सवैया -
(1)
बाँध बनावत हैं सरकार वहाँ पर मूर्ति हटावत त्यूँ |
गान्धि सरोवर हिंसक हो मलबा-जल ढेर बहावत क्यूँ |
शंकर नेत्र खुला तिसरा करते धरती पर तांडव ज्यूँ |
धारिणि धारि महाकलिका कर धारण खप्पर मारत यूँ |
(2)
सवैया -
नष्ट हुवा घर-ग्राम कुटी जब क्रोध करे दल बादल देवा |
कष्ट बढ़ा गतिमान नदी करती कलिका किलकार कलेवा |
दूर रहे सरकार जहाँ बस खाय रही कुरसी-कर-मेवा |
हिम्मत से तब फौज…
Added by रविकर on June 28, 2013 at 9:30am — 4 Comments
हर कदम खुशियाँ मिले, सबकी कवायद जिस लिए है
राम जाने दर्द क्यों, हर दिल में आखिर किसलिए है
भीड़ को तो आपका ही, इक इशारा चाहिए बस
पीछे-पीछे चल रहा जो, हाथ में माचिस लिए है
लोग मुझसे कह रहे थे, आदमी, इंसान है यह
गौर से देखा, तो जाना, दिल-जिगर बेहिस लिए है
मैं लडूंगा जब यहाँ, हर काम उसका भी बनेगा
साथ मेरा दे रहा, यह शख्स अबतक इसलिए है
पीठ पीछे, जो यहाँ, मेरी शिकायत कर रहा था
सामने आया तो देखा,…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on June 28, 2013 at 9:26am — 7 Comments
रूद्र रूप ले आए भोले ,मचा प्रलय से हाहाकार
मानव आया कुदरत आड़े,उजड़ गए लाखों परिवार
यहाँ जिन्दगी चहका करती,अब हैं लाशों के अम्बार
दोहन लेकर आया विपदा,हम मानस ही जिम्मेवार
उमड़ घुमड़ बादल जो आए,छम छम कर आई बरसात
ध्वस्त हुए सब मंदिर मस्जिद,दिन में ही हो आई…
Added by Sarita Bhatia on June 27, 2013 at 7:30pm — 26 Comments
अपने मित्रों की सलाह पर कुछ परिवर्तन के साथ पुनः प्रेषित कर रहा हूँ -
जिंदगी इक छलावा के सिवा क्या है
मौत भी बस, मुदावा के सिवा क्या है
रोशनी की तड़प ही तो, अँधेरा है
हर उजाला,भुलावा के सिवा क्या है
शानो-शौकत, तमाशा है, यही जाना
बेवजह ही, दिखावा के सिवा क्या है
होश भी अब, कहीं दिखता नहीं, शायद
बद्सरंजाम लावा के सिवा क्या है
मोह में और ममता में उलझ जाना
यह किसी…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on June 27, 2013 at 7:00pm — 5 Comments
यह घर तुम्हारा है
1
फूलों के हिंडोले में बैठ कर
घर आयी पिया की ,
तमाम खुशियों और सपनों को ,
झोली में भर कर .
दहलीज़ पर कदम रखते ही
मेरे श्रीचरणों की हुई पूजा
चूल्हे पर दूध उफ़न कर कहा –
‘’ बधाई हो ! लक्ष्मी का घर में आगमन हुआ है ‘’
सबने शुभ शकुन का स्वागत किया .
बड़े जनों ने कहा – ‘’ आज से यह घर तुम्हारा है .’’
कुछ दिनों बाद -
मेरी कल्पनाओं ने उड़ान भरनी चाही
सपनों ने अपने पंख फैलाये
तब –
उड़ने को मेरे पास आकाश…
Added by coontee mukerji on June 27, 2013 at 5:24pm — 19 Comments
तुम्हारे लिए
खुद हो के बेरंग, क्यों दुनिया के लिए रंग लाती हो ?
अपनी मंज़िल भूलकर, क्यों दूजे की राह सजाती हो ?
जो बीत गया वो फिर लौट के न आनेवाला
यकीन कर लो मेरा, क्यों अपनी जान जलाती हो ?
