समय ने हद से बढ़ के जब नयी मजबूरियाँ दी हैं
उन्हीं मजबूरियों ने ही तनिक चालाकियाँ दी हैं।१।
सफर में राह ने काँटे उगाये पाँव बेबस कर
मगर इक हौसले ने ही कई बैशाखियाँ दी हैं।२।
बढ़ाया हाथ भी ठिठका कहा भौंरे ने जब इतना
खिले फूलों के रंगों ने चमन को तितलियाँ दी हैं।३।
भुला बैठे हैं सब शायद यही …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 17, 2019 at 8:29pm — 8 Comments
हमारे इल्म का वो क़द्रदान थोड़ी है ।
हमें दे रोटियां कोई महान थोड़ी है ।।
उसे है बेचना हर ईंट इस इमारत की ।
हुज़ूर मुफ़्त में वो मिह्रबान थोड़ी है ।।
विकास सब का हो और साथ भी रहे सबका ।
ये राजनीति है पक्की ज़ुबान थोड़ी है ।।
लुढ़क रहे हैं ख़ज़ाने ये फ़िक्र कौन करे…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 17, 2019 at 2:49pm — 1 Comment
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मत कहो आप दौरे गुरबत है ।
चश्मेतर हूँ ये वक्ते फुरकत है ।।
कुछ तो भेजी खुदा ने आफ़त है ।
ये तबस्सुम है या क़यामत है ।।
उसकी किस्मत को दाद देता हूँ ।
जिसको हासिल तुम्हारी कुर्बत है ।।
अलविदा मत कहें हुजूर अभी ।
बज़्म को आपकी ज़रूरत है ।।
इश्क़ में क्या …
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 16, 2019 at 12:30pm — 1 Comment
तुम पर कोई गीत लिखूँ क्या
तुम सुगंध खिलते गुलाब सी
सुन्दर कोमल मधुर ख्वाब सी
मैं मरुथल का प्यासा हरिना
ललचाती मुझको सराब* सी
तुमको पाने की चाहत में
अब तक मचल रही हैं साँसें
तुम ही कह दो तुमको अपने
प्राणों का मनमीत लिखूँ क्या
तुम पर कोई गीत लिखूँ क्या
तुम शीतल हो चंदन वन सी
तुम निर्मल-जल, तुम उपवन सी
तुम चंदा सी और चाँदनी-
सी तुम हो, तुम मलय-पवन सी
नयन मूँद कर तुमको देखूँ…
ContinueAdded by आशीष यादव on December 15, 2019 at 3:00pm — 2 Comments
वोटर पापड़ बेल रहे हैं
और मसीहे खेल रहे हैं।1
उम्मीदें जिनकी मुरझाईं
उट्ठक - बैठक पेल रहे हैं।2
मत देने पर स्याही सूखी,
दाग लगे, सब झेल रहे हैं।3
लड़ते - मरते लोग - लुगाई
नेता भरसक रेल रहे हैं।4
'अक्ल बड़ी कह भैंस लजाई,
अंधे गाड़ी ठेल रहे हैं।5
जिसकी पूंछ मिले,पकड़ें सब
बैतरणी को हेल रहे हैं।6
पाठ पढ़ाते चलते हैं वे
जो जीवन भर फेल रहे हैं।7
कुर्सी खातिर मिल…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on December 14, 2019 at 4:44pm — 8 Comments
ज़िन्दगी सपेरे की रहस्यमयी पिटारी हो मानो
नागिन-सी सोच की भटकती हुई गलियों में
हर रिश्ते की कमल-पंखुरी मुरझा कर
सूखकर भी झड़ जाने से पहले लिख जाती है
विचार-भाव में कोई लम्बी भीषण कहानी
अद्भुत है सृष्टि हर रिश्ते की
कभी किसी आकाशीय स्नेह से द्रवित
कभी परिवर्तित हृदय-संबंध से आतंकित
तारिकायों के संग नृत्य में प्र्फुल्लित
या कभी शून्य की सियाह सुरंग से उद्विग्न
पल भर में कहाँ से कहाँ घूम आता है…
ContinueAdded by vijay nikore on December 13, 2019 at 7:58am — 14 Comments
' नागरिक...जी हां नागरिक ही कहा मैंने ', जर्जर भिखारी ने कहा।
' तो यहां क्या कर रहे हो?' सूट बूट धारी लोगों ने उसे घुड़का।
' अपना सच ढूंढ रहा हूं ।'
' मतलब?'
