प्रेम-प्रेम की रट लगी, मर्म न जाने कोय!
देह-पिपासा जब जगी, गए देह में खोय!
मीरा का भी प्रेम था, गिरधर में मन-प्राण!
राधा भी थी खो गयी, सुन मुरली की तान!!
राम चले वनवास को, सीता भी थीं साथ!…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on September 30, 2013 at 11:13pm — 26 Comments
केवल एक मिठाई ...माँ...............
रिश्ते नाते संबंधो की होती नरम चटाई .......माँ
शीत लहर मे विषमताओं की , लगती गरम रज़ाई ...माँ
हर रिश्ते को परखा जाना , तब जाना व्यापार है ये
मूँह में राम बगल में छूरी , दुनिया का व्योहार है ये
दुनिया के सब प्रतिफल हैं कड़ुए, केवल एक मिठाई ...माँ
कोई कितना ही रोता हो सच ही जानो चुप…
ContinueAdded by ajay sharma on September 30, 2013 at 10:30pm — 12 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 30, 2013 at 9:30pm — 40 Comments
!!! सावधान !!!
रूप घनाक्षरी (32 वर्ण अन्त में लघु)
दंगा करार्इये खूब, जीना सिखार्इये खूब, हर हाल में जीना है, कांटे बिछार्इये खूब।
अवसर भुनार्इये, जाति-धर्म लड़ार्इये, सौहार्द-भार्इचारा को, जिंदा जलार्इये खूब।।
गाते रहे तिमिर में, झींगुर श्वांस लय में, सर्प-बिच्छू देव सम, बाहें बढ़ार्इये खूब।
नारी दुर्गा काली सम, जया शक्ति यशो गुन, महिषा-भस्मासुर सा, नाच दिखार्इये खूब।।
के0पी0सत्यम / मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 30, 2013 at 9:10pm — 15 Comments
जुड़ो जमीं से कहते थे जो, वो खुद नभ के दास हो गये
आम आदमी की झूठी चिन्ता थी जिनको, खास हो गये
सबसे ऊँचे पेड़ों से भी ऊँचे होकर बाँस महोदय
आरक्षण पाने की खातिर सबसे लम्बी घास हो गये
तन में मन में पड़ीं दरारें, टपक रहा आँखों से…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 30, 2013 at 8:39pm — 24 Comments
2122 2122 2122 212
कोशिशों का अब कहीं नामों निशां रहता नहीं
हाल अपना संग है वो ,जो कभी ढहता नहीं
हादसे कैसे भी हों कितने भी हों मंज़ूर सब
ख़ून अब बेजान आंखों से कभी बहता…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 30, 2013 at 8:30pm — 38 Comments
{सभी आदरणीय सजृनकर्ताओं को प्रणाम, एक माह तक भारतीय रेल सिगनल इंजीनियरी और दूरसंचार संस्थान , सिकन्दराबाद - आंध्र प्रदेश में नवीन तकनीकी ज्ञान अर्जन करने के कारण ओ बी ओ परिवार से दुर रहना पड़ा, इसके लिए क्षमा चाहता हूँ । पुनः प्रथम रचना के रूप में यह आलेख प्रस्तुत है}
हमारे जीवनयापन की आवश्यकताओं के बाद सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता होती है हमारी अभिव्यक्ति अर्थात हमारी बोलने की जरूरत, जिसके बिना इंसान का जीवन कष्टमय हो जाता है । यदि किसी को कठोर सजा देनी होती है तो उसे…
ContinueAdded by D P Mathur on September 30, 2013 at 8:30pm — 8 Comments
सुन्दर प्रिय मुख देखकर, खुले लाज के फंद।
नयनों से पीने लगा, भ्रमर भाँति मकरन्द !!१
प्रेम जलधि में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ बेसुध हृदय, अंतस कहता आह!!२
प्रेम भरे दो बोल मधु,स्वर कितने अनमोल !
कानों में सबके सदा ,मिश्री देते घोल !!३
रवि के जाते ही यहाँ ,हुई मनोहर रात !
चाँद निखरकर आ गया,मुझसे करने बात !!४
अधर पंखुड़ी से लगें ,गाल कमल के फूल !!
ऐसी प्रिय छवि देखकर, गया स्वयं को…
Added by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 6:30pm — 32 Comments
गौशाले में गाय खुश, बछिया दिखे प्रसन्न |
बछिया के ताऊ खफा, छोड़ बैठते अन्न |
छोड़ बैठते अन्न, सदा चारा ही खाया |
पर निर्णय आसन्न, जेल उनको पहुँचाया |
करते गधे विलाप, फायदा लेने वाले |
चारा पाती गाय, हुई रौनक गौशाले ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 30, 2013 at 5:20pm — 11 Comments
किसी सफ़र से कम नहीं है मेरी जिंदगी !
कुछ पल ठहरी , और फिर चल दी!
ना राहो का पता , ना मंजिल की खबर !
भटक रहा हूँ कभी इस डगर, कभी उस डगर !
कभी सर्दी की ठिठुरन , कभी गर्म लू के थपेड़े !
कभी खुशियों की आहट , कभी गम के घेरे !
कभी बारिश का मौसम , कभी दिन के उजाले !
कभी विष के घूंट , कभी मय के प्याले !
ना कोई हमराह , ना कोई संगी साथी !
मगर बढ़ते कदम ये है की रुकते नहीं है !
मीलों चल चुके है मगर थकते नहीं है !