सच तुम…
ContinueAdded by Dr Babban Jee on June 27, 2013 at 2:30pm — 9 Comments
वाक् -युद्ध
वाक् युद्ध याने शब्दों की लड़ाई। बिना शस्त्र या अस्त्र के लड़ा जाने वाला ऐसा युद्ध जिसमें कोई भी ख़ून खराबा नहीं होता और जिसमें किसी भी तरह के युद्ध क्षेत्र की आवश्यकता नहीं होती। इस वाक् युद्ध में कोई भी आपका शत्रु या मित्र आपके सामने हो सकता है।
वाक् युद्ध में किसी भी तरह के बचाव के लिए ढाल की जरुरत नहीं होती। शब्दों द्वारा लड़ी जाने वाली इस लड़ाई में जब स्वर की प्रत्यंचा पर शब्द रूपी बाण से किसी पर वार किया जाता है तो वह ख़ाली नहीं जाता। वैसे भी कहा जाता है…
ContinueAdded by Veena Sethi on June 27, 2013 at 1:30pm — 11 Comments
उत्तराखंड की आपदा हो ,या देश के दुश्मनो के काले कारनामो मे लाखो लोगो का एक मात्र सहारा भारतीय सेना, उसका एक हेलीकाप्टर दुर्र्घटना ग्रस्त हुआ और हमारे नायक सहीद हुए ! घटना स्थल के निकट होने के कारण , मन मे कुछ भाव उठे जो लिख रहा हु ! मंच के प्रबुद्ध भागीदार त्रुटियों को माफ़ करते हुए |सभी को भगवान सुरक्षित करे शांति दे यही इच्चा है !
मेरी भावना समझने की क्रपया करे
तंग हालात मे जो हस के गुजर जाते है |
मुसीबतों मे जो सोना सा निखर जाते…
ContinueAdded by aman kumar on June 27, 2013 at 12:52pm — 20 Comments
साधन में, सुधि में, समाधि ,संवाद में, ढूंढता हूँ संजोये नाम
कागज में, पाती में, दीये की बाती में, खोजा है बेसुध अविराम,
गैर की निगाहों में, पराजायी बाँहों में, या दिन हो या कोई शाम
जख्मों में, टीसों में,आहों में, शीशों में, हो मेरा शायद गुमनाम
डॉ. ललित
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Dr Lalit Kumar Singh on June 27, 2013 at 5:28am — 8 Comments
चीखती हैं सरहदें और जागते जवान हैं|
रक्त से शहीदों के अब लाल आसमान है||
शहीद होते पूतों की माताएँ सिसक रही|
बिछुड़ के अपने पति से पत्नियाँ बिलख रही||
पित्रहीन बच्चों का भी चेहरा रंगहीन है|
परिवार था खुश कभी आज दीनहीन है||
मुआवजे की भीख दे नेता जी उबर लिए|
चेतावनी जो बदले की उससे वो मुकर लिए||
सो रहे नेताओं से मेरा एक सवाल है|
जो काटे सिर हेमराज का किसलिए मेहमान है||
सर के बदले सर…
ContinueAdded by Harish Upreti "Karan" on June 26, 2013 at 11:43pm — 14 Comments
मुखतलिफ़ शेर ....
.
लाख कोशिश कर ले इंसा कुछ नहीं कर पाएगा
मौत की जद में किसी दिन जिंदगी आ जाएगी
इबादत करना चाहो गर खुदा की तुम हकीकत में
मुहब्बत के चिरागों को कभी बुझने नहीं देना ...
आधे अधूरे रह गए हैं ख्वाब इस लिए
इल्ज़ाम दे रहे हैं वो अपने नसीब को .....
रायगां बहने नहीं देता इन्हें
अपने अशकों से वुजू करता हूँ मैं ....
दिया मुझ को मेरी किस्मत ने सब कुछ
मगर तेरी कमी अब भी है…
Added by Ajay Agyat on June 26, 2013 at 8:00pm — 8 Comments
खुशबू समेटने से किसका हुआ भला है
जब-जब चिता जली है, चन्दन वहाँ जला है
बैठा रहा तो मुझको खुद से गिला था यारों
जब चल पड़ा तो सबको हर पल बहुत खला है
अब है किसे पता भी, माहौल कब ये बदले
हर शख्स देखने में लगता मुझे भला है
सुन वो कहाँ रहे थे, चर्चा चली जो मेरी
बेचैन हो गए, जब, उनका कहा भला है
जिसको अजीज़ माना, यूँ दूर ही रहे सब
जब काम आ पड़ा तो फिर से खलामला…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on June 26, 2013 at 7:30pm — 12 Comments
तनाव की लिखावटें...
