अब जो बिखरे तो फिजाओं में सिमट जाएंगे
ओर ज़मीं वालों के एहसास से कट जाएंगे
मुझसे आँखें न चुरा, शर्म न कर, खौफ न खा
हम तेरे वास्ते हर राह से हट…
Added by siyasachdev on September 19, 2011 at 9:25pm — 4 Comments
Added by rajkumar sahu on September 19, 2011 at 9:00pm — No Comments
हर किसी में, गर खुदा का नूर है |
Added by Shashi Mehra on September 19, 2011 at 6:30pm — 1 Comment
Added by Noorain Ansari on September 19, 2011 at 1:30pm — No Comments
दोहा सलिला:
एक हुए दोहा यमक:
-- संजीव 'सलिल'
*
पानी-पानी हो रहे, पानी रहा न शेष.
जिन नयनों में- हो रही, उनकी लाज अशेष..
*
खैर रामकी जानकी, मना जानकी मौन.
जगजननी की व्यथा को, अनुमानेगा कौन?
*
तुलसी तुलसी-पत्र का, लगा रहे हैं भोग.
राम सिया मुस्का रहे, लख सुन्दर संयोग..
*
सूर सूर थे या नहीं, बात सकेगा कौन?
देख अदेखा लेख हैं, नैना भौंचक-मौन..
*
तिलक तिलक हैं हिंद के, उनसे शोभित भाल.
कह रहस्य हमसे गये,…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 19, 2011 at 7:08am — No Comments
मतिमान सोचा करते हैं, चिंता भीरु करते हैं.
क्षणिक मोद में जो इठलाते, वही विपति से डरते हैं.
जिस तरह गोधुलि का होना, निशा - आगमन का सूचक है.
जैसे छाना जगजीवन का, पावस का सूचक है.
वैसे ही सुख के पहले, दुःख सदैव आता है.
जो मलिन होता दुःख से, सुख से वंचित रह जाता है.
सुख - दुःख सिक्के के दो पहलू , भेद मूर्ख ही करते हैं.
मतिमान सोचा करते हैं, चिंता भीरु करते हैं.
दुःख…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 18, 2011 at 3:45am — 2 Comments
हर बरस यह बात सामने आती है कि प्रतिमाओं के विसर्जन तथा श्रद्धा में लोग कहीं न कहीं, अंध भक्ति में दिखाई देते हैं और अन्य लोगों को होने वाली दिक्कतों तथा प्रकृति को होने वाले नुकसान से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता। अभी कुछ दिनों पहले जब गणेश प्रतिमाएं विराजित हुईं, उसके बाद कान फोड़ू लाउडस्पीकरों ने लोगों को परेशान किया। प्रशासन की सख्त हिदायत के बावजूद फूहड़ गाने भी बजते रहे। श्रद्धा-भक्ति के नाम पर जिस तरह तेज आवाज में गानें दिन भर बजते रहे या कहें कि दिमाग के लिए सरदर्द बने ये भोंपू रात…
ContinueAdded by rajkumar sahu on September 17, 2011 at 9:35pm — No Comments
क्यों वह ताक़त के नशे में चूर है
आदमी क्यों इस क़दर मग़रूर है।
गुलसितां जिस में था रंगो नूर कल
आज क्यों बेरुंग है बेनूर है।
मेरे अपनों का करम है क्या कहूं
यह जो दिल में इक बड़ा नासूर है।
जानकर खाता है उल्फ़त में फरेब
दिल के आगे आदमी मजबूर है।
उसको "मजनूँ" की नज़र से देखिये
यूँ लगेगा जैसे "लैला" हूर है।
आप मेरी हर ख़ुशी ले लीजिये
मुझ को हर ग़म आप का मंज़ूर है।
जुर्म यह था मैं ने सच…
Added by siyasachdev on September 15, 2011 at 9:10pm — 19 Comments
फिराक़ गोरखपुरी का असल नाम था रघुपति सहाय। 28 अगस्त 1896 को उत्तर प्रदेश के शहर गोरखपुर में पैदा हुए। उनके पिता का नाम था, बाबू गोरखप्रसाद और वह आस पास के इलाके के सबसे दीवानी के बडे़ वकील थे। रघुपति सहाय का लालन पालन बहुत ही ठाठ बाट के साथ हुआ था। 1913 में गोरखपुर के जुबली स्कूल से हाई स्कूल पास किया। इसके पश्चात इलाहबाद के सेंट्रल कालेज में दाखिला लिया। इंटरमीडेएट करने के दौरान ही उनकी मनमर्जी के विरूद्ध उनके पिता ने रघपति सहाय की शादी करा दी गई। यह विवाह उनकी जिंदगी में अत्यंत…
ContinueAdded by prabhat kumar roy on September 15, 2011 at 8:30pm — 5 Comments
सारी बातें भूलाकर
तुम्हारे दिये हर दर्द का
तोहफ़ा बनाकर
मै उठती हूँ हर सुबह
एक नई उमँग के साथ
कि शायद...
