थोड़ा सा आसमान ....
चुरा लिया
सपनों की चादर से
थोड़ा सा
आसमान
पहना दिया
उम्र को
स्वप्निल परिधान
लक्ष्य रहे चिंतित
राह थी अनजान
प्रश्नों के जंगल में
उलझे समाधान
पलकों की जेबों में
अंबर को डाला
अधरों पर मेघों की
बरखा को पाला
व्याकुलता की अग्नि में
जलते अरमान
भोर से पहले हुआ अवसान
धरती पर अंबर की
नीली चुनरिया
पंछी के कलरव की
बजती पायलिया
व्योम क्यूँ…
Added by Sushil Sarna on June 14, 2020 at 9:35pm — 6 Comments
212 /1212 /2
जो नज़र से पी रहे हैं
बस वही तो जी रहे हैं
ये हमारा रब्त देखो
बिन मिलाए पी रहे हैं
कोई रिन्द भी नहीं हम
बस ख़ुशी में पी रहे हैं
इक हमें नहीं मयस्सर
गो सभी तो पी रहे हैं
क्या पिलाएंगे हमें जो
तिश्नगी में जी रहे हैं
वो हमें भी तो पिला दें
जो बड़े सख़ी रहे हैं
बेख़ुदी की ज़िन्दगी है
बेख़ुदी में पी रहे हैं …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 14, 2020 at 9:00pm — 17 Comments
Added by Anvita on June 14, 2020 at 1:18pm — 2 Comments
आओ प्यारे हम सब मिलकर
पर्यावरण बचायें।
हरे भरे हम वृक्ष लगाकर
हरियाली फैलायें।1।
नदियाँ पर्वत झील बावली
और तलाब खुदायें।
महावृक्ष पीपल वट पाकड़
वृक्ष अनेक लगायें।2।
धरा धधकती धक-धक धड़कन
जन-जन की न बढ़ाएं।
पर्यावरण संतुलित होवे
ऐसे कदम उठायें।3।
प्राण वायु जल शीतल निर्मल
प्रकृति प्रेम से पायें।
आज के सुख के खातिर हमसब
भावी कल न मिटायें।4।
सोचो हम क्या देंगे अपनी
आने वाली पीढ़ी को।
सब कुछ दूषित हवा…
Added by Awanish Dhar Dvivedi on June 13, 2020 at 10:52pm — 3 Comments
खंडित नसीब - लघुकथा -
बिंदू का तीन साल का इकलौता बेटा नंदू सुबह से चॉकबार आइसक्रीम खाने की रट लगाये हुए था। पता नहीं किसको देख लिया था चॉकबार आइसक्रीम खाते। इंदू के पास पैसे नहीं थे इसलिये वह बार बार उसे आइसक्रीम खाने के नुकसान समझा रही थी। लेकिन बिना बाप का बच्चा जिद्दी हो चला था। किसी भी तरह बहल नहीं रहा था।
इंदू को बाबू लोगों के घर झाड़ू पोंछा बर्तन का काम करने जाना था लेकिन नंदू उसे जाने नहीं दे रहा था ।
इंदू कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे।फिर उसे याद आया कि…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 13, 2020 at 6:30pm — 4 Comments
1212, 212, 122, 12 12, 212, 122
बगैर बादल के आ बरस जा तू इश्क़ की कुछ फुवार कर दे
है एक अर्से से प्यासी धरती बढ़ा ले क़ुर्बत बहार कर दे
बहुत बड़ा है शहर ये दिल्ली यहाँ के चर्चे बहुत सुने हैं
हमें तो अपना ही गांव प्यारा तू लाख इसको सुधार कर दे
बदल रहे हैं घरों के ढांचे सभी के अपने अलग है कमरे
पुराने बर्तन नए हुए हैं तू भी बदल जा कनार कर दे
क़मर से कह दो ठहर के निकले कि दीद उनका अभी हुआ है
नहीं भरा उनसे दिल हमारा ख़ुदा क़मर को बुख़ार कर…
Added by Dimple Sharma on June 13, 2020 at 5:30pm — 6 Comments
(1222 1222 1222 1222)
अभी जो है वही सच है तेरे मेरे फ़साने में
अबद तक कौन रहता है सलामत इस ज़माने में
तड़पता देख कर मुझको सड़क पर वो नहीं रूकता
कहीं झुकना न पड़ जाए उसे मुझको उठाने में
गले का दर्द सुनते हैं वो पल में ठीक करता है
महारत भी जिसे हासिल है आवाज़ें दबाने में
किसी दिन टूट जाएँगी ये चट्टानें खड़ी हैं जो
लगेगा वक़्त शीशे को हमें पत्थर बनाने में
अजब महबूब है मेरा जो पल में रुठ जाता है
महीने बीत…
Added by सालिक गणवीर on June 13, 2020 at 2:00pm — 12 Comments
Added by Anvita on June 13, 2020 at 1:10pm — 2 Comments
क्रोध तम मद-लोभ ईर्ष्या में पड़ा संसार सारा
आचरण आदर्श के गायब हुए, विपदा बड़ी है।।
छोड़ अन्तस का शिवालय भ्रम मनुज लाने चला है
शोर के गहरे तमस में मौन को पाने चला है
पास उसके आत्म दर्पण है नहीं जो राह रोके
