For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,998)

व्यंग्य - उपाधि मिलने की वाहवाही

‘उपाधि’ देने की परिपाटी बरसों से है। बदलते समय के साथ यह परिपाटी अब पूरे रंग में है। पहले आप कुछ नहीं होते हैं। उपाधि मिलते ही आप रातों-रात उपलब्धि की सभी उंचाई पार लगा लेते हैं। हर तरफ बस वाहवाही रहती है। जब हर कहीं सम्मान मिले और नाम के आगे चार चांद लग जाए। ऐसी स्थिति में कौन नहीं चाहेगा, किसी उपाधि से सुशोभित होना। उपाधि पाने का कीड़ा जब काटता है, उसके बाद उपाधि छिनने की करामात भी करनी पड़ती है। माथे पर उपाधि की मुहर लगते ही एक अलग पहचान बनती है। आने वाली पीढ़ी भी उपाधि के सहारे ही जानती हैं कि… Continue

Added by rajkumar sahu on September 1, 2011 at 1:32am — 2 Comments

आँख

  चेहरा ये कैसा होता गर आँख नहीं होती.

दिल कैसे फिर धड़कता गर आँख नहीं होती.

रक़ीब से भी बदतर हो जाते कभी अपने.

मालूमात कैसे होता गर आँख नहीं होती.

कितना हसीन है दिल चाक करने वाला.

एहसास कैसे होता गर आँख नहीं होती.

कुर्सी के नीचे बर्छी आखिर रखी है क्यूँ कर.

तहक़ीकात कैसे होती गर आँख नहीं होती.

मिलती औ झुकती - उठती फिर चार…

Continue

Added by satish mapatpuri on September 1, 2011 at 12:08am — 10 Comments

जरा इधर भी करें नजरें इनायत

1. समारू - बस्तर दशहरे पर 25 लाख का कर्ज की खबर है।

पहारू - छत्तीसगढ़ में होने वाले अधिकांश महोत्सव का यही हाल है।





2. समारू - छग में भाजपा सरकार विधानसभा में घिर रही है।

पहारू - सुस्त विपक्ष को बैठे-ठाले मुद्दे जो मिल जाते हैं।





3. समारू - राजीव गांधी की हत्या की सजा प्राप्त तीन व्यक्तियों की पैरवी राम जेठमलानी कर रहे हैं।

पहारू - ऐसी रिस्क वे लेते रहते हैं, भले ही भाजपा से फटकार ही मिलें।





4. समारू - शांति भूषण मामले की सीडी में… Continue

Added by rajkumar sahu on August 31, 2011 at 3:39pm — No Comments

ईद मुबारक (दीपक शर्मा कुल्लुवी)

 

ईद मुबारक 


ईद का दिन है सबसे मुहब्बत करो

दिल से अल्ला की मिल के इबादत करो
हिन्दू ,मुस्लिम  हो सिख हो ईसाई हो तुम
खून सबका है लाल फ़र्क फिर क्यों  करो
ईद का दिन है सबसे मुह----------
दीपक 'कुल्लुवी' हूँ…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 31, 2011 at 10:00am — 4 Comments

ग़ज़ल :- तलवार की बातें करो छोडो मयान की

ग़ज़ल :- तलवार की बातें करो छोडो मयान की

अब क्या बताएं आपको दुनिया जहान की ,

ये शायरी ज़ुबां है किसी बेज़ुबान की |

 …

Continue

Added by Abhinav Arun on August 31, 2011 at 9:41am — 4 Comments

व्यंग्य - अब लगा भी दो शतक

हमारा देश अनंत विविधताओं से ओत-प्रोत है। 33 करोड़ देवी-देवताओं से हममें से हर कोई कुछ न कुछ मांगते रहता है। भगवान भी देर से ही सही, अपनी आराधना करने वालों की सुध लेते ही हैं। तभी तो मंदिरोें में मत्था टेकने वालों में भगदड़ मचती रहती है। भगवान हममें से कइयों को छप्पर फाड़कर देता है, ये अलग बात है कि कुछ को छप्पर भी नसीब नहीं होता। कोई दो वक्त की रोटी को ईश्वर की असीम देन कहता है तो एक दूसरा, उसकी अहमियत को नहीं समझता, फिर भी भगवान उस पर मेहरबान हुए रहते हैं।

हम भगवान से मांगते रहते हैं,…

Continue

Added by rajkumar sahu on August 31, 2011 at 1:22am — No Comments

मुक्तिका: ये शायरी जबां है --- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



संजीव 'सलिल'

*

ये शायरी जबां है किसी बेजुबान की.

ज्यों महकती क्यारी हो किसी बागबान की..



आकाश की औकात क्या जो नाप ले कभी.

पाई खुशी परिंदे ने पहली उड़ान की..



हमको न देखा देखकर तुमने तो क्या हुआ?

दिल ले गया निशानी प्यार के निशान की..



जौहर किया या भेज दी राखी अतीत ने.

हर बार रही बात सिर्फ आन-बान की.



उससे छिपा न कुछ भी रहा कह रहे सभी.

किसने कभी करतूत कहो खुद बयान की..



रहमो-करम का आपके सौ…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 31, 2011 at 12:00am — 3 Comments

अस्तित्व की तलाश

 

मेरी मित्र ने एक दिन कहा 
में" सेल्फ्मेड " हूँ 
में असमंजस में पड़ी रही ,
सोचती रही ,
क्या ये सच है ? 
भावो  की धारा ने झकझोरा 
एक नवजात शिशु की किलकारी ने …
Continue

Added by mohinichordia on August 30, 2011 at 12:47pm — 5 Comments

आसमान की चाहत

आसमान छूने की चाहत में

कितने दूर हो जाते हैं 

हम ज़मीन से.

 

रिश्तों की…

Continue

Added by Kailash C Sharma on August 29, 2011 at 8:00pm — 5 Comments

इस्लाह हेतु एक ग़ज़ल |

तुझ बिन तो जन्नत भी सज़ा |
तेरे संग जहन्नुम, बज़ा |

तूने दिया गर दर्द तो,
फिर दर्द मे भी है मज़ा |

इक तुम मेरे ना हो सके,
अब ना बची कोई रज़ा |

तू भी कभी मेरी गली,
ग़लती से आ, आ के न जा |

'अंकुर' ये ज़िद अच्छी नही,
ना आएँगे वो, लौट जा |

Added by Sushant Jain 'Ankur' on August 27, 2011 at 7:00pm — 2 Comments

कविता :- हम नादान ?

कविता :- हम नादान ?

 

कदम आगे कदम पीछे

कभी उभरे कभी बिछे

हमीं इंसान

हम नादान…

Continue

Added by Abhinav Arun on August 27, 2011 at 9:00am — 9 Comments

दोहा सलिला: दोहा का रंग यमक के संग ---संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दोहा का रंग यमक के संग
-- संजीव 'सलिल'
*
ठाकुर जी को सर झुका, ठाकुर करें प्रणाम. 
कारिंदे मुस्का रहे, पड़ा आज फिर काम.. 
*
नम न हुए कर नमन तो, समझो होती भूल.
न…
Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 27, 2011 at 8:46am — 3 Comments

एक गीत- अमराई कर दो... संजीव 'सलिल'

एक गीत-

अमराई कर दो...

संजीव 'सलिल'

*

कागा की बोली सुनने को

तुम कान लगाकर मत बैठो.

कोयल की बोली में कूको,

इस घर को  अमराई कर दो...

*

तुमसे मकान घर लगता है,

तुम बिन न कहीं कुछ फबता है..

राखी, होली या दीवाली

हर पर्व तुम्हीं से सजता है..

वंदना आरती स्तुति तुम

अल्पना चौक बंदनवारा.

सब त्रुटियों-कमियों की पल में

मुस्काकर भरपाई कर दो...

*

तुम शक्ति, बुद्धि, श्री समता हो.

तुम दृढ़ विनम्र शुचि ममता हो..…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 26, 2011 at 7:26pm — 6 Comments

धारावाहिक कहानी : कौन देगा इस रिश्ते को नाम ? अंक- 5

कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?

लेखक -- सतीश मापतपुरी

अंक -- पाँच (अंतिम )

भीड़ में खलबली मच गयी थी. जबरन उन दोनों को बाहर खींच निकालने की योजना बनने लगी.

नाजिमा सोच नहीं पा रही थी कि अब उसे क्या करना चाहिए, किस तरह अपने मेहमानों की रक्षा करनी चाहिए, भीड़ में से दो-चार युवक आगे बढ़ने लगे,इसी बीच बड़े मियां आंगन में आ पहुचें. उन्हें देखते ही जमात बांधकर आये लोग सकपका गये. बड़े मियां जैसे ही नाजिमा के पास आये,नाजिमा उनके सीने से लगकर फफक पड़ी.…

Continue

Added by satish mapatpuri on August 26, 2011 at 3:25am — 1 Comment

धारावाहिक कहानी : कौन देगा इस रिश्ते को नाम ? अंक- 4

कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?

