कौन देगा इस रिश्ते को नाम ? (कहानी )
लेखक -- सतीश मापतपुरी
उफ़ ! बड़ी भयानक रात थी .................. हवा की सांय-सांय भी अन्दर तक हिला कर रख देती . दिन के उजालों में तो किसी तरह वक़्त सरक जाते.............. किन्तु, रात के अंधेरों में जैसे थम कर रह जाते हों. कुछ लोग किसी हादसा को हर साल याद दिला कर कटुता एवं नफ़रत को भड़काने से बाज नहीं आते. दिसंबर का महीना शुरू हो चुका था .......................... 6 दिसंबर की उस पुरानी…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 22, 2011 at 2:30am — 1 Comment
कुछ चले हैं ,कुछ बढ़े हैं, कुछ चढ़े हैं हाँ मगर,
आख़िरी सोपान तक ,पहुंचे नहीं हैं हम अभी.
बांटते हैं रोज लाखों लाख खुशियाँ , हाँ मगर,
आख़िरी इन्सान तक पहुंचे नहीं हैं हम अभी.
कौन समझाए हमें, ये है हमारी त्रासदी,
जागने भर में, अभी तक खर्च…
ContinueAdded by राजेश शर्मा on August 21, 2011 at 4:54pm — 2 Comments
हल नहीं होते हैं कुछ मुश्किल सवाल ......
मसअले नाज़ुक हैं , टाले जायेंगे .......
ये शहर पत्थर का और हम काँच के ......…
Added by Prabha Khanna on August 21, 2011 at 4:30pm — 10 Comments
लघुकथा : बहू-बेटी
“अम्मा ! तुम भी घर का कोई काम किया करो, नहीं तो इस तरह तुम्हारे हाथ-पैर जुड़ जाएंगें।” घुटनों के दर्द से करहाती अपनी माँ की दुर्दशा देखकर ससुराल से आई बेटी ने कहा।
“ हाँ बेटी ! तू ठीक ही कहती है, किया करूंगी कुछ काम....”
“ हाँ दीदी, मैने भी कई बार अम्मा जी से कहा है कि आप भी कुछ काम किया करें .......” पास बैठी बहू ने कहा
” काम किया करूँ, तो तुझे ब्याह कर लाने का मुझे क्या फायदा........... काम किया करो....” सास ने बहू की बात को बीच में ही काटते हुए तीखे…
Added by Ravi Prabhakar on August 21, 2011 at 1:00pm — 7 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 21, 2011 at 10:46am — 10 Comments
Added by rajkumar sahu on August 21, 2011 at 12:40am — No Comments
साथियों,
कई मित्रों का प्रश्न है कि "मैं अपने मित्रों को जो जीमेल, याहू , हॉटमेल आदि में है उनको कैसे ओ बी ओ पर आमंत्रित करूँ ?
इसका सरल उपाय ओ बी ओ पर है, मैं चित्र (स्क्रीन शोट) के माध्यम से बताना चाहता हूँ , उम्मीद है प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा, उसके पश्चात् भी यदि कुछ प्रश्न उठ रहे हो तो नीचे कमेंट्स बॉक्स में लिखे ....मैं हूँ ना :-)
…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 20, 2011 at 5:00pm — 4 Comments
ग़ज़ल :- सोच का सन्दर्भ अब कितना इकहरा हो गया
सोच का सन्दर्भ अब कितना इकहरा हो गया ,
जड़कटी…
ContinueAdded by Abhinav Arun on August 20, 2011 at 3:00pm — 8 Comments
अपने हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा भी नहीं
मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊँगा
मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा
सारी दुनिया की नज़र में है मेरी अह्द—ए—वफ़ा
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा?
/ वसीम बरेलवी
Added by दुष्यंत सेवक on August 20, 2011 at 12:00pm — 4 Comments
मैं कई लोगों के मुंह से सुन चुका हूँ के अन्ना हजारे के आंदोलन से अराजकता की स्तिथि पैदा हो रही है या हो सकती है
तो में उन लोगों से पूछना चाहता हूँ के अराजकता का मतलब क्या है
ये जो ६५ साल से भारत की ज्यादातर जनता को भ्रष्टाचार के कारण संघर्षपूर्ण जीवन जीना पड़ता है, क्या ये अराजकता नहीं है
क्या ये जो कमजोर कानूनों का ढाल बनाकर भ्रष्ट लोग कानून की ही धच्चियाँ उड़ाते हैं, क्या ये अराजकता नहीं है
इन जैसे लोगों ने किताबी जानकारी तो काफी ले ली हैं पर इनको…
ContinueAdded by Bhasker Agrawal on August 19, 2011 at 10:00pm — No Comments
चार कुण्डलियाँ
(१)
लीला है उस राम की, अन्ना यहाँ हजार
लोग जमा हो गये हैं, छोड़ दिया घरबार
छोड़ दिया घरबार, सह रहे आँधी-पानी
अनशन की शुरुआत, शुरू वही कहानी
भाग रही है भीड़, सभी कुछ गीला-गीला
हे प्रभु इस…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on August 19, 2011 at 4:00pm — 6 Comments
आँगन का एक छोटा सा
पौधा
जो बढ़ना चाहता है
छटपटाता है बढ़ने को
पर
बड़े पेड़ का बडप्पन
रोकता है उसे
टोकता है उसे
न बढ़ने देने का डर
देता है उसे
हौसला व चाहत फिर भी
जीवित है उसमे
आगे बढ़ने का साहस
निहित है उसमे
कुछ करने ललक है उसमे
एक उम्मीद
उस छोटे से पौधे की
कि
एक दिन वह छोटा सा पौधा
भी
उस बड़े से पेड़ से कही
आगे होगा
वो छोटा सा पौधा
तो बढा जा रहा है
खड़ा हो रहा है…
Added by Yogyata Mishra on August 18, 2011 at 9:12pm — 6 Comments
Added by VIBHUTI KUMAR on August 18, 2011 at 5:13pm — 1 Comment
शपथ
राखी की मुझे
बहन
देश की
रक्षा में होना
कुर्बान
मन में
पालना नहीं
दुविधा
रखूंगा
सदा देश का
सम्मान
बहना
खिला अब तो
मिठाई....
