर पुराने अनुभव से

कुछ कड़वा है, कुछ फ़ीका है, कुछ खारा है

कुछ दुर ही सही

मैं उसके साथ चलता हूँ

कभी सभ्लता हूँ, कभी फ़िसलता हूँ

मैं उसे नहीं बांटता

ये ही मुझे रफ़्ता रफ़्ता बांट देता है

मेरी इस छोटी सी जिन्दगी को

जो मेरे लिये ही काफ़ी नही

दो आयामों में काट देता है

वह मेरा सबसे पुराना मित्र है

और सबसे बड़ा…

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Added by अमि तेष on May 26, 2011 at 6:42pm — No Comments

जुर्रत हो गयी है

Ye Jurrat ho gayi hai

Mohabbat ho gayi hai



Use bahi ne maaraa



siyasat ho gayi hai



Zalimon bach ke rehna



Baghawat ho gayi hai



Yahan matam na ho gar



Shahadat ho gayi hai



Buzargon ka karoon kya



Wasiyat ho gayi hai



Fata bam aur kya ho



Mazzamat ho gayi hai

ये जुर्रत हो गयी है

मोहब्बत हो गयी है



उसे भाई  ने…

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Added by Vishal Bagh on May 26, 2011 at 4:00pm — 1 Comment

अब किस के लिए ,

अधुरा जीवन जिऊँ  ,

अब किस के लिए ?



तू उनका ही नहीं हुआ .

जिन्होंने तुझे जन्म दिया,

बोल जी रहा हैं तू ,

अब किस के लिए ?



पैसा सब कुछ नहीं हैं ,

मगर पैसा ना हो ,

तो कुछ भी नहीं हैं ,

और तू पैसे के लिए ,



घरवार छोड़ दिया ,

तू आया साथ लाया ,

अपने बीबी और बच्चो को ,

उनको छोड़ दिया ,

सपने में भी उनको ,

एक गिलास पानी दिया ,

वो तुम्हारे पैसे को नहीं ,

तुम्हारी राह देखते हैं ,

उनके इस अधूरे…
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Added by Rash Bihari Ravi on May 26, 2011 at 1:30pm — No Comments


मुख्य प्रबंधक
ग़ज़ल : कुछ कड़वा सा एहसास

सभी रिश्ते है मतलब के ये मानो या न मानो तुम,
है मिलते प्यार में धोखे ये मानो या न मानो तुम,
 
रहूँ मैं राम भी बनके अगर हो भरत सा भाई,
है माता कैकई घर मे ये मानो या न मानो तुम,      
 
यकीं…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 25, 2011 at 5:00pm — 83 Comments

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