जी रहा है वह स्वयं की जिन्दगी में कण्ट बोके
सत्य है नेपथ्य में बस मूर्खता मन में अड़ी है
आचरण आदर्श के गायब हुए, विपदा बड़ी है।।
मस्त सब हैं छोड़कर सिद्धांत सारे सभ्यता के
मन अपाहिज वस्त्र चिथड़े किंतु साधक भव्यता के
जब पलट के…
Added by नाथ सोनांचली on June 12, 2020 at 7:00pm — 4 Comments
वो फख्र से जुदा हुए अनजान बन गए
प्यार का क़तल किया दीवान बन गए (1)
देते कभी थे इश्क़ में जन्मो के वास्ते
वो चार रोज़ में ही बेगान बन गए (2)
वादों की और इरादों की लम्बी कतार थी
फहरिस्त उन इरादों के अरमान बन गए (3)
अक्सर वफ़ा की कसमें जो खाते थे बार बार
कल तोड़ के कसम वो बेईमान बन गए (4)
महफ़िल कभी जिनके लिए हमने सजाई थी
आज उनकी महफ़िलों के महमान बन गए (5)
एहसास जिनकी कश्ती में महफूज़ था हमें
साहिल…
Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 12, 2020 at 10:18am — 12 Comments
आज ऐरावत की मौत हुई तो कोप जताने आया हूँ
जन्म से पहले प्राण गए हैं रोष दिखाने आया हूँ
आया हूँ मैं ये प्रण लेकर संताप नहीं ये कम होगा
धोखे से मनु ने प्राण हरे जो लड़ने का न दम होगा
मानव कितना नीच जीव है कहता खुद को सबसे ऊपर
अ हिंसा का भाषण देकर हाथ उठाता मूक जीव पर
दम्भ तुझे किस बात का मानव तू क्यों इतना है इतराता
तेरे खेल की आग में जलकर झुलस गई गज की माता
कैद रहा है तीन माह से क्या…
ContinueAdded by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 11, 2020 at 8:33pm — 2 Comments
थक गया हूँ झूठ खुद से और ना कह पाऊंगा
पत्थरों सा हो गया हूँ शैल ना बन पाऊंगा
देखते है सब यहाँ पे अजनबी अंदाज़ से
पास से गुजरते है तो लगते है नाराज़ से
बेसबर सा हो रहा हूँ जिस्म के लिबास में
बंद बैठा हूँ मैं कब से अक्स के लिहाफ में
काटता है खलीपन अब मन कही लगता नहीं
वक़्त इतना है पड़ा के वक़्त ही मिलता नहीं
रात भर मैं सोचता हूँ कल मुझे कारना है क्या
है नहीं कुछ हाथ मेरे सोच के डरना है क्या
टोक न दे कोई मुझको मेरी इस…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 11, 2020 at 3:30pm — 2 Comments
एक गीत
----------------
कच्चे आमों जैसा खट्टा
कभी शहद सा होता जीवन |
***
पाया जीवन है जिसने भी
पल पल देनी पड़े परीक्षा |
कैसे भी हालात किसी के
जीवन की मत करें उपेक्षा |
करते अगर भ्रूण की हत्या
या करते हत्या अपनी तुम
पाप हमेशा कहलायेंगे
न्याय करेगा अगर समीक्षा |
अपनी नादानी के कारण
क्यों करते खिलवाड़ मनुज तुम
मिटटी के सम ठोकर मारो
क्या…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 10, 2020 at 11:30pm — 9 Comments
1212 1122 1212 22
यूँ उसके हुस्न पे छाया शबाब धोका है ।।1
मेरी नज़र ने जिसे बार बार देखा है ।।
वफ़ा-जफ़ा की कहानी से ये हुआ हासिल।
था जिसपे नाज़ वो सिक्का हूजूर खोटा है ।।2
उसी के हक़ की यहां रोटियां नदारद हैं ।
जो अपने ख़ून पसीने से पेट भरता है ।।3
खुला है मैकदा कोई सियाह शब में क्या ।
हमारे शह्र में हंगामा आज बरपा है ।।4
निकल पड़े न किसी दिन सितम की हद पर वो ।
जो अश्क़ मैंने अभी तक सँभाल रक्खा है…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 10, 2020 at 9:06pm — 6 Comments
मिलते वहीँ थे घाट पे करते थे गुफ़्तगू
तेरे बगैर घाट भी वीरान बन गए
उस पार रेत से जो हमने घर बनाए थे
वो प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए
अक्सर बिताईं शामें हमने विश्वनाथ में
अब पूजते हैं उनको वो भगवान् बन गए
चर्चे हमारे इश्क़ के गलियों में खूब थे
ख़बरों में थे कभी अभी गुमनाम बन गए
किस मोड़ पर ये इश्क़ हमको लेके आ गया
जलकर तुम्हारे प्यार में शमशान बन
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 10, 2020 at 11:23am — 7 Comments
(1222 *4 )
.
