(221 2121 1221 212 )
बैठे निग़ाहें किस लिए नीची किये हुए
क्या बात है बताइए क्यों लब सिले हुए
**
काकुल के पेच-ओ-ख़म के हैं अंदाज़ भी जुदा
सर से दुपट्टा जैसे बग़ावत किये हुए
**
मिज़गाँ के साहिलों पे टिकी आबजू-ए-अश्क
काजल बिखेरने की जूँ हसरत लिये हुए
**
क्यों हो गए हैं आपके रुख़्सार आतशीं
जैसे कनेर लाल ख़िज़ाँ में खिले हुए
**
शेरू को ख़ौफ़ इतना है बैठा दबा के दुम
मैना के सुर भी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 20, 2020 at 11:30am — 4 Comments
(1)
सुनी सुनाई बात पर, मत करना विश्वास ।
चक्कर में गौमूत्र के, थम ना जाए श्वास ।।
(2)
कोरोना से तेज अब, फैल रही अफ़वाह ।
सोच समझ कर पग रखो, कठिन बहुत है राह ।।
(3)
कोरोना के संग यदि, लड़ना है अब जंग ।
धरना-वरना बस करो, बंद करो सत्संग ।।
(4)
साफ सफाई स्वच्छता, सजग रहें दिन रात ।
दें साबुन से हाथ धो, कोरोना को मात ।
(5)
मुश्किल के इस दौर में, मत घबराओ यार ।
बस वैसा करते रहो, जो कहती सरकार ।।
(मौलिक एवं…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2020 at 10:00am — 4 Comments
नन्ही सी चीटी हाथी की ले सकती जान है
कोरोना ने कराया हमें इसका भान है।
हाथों को जोड़ कहता सफाई की बात वो
पर तुमको गंदगी में दिखी अपनी शान है।
बातें अगर गलत हों तो वाजिव विरोध है
सच का भी जो विरोध करे बदजुबान है।
नक़्शे कदम पे तेरे क्यूँ सारा जहाँ चले
बातों में बस तुम्हारी ही क्या गीता ज्ञान है
कोरोना की ही शक्ल में नफरत है चीन की
जिसके लिए जमीन ही सारी जहान है
मालिक के दर पे सज्दा वजू करके ही…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on March 19, 2020 at 12:30pm — 4 Comments
(221 1221 1221 122 )
क्या टूट चुका दिल है जो वो दिल न रहेगा ?
जज़्बात बयाँ करने के क़ाबिल न रहेगा ?
**
तालीम अगर देना कोई छोड़ दे जो शख़्स
क्या आप की नज़रों में वो फ़ाज़िल* न रहेगा ?(*विद्वान )
**
फ़रज़न्द के बारे में भला कौन ये सोचे
दुख-दर्द में इक रोज़ वो शामिल न रहेगा
**
दो चार अगर झूठ पकड़ लें तो न सोचें
जो खू से है मजबूर वो बातिल* न रहेगा (*झूठा )
**
आया है सज़ा काट के जो क़त्ल की उसके
धुल जाएँगे क्या पाप वो क़ातिल न रहेगा…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 19, 2020 at 12:00am — 8 Comments
१२२२ /१२२२/ १२२२ /१२२२/
*
कभी कतरों में बँटकर तो कभी सारा गिरा कोई
मिला जो माँ का आँचल तो थका हारा गिरा कोई।१।
*
कि होगी कामना पूरी किसी की लोग कहते हैं
फलक से आज फिर टूटा हुआ तारा गिरा कोई।२।
*
गमों की मार से लाखों सँभल पाये नहीं लेकिन
सुना हमने यहाँ खुशियों का भी मारा गिरा कोई।३।
*
किसी आजाद पन्छी को न थी मन्जूर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2020 at 6:17am — 7 Comments
(1222 1222 1222 1222 )
छुड़ाना है कभी मुमकिन बशर का ग़म से दामन क्या ?
ख़िज़ाँ के दौर से अब तक बचा है कोई गुलशन क्या ?
**
कभी आएगा वो दिन जब हमें मिलकर सिखाएंगे
मुहब्बत और बशरीयत यहाँ शैख़-ओ-बरहमन क्या ?