अक्सर अजीब होती हैं ...
काँपती सी और कुछ उलझी हुई..
उनमें कहीं कहीं शब्द छुट जाते हैं ..
कटिंग होती है..
और सहायक क्रिया नहीं होती है
सबसे अजीब होता है ..
सपनों का मरना ..…
Added by Amod Kumar Srivastava on June 26, 2013 at 4:30pm — 7 Comments
रथ-वाहन हन हन बहे, बहे वेग से देह ।
सड़क मार्ग अवरुद्ध कुल, बरसी घातक मेह ।
बरसी घातक मेह, अवतरण गंगा फिर से ।
कंकड़ मलबा संग, हिले नहिं शिव मंदिर से ।
करें नहीं विषपान, देखते मरता तीरथ ।
कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ ॥
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on June 26, 2013 at 3:58pm — 6 Comments
बहरे रमल मुसमन महजूफ
2122, 2122, 2122, 212
पापियों के पाप से देखो धरा भरने लगी
अब बगावत जिंदगी से मौत है करने लगी,
ढोंगियों की भीड़ है अपराधियों का राज है,
सत्यता इंसानियत इंसान में मरने लगी,
रंग बदला रूप बदला और…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on June 26, 2013 at 2:43pm — 20 Comments
रुष्ट-त्रिसोता त्रास दी, खोले नेत्र त्रिनेत्र |
बदी सदी से कर गए, सोता पर्वत क्षेत्र |
सोता पर्वत क्षेत्र, बहाना कुचल डालना |
मरघट बनते घाट, शांत पर महाकाल ना |
शिव गंगा का रार, झेल के जग यह रोता |
नहीं किसी की खैर, त्रिलोचन रुष्ट त्रिसोता ||
त्रिसोता= गंगा जी
मौलिक/ अप्रकाशित
Added by रविकर on June 26, 2013 at 12:00pm — 6 Comments
आज हर ओर खुदी है सड़क
खड्डों मिट्टी की है भरमार
क्योंकि चुनाव को रह गया है एक साल
इसलिए हरेक नेता जी को
सड़क अब टूटी नज़र आने लगी है
अपनी बेरूख़ी जनता अब भाने लगी है
अब सफाई वाला ,कूड़ा उठाने वाला हाज़िरी लगाने लगे…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on June 26, 2013 at 10:00am — 22 Comments
क्या विधि लिखूँ सत्य वह …!
जिसका विधान न हो!
न अनुनय के शब्द रहे
तेरी प्रार्थना रिक्त रहे
और प्रार्थी का तुझ
सम्मुख; कोई मान न हो
क्या विधि लिखूँ सत्य वह…
ContinueAdded by वेदिका on June 26, 2013 at 2:30am — 26 Comments
सबको बरसात अच्छी लगती है
किन्तु कब तक ये अच्छी लगती है।
कम दिनों के लिये सुहानी है
थोडी-थोडी पडे तो पानी है
ज्यादा तो मौत की कहानी है
इसकी कुछ बात अच्छी लगती है
सबको बरसात अच्छी लगती है .......।
सब नदी-नाले ये चलाती है
रास्ते भी यही बनाती है
हमको चलना यही सिखाती है
हर मुलाक़ात अच्छी लगती है
सबको बरसात अच्छी लगती है........
पेड-पौधों का सबका कहना है
साथ इसके सभी को रहना…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on June 25, 2013 at 11:30pm — 14 Comments
पुष्प से सुन्दर,कोमल हृदय में
लिए एक मधुर-सी- आकांक्षा।
सुन्दर होंगे क्षण प्रिय-मिलन के ,
सदा करती हूँ तुम्हारी प्रतीक्षा।
मेरे इस जीवन का एकमात्र
सुन्दर-मधुर स्वप्न हो तुम।
जिसे अब तक नहीं जानती मैं,
मेरे वो अज्ञात प्रियतम हो तुम।
तुम्हारे दर्शन को व्याकुल आत्मा।
सदा करती हूँ तुम्हारी प्रतीक्षा।
तुम स्वप्न हो मेरे जीवन का,
अनुपम आनंद देती ये कल्पना।
पर उस क्षण मैं जाती हूँ काँप,
जब पाती हूँ तुम्हें केवल सपना।
कैसे…
Added by Savitri Rathore on June 25, 2013 at 9:03pm — 10 Comments
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