122 122 122 122
जो ख्वाबों ख़यालों में खोए रहेंगे |
सहर के अँधेरे डराने लगेंगे ||1
बनोगे जो धरती के चाँद सूरज |
तो सातों फ़लक सर झुकाने लगेंगे ||2
मुहब्बत ज़माने से जो बेख़बर है |
बशर देख ताने सुनाने लगेंगे ||3
खुदा की तमन्ना जो करते चलोगे |
फ़लक के सितारे लुभाने लगेंगे ||4
हमें जिंदगी से अदावत मिली है |
इशारे हमें अब डराने लगेंगे ||5
लिखेंगे जुदाई के नगमें कभी जो |
वही तीर बन के सताने लगेंगे…
ContinueAdded by Anita Bhatnagar on January 25, 2023 at 9:00am — 1 Comment
ग़ज़ल
यह कैसा संसार है भइया
दीप तले अँधियार है भइया
जनता के हिस्से की रोटी
खा जाती सरकार है भइया
जाति धरम के बाद यहाँ क्या
जनमत का आधार है भइया
अधर अरुण कलियाँ धनु भौहें
अंजन हाय कटार है भइया
इस जग में कुछ निश्छल भी है
हाँ वह माँ का प्यार है भइया
आज जरूरत है दुर्गा की
कृष्ण नहीं दरकार है भइया
करता चल कुछ काम भले भी
जीना दिन दो चार है…
Added by रामबली गुप्ता on January 25, 2023 at 8:06am — 6 Comments
विकृत कर गणतंत्र का, राजनीति ने अर्थ
कर दी है स्वाधीनता, जनता के हित व्यर्थ।१।
*
तंत्र प्रभावी हो गया, गण को रखकर दूर
कह सेवक स्वामी बने, ठाठ करें भरपूर।२।
*
आयेगा गणतंत्र में, अब तक यहाँ वसंत
तन्त्र बनेगा कब यहाँ, बोलो गण का कन्त।३।
*
भूखे को रोटी नहीं, न ही हाथ को काम
बस इतना गणतन्त्र में, गाली खाते राम।४।
*
द्वार खोलती पञ्चमी, कह आओ ऋतुराज
साथ पर्व गणतंत्र का, सुफल सभी हों काज।५।
*
लोकतंत्र के पर्व सह, आया …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2023 at 6:42am — 2 Comments
वक़्त को भी चाहिए वक़्त, घाव भरने के लिए
ज़ख्म कितने है लगे, हिसाब करने के लिए
बस दवाओं से हमेशा, बात बनती है नहीं
एक दुआ भी चाहिए, असर दिखाने के लिए
खींच लेता हैं समंदर, लहरों को आगोश में
सागर तो होना चाहिए, सैलाब लाने के लिए
पानी में डूबा हुआ, लोहा कभी सड़ता नहीं
बस हवा हीं चाहिए, उसे जंग खाने के…
ContinueAdded by AMAN SINHA on January 23, 2023 at 5:24pm — 1 Comment
221 2121 1221 212
मुश्किल में अपने इश्क़ की यूँ देखभाल कर।
अपने कहे का ,अपने लिखे का ख़्याल कर।
महसूस हो न दिल मे कभी उसकी याद तो,
अपने ज़मीर को जगा के सौ सवाल कर।
इक तरफा प्यार फिर भी बहुत कामयाब है,
खुद में ही उलझे रहना है सिक्के उछाल कर।
हम ही नहीं थे आपकी महफ़िल की रौशनी,
अच्छा किया है आपने दिल से निकाल कर।
ये चार दिन की बात तो मेरे लिए थी बस,
तू चाँदनी को रखना हमेशा संभाल कर।
कुदरत के…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 22, 2023 at 12:06am — 5 Comments
उषा अवस्थी
सबकी अलग देनदारियां हैं
जीवन-नदिया में,
कर्म-नौका पर सवार
सुख-दुख से उत्पन्न
अपरिहार्य लहरें
सहने की मजबूरियां हैं
जब तरंगे "सम" पर आती हैं
पहुँचाती हैं सहजता से
इच्छित गन्तव्य तक
समस्त उलझनों के पार
कराती हैं, स्वयं से स्वयं का
"साक्षात्कार"
प्रकृति आईना दिखाने को सन्नद्ध है
नियमों से आबद्ध है
जो अपना धर्म
सदैव निभाती है
"मैं"…
ContinueAdded by Usha Awasthi on January 21, 2023 at 6:57pm — 6 Comments
12122 12122 12122 12122
तेरे ख्यालों के अंजुमन में हज़ार पहरे लगे हुए हैं
सजाये कैसे ग़ज़ल का दामन गुनाहों में हम रंगे गए हैं
हमारे जैसा उदास कोई हमें कहीं भी नहीं मिला पर
हमारे दुख से बड़े बहुत दुख ज़माने भर में भरे पड़े हैं
कभी नहीं वो कहेंगे हमसे के उनके दिल में है प्यार अब भी
सकार को भी जिया था हमने नकार को भी समझ रहे हैं
