हुस्न का है गुलिस्ताँ इश्क की नज़र है ये,
दिलों को दिल से जोड़ता लखनऊ शहर है ये,
लोगों को पुकार कर जो कह रहा है प्यार कर,
हो दोस्ती का वास्ता तो अपनी जाँ निसार कर,
दिल के रिश्तों पर लगी विश्वास की मुहर है ये,…
ContinueAdded by Anil chaudhary "sameer" on October 23, 2012 at 10:40am — 4 Comments
एक ताज़ा ग़ज़ल पेश ए खिदमत है गौर फरमाएं -
वो मेरी शख्सियत पर छा गया तो |
ये सपना है, मगर जो सच हुआ तो |
दिखा है झूठ में कुछ फ़ाइदा तो |
मगर मैं खुद से ही टकरा गया तो |
मुझे सच से मुहब्बत है, ये सच है,
पर उनका झूठ भी अच्छा लगा तो |
शराफत का तकाज़ा तो यही है,
रहें चुप सुन लिया कुछ अनकहा तो |
करूँगा मन्अ कैसे फिर उसे…
Added by वीनस केसरी on October 23, 2012 at 12:18am — 16 Comments
शक्ति रूपिणी हे माँ अम्बा l वंदन स्वीकृत कर जगदम्बा ll
जय जय जय हे मातु भवानी l नत मस्तक हैं हम अज्ञानी ll
थामो माँ चेतन की डोरी l कर दो मन की चादर कोरी ll
हर क्षण हो इक नया सवेरा l तव प्रांगण नित रहे बसेरा ll
माँ ममता से हमको भर दो l हृदय प्रेम का सागर कर दो ll
अंगारे भी पग सहलाएँ l पुष्प बनें सुरभित मुस्काएँ ll
नयन समाय प्रेम की धारा l भटकन मन की पाय किनारा ll
वाणी बहे अमृत सी निर्मल l कर्म सहस्त्रान्शु…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on October 22, 2012 at 9:18pm — 12 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 22, 2012 at 6:54pm — 7 Comments
Added by shikha kaushik on October 22, 2012 at 3:32pm — 7 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 22, 2012 at 12:26pm — 5 Comments
प्रश्नवाची
मन हुआ है, हैं सुलगते अभिकथन
क्या मुझे अधिकार है ये
मैं दशानन को जलाऊँ ??
खींच कर
रेखा अहम् की शक्त वर्तुल से घिरी हूँ
आइना भी क्या करे जब मैं तिमिर की कोठरी हूँ
दर्प की आपाद मस्तक स्याह चादर ओढ़ कर
क्या मुझे अधिकार है
'दम्भी 'दशानन को बताऊँ ??
झूठ, माया-मोह
ईर्ष्या के असुर नित रास करते
स्वार्थ की चिंगारियों से प्रिय सभी रिश्ते सुलगते
पुण्य पापों को बता कर सत्य पर भूरज…
Added by seema agrawal on October 22, 2012 at 11:31am — 15 Comments
अर्थ रह गए गलियारों में शब्द बिक रहे बाजारों में
रचनाओं के सृजन कर्ता भटक रहे हैं अंधियारों में ।।
केवट भी तो तारक ही था जिसने तारा तारन हारा
कलयुग में ये दोनों अटके विषयों के मझधारों में ।।
कृष्ण नीति की पुस्तक गीता सच्चाई को तरसे देखो
हर धर्म धार दे रहा बेहिचक आतंकी के औजारों में ।।
मंदिर मस्जिद घूम रहा है धर्म नहीं है जिस पंछी का
धर्म ज्ञान को रखने वाला झुलस रहा है अंगारों में ।।
धर्मों के…
ContinueAdded by Manoj Nautiyal on October 22, 2012 at 9:58am — 5 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on October 22, 2012 at 12:14am — 3 Comments
नहि भेद लिखे कछु वेद कवी सब गाल बजावत मंचहि पे
निज वेशहि की परवाह करें बस ध्यान धरें धन संचहि पे
अब ब्रम्ह बने सूतहि जब है सब ज्ञान बखान विरंचहि पे
कलि कौतुक देख हसे सुर है गुरु बैठत है अब बेंचहि पे
कलिकाल धरा विकराल बढ़ा सुत मातु पिता नहि मानत है
धन की महिमा सब ओर सखे धनही सबका पहिचानत है
घर की नहि नारिहि मान करे ललचाय पराय अमानत है
सनदोह सहोदर मोह नही अब दारहि का सब जानत है
चिदानन्द शुक्ल "सनदोह"
Added by Chidanand Shukla on October 21, 2012 at 9:00pm — 16 Comments
आज का ये ही दौड़ है कहता ये वक्त है
है सुखी और सफल वही , बीवी का जो भक्त है
उसी की ही आरती है , उसी का गुणगान है ,
घुमा फिर के बातों में बस उसी का बखान है .
इस बात का बयां , चेहरा करता अभिव्यक्त है .
है सुखी और सफल वही , बीवी का जो भक्त है .
उसी की ही सेवा है, उसी का सुमिरन है .
उसपे ही "सागर" का निसार सारा जीवन है .
प्राणप्रिये के प्रेम में , जो तन-मन से आसक्त है .
है सुखी और सफल वही , बीवी का जो भक्त है .
उसी में ही श्रधा है…
Added by praveen singh "sagar" on October 21, 2012 at 1:00pm — 1 Comment
झुका दूं शीश अपना ये बिना सोचे जिन चरणों में ,
ऐसे पावन चरण मेरे पिता के कहलाते हैं .