**
क़फ़स में हो अगर मैना तभी क़ीमत है कुछ उसकी
बिना इस रूह के आख़िर करेगा ख़ाना-ए-तन* क्या ?(*शरीर का भाग )
**
निग़ाह-ए-शौक़ का दीदार करने की तमन्ना है
उठेगी या रहेगी बंद ये आँखों की चिलमन क्या ?
**
अगर बेकार हैं तो काम ढूंढे या करें बेगार…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 18, 2020 at 12:00am — 6 Comments
बाँधा जो साँसों ने साँसों से धागा
आँसू में, कुछ मुस्कानों में
मिलन की वेला के सुख में मिश्रित
बिछोह की घड़ी की व्यथा अपार
डरते-मुस्कुराते चेहरे पर पाईं हमने
ढुलक आई थीं बूँदें जो भीगी पलकों से
मिला था उनमें प्राणों को प्रीति का दान
ऐसे में हृदय ने सुनी हृदय की मधुर धड़कन
मधुमय मूक स्वर उस अद्वितीय आलिंगन में
आच्छादित हुए ऐसे में ज्यों भीगे गालों पर गाल
मुझको लगा उस पावन…
ContinueAdded by vijay nikore on March 16, 2020 at 2:00pm — 6 Comments
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
(बह्र: रमल मुसम्मन महजूफ)
2122. 2122. 212.
ज़िन्दगी भर ये परेशानी रही
मेरे चारो सम्त वीरानी रही ।।
जिस के पीछे अब ज़माना है पढ़ा
वो कभी मेरी भी दीवानी रही ।।
शब मिलन की थी बहुत गहरी मगर
रात भर तारो की निगरानी रही।।
दोस्ती कर ली किताबों से मैं ने
भूलने में उसको आसानी रही ।।
- शेख़ ज़ुबैर अहमद
( मौलिक एवम अप्रकाशित )
Added by Shaikh Zubair on March 15, 2020 at 6:57pm — 2 Comments
दुल्हन ने किचन की कमान संभाली। मितव्ययिता के आकांक्षी घरवाले बड़ी बड़ी उम्मीदें पाले हुए थे कि अब कुछ बचत होगी।बजट सुख दायक होगा। अन्य कार्यों के लिए कुछ धन बचाया जा सकेगा।......
फिर कुछ दिनों के बाद जब खाने का जायका मुंह चिढ़ा ने लग,तब सास ने एक दिन राशन के बरतन देखे। देखती ही रह गई।नमक - चीनी की पहचान मुश्किल थी।चावल - दाल ग ले मिलते दिखे। जो बरतन सामने थे,वे लगभग भरे थे, पीछे वाले रिक्तप्राय।वह किचन प्रबंधन का नवीन गुर समझ गई।खाने के स्वाद की माधुर्य मिली मिर्ची मुखर हो…
Added by Manan Kumar singh on March 15, 2020 at 11:08am — 4 Comments
बहरे हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़
1 2 2 2 / 1 2 2 2 / 1 2 2
जो तेरी आरज़ू खोने लगा हूँ
जुदा ख़ुद से ही मैं होने लगा हूँ [1]
जो दबती जा रही हैं ख़्वाहिशें अब
सवेरे देर तक सोने लगा हूँ [2]
बड़ी ही अहम हो पिक फ़ेसबुक पर
मैं यूँ तय्यार अब होने लगा हूँ [3]
जो आती थी हँसी रोने पे मुझको
मैं हँसते हँसते अब रोने लगा हूँ [4]
बढ़ाता जा रहा हूँ उनसे क़ुरबत
मैं ग़म के बीज अब बोने लगा हूँ [5]
जो पुरखों की दिफ़ा…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on March 15, 2020 at 1:00am — 11 Comments
किसी की जां पे बन आई, किसी को खेल कोरोना
नहीं मुश्किल, बहुत आसान अपने 'हाथ ही धोना'
कि छोटी-छोटी बातों को रखो तुम ध्यान में अपने
रहेगा दूर फिर हमसे विदेशी रोग का रोना
चलो छोड़ो गले मिलना,'नमस्ते' ही को अपनाओ
बढ़ाओ अपनी क्षमता और 'शाकाहार' ही खाओ…
Added by Poonam Matia on March 15, 2020 at 1:00am — 5 Comments
"मैं आ रही हूँ माँ..."