ये ज़िन्दगी की उदास खुशबू जो बस गयी है मेरी रगों में
ज़रा सा खुश हूँ मैं इसमें क्योंकि तुम्हारें…
Added by मनोज अहसास on January 20, 2023 at 8:00pm — 3 Comments
इस तमस की खोह में आ चाँद भूले से कभी तो
गीत गा दो तुम सुरीला, वेदना को भूल जाऊँ।
*
जब नगर हतभाग्य से आ खो गये हैं गाँव मेरे
हर कदम पर चोट खाकर पथ विचलते पाँव मेरे।।
तोड़कर सँस्कार सारे छू रहे प्रासाद तारे
धूप से भयभीत मन है पग जलाती छाँव मेरे।।
सभ्यता की रीत कोई भौतिकी गढ़ती नहीं है
आत्ममंथन कर लचीला, वेदना को भूल जाऊँ।
*
जन्म पर जो भी तनिक थी, तात की पहचान खोई
बन सका है भर जगत में,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2023 at 2:04pm — 4 Comments
2122 2122
पत्थरों पर चल रहा हूँ
रास्तों को छल रहा हूँ 1
लग रहा हूँ आज मीठा
सब्र का मैं फल रहा हूँ 2
कर दिया उनको पवित्तर
यार गंगा जल रहा हूँ 3
अब नहीं ख्वाहिश किसी की
हाँ कभी बेकल रहा हूँ 4
आज इतनी गाड़ियाँ है
मैं कभी पैदल रहा हूँ 5
याद आऊँ, मुस्कुरा दो
वह तुम्हारा कल रहा हूँ 6
मैं डुबोया हूँ खुद ही को
स्वयं का दलदल रहा हूँ…
ContinueAdded by आशीष यादव on January 19, 2023 at 11:56pm — 1 Comment
इस मधुवन से उस मधुवन तक
पतझड़ पसरा है आँगन तक।१।
*
पायल बिछिया तक जायेगा
आ पसरा है जो कंगन तक।२।
*
मत मरने दो मन इच्छाएँ
आ जायेगा यह यौवन तक।३।
*
दिखता जब ऋतुराज न कोई
फैल न जाये अब यह मन तक।४।
*
धरती की तो रही विवशता
पसरे मत यह और गगन तक।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2023 at 3:52pm — 2 Comments
ऋतु शीत रवानी में अपने
ऊर्ध्वगी जवानी में अपने
चहुँओर सर्द को बढ़ा रही
जीवन वह्निः तक बुला रही
थी जगह जगह जल रही आग
प्रमुदित होकर जन रहे ताप
कौड़े में जैसे उठी ज्वाल
मन मोह लिया इक अधर लाल
रति जैसी जिसकी छाया थी
वह थी समक्ष या माया थी
पहने थे वसन तरीके से
सब सज्जित स्वच्छ सलीके से
कुंतल को उसने झटक दिया
मनसिज प्रसून पर पटक दिया
कितने उद्गार उठे मन में
ताड़ित से कौंध रहे तन…
ContinueAdded by आशीष यादव on January 19, 2023 at 11:10am — No Comments
2122 2122 2122 2122
क्या पता उस लोक में दिखती हैं कैसी अप्सराएँ
किस तरह चलतीं मचल कर किस तरह से भाव खाएँ
कौन सा जादू लिए फिरतीं सभी पर मार देतीं
किस तरह पुचकारती हैं किस तरह से प्यार देतीं
क्या महावर और मेहँदी आँख में काजल अनोखा
केशिनी मृगचक्षुणी हैं सत्य, या उपमान धोखा
किस तरह श्रृंगार रचती किस तरह गेशू सजाएँ
क्या पता कितनी सही है आमजन की कल्पनाएँ
आज देखी थी परी जो हाल कुछ उसका सुनाऊँ
देखता ही रह गया…
ContinueAdded by आशीष यादव on January 19, 2023 at 6:32am — 1 Comment
सदियों पावन धाम रहा जो खोते देख रहा हूँ
बहुत अकेले जोशीमठ को रोते देख रहा हूँ !
*
केवल अपनी पीड़ा से जो, दरक नहीं रहा है
पूर्ण हिमालय की पीड़ा को, उसने आज कहा है।।
पानी रिसना बोल रहे सब, देख फूटतीं धमनी
खोद खोद कर देह सकारी, जब कर बैठे छलनी।।
नयी सभ्यता के प्रलय को होते देख रहा हूँ
बहुत अकेले जोशीमठ को रोते देख रहा हूँ।।
*
सिर्फ़ सैर के लिए हिमालय, सबने मान लिया है
इसीलिए तो अघकचरा सा हर निर्माण किया है।।
जो संचालक देश - राज्य के,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 18, 2023 at 6:30pm — 6 Comments
असल कामयाबी जीवन की
सहज सरल सादा जीवन हो
बचना होगा वासना लिप्सा
अतिशय कामना नहीं मन हो
चल सकता काम अगर दो रोटी
तो एक गाय कुत्ते को दे दो !
पेट भरा होने पर भैया
उसे कभी अवकाश भी दो
असल कामयाबी जीवन की
सहज सरल सादा जीवन हो
होता सूर्य है उत्तरायण
सुनहला है अब वातावरण
निकली है अब धूप धुंध से
क्षमा भाव अपनाते सज्जन
सहने की सामर्थ्य बढ़ा लो
असल कामयाबी जीवन की
सहज…
Added by Chetan Prakash on January 17, 2023 at 10:00pm — 2 Comments
221--1221--1221--122
1
आँखों में भरे अश्क गिरा क्यों नहीं देते
है दर्द अगर सबको बता क्यों नहीं देते
2
है जुर्म मुहब्बत तो सज़ा क्यों नहीं देते
गर रोग है तो इसकी दवा क्यों…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on January 16, 2023 at 1:30pm — 14 Comments
कभी मैं दासतां दिल की, नहीं खुल के बताता हूँ
कई हैं छंद होंठो पर, ना उनको गुनगुनाता हूँ
अभी तो पाया था मैंने, सुकून अपने तरानों से
उसे तुम भी समझ जाओ, चलो मैं आजमाता हूँ
जो लिखता हूँ जो पढ़ता, हूँ वही बस याद रहता है
बस कागज कलम हीं है, जो मेरे पास रहता है
भरोसा बस मुझे मेरी, इन चलती उँगलियों पर है
ज़हन जो सोच लेता है, कलम वो छाप देता है
भले दो शब्द हीं लिक्खु, पर उसके मायने तो हो
सजाने को मेरे घर में , कोई एक आईना…
ContinueAdded by AMAN SINHA on January 16, 2023 at 11:30am — No Comments
महक उठा है देखो आँगन, सुनकर ये संदेश।
साजन अपने घर लौटेंगे, छोड़ छाड़ परदेश।।
*
जाने कितने पुष्प पठाये सुनके वनखण्डी ने।
जिन से गूँथे गाँव सकारे सर्पिल पगडण्डी ने।।
पतझड़ में आया है गाने फागुन हँसकर गीत।
सूने मन के आँगन होगा अब ऋतुराज प्रवेश।।
*
पोंछ पसीना अँगड़ाई ले जगकर थकी क्रियाएँ।
सौंप रही मीठे सम्बोधन फिर से खुली भुजाएँ।।
करने को उद्यत मनुहारें, झील किनारे चाँद।
बनजारा सूरज ठहरा है, फिर सुलझाने केश।।
*
सब खुशियाँ हैं सेज सजाती, करती नव…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2023 at 5:05am — 4 Comments
212 1212 1212 1212
थामती नहीं हैं पलकें अश्कों का उबाल तक
भूल-सा गया है दिल भी, धड़कनों की ताल तक
दो दिलों की दास्ताँ न कोई समझा है यहाँ
अपना इश्क़ आ ही पहुँचा जुर्म के मलाल तक
ऐ ख़ुदा, रखूँ मैं तुझसे रहमतों की आस क्या
मैं पहुँचता ही नहीं कभी तेरे ख़याल तक
हाय! आ रहा है प्यार झूठे ग़ुस्से पर तेरे
लाल शर्म से पड़े हैं यार, तेरे गाल तक
आशना तुझे कहा है मैंने जाने किसलिए
पूछता…
ContinueAdded by Zaif on January 12, 2023 at 7:30pm — 2 Comments
( सरसी छंद)
***
धीरे-धीरे जब आती है, घर आँगन में शीत।
नाना रूपों में रक्षा को, ढल जाती है प्रीत।।
माँ के हाथों स्वेटर में ढल, दे बचपन में साथ।
युवा हुए तो ऊष्मा देता, बन अनजाना हाथ।।
*
पत्नी होकर सदा चूमता, स्नेह शीत में माथ।
होते वंचित सिर्फ शीत में, लोगो यहाँ अनाथ।।
बचपन, यौवन रहे बुढ़ापा, सर्द शीत की रात।
उष्मित करती तन्हाई में, सिर्फ प्रीत की बात।।
*
प्रेम रहित तनमन करता है, जीवन से परिवाद।
सर्द शीत की रातों की तो, ला मत कोई…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 12, 2023 at 6:22am — 1 Comment
अपनों को खो देना का ग़म, रह रह कर हमें सताएगा
चाहे मरहम लगा लो जितना, ये घाव ना भरने पाएगा
कैसे हम भुला दे उनको, जो अपने संग हीं बैठे थे
रिश्ता नहीं था उनसे फिर भी, अपनो से हीं लगते थे
कैसे हम अब याद करे ना, उन हँसते-मुस्काते चेहरों को
एक पल में हीं जो तोड़ निकल गए, अपने सांस के पहरों को
हम थे, संग थे ख्वाब हमारे, बाकी सब दुनियादारी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on January 10, 2023 at 9:54am — No Comments
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