बेटे-बेटियों में फर्क जो करते यहाँ ,
ऐसे कम अक्लों को वे आईना दिखलाते हैं…
Added by shalini kaushik on October 21, 2012 at 1:00pm — 4 Comments
रूठ मै जाऊँ तो मनाना मुझको
जो गिरता हूँ तो उठाना मुझको
मैंने मोहब्बत ही सबसे की है
गर हो खता खुदा बचाना मुझको
तुम्हारी हरेक शर्त मंजूर है मुझे
हाथ पकड़ के कभी बिठाना मुझको
बड़ी ही नाज़ुक है यादें हमारी
दीवारों पर यूँ न सजाना मुझको
दिल के कमज़ोर होते हैं इश्क वाले
बुरी नज़र से सबकी बचाना मुझको
साथ माँ-बाप का किसे अच्छा नहीं लगता
मेरी मजबूरीयों से ए-रब बचाना…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on October 21, 2012 at 10:30am — 2 Comments
'आत्मा' का वजन सिर्फ 21 ग्राम !
इंसानी आत्मा का वजन कितना होता है?
इस सवाल का जवाब तलाशने के लिये 10 अप्रैल 1901 को अमेरिका के…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 21, 2012 at 8:45am — 7 Comments
लिखा छन्द टेढ़ मेढ़,
कर दिया ऐड़ बेड़,
छंद अनुराग जो भी,
करावाये कम है |
किया है सुधार जब,
छन्द महारथियों ने,
लगा अब रचना में,
आया कुछ दम है |
छन्द का है भूत चढ़ा,
रात दिन रटा पढ़ा,
और अब लिखने को
उठाई कलम है |
दोहा रोला घनाक्षरी,
उल्लाला भी लिखूंगा मैं,
सीखूंगा मैं अपनों से,
काहे की शरम है ||
जय हो
Added by वीनस केसरी on October 21, 2012 at 12:00am — 4 Comments
उन से कह दो खतों में महक ना रखें
मेरी चाहत पे इतना भी शक ना रखें
चाँद छुप जाएगा रात रुक जायेगी
अपनी आँखों में इतनी चमक ना रखें
जिक्र उसका चले, हाल पूछें मेरा
मेरे जख्मों पे ऐसे नमक ना रखें
मेरा बनना है उनको तो बन जायें वो
मेरे बन जायें तो मुझ पे हक ना रखें
दीद-ऐ-महबूब जितना मिला लूट लें
और उम्मीद फिर मौत तक ना रखें
चाँद ने खुद् निहारा जो शब् भर हमें
क्यों कदम फिर हमारे बहक ना रखें
मैं भी लो छोड़ दूं जिक्र शहनाई…
Added by Pushyamitra Upadhyay on October 20, 2012 at 10:19pm — 1 Comment
दीपावली की रात से पहले लक्ष्मी पूजा की तैयारी में लगे पडोसी जीवन को देख कर नवीन जी से रहा नहीं गया और जा धमके उनके सामने नमस्कार करके बोले जीवन जी आप जो ये छोटे छोटे पैर लाल रंग से बना रहे हैं क्या सचमुच रात को देवी आती है क्या आपने उसको कभी आते हुए देखा ?जीवन बोले हाँ आती है इसी लिए तो बना रहा हूँ तुम ठहरे नास्तिक तुम कहाँ समझोगे | नवीन जी बोले जी नहीं भगवान् को तो मैं मानता हूँ पर इन सब आडम्बरों में विशवास नहीं रखता वैसे आज मुझे बता ही दो ये सब क्या फंडा है ये बात तो मैं…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 20, 2012 at 11:42am — 14 Comments
बहरे रमल मुसम्मन महजूफ़
(वज़न- फायलातुन फायलातुन फायलातुन फाएलुन)
---------------------------------------------------------
मुलाहिजा फरमाएं:
बात क्यूँ करते हो मुझसे इश्रतोआराम की
हुस्नवालों की दलीलें हैं मिरे किस काम की
कब हुई तस्लीम मेरी इक ज़रा सी इल्तेजा
दास्तानें कब हुईं मंसूख तेरे नाम की
जाग जाओ सोने वालो अपने मीठे ख्वाब से
घंटियाँ बजने लगी हैं शह्र में आलाम की
पीछे पीछे नामाबर…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 19, 2012 at 11:51pm — 8 Comments
देखते ही देखते दिन रात बदल जाते है
पल में लोग अपनी बात बदल जाते है
यूँ बदल गई आब-ओ-हवा मेरे शहर की
घर देख कर यहाँ अब ताल्लुकात बदल जाते हैं
न कर गुरुर बन्दे मेयार-ए-ख़ुद पर
कौन जाने कब किसके हालत बदल जाते हैं
रह गई है मौहब्बत की इतनी ही हकीक़त
रोज आशिको के अब जज्बात बदल जाते हैं
होती है आरजू-ए-मुकतला यहाँ सभी को
तकदीरे कभी तो कभी ख्वाहिशात बदल जाते है
क्या करें जहाँ में ऐतबार अब किसी का
जब…
Added by Sonam Saini on October 19, 2012 at 9:34am — 13 Comments
कभी गुलामी के दंशों ने , कभी मुसलमानी वंशों ने
मुझे रुलाया कदम कदम पर भोग विलासीरत कंसो ने
जागो फिर से मेरे बच्चों शंख नाद फिर से कर डालो
फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो||
मनमोहन धृष्टराष्ट बन गया कलयुग की पहचान यही है
गांधारी पश्चिम से आकर जन गण मन को ताड़ रही है
भरो गर्जना लाल मेरे तुम माँ का सब संकट हर डालो
फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो…
Added by Manoj Nautiyal on October 19, 2012 at 7:18am — 5 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |