वादों की ..सडकों पे
कसमों के …गाँव हैं
प्रणय के ..पनघट पे
आँचल की ..छाँव है
…वादों की सडकों पे
…कसमों के गाँव हैं
प्रीतम की ……बातें हैं
धवल चांदनी …रातें हैं
सुधियों की .पगडंडी पे
अभिसार के ….पाँव हैं
…वादों की सडकों पे
…कसमों के गाँव हैं
शीत के …धुंधलके में
घूंघट की …..ओट में
प्रतिज्ञा की .देहरी पर
तड़पती एक .सांझ है
…वादों की सडकों पे
…कसमों के…
Added by Sushil Sarna on December 10, 2013 at 1:00pm — 16 Comments
वह भीगा आँचल
धूप
कल नहीं तो परसों, शायद
फिर आ जाएगी
अलगनी पर लटक रहे कपड़ों की सारी
भीगी सलवटें भी शायद सूख ही जाएँगी
पर तुम्हारा भीगा आँचल
और तुम अकेले में ...
उफ़ ...
तुमने न सही कुछ न कहा
थरथराते मौन ने कहा तो था
यह बर्फ़ीला फ़ैसला
दर्दीला
तुम्हारा न था
फिर क्यूँ तुम्हारी सुबकती कसक
कबूल कर जाती है…
ContinueAdded by vijay nikore on December 10, 2013 at 9:00am — 31 Comments
शास्त्री जी बहुत खुश हैं, नए घर का आज गृह प्रवेश समारोह है । विदेश से कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट की पढ़ाई पूर्ण कर इकलौता बेटा भी कल घर पहुँच गया था ।
"पापा, गेस्ट आ गये हैं आप कहें तो डिनर स्टार्ट करवा दूँ"
"नहीं बेटा, कुछ विशिष्ट अतिथियों का मैं इन्तजार कर रहा हूँ पहले वो आ जाएँ फिर भोजन प्रारम्भ कराते हैं" शास्त्री जी ने बेटे को समझाया ।
"विशिष्ट अतिथि कौन पापा ?"
"इस घर को अपने श्रम और पसीने से बनाने वाले मिस्त्री और मजदूर"
"उफ्फ ! आप…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 9, 2013 at 9:31pm — 43 Comments
“पापा ! टीचर ने कहा है कि फीस जमा करवा दो, नहीं तो इस बार नाम अवश्य काट दिया जाएगा।"
“अजी सुनते हो ! बनिया आज फिर पैसे मांगने आया था।”
“अरे बेटा ! कई दिन हो गए दवाई खत्म हुए, अब तो दर्द बहुत बढ़ता जा रहा है, आज तो दवाई ला दो।”
ये सभी आवाज़ें उसके मस्तिष्क पर हथोड़े की भाँति चोट कर रही थीँ।
मगर उसके दिल में एक नई कविता का खाका जन्म ले रहा था।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Ravi Prabhakar on December 9, 2013 at 7:00pm — 41 Comments
मैं रात का एक टुकड़ा हूँ
मैं रात का एक टुकड़ा हूँ
आवारा
भटक गया हूँ शहर की गलियारों में.
जिंदगी सिसक रही है जहाँ
दम घोटूँ
एक बच्चा हँसता हुआ निकलता है
बेफ़िक्र, अपने नाश्ते की तलाश में.
सहमा रह जाता हूँ मैं मटमैले कमरों में.
(2)
मैं क्या करूँ
सूरज निकलता है
भयभीत होता हूँ पतिव्रताओं की आरती से
मुँह छिपाये मैं छिप जाता हूँ
कभी धन्ना सेठों की तिज़ोरी में तो
कभी किसी सन्नारी के गजरों में.…
Added by coontee mukerji on December 9, 2013 at 6:07pm — 21 Comments
2122 2122 2122
जब उजाला चाहते थे सब दिये से
क्यों अँधेरा बंट रहा है हाशिये से
था क्षणिक उन्माद मैं ये मान भी लूँ
मूँद लोगे आँखें क्या अपने किये से ?
बोझ से कोई गिरा,…
Added by गिरिराज भंडारी on December 9, 2013 at 4:30pm — 25 Comments
किसी गली के नुक्कड़ पर
लगा दीजिये
किसी भी प्रसिद्ध नाम का पत्थर
वो उस गली की
पहचान हो जायेगा
वो नाम
सबकी जान हो जायेगा
कभी गलती से
किसी ने अगर उस पत्थर को
तोड़ने की कोशिश भी की तो
दंगाईयों का काम
आसान हो जायेगा
जी हाँ
नेताओं के लिए
चुनाव के निशान
पुजारी के लिए
तिलक के निशान
उनकी जान होते है
उनके व्यवसाय की
पहचान होते हैं
जाने क्योँ
लोग वाह्य आवरण को
अपनी पहचान…
Added by Sushil Sarna on December 9, 2013 at 4:30pm — 12 Comments
हॉस्पिटल से आने के बाद दिया ने आज माँ से आईना माँगा | माँ आँखों में आँसू भर कर बोली “ना देख बेटा आईना, देख न सकेगी तू |” पर दिया की जिद के आगे उसकी एक न चली और उसने आईना ला कर धड़कते दिल से दिया के हाथ में थमा दिया और खुद उसके पास बैठ गई | दिया ने भी धड़कते दिल से आईना अपने चेहरे के सामने किया और एक तेज चीख पूरे घर में गूँज गई, माँ की गोद में चेहरा छुपा कर फूट-फूट कर रो पड़ी दिया | माँ ने अपने आँसू पोंछे और उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए बोली कि “मैंने तो पहले ही तुझसे बोला था कि मत देख…
ContinueAdded by Meena Pathak on December 9, 2013 at 3:11pm — 25 Comments
Added by Ravi Prakash on December 9, 2013 at 2:27pm — 19 Comments
१.
मात पिता तो बोझ सम, आपन पूत सुहाय ।
जियबे पर ...पानी नही, मरे गया लइ जाय ॥
२.
धूल संस्कृति फाँकती, ....संस्कार हैं रोय ।
अंधी दौड़ विकास की, मानो सबकुछ होय॥
३.
है विवेक तो तनिक नहिं, शब्दन की भरमार।
अधकचरा से ज्ञान पर,...... हिला रहे संसार॥
४.
ज्ञान समुन्दर उर बसै, फिर भी भटकय जीव।
मन ना बस में करि सकै, ..तन जैसे निर्जीव॥
५.
देख मनुष का गर्व यों, ..सोच रहे भगवान ।
धरा नरक बन जाय जो, सारे होयँ समान…
Added by Kiran Arya on December 9, 2013 at 1:00pm — 17 Comments
२१२२ १२१२ १२२ २२२
रोज आदत जो तुमसे मिल ने की हो जायेगी
मौत की रात मेरी रूह भी रो जायेगी
आखिरी पल क़ज़ा जो सामने होगी मेरे
जिन्दगी इक हसीन ख्वाब में खो जायेगी
आज साकी बनी ग़ज़ल खडी है महफ़िल में
रिंद जब देंगे मशविरा सँवर वो जायेगी
हार उल्फत का देख मौत होगी शर्मिंदा
मौत खुद जिन्दगी ही हार में पो जायेगी
बात गुल से हसीं हो खार सी कड़वी चाहे
बीज जेहन मे ये ग़ज़ल के ही बो…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 9, 2013 at 11:30am — 10 Comments
वह अलौकिक हेडलाईट – आँखों देखी 6
शीतकालीन अंटार्कटिका का अनंत रहस्य हर रोज़ अपने विचित्र रंग-रूप में हमारे सामने उन्मोचित हो रहा था. बर्फ़ के तूफ़ान चल रहे थे जो एक बार शुरु होने पर लगातार घन्टों चला करते. कभी-कभी तो छह सात दिन तक हम पूरी तरह स्टेशन के अंदर बंदी हो जाते थे. 80 से 100 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से हवा चलती जो झटके से, जिसे तकनीकी भाषा में Gusting कहते हैं, प्राय: 140 कि.मी.प्र.घ. हो जाती थी. तूफ़ान के आने का…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on December 9, 2013 at 12:14am — 20 Comments
2122 2122 1222 12
चल दिया है छोड़, क्या जुल्म ये काफी नहीं
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अब हमारी याद भी क्यूँ तुम्हें आती नहीं
चल दिया है छोड़,क्या जुल्म ये काफी नहीं //१//
तू हमारे दिल बसा , इसमें है कैसी खता
हो गया हमसे जुदा याद क्यूँ जाती नहीं //२//
वो हवायें वो फिजायें बुलाती हैं तुम्हें
आ तो जाओ फिर कोई बात यूँ भाती नहीं //३//
मुडके भी देखा नहीं तुम गये जाने…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on December 8, 2013 at 9:30pm — 7 Comments
सब कुछ वैसा ही हो जाये
जैसा हमने चाहा था
जैसा हमने सोचा था
जैसा सपना देखा था
सब कुछ वैसा ही हो जाये
लेकिन वैसा कब होता है
कुछ पाते हैं, कुछ खोता है
ठगा-ठगा निर्धन रोता है
थका-हारा, भूखा सोता है
तुम हम सबको बहलाते हो
नाहक सपने दिखलाते हो
अपने पीछे दौडाते हो
गुर्राते हो, धमकाते हो
और हमारे गिरवी दिल में
बात यही भरते रहते हो
सब कुछ वैसा हो जायेगा
जैसा हम सोचा करते हैं
जैसा हम…
Added by anwar suhail on December 8, 2013 at 9:00pm — 5 Comments
तुमने खीची थी जो
सादे पन्ने पर
आड़ी तिरछी रेखाएं
वही मेरी जिंदगी की
तस्वीर है
वही जी रहा हूँ.