लेखक -- सतीश मापतपुरी

अंक -- चार

भयवश दबी जबान से रहीम ने उन दोनों को पनाह देने पर एतराज किया.

किन्तु नाजिमा ने अपने अब्बा को ऐसा फटकारा कि उनकी बोलती बंद हो गयी . दीवारों के सिर्फ कान ही नहीं होते , शायद आँखें भी होती हैं . ना जानें कैसे सुबह रुसुलपुर में यह बात आग की तरह फैल गयी कि रहीम मियां के घर में हिन्दू भाई-बहन को पनाह दिया गया है . फिर क्या था, कुछ लोग रहीम मियां के आंगन में आ धमके. उनमें से दो-चार ही रुसुलपुर…

Continue

Added by satish mapatpuri on August 25, 2011 at 12:02am — 1 Comment

फिर भी प्यारी ये जिंदगानी है ...

 

साँसे बोझिल हैं , आँखों में पानी है 

फिर भी प्यारी ये जिंदगानी है |

हर सुबह नई परेशानी है ,

फिर भी प्यारी ये जिंदगानी है |

 

कैसी सोची थी कैसी पाई है 

जाना था कहाँ , कहाँ ले आई है |

कौन सोचे और कैसी बितानी है ,

फिर भी प्यारी ये जिंदगानी है…

Continue

Added by Veerendra Jain on August 24, 2011 at 11:59am — 9 Comments

कविता :- ठहराव का सच

कविता :- ठहराव का सच

 

इच्छाओं की चिकनी सड़क पर फिसलती - संभलती ज़िंदगी की बाइक…

Continue

Added by Abhinav Arun on August 24, 2011 at 9:17am — 2 Comments

धारावाहिक कहानी : कौन देगा इस रिश्ते को नाम ? अंक- 3

कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?

लेखक -- सतीश मापतपुरी

अंक -- तीन

 

आँगन में आते ही युवक इस तरह उछल पड़ा मानों उसके पाँव तले विषधर आ गया हो

आँगन में बधना देखकर युवक के गले से हल्की चीख निकल पड़ी. वह भयभीत नजरों से नाजिमा की तरफ देखा.

"भाईजान, मुसलमानों के भय से छिपते-छिपाते आपने एक मुसलमान का ही दरवाजा खटखटा दिया है. किन्तु, आपको भयभीत होने की जरूरत नहीं है. गलियों में मजहब और जाति के नाम पर दंगे करने वाले दरअसल न…

Continue

Added by satish mapatpuri on August 24, 2011 at 2:14am — 1 Comment

प्यार की बाँसुरी

 

तुम्हारे प्यार की फुहार से 

इस कदर भीगा तन-मन, कि, 

जीवन में फैले शुष्क रेगिस्तान की तपन 

झुलसा न सकी…

Continue

Added by mohinichordia on August 23, 2011 at 9:00pm — 8 Comments

धारावाहिक कहानी : कौन देगा इस रिश्ते को नाम ? अंक-२

कौन देगा इस रिश्ते को नाम ?

लेखक -- सतीश मापतपुरी

करवट बदल कर नाजिमा ने सर तक कम्बल खींच लिया, तभी उसे लगा कि बाहर के दरवाज़े पर कोई दस्तक दे रहा है .................. एकबारगी उसका पूरा बदन…

Continue

Added by satish mapatpuri on August 22, 2011 at 10:30pm — 1 Comment

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार। गजल गलत थ्रेड में पोस्ट…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"2122 2122 2122 212 हंस उड़ने पर भला तन बोल क्या रह जाएगाआदमी के बाद उस का बस कहा रह जाएगा।१।*दोष…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब ग़ज़ल के प्रयास पर बधाई स्वीकार करें। दोष होना तो…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय Richa Yadav जी आदाब  ग़ज़ल के अच्छे प्रयास पर बधाई स्वीकार करें  2122 2122 2122…"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"नमन मंच 2122 2122 2122 212 जो जहाँ होगा वहीं पर वो खड़ा रह जाएगा ज़श्न ऐसा होगा सबका मुँह खुला रह…"
7 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
11 hours ago
Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service