कितनी बार कहा था माँ ने "बेटा! बस एक बार तुम ग्रेजुएट हो जाओ फिर जहाँ भी किस्मत आजमाना चाहोगी तुम्हें रोकूँगी नही। ये पूरा का पूरा आकाश तुम्हारा हैं।" किंतु तब मैंने उनकी बातों को यूंही हवा में उड़ा दिया था।
संयुक्त परिवार में घर की सबसे खूबसूरत बेटी थी वह। बस! यही ज़रूर उसे ले डूबेगा कहाँ जानती थी। बारहवी के बाद ही अपनी रिश्तेदार के घर इस नगरी में आयी तो वापस लौटी ही नहीं कभी। माँ समझा-बुझाकर ले जाने आई थी उसे तब उन्हें…
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on March 14, 2020 at 4:00pm — 1 Comment
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 14, 2020 at 1:00am — 2 Comments
होरी खेलत कृष्ण मुरारी
वृज बीथिन्ह मँह , अजिर , अटारी
होरी खेलत कृष्ण मुरारी
अबिर , गुलाल मलैं गोपियन कै
लुकैं छिपैं वृज की सब नारी
ढूँढि - ढूँढि रंग - कुंकुम मारैं
घूमि - घूमि गोपी दैं गारी
श्याम सामने रोष दिखावहिं
पाछे मुसकावहिं सब ठाढ़ी
होरी खेलत कृष्ण मुरारी
चिहुँक - चिहुँक राधा पग धारहिं
श्याम पकरि चुनरी रंग डारहिं
विद्युत चाल चपल मनुहारी
लपक - झपक कीन्ही…
ContinueAdded by Usha Awasthi on March 13, 2020 at 1:30pm — 4 Comments
(1222 1222 1222 1222 )
.
किसी भी रहरवाँ को जुस्तजू होती है मंज़िल की
सफ़ीनों को मुसल्सल खोज रहती है जूँ साहिल की
**
न करना तोड़ने की कोशिश-ए-नाकाम इस दिल को
बड़ी मज़बूत दीवारें सनम हैं शीशा-ए-दिल की
**
किया तीर-ए-नज़र से वस्ल की शब में हमें बिस्मिल
नहीं मालूम क्या है आरज़ू इस बार क़ातिल की
**
सियाही पोतने से रोशनी का रंग नामुमकिन
बनाएगी तुम्हें बातिल ही संगत रोज़ बातिल*…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 11, 2020 at 4:00pm — 2 Comments
बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़बूज़ अस्लम
121 22 121 22
फ़रेब-ओ-धोका है ये अदालत
करेगा तू क्या मिरी वकालत [1]
रसूल कितने ही आ चुके पर
गई न इंसान की जहालत [2]
सनम रिझाएँ ख़ुदा मनाएँ
है गू-मगू की ये अपनी हालत [3]
जो मुड़ गया राह-ए-इश्क़ से तो
रहेगी ता-उम्र फिर ख़जालत [4]
किसे फ़राग़त जो दे तवज्जो
दिखाइएगा किसे बसालत [5]
है मुख़्तसर मेरी गुफ़्तगू पर
है ग़ौर और फ़िक्र में तवालत…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 10, 2020 at 5:30pm — 5 Comments
"अपनी पैरों से रौंदें, दूजी जो भा जाये!"
"घर की मुर्ग़ी दाल बराबर; नयी पीढ़ी को कौन समझाये!"
अपनापन त्याग कर ख़ुदग़र्ज़ी, मनमर्ज़ी, दोगलापन, पागलपन, बचकानापन दिखाती अपने मुल्क की नई पीढ़ी की सोच और पलायन-गतिविधियों पर दो बुजुर्गों ने अपनी-अपनी राय यूं ज़ाहिर की।
"... 'ओल्ड इज़ गोल्ड' कहावत को छोड़ो जी; ओल्ड इज़ सोल्ड! नई पीढ़ी है सो बोल्ड! उन्हें ज़मीनी स्टोरीज़ टोल्ड हों या अनटोल्ड