Added by रविकर on August 23, 2012 at 7:30pm — No Comments
जब भी गुमसुम तन्हा तट पर
बरबस तुम आ जाओगे
वहीं लहर के श्रृंग तोड़ते
मुझको तुम पा जाओगे
बिछुड़े पल के दीप तले
जब अश्रु अर्घ्य चढ़ाओगे
वहीं शिखा की छाया छूते
मुझको तुम पा जाओगे
छोड़-छोड़ सौन्दर्य प्रसाधन
जब कुंतल तुम बिखराओगे
वहीं किसी दर्पण में हंसते
मुझको तुम पा जाओगे
ना कहना ना मुझको छलिया
फिर किसको प्रीत सिखाओगे
पायल,कंगन,बिंदी,अंजन में
मुझको तुम पा…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on August 23, 2012 at 4:08pm — 9 Comments
स्वपन दुनियाँ से जागो आज
भ्रूण हत्या का करो ना पाप
आत्मा की उसकी सुनो गुहार
देखि नहीं जो, अब तक संसार
करती फरियाद वो चीख पुकार
क्यूँ करता मेरी, हत्या समाज
कोई तो दो मेरा दोष बता
कन्या होने की दो ना सजा
माँ बेबस लाचार, तू क्यूँ है बता
हृदय अपना शूल ना बना
मुझ पर थोडा तरस तो खा
निर्मम हत्या से मुझे बचा
अपने सानिध्य में मुझको ले
वंचित न कर अधिकार मेरे
दे मुझको संस्कार…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on August 23, 2012 at 3:00pm — 4 Comments
छंद:'कुकुभ' लिखने का पहला प्रयास (मात्रायें : १६-१४ अंत में दो गुरु)
प्रदूषित करते ना थके तुम ,भड़क गई उर में ज्वाला
क्रोधित हो कूद पड़ी गंगा ,सब कुछ जल थल कर डाला
डूब गए घर बार सभी कुछ ,राम शिवाला भी डूबा
कुपित हो गए मेघ देवता ,कोई नहीं है अजूबा
राजस्थान ,असम,झाड़खंड,नहीं बची उत्तरकाशी
प्रलय कभी ये नहीं सोचती ,कौन धरम कौनू भाषी
पर्वत पर्वत जंगल जंगल ,तुम चलाते रहे आरी
खूँ के आँसूं रोते हो अब ,आन पड़ी…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 23, 2012 at 1:00pm — 22 Comments
1. सब मिल जुल कर जियो
भाई देखो यह देश और दुनियां तो सबकी हैं .
किसी एक के बाप का हक नही है इस पर .
फिर क्यों झगड़ा करते हैं हम बेवजह ?
जब तक जियो सब मिल जुल कर जियो यार .
तेरा, मेरा, इसका,उसका छोडो यह तकरार .
सब मिल कर रहो आपस में करो प्यार .
क्या रखा हैं हेगडी में एक दिन मर जाओगे यार .
2. सरोकार
तुम्हारे हमारे सरोकार क्या हैं
तुम क्या समझते हो परोपकार क्या है ?
किसी को देना अठन्नी-रुपया
यह परोपकार…
Added by Naval Kishor Soni on August 23, 2012 at 12:30pm — 5 Comments
तुम्हारे हमारे सरोकार क्या हैं
तुम क्या समझते हो
परोपकार क्या है ?
किसी को देना अठन्नी-रुपया
यह परोपकार नहीं है भैया ,
उसे इस काबिल बनाने में करो मदद
कि वो खुद कमाले …
Added by Naval Kishor Soni on August 23, 2012 at 12:19pm — 6 Comments
१.
वह जब आती मन को भाती,
सबके जीवन को हर्षाती ,
कभी कभी देती है तरसा,
क्यों सखा सजनी, ना 'बरसा'.
२.
वो जब आती मैं सो जाता ,
गहरे सपनों में खो जाता ,
उस संग हो जाता 'रिंद'
क्यों सखा सजनी, ना नींद
३.
सुरूर उसका जब छाता है .
रोम रोम सा खिल जाता है.
उसके आगे सब खराब .
क्यों सखा सजनी,ना शराब.
Added by Naval Kishor Soni on August 23, 2012 at 11:00am — 6 Comments
गेंदा ,चंपा, ,चमेली ,
जूही के यह जो फूल हैं
ये सिर्फ महकते ही नहीं ,
ये हमें सिखाते है
जीवन जीना
और अपनी महक बिखेरना
और उस गुलाब को देखो
वो अपने ही काटों से छिदा है
फिर भी मुस्कुराता है हरदम
क्या इन फूलों से सीख़ नहीं
सकते हम जीवन जीने का तरीका ?
Added by Naval Kishor Soni on August 23, 2012 at 10:30am — 3 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 23, 2012 at 10:30am — 7 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 23, 2012 at 10:29am — 3 Comments
जब जब हैं आतंकी आये
बिल में चूहे सा घुस जाये
खो जाए उसकी आवाज़
क्या सखि नेता? नहिं सखि राज!
______________________
नाम जपे नित भाईचारा.
भाई को ही समझे चारा
ऐसे झपटे जैसे बाज़
क्या सखि नेता? नहिं सखि राज!