हाँ शायद
पा ही लूँगी
जो खोया था
आज ही होगा अंत
इन दुखदायी पलों का
मगर
घेर लेती है मुझे
फ़िर वही
जानी-पहचानी सी
मुस्कुराहट
मुह टेढ़ा किये
सुनो!
तुम्हारे ये बहाने
बदलते क्यों नही?
मेरा विश्वास…
ContinueAdded by सुनीता शानू on September 15, 2011 at 5:00pm — 2 Comments
क्यों आ गया मैं हाय कभी हाथ छुड़ा कर,
तड़पता हूँ के अब रोज़ तिरे दिल को दुखा कर।
आज नदामत से पथरा गई हैं ये आंखें
आजा के बस इक बार तो आंचल से हवा कर।
दिन को सुकूँ शब को भी आराम नहीं है,
हवा भी चली आज ये नश्तर से चुभा कर।
अब ए दिल मुझे हयात की ख्वाहिश नहीं रही,
आया है वो मुकाम के मरने की दुआ कर।
दरे मौत पे आकर अटका है ये 'इमरान'
आ जा के मिरे जिस्म से ये रूह जुदा कर।
इमरान…
ContinueAdded by इमरान खान on September 15, 2011 at 2:23pm — 4 Comments
Added by mohinichordia on September 15, 2011 at 11:25am — 1 Comment
वो मासूम सा लड़का उसे बचपन से भला लगता था ,छोटी छोटी सी आँखें,घुंघराले बाल ,वो हमेशा से छुप छुप के उसे देखती आई थी ,जब वो अपना बल्ला लेकर खेलने जाता, अपने दीदी की चोटी खींचकर भाग जाता, मोहल्ले के बच्चो के साथ गिल्ली डंडा खेलता हर बार वो बस उसे चुपके से निहार लिया करती थी. जैसे उसे बस एक बार देख लेने भर से इसकी आँखों को गंगाजल की पावन बूदों सा अहसास मिल जाता था . घर की छत पर खड़ा होकर जब वो पतंग उडाता वो उसे कनखियों से देखा करती थी जेसे जेसे उसकी पतंग आसमान में ऊपर जाती, इसका दिल भी जोरों…
ContinueAdded by kanupriya Gupta on September 15, 2011 at 10:30am — No Comments
हिंदी-दिवस मनाना, है असल में बहाना |
Added by Shashi Mehra on September 15, 2011 at 9:30am — 1 Comment
हिंदी प्रसार
Added by Shashi Mehra on September 15, 2011 at 9:00am — 3 Comments
कितना अच्छा लगता है
कभी खुद से खोकर
खुद को ढूँढना.
बीती हुई गलतियों पर
एक निर्पेक्ष दृष्टिपात;
गुजरे रास्तों…
ContinueAdded by Kailash C Sharma on September 14, 2011 at 2:30pm — 7 Comments
मैं स्त्री हूँ रत्नगर्भा ,धारिणी,
पालक हूँ, पोषक हूँ
अन्नपूर्णा,
रम्भा ,कमला ,मोहिनी स्वरूपा
रिद्धि- सिद्धि भी मैं ही ,
शक्ति स्वरूपा ,दुर्गा काली ,महाकाली ,…
Added by mohinichordia on September 14, 2011 at 1:00pm — 7 Comments
मुक्तिका
अब हिंदी के देश में
संजीव 'सलिल'
*
करो न चिंता, हिंदी बोलो अब हिंदी के देश में.
गाँठ बँधी अंग्रेजी, खोलो अब हिंदी के देश में..
ममी-डैड का पीछा छोड़ो, पाँव पड़ो माँ-बापू के...
शू तज पहन पन्हैया डोलो, अब हिंदी के देश में
बहुत लड़ाया राजनीति ने भाषाओँ के नाम पर.
मिलकर गले प्रेम रस घोलो अब हिंदी के देश में..
'जैक एंड जिल' को नहीं समझते, 'चंदा मामा' भाता है.
नहीं टेम्स गंगा से तोलो अब हिंदी के देश में..…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 14, 2011 at 8:30am — 8 Comments
अभियंता दिवस १५ सितम्बर पर विशेष आलेख:
तकनीकी गतिविधियाँ राष्ट्रीय भाषा में
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
राष्ट्र गौरव की प्रतीक राष्ट्र भाषा:
किसी राष्ट्र की संप्रभुता के प्रतीक संविधान, ध्वज, राष्ट्रगान, राज भाषा, तथा राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह (पशु, पक्षी आदि) होते हैं. संविधान के अनुसार भारत लोक कल्याणकारी गणराज्य है, तिरंगा झंडा राष्ट्रीय ध्वज है, 'जन गण मन' राष्ट्रीय गान है, हिंदी राज भाषा है, सिंह राष्ट्रीय पशु तथा मयूर…
Added by sanjiv verma 'salil' on September 14, 2011 at 8:00am — No Comments
कुछ कह न सके तुम, चुप सह न सके हम .
Added by Lata R.Ojha on September 14, 2011 at 12:00am — 10 Comments
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