' नहीं समझे?'
' नहीं।समझा दो।'
' सच यानी अपने यहां का होने का प्रमाण साहिब।'
' तुम यहीं के हो?'
' पीढ़ियां गुजर गईं यहीं।'
' फिर प्रमाण क्या?'
' अपने हाकिमों को दिखाना होगा न।वरना कहां भीख मांगूंगा?'
' तुम्हारा मतलब भीख मांगने के लाइसेंस से है क्या?'
' हे हे हे...नहीं समझे फिर…
Added by Manan Kumar singh on December 12, 2019 at 9:44am — 3 Comments
221 2121 1 221 212
रुख़ से जो मेरे यार ने पर्दा हटा दिया
महफ़िल में हुस्न वालों को पागल बना दिया
मौसम को जिसने छू के नशीला बना…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on December 11, 2019 at 10:16pm — No Comments
2122 1122 1122 22
चाहे दुनिया में कहीं और चले जाएंगे
चाह कर भी वो मुझे भूल नहीं पाएंगें
उनके एल्बम में है तस्वीर पुरानी मेरी
अब वो देखेंगे तो पहचान नहीं पाएंगे…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on December 11, 2019 at 10:00pm — No Comments
उठे सरस मृदु गंध, महकता यौवन तेरा।
देख जिसे दिन रात ,डोलता है मन मेरा।
अधर मधुर मुस्कान, छलकती मय की प्याली।
चुभती बनकर शूल, चमकती तेरी बाली।
क्षण भर भी तुमसे दूर, नहीं अब रह पाऊँगा।
न तुम ऐसे शरमाओ, कसम से मर जाऊँगा।
गोरे गोरे गाल, दामिनी द्युति सम चमकें।
हृदय लगाती आग, अधखुली तेरी पलकें।
चंचल तेरा रूप, केश हैं उस पर उलझे।
करे ठिठोली आज, नहीं अब तुमसे सुलझे।
तेरे नैनों का वार, नहीं अब सह पाऊँगा।
न तुम ऐसे शरमाओ, कसम से मर…
Added by विमल शर्मा 'विमल' on December 11, 2019 at 6:00pm — 4 Comments
अरकान : 221 2121 1221 212
इक दिन मैं अपने आप से इतना ख़फ़ा रहा
ख़ुद को लगा के आग धुआँ देखता रहा
दुनिया बनाने वाले को दीजे सज़ा-ए-मौत
दंगे में मरने वाला यही बोलता रहा
मेरी ही तरह यार भी मेरा अजीब है
पहले तो मुझको खो दिया फिर ढूँढता रहा
रोता रहा मैं हिज्र में और हँस रहे थे तुम
दावा ये मुझसे मत करो, मैं चाहता रहा
कुछ भी नहीं कहा था अदालत के सामने
वो और बात है कि मैं सब जानता…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on December 10, 2019 at 10:00am — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on December 9, 2019 at 6:36pm — 6 Comments
सागर ....
