For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

December 2011 Blog Posts (79)

हिंदी रंगमंच

अलका जी का रंगमंच जिसे आज भारत का आधुनिक रंगमंच के नाम से जाना जाता है वह एक सूट बूट में अन्दर   से धोती कुरता वाला भारतीय है वह कुलबुला रहा है बाहर आने के लिए. सभ्यता और संस्कृति की लड़ाई में संस्कृति दब रही है और जो सभ्य है उन्हें धोती के ऊपर सूट नहीं पसंद वह सीधे सूट को पसंद करेगा और अंग्रेजी नाटक की और जायेगा इसमें उसकी कोई गलती नहीं ह्हिंदी रंगमंच इस का शिकार है . दर्शको से    उसका सम्बन्ध नहीं बन प् रहा…

Continue

Added by sitaram singh on December 6, 2011 at 1:44pm — No Comments

हिंदी रंगमंच और उसकी समस्या

हिंदी रंगमंच की शुरुआत दो तरह से हुई, एक पारंपरिक तरीके से और दूसरा अंग्रेजो की नक़ल से पारंपरिक तरीके से उगे रंगमंच को लोकमंच का नाम मिला और दुसरे को आजकल की भाषा में रंगमंच बोलते है |

अंग्रेजो को गर्मी में भी भारत में रखने के लिए अंग्रेजी रंगमंच को भारत बुलाया जाता था इसी के जवाब में भारतीयता से लोटपोट पारसी थियेटर का जनम हुआ जो धीरे धीरे अपना स्वरुप बदलता हुआ आज का रंगमंच बना | ज्यादा इतिहास में जाये तो आधुनिक रंगमंच का जनक इब्राहीम अलका जी को माना जा सकता है | जवाहर लाल जी इनसे…

Continue

Added by sitaram singh on December 6, 2011 at 12:00pm — 2 Comments

ख्वाहिश

मेरा नया गीत:-…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 6, 2011 at 10:00am — 2 Comments

लघुकथा - जीवन पथ

मैं जिस शहर में रहता हूं, वहां एक नेत्रहीन व्यक्ति है। वे पूरे शहर में खुद ही एक डंडे के सहारे कहीं भी चले जाते हैं। उन्हें इस तरह ‘जीवन पथ’ पर आगे बढ़ते बरसों हो गया। उनकी जिजीविषा देखकर हर कोई हतप्रद रह जाता है। यह तो हम सब कहते रहते हैं कि बेसहारे को सहारे की जरूरत होती है, मगर यह नेत्रहीन व्यक्ति ऐसी सोच रखने वालों के लिए मिसाल है। दरअसल, पिछले दिनों नेत्रहीन व्यक्ति शहर के चौक से गुजर रहा था, इसी दौरान उन्हें सड़क किनारे से आवाज आई कि कोई उसे सड़क पार करा दे। इससे पहले कोई उस असहाय व्यक्ति को… Continue

Added by rajkumar sahu on December 6, 2011 at 12:17am — 2 Comments

क्षणिकाएँ!

क्षणिकाएँ



१) 
 
आदमी
जो भी गया
अदालत में.
लौटकर 
आया नही
गया था
जिस हालत में!!!! 
 
२)
 
महंगाई क़े
थप्पड़ 
खा कर
पब्लिक 
हलकान है.
आपने
एक थप्पड़ खाया
तो
परेशान…
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on December 5, 2011 at 8:00pm — 8 Comments

ये बिहार है (गौरव गीत )

सब धर्मों का एक सा आदर , ऐसा यहाँ आचार है.
होते हैं भगवान अतिथि , ऐसा यहाँ विचार है.
ये बिहार है ................ ये बिहार है.
महावीर का सन्देश है - यहाँ बुद्ध का उपदेश है.
यहाँ आर्य भट्ट का खगोल  है - यहाँ माटी भी  अनमोल है.
नालंदा का यहाँ ज्ञान  है - यहाँ सीता का सम्मान है.
अशोक का है शौर्य यहाँ - आम्रपाली  का सौन्दर्य यहाँ.
यहाँ बाल्मीकि का सृजन है - यहाँ गुरु गोविन्द का जन्म है.
शेरशाह का जोश है -…
Continue

Added by satish mapatpuri on December 5, 2011 at 5:00pm — 4 Comments

आज भी मैं वही फूल हूँ ,

आज भी मैं वही फूल हूँ ,  

जो कल था खिला हुआ ,

था आँखों का तारा ,

था हर एक से घिरा हुआ ,

हर कोई चाहे लेना ,

मुझे हाथों हाथों में ,  

मैं खुश यूँ ही होता रहा ,

उनकी प्यारी बातों में ,

कोई चाहे रहूँ  मैं , 

देवों का होकर ,  

कोई चाहे प्रियतम का हार बनूँ ,

पता नहीं कब फिसल गया ,

सब की नज़र से उतर गया , 

अब वो चमक नहीं रही , 

धुल धूसरित मैं पड़ा रहा ,

अपने विमुख  हुए हमसे…

Continue

Added by Rash Bihari Ravi on December 5, 2011 at 11:30am — 4 Comments

कुछ खास है मेरी दिल्ली में

प्यारे दोस्तो "दैनिक जागरण" ने "मेरा शहर मेरा गीत" आयोजन हेतु मेरा यानि कि आपके दोस्त सुमित प्रताप सिंह का गीत "कुछ ख़ास है मेरी दिल्ली में" का शीर्ष 3 स्थान (TOP 3) पर चयन किया है| इस गीत को प्रथम स्थान पर चयन हेतु SMS वोटिंग प्रक्रिया से गुजरना है| आपसे निवेदन है कि कृपया मेरे इस गीत को प्रथम स्थान दिलाने हेतु वोट…

Continue

Added by SUMIT PRATAP SINGH on December 5, 2011 at 11:00am — No Comments

महंगाई, भ्रष्टाचार और सरकार

केन्द्र में सत्ता पर बैठी कांग्रेसनीत यूपीए सरकार चाहे जितनी अपनी पीठ थपथपा ले, लेकिन महंगाई व भ्रष्टाचार के कारण सरकार जनता की अदालत में पूरी तरह कटघरे में खड़ी है। ठीक है, अभी लोकसभा चुनाव को ढाई से तीन साल शेष है, किन्तु सरकार को जनता विरोधी कार्य करने से बाज आना चाहिए। महंगाई ने तो पहले ही लोगों की कमर तोड़कर रख दी थी। फिर भी सरकार का रवैया नकारात्मक ही रहा और महंगाई की मार कम हो ही नहीं रही है। सरकार में बैठे सत्ता के मद में चूर कारिंदों के ऐसे बयान आते रहे, जिससे महंगाई नई उंचाईयां छूती…

Continue

Added by rajkumar sahu on December 5, 2011 at 1:31am — No Comments

कैसे कहता ?

आज अचानक मिला मुझे एक दोस्त पुराना

नई राह पर,

हाँथ मिलाया, गले मिले फिर

एक दूजे का हाल सुना,

कुछ मौसम की बात हुई

कुछ अपने परिवारों की

आहिस्ते-आहिस्ते जो अब टूट रहे है,

उन रिश्तों का जिक्र हुआ

जो अर्थहीन होने वाले है,

और कुछ खुशियों की बात हुई,

फिर उसने मुझसे पूछ लिया

"क्या अब भी लिखते हो" ?

मै चुप था

सोच रहा था सच न बताऊँ,

और नहीं बताया !

 

कैसे कहता ?

मन में बनते गीत दबा…

Continue

Added by Arun Sri on December 4, 2011 at 1:41pm — 3 Comments

गली के कुत्ते और वफ़ादार कुत्ते

किसे नहीं अच्छे लगते

वफादार कुत्ते?



जो तलवे चाटते रहें

और हर अनजान आदमी से

कोठी और कोठी मालिक की रक्षा करते रहें



ऐसे कुत्ते जो मालिक का हर कुकर्म देख तो सकें

मगर किसी को कुछ बता न सकें

जो मालिक की ही आज्ञा से

उठें, बैठें, सोएँ, जागें, खाएँ, पिएँ और भौंकें



ऐसे ही कुत्तों को खाने के लिए मिलता है

बिस्किट और माँस

रहने के लिए मिलती हैं

बड़ी बड़ी कोठियाँ

और मिलती है

अच्छे से अच्छे नस्ल की कुतिया



और जब…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 4, 2011 at 1:11am — 2 Comments

लघु कथा- तरकीब

‘क्या ठाकुर साहिब, आपने महरी के लड़के को कालेज पूरा करते ही नौकरी लगवाकर शहर भेज दिया !’
‘तू नहीं समझेगा छगन, अगर वो गांव में रहता तो अपने साथियों को भी पढ़ाता और प्रेरित करता और वो हमारे घरों का काम न करते।’ ठाकुर साहिब के चेहरे पर कुटिल मुस्कान थी।

Added by Ravi Prabhakar on December 2, 2011 at 7:30pm — 3 Comments

इंसानों की दुकान

दुनिया को दुनिया क्यों कहते हैं ?

इंसानों की दुकान क्यों नहीं कहते ?

जहाँ इंसान बिकते हैं..

बिकते हैं कुछ हो बेआबरू यहाँ, कुछ हैं जो होकर महान बिकते हैं..

देते हजारों को गुलामी ये जन ,खुदको शहंशाह मान बिकते हैं..

लो हो गयीं शख्सियतें कीमती, खरीदो ये महंगे सामान बिकते हैं..

हो गए हैं जिंदगी से खाली शायद, जिस्म बिकते हैं जैसे मकान बिकते हैं..

पूछा तो बोले इसमें शर्म कैसी, हमें फक्र है हम सीना तान बिकते हैं..

देखी जो जमीं की…

Continue

Added by Bhasker Agrawal on December 2, 2011 at 4:00pm — 2 Comments

ढूंढूं मैं किसे साथ निभाने के लिये...

आये हैं सभी आज तो जाने के लिये,

ढूंढूं मैं किसे साथ निभाने के लिये.

 

तन्हाई भरे शोर ये कब तक मैं सुनूँ,

आ जाओ मुझे गीत सुनाने के लिये।

 

जल जल के मिरे दिल की ये शम्में हैं बुझी,

कोई भी नहीं फिर से जलाने के लिये।

 

जज़्बात की ये मौज उठी आज मुझे,

इक याद के दरिया में डुबाने के लिये।

 

सोये हैं वो 'इमरान' सुनाता है किसे,

चल हम भी चलें ख्वाब सजाने के लिये।

Added by इमरान खान on December 2, 2011 at 2:30pm — 4 Comments

इस दिल ने नादानी में............

इस दिल ने नादानी में

आग लगा दी पानी में ।

 

वा'दे सारे खाक हुए

आया मोड़ कहानी में ।

 

तेरी याद चली आए

है ये दोष निशानी में…

Continue

Added by dilbag virk on December 1, 2011 at 4:30pm — 9 Comments

ये परवत और गगन शीश झुकायेंगे....

ये परवत और गगन शीश झुकायेंगे,

पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.

हैं सब की दृष्टि में ही भले अधूरे हम,

किन्तु जग को हम सम्पूर्ण बनायेंगे.

 

लालच करने से हर काम बिगड़ता है,

काम क्रोध में पड़; इंसान झगड़ता है,

इच्छायें जिस दिन काबू हो जायेंगी,

वीर पुरुष उस दिन हम भी कहलायेंगे।

 

ये परवत और गगन शीश झुकायेंगे,

पर फैलाकर हम जब उड़ने जायेंगे.

 

बस दो पल का ही रंग रूप खिलौना है,

ये ढल जाता है रोना ही रोना…

Continue

Added by इमरान खान on December 1, 2011 at 2:00pm — No Comments

बिखरना मत

तू कभी मुश्किलों से डरना मत
या मेरी राह से गुजरना मत

दर्द जीवन में मिले तो उसको
समेट लेना मगर बिखरना मत

सुलाया खंजरों के बिस्तर पर
और कहते है आह भरना मत

मैंने ये तो नही कहा तुमसे
न रहूँ मैं तो तुम संवारना मत

मै बहकने लगूं कभी भी अगर
तुमको मेरी कसम संभलना मत

आतिश-ए-इश्क से भरा हूँ मैं
मोम है तू मगर पिघलना मत


............................................ अरुन श्री !

Added by Arun Sri on December 1, 2011 at 12:48pm — 2 Comments

लघुकथा - कामवाली

सुमन अपने सास को फोन कर रही थी तभी उसकी सहेली किरण वहाँ आ गई , सुमन उसे बैठने के लिए इशारा कर फोन पर बात करने लगी

 

"माँ जी, आप आ जाइये पप्पू रोज सुबह शाम आप को याद करता हैं .......

हाँ हाँ ! ये भी अपनी माँ को आपने पास पा कर बहुत खुश होंगे , ....

हाँ तो माँ जी आप कब आ रही हो ?

रविवार को ?

ठीक हैं माँ जी मैं इनको स्टेशन भेज दूंगी !"

चेहरे पर मुस्कान लिए फोन रख किरण से बोली

"कैसे आना हुआ ?"

किरण बोली

"तू आपने सास के आने पर…

Continue

Added by Rash Bihari Ravi on December 1, 2011 at 12:30pm — 4 Comments

घर (लघु कथा)

पढ़ते-२ गौरव अचानक ही दीप्ति से बोला, "दीदी आपका घर कितना बड़ा और सुन्दर है. हमारी झुग्गी तो बहुत छोटी है और वो तो इतनी सुन्दर भी नहीं है." दीप्ति ने गौरव को समझाते हुए कहा, "गौरव एक दिन तुम्हारा घर भी ऐसा ही होगा." "पर दीदी हमारा घर ऐसा कैसे होगा जबकि मेरे माँ-बाप तो बहुत गरीब हैं. वो तो आप हम गरीब बच्चों को मुफ्त में ट्यूशन पढ़ा देती हैं वर्ना हमें तो कोई अपने आस-पास भी नहीं फटकने देता." गौरव दुखी हो दीप्ति से बोला. दीप्ति ने प्यार से गौरव के सर पर हाथ फिराते हुए…

Continue

Added by SUMIT PRATAP SINGH on December 1, 2011 at 10:30am — 3 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service