एकादशी विधा में लिखे ये छंद गणेश भैया मैं आपको समर्पित करता हूँ ...आप इस विधा के अविष्कार कर्ता हैं ..इसलिए प्रथम प्रतिक्रिया के लिए आप से अनुरोध भी करता हूँ
डॉ.…
ContinueAdded by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on August 18, 2011 at 3:42pm — 2 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on August 18, 2011 at 3:19pm — 5 Comments
पास आ कातिल मेरे मुझमें जान आने दे,
जान ले लेना पर थोडा तो संभल जाने दे।
तूँ तसव्वुर में मेरे रहा है बरसों से,
खुद को नजरों से सीने में उतर जाने दे।
कुछ ठहर जा कि छुपा लूँ मैं दर्द सीने का,
या तेरे सीने से लिपट कर बिफर जाने दे।
तुझको पाना नहीं है मेरी मंजिल,
तूँ जरा खुद में मुझको समां जाने…
ContinueAdded by Gyanendra Nath Tripathi on August 18, 2011 at 1:30pm — 2 Comments
यह देश चोर और लूटेरों का है. यहां चोर और लुटेरों की संस्कृति विद्यमान है. वजह भी साफ है हजारों सालों से हम लुटते आ रहे हैं. लुटेरे थक गये पर हम नहीं थके. सोने की चिडि़यां दुनिया भर के दानवों का शिकार बनती रही है और आज भी बनी हुई है. फर्क सिर्फ इतना आया है कि आज हमें आजादी जैसी लाॅलीपाॅप थमा कर हमें लूटा जा रहा है. छोटा सा एक उदाहरण है: रोजगार सेवक जैसी नौकरी करने वाले स्वीकार करते हैं कि महिने में कम से कम 1 लाख से डेढ़ लाख की कमाई होती है. मुखिया जैसे बिना वेतन के कार्य करनेवाले थौक के भाव…
ContinueAdded by Rohit Sharma on August 18, 2011 at 12:14pm — No Comments
भ्रष्टाचार का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है और इस बार वह सब पर भारी नजर आ रहा है। सत्ता के रसूख का दंभ भरने वाली सरकार भी डरी-सहमी हैं। आधुनिक भारत के ‘गांधी’ के नए अवतरण के बाद ‘भ्रष्टाचार का भूत’ को देश से भगाने के लिए ‘अनशन यज्ञ’ का सहारा लिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि यह नए भारत की ‘अगस्त क्रांति’ है। हालात ऐसे बन गए हैं, जो भी भ्रष्टाचार की खिलाफत में मुंह मोड़ेगा, वह क्रांति की चपेट में आ जाएगा और देश में इस क्रांति से हजारों-हजार बावले नजर आ रहे हैं, ‘हजारे’ के साथ। भले ही कई बरसों…
ContinueAdded by rajkumar sahu on August 18, 2011 at 1:15am — No Comments
Added by Shashi Mehra on August 17, 2011 at 6:29pm — No Comments
अन्ना हजारे आज जिस लोकपाल बिल हेतु संघर्ष कर रहे हैं, यह भविष्य में कितना सार्थक होगा यह कहना भविष्य की बात है. परन्तु उनका संघर्ष इस बात को पूरजोर तरीके से एकबार फिर साबित कर दिया है कि इस देश में अपने अधिकार और अपनी बातों को रखने की कहीं से भी आजादी नहीं है. यहाँ अभिव्यक्ति की कोई भी स्वतंत्रता नहीं है. उनको तो बिल्कुल ही नहीं जो देश के शासक वर्ग के खिलाफ आवाज उठाते हैं. भ्रष्टाचार जैसे सर्वव्यापी घृणित रोग के खिलाफ लड़ने वाले जब इस ‘‘आजाद’’ देश में अपनी बात नहीं रख पा रहे हैं और उन्हें…
ContinueAdded by Rohit Sharma on August 17, 2011 at 3:49pm — No Comments
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