नहीं नहीं
सागर
मुझे तुम्हारे कह्र से
डर नहीं लगता
तुम्हारी विध्वंसक
लहरों से भी
डर नहीं लगता
तुम्हारे रौद्र रूप से भी
डर नहीं लगता
मगर
ऐ सागर
अगर तुम
वहशियों से नोचे गए
मासूमों के
क्रंदन सुनोगे
तो डर जाओगे
किसी खामोश आँख में
ठहरा समंदर
देखोगे
तो डर जाओगे
खिलने से पहले
कुचली कलियों के
शव देखोगे
तो डर जाओगे
सदियों से तुमने
अपने गर्भ में
न…
Added by Sushil Sarna on December 9, 2019 at 1:33pm — 2 Comments
'कभी - कभी विपरीत विचारों में टकराव हो जाया करता है। चाहे - अनचाहे ढंग से अवांछित लोग मिल जाते हैं,या वैसी स्थितियां प्रकट हो जाती हैं। या विपरीत कार्य - व्यवसाय के लोगों के बीच अपने - अपने कर्तव्य - निर्वहन को लेकर मरने - मारने तक की नौबत आ जाती है। यदा कदा तो परस्पर की लड़ाई भिड़ाई में प्राणी इहलोक - परलोक के बीच का भेद भी भुला बैठते हैं।अभी यहां हैं,तो तुरंत ऊपर पहुंच जाते हैं।पहुंचा भी दिए जाते हैं।' प्रोफेसर पांडेय ने अपना लंबा कथन समाप्त किया। मंगल और झगरू उनका मुंह देखते रह गए।
'…
Added by Manan Kumar singh on December 9, 2019 at 7:00am — 5 Comments
2122 2122 2122 212
कुछ मुहब्बत कुछ शरारत और कुछ धोका रहा ।
हर अदा ए इश्क़ का दिल तर्जुमा करता रहा ।।
याद है अब तक ज़माने को तेरी रानाइयाँ ।
मुद्दतों तक शह्र में चलता तेरा चर्चा रहा ।।
पूछिए उस से भी साहिब इश्क़ की गहराइयाँ ।
जो किताबों की तरह पढ़ता कोई चहरा रहा ।।
वो मेरी पहचान खारिज़ कर गया है शब के बाद ।
जो मेरे खाबों में आकर गुफ्तगू करता रहा ।।
साजिशें रहबर की थीं या था मुकद्दर का कसूर ।
ये मुसाफ़िर…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 9, 2019 at 12:33am — No Comments
221 2121 1221 212
कैसे कहें की इश्क़ ने क्या क्या बना दिया
राधा को श्याम श्याम को राधा बना दिया
उस बेर की मिठास तो बस जाने राम जी
सबरी ने जिसको चख के है मीठा बना…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on December 8, 2019 at 5:00am — 2 Comments
Added by Sushil Sarna on December 7, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
'भूं भूं...भूं' की आवाज सुन भाभी भुनभुनाई--
' भोरे भोरे कहां से यह कुक्कुड़ आ गया रे?'
' कुक्कुड़ मत कहना फिर, वरना....', बगल वाली आंटी गुर्राई।
' अरे तो क्या कहूं, डॉगी?'
' नहीं।'
' तो फिर?'
' पपलू है यह।पप्पू के पापा इसे प्यार से इसी नाम से बुलाते हैं।समझ गईं, कि नहीं?'
' बाप रेे..ऐसा?'
' और क्या?हमारे परिवार का हिस्सा है अपना पपलू। हमारे संग नहाता - धोता,खाता - पीता है यह।'
' और सब....?'
' और..?सब कुछ हमारे जैसा ही करता…
Added by Manan Kumar singh on December 7, 2019 at 11:00am — 1 Comment
१२२२/१२२२/१२२२
अमरता देवताओं का खजाना है
मनुज तूने कभी उसको न पाना है।१।
यहाँ मुँह तो बहुत पर एक दाना है
लिखा जिसके उसी के हाथ आना है।२।
सरल है चाँद तारों को विजित करना
कठिन बस वासना से पार पाना है।३।
रही है धर्म की ऊँची ध्वजा सब से
उसी पर अब सियासत का निशाना है।४।
व्यवस्था जन्म से लँगड़ी बुढ़ापे तक
उसी के दम यहाँ पर न्याय काना है।५।
जला पुतला निभा दस्तूर देते हैं
भला लंकेश को…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 7, 2019 at 10:59am — 4 Comments
दो मुक्तक (मात्रा आधारित )......
शराबों में शबाबों में ख़्वाबों में किताबों में।
ज़िंदगी उलझी रही सवालों और जवाबों में।
.कैद हूँ मुद्दत से मैं आरज़ूओं के शहर में -
उम्र भर ज़िन्दा रहे वो दर्द के सैलाबों में।
.........................................................
पूछो ज़रा चाँद से .क्यों रात भर हम सोये नहीं।
यूँ बहुत सताया याद ने .फिर भी हम रोये नहीं।
सबा भी ग़मगीन हो गयी तन्हा हमको देख के-
कह न सके दर्द अश्क से ज़ख्म हम ने धोये…
Added by Sushil Sarna on December 6, 2019 at 5:32pm — 6 Comments
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