रस भरी के फल
जिसे छोड़ दिया था
तुमने कड़वा कहकर
वही मेरी जिंदगी की
मिठास है .
वही जी रहा हूँ ..
मंजिल पाने की जल्दी में
जिस राह को छोड़ कर
तुमने लिया था शोर्ट कट
वही मेरी जिंदगी की
राह है .
वही जी रहा हूँ .
तुम हो गये मुझसे दूर
तुम्हे अंक के…
ContinueAdded by Neeraj Neer on December 8, 2013 at 7:00pm — 14 Comments
प्रेम करो प्रकृति द्वारा
सृजित जीवन से
तो ही जान सकोगे
जीवन के गर्भ में
छुपे अनगिनत रहस्यों को
प्रेम से खुलेंगे
जीवन के वो द्वार
जिनके लिए जन्मों जन्मों
से भटकते रहे तुम
जिनसे अब तक
अन्जान रहे तुम
प्रेम से होगी यह प्रकृति
तुम्हे समर्पित
खोल कर रख देगी
सारे राज तुम्हारे सामने
जैसे गिरा देती है प्रेयसी
परदे अपने प्रेमी के सामने ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज 'प्रेम '
Added by Neeraj Nishchal on December 8, 2013 at 12:51pm — 19 Comments
बहरे रमल मुसमन महजूफ
2122 2122 2122 212
फूल जो मैं बन गया निश्चित सताया जाऊँगा,
राह का काँटा हुआ तब भी हटाया जाऊँगा,
इम्तिहान-ऐ-इश्क ने अब तोड़ डाला है मुझे,
आह यूँ ही कब तलक मैं आजमाया जाऊँगा,
लाख कोशिश कर मुझे दिल से मिटाने की मगर,
मैं सदा दिल के तेरे भीतर ही पाया जाऊँगा,
एक मैं इंसान सीधा और उसपे मुफलिसी,
काठ की पुतली बनाकर मैं नचाया जाऊँगा,
जख्म भीतर जिस्म में अँगडाइयाँ लेने लगे,
मैं बली फिर से किसी…
Added by अरुन 'अनन्त' on December 8, 2013 at 12:00pm — 26 Comments
बातें खत्म हो गई जिसका
जिक्र हम किया करते थे ...
वो गलियाँ कहीं
खो गईं जिनपे हम
चला करते थे ...
न शाम रही न धुआँ
किसी एक भी
चराग में...
वो चले गए जिन्हे
हम देखा करते थे...
हमको क्या हक़ है
अब, किसी को कुछ कहने का ,,,
रास्ता वो सब छूट गए
जिनपे हम मिला करते थे ...
अब हमको क्या मारेगी
क्या, ये दुनियाँ की विरनिया
वो अंदाज और था जीने का
जब रोज मरा करते थे…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on December 8, 2013 at 10:55am — 6 Comments
सीएफ़एल बोली, "हे बल्ब महोदय! आप ऊर्जा बहुत ज्यादा खर्च करते हैं और रोशनी बहुत कम देते हैं। मैं आपकी तुलना में बहुत कम ऊर्जा खर्च करके आपसे कई गुना ज्यादा रोशनी दे सकती हूँ।"
बल्ब महोदय ने चुपचाप सीएफ़एल के लिए कुर्सी खाली कर दी। रोशनी फैलाने वालों के इतिहास में बल्ब महोदय का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा गया।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 7, 2013 at 11:30pm — 12 Comments
2 1 2 2 2 2 1 2
.
दफ़्तरों में आराम क्यों
फाइलों में है काम क्यों
सुरमयी सी इक शाम है
फिर उदासी के नाम क्यों
कर गया वो करतूत…
ContinueAdded by अमित वागर्थ on December 7, 2013 at 11:00pm — 11 Comments
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