कहीं दिल टूटना देखा कहीं दिलदारी देखी है
कहीं ख़ुशियों की फुलवारी कहीं ग़म-ख़्वारी देखी है
**
नशा देखा कभी ज़र का कभी नादारी देखी है
कभी मस्ती कभी हमने मुसीबत भारी देखी है
**
कभी तल्ख़ी कभी आँसू हसद के दौर अपनों के
मरासिम को निभाते वक़्त दुनियादारी देखी है
**
अधूरे रह न जाएँ ख़्वाब…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 10, 2020 at 1:00am — 14 Comments
दोहा गज़ल एक प्रयास :
साथी सारे स्वार्थ के, झूठे सारे नात,
अवसर एक न चूकते, देने को आघात।
नैनों से ओझल हुआ, आज लाज का नीर,
संस्कारों की हो गई, भूली बिसरी बात।
साँझे चूल्हों के नहीं, दिखते अब परिवार ,
बिखरे रिश्ते फ़र्श पर, जैसे पीले पात।
बूढ़े बरगद की नहीं, अब आंगन में छाँव,
बूढ़ी आँखों से सदा , होती है बरसात।
कैसा कलयुग आ गया, अपने देते दंश,
जर्जर काया की हुई, आहट हीन…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 9, 2020 at 10:59pm — 6 Comments
एक नज़्म
अरकान-2212, 2212, 2212
दिल-ए-दरीया आब में तू ही तू है
हर इक लहर-ए-नाब में तू ही तू है
मौसम शगुफ़्ता है मुहब्बत में देखो
लाहौर ते पंजाब में तू ही तू है
हर इक वुज़ू पे हर दफ़ा मांगा तुझे
मेरी दुआ से याब में तू ही तू है
पकड़े हुए हूं आज तक दस्तार को
ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तू है
हासिल कहाँ मुझको मेरे महबूब तू
फिर भी मेरे हर ख़्वाब में तू ही तू है
भीगी हुई पलकों का दामन छोड़ कर
बढ़ते हुए सैलाब में तू ही…
Added by Dimple Sharma on June 9, 2020 at 7:05pm — 18 Comments
( 2212 122 2212 122)
कितनी सियाह रातों में हम बहा चुके हैं
ये अश्क फिर भी देखो आंँखों में आ चुके हैं
गर आके देख लो तो गड्ढे भी न मिलेंगे
हाँ,लोग काग़ज़ों पर नहरें बना चुके हैं
अब खिलखिला रहे हैं सब लोग महफ़िलों में
मतलब है साफ सारे मातम मना चुके हैं
वो ख़्वाब सुब्ह का था इस बार झूठ निकला
ता'बीर के लिए हम नींदें उड़ा चुके हैं
अब पाप का यहाँ पर नाम-ओ-निशांँ नहीं है
सब लोग शह्र के अब गंगा नहा चुके…
Added by सालिक गणवीर on June 9, 2020 at 4:00pm — 9 Comments
' हां, ठीक हूं सविता।' मास्क के अंदर से आवाज आई।
' अच्छा चल बता,अब तेरे वो कैसे हैं?' सविता की मास्क ने चुटकी ली,क्योंकि शालू हमेशा अपने पति की शिकायत करती रहती थी।कभी कभी तो वह अपने निः संतान होने का दोष भी पति के मत्थे मढ़ देती।पति का दिन रात अपने ऑफिस के काम में तल्लीन रहना एक अच्छा सा बहाना भी था।भला एक थका मांदा मर्द पत्नी को औलाद क्या देगा? खा - पी के पड़ रहेगा।ऐसे क्या भला औलाद आसमान से टपकेगी?वह यही सब सोचती और अधिकतर सविता को यह सब…
Added by Manan Kumar singh on June 8, 2020 at 4:00pm — 4 Comments
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