ना है कोई…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on September 30, 2013 at 4:38pm — 7 Comments
1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2
समन्दर की लहरों सी है जिन्दगानी
कभी बर्फ गोला कभी बहता पानी
उदासी के बूटे जड़े हैं सभी में
हो तेरी कहानी या मेरी कहानी
बुढ़ापे में होने लगी ताज़पोशी
किसी काम की अब नहीं है जवानी
ये मौजें भी अब मुतमइन सी हैं लगती
नहीं है वो जज्बा नहीं वो रवानी
नये ये नज़ारे बहुत दिलनशीं हैं
मगर मुझको भाती हैं चीज़ें पुरानी
अमित दुबे अंश मौलिक व अप्रकाशित
Added by अमित वागर्थ on September 30, 2013 at 2:00pm — 14 Comments
Added by Ravi Prakash on September 30, 2013 at 1:12pm — 18 Comments
**जवाँ दिल है,धड़कने दो |**
जवाँ दिल है, धडकनें भी,
ये धड़केंगी,
धड़कने दो |
नसों में लावा बहता है,
लहू बन के,
फड़कने दो ||
वतन के काम आएगा,
हर एक कतरा,
एक-एक बूँद ,
बंधी बेड़ी-जंज़ीरों को,
हौंसलों से,
तड़कने दो ||
उठो जागो कमर बाँधो,
विजय पथ पे,
अग्रसर हो |
खटकते हो गर दुश्मन की,
आँखों में,
खटकने दो…
ContinueAdded by Jitender Kumar Jeet on September 30, 2013 at 1:00pm — 9 Comments
बह्रे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
================
2122/ 2122/ 2122/ 212
हैं परे सिद्धांत से, आचार की बातें करें;
भोथरे जिनके सिरे हैं, धार की बातें करें;।।1।।
मछलियाँ तालाब की हैं, क्या पता सागर कहाँ?
पाठ जिनका है अधूरा, सार की बातें करें;।।2।।
उँगलियाँ थकने लगीं हैं, गिनतियाँ बढ़ने लगीं,
जब जहाँ मिल जाएँ, बस दो-चार की बातें करें;।।3।।
इन पे यूँ अपनी तिजारत का जुनूं तारी हुआ,
लाश के…
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 30, 2013 at 12:30pm — 11 Comments
Added by Poonam Shukla on September 30, 2013 at 11:01am — No Comments
देना युवकों को सभी ,देश की अब कमान
ये हैं भविष्य देश का, इनसे ही है शान
इनसे ही है शान, जानलो इनको प्रहरी
करते नव निर्माण बात यह समझो गहरी
उज्जवल हो भविष्य, सभी से सम्मति लेना
करके मार्ग प्रशस्त ,साथ है इनका देना //
............मौलिक व अप्रकाशित............
Added by Sarita Bhatia on September 30, 2013 at 9:00am — 7 Comments
मैं कैसे बताऊँ बिटिया
हमारे ज़माने में माँ कैसी होती थी
तब अब्बू किसी तानाशाह के ओहदे पर बैठते थे
तब अब्बू के नाम से कांपते थे बच्चे
और माएं बारहा अब्बू की मार-डांट से हमें बचाती थीं
हमारी छोटी-मोटी गलतियां अब्बू से छिपा लेती थीं
हमारे बचपन की सबसे सुरक्षित दोस्त हुआ करती थीं माँ
हमारी राजदार हुआ करती थीं वो
इधर-उधर से बचाकर रखती थीं पैसे
और गुपचुप देती थी पैसे सिनेमा, सर्कस के लिए
अब्बू से हम सीधे कोई…
ContinueAdded by anwar suhail on September 29, 2013 at 9:30pm — 5 Comments
थाल किरणों का सजाकर
भोर देखो आ गयी
रात भी थक-हारकर
फिर जा क्षितिज पर सो गयी
चाँद का झूमर सजा
रात की अंगनाई में
और तारे झूमते थे
नभ की अमराई में
चाँदनी के नृत्य से
मदहोशियाँ सी छा गयी
तब हवा की थपकियों से
नींद सबको आ गयी
सूर्य के फिर आगमन की
जब मिली आहट ज़रा
जगमगाया आकाश सारा
खिल उठी ये धरा
छू लिया जो सूर्य ने
कुछ यूँ दिशा शरमा गयी
सुर्ख उसके गाल…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on September 29, 2013 at 6:30pm — 30 Comments
(बह्र: हज़ज़ मुसम्मन सालिम )
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
तुम्हारा प्रेम ही अक्सर मुझे मगरूर करता है
तुम्हारा प्रेम ही अक्सर मुझे मजबूर करता है
तुम्हारा प्रेम ही खुशियों का इक साधन मेरी खातिर
तुम्हारा प्रेम ही खुशियों से कोसो दूर करता है,
तुम्हारा प्रेम ही हिम्मत मुझे मुश्किल घड़ी में दे,
तुम्हारा प्रेम ही तो हौंसला भी चूर करता है
तुम्हारा प्रेम ही मरहम बने जख्मों…
Added by अरुन 'अनन्त' on September 29, 2013 at 3:18pm — 28 Comments
आरजू है माँ कि फिर लौट आऊँ तेरे आँचल की छाँव में !
उन बचपन की गलियों में , उस बचपन के गाँव में !
वो तेरी ममता के साए , वो रातो की लौरी !
वो गय्यियो का माखन , वो दूध की कटोरी !
वो बचपन के संगी साथी , वो गाँव के गलियारे !
लगते थे मुझको स्वर्ग से भी प्यारे !
वो राजा रानी के किस्से , परियो की कहानी !
याद है मुझको आज भी जबानी !
अमृत सा रस लिए वो तेरे हाथो का निवाला !
वो गर्मी का मौसम , वो सर्दी का पाला !
अपने सीने से…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on September 29, 2013 at 3:00pm — 5 Comments
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