______________________
प्लेटफार्म पर सदा घसीटे
मारे दौड़ा दौड़ा पीटे
इम्तहान क्या दोगे आज
क्या सखि पोलिस ? नहिं सखि राज !
_______________________
चलती जिसकी अज़ब गुंडई
कहे, निकल…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 23, 2012 at 9:30am — 48 Comments
1.
समय कहे।
जीवन रहा सदा,
जीवन रहे।।
2.
ये समंदर ।
मरता नहीं कभी,
मरी लहर।।
Added by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 12:59am — 4 Comments
(१) रंक जले राजा जले, कौन सका है भाग |
सबके अंदर खौलती, एक क्षुधा की आग ||
(२) ज्वाल क्षुधा में वो भरी, कहीं न ऐसा ताप |
जल के जिसमें आदमी, कर जाता है पाप ||
(३) भूख बड़ी बलवान है, ना लेने दे चैन |
दौड़ें सब इसके लिए, दिन हो चाहे रैन…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 22, 2012 at 8:51pm — 12 Comments
किसी को याद कर रोये, किसी को रुलाना याद आया,
जब जब तुझे जाते देखा, तेरा लौट आना याद आया..
हर सुर-साज़ देखा जब, बिकता हुआ कीमतों में
हमें तब तेरा यूँ ही, गुनगुनाना याद आया
यूं तो मेरा हाल भी न पूछा, ताउम्र किसी ने
शाम-ऐ-रुखसत पे ही क्यों सब फ़साना याद आया
उनको फुर्सत ही कहाँ, इस पल की यहाँ
और दिल तुझे वो किस्सा पुराना याद आया?
फूल को नोच कर उनके मिलने का यकीं करना
अपने मुकद्दर को यूं भी आज़माना याद…
Added by Pushyamitra Upadhyay on August 22, 2012 at 8:00pm — 2 Comments
नींबू अदरक लहसुना, सिरका-सेब जुटाय,
सारे रस लें भाग सम, मिश्रित कर खौलाय.
मिश्रित कर खौलाय, बचे तीनों चौथाई.
तब मधु लें समभाग, मिला कर बने दवाई.
'अम्बरीष' नस खोल, हृदय दे, महके खुशबू.
नित्य निहारे पेय, तीन चम्मच भल…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on August 22, 2012 at 7:30pm — 16 Comments
बाघ सरीखा जब वह गरजे,
भीडू अक्खी मुम्बई लरजे
राजनीति की नई आवाज़
क्या सखि उद्धव ?
नहीं सखि राज …
Added by Albela Khatri on August 22, 2012 at 7:28pm — 12 Comments
मुझ पर एक एहसान करो
ढंग से अपना कर्म करो
अलख ज्योति जला के हृदय
नवीन युग का निर्माण करो
मुझ पर एक एहसान करो
आँधियों को भी चलने दो
जख्मो को भी बनने दो
जूझते रहो हर समस्या से
जब तक ना इसका
समूल विनाश करो
मुझ पर एक एहसान करो
निपुण स्वयं को इतना करो
कथन करनी में भेद ना हो
स्र्मृति चिन्ह बने तेरे कदम
आयाम ऐसे खड़े करो
मुझ पर एक एहसान…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on August 22, 2012 at 5:46pm — 7 Comments
जश्न-ए-ईद
रिपोर्ट : दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
Photo:Deepak kulluvi,Jawed naqvi sahib,Krishna,Md.Hamid Khan Sahib,Arundhati Roy,Yasmin Khan,Kumud,Zoya & her friends
जश्न-ए-ईद मनाने का खूबसूरत मौक़ा हमें इस बार फिर हिन्दोस्तान की जानी मानी हस्तियों के साथ हिदो'स्तानी शास्त्रीय संगीत के मशहूर गायक 'मोहम्मद…
ContinueAdded by Deepak Sharma Kuluvi on August 22, 2012 at 1:02pm — 3 Comments
सात समुद्र पार कर,
आई पिया के द्वार ,
नव नीले आसमां पर,
झूलते इन्द्रधनुष पे ,
प्राणपिया के अंगना ,
सप्तऋषि के द्वार ,
झंकृत हए सात सुर,
हृदय में नये तराने |
.........................
उतर रहा वह नभ पर ,
सातवें आसमान से ,
लिए रक्तिम लालिमा
सवार सात घोड़ों पर ,
पार सब करता हुआ ,
प्रकाशित हुआ ये जहां
आलोकिक आनंदित
वो आशियाना दीप्त |
...............................
थिरक रही अम्बर में ,
अरुण की ये…
Added by Rekha Joshi on August 22, 2012 at 11:21am — 9 Comments
आज लड़ रहे है भाई-भाई,बन के हिन्दू मुसलमान.
कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.
काबा और कैलाश के रोज मुद्दे उछल रहे है.
इनके आंच पे गावं-नगर-कसबे जल रहे है.
सिसक रही है इंसानियत,खोकर अपना आत्मसम्मान.
कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.
इस्मत लूटी जा रही है,सरेआम आज नारी की.
बढ़ रही है रोज आबादी, गुंडे बलात्कारी की.
बेबस लाचार जनता की,बड़ी मुश्किल में है प्राण.
कहा आ गया है, हे भगवन मेरा भारत देश महान.…
Added by Noorain Ansari on August 22, 2012 at 8:00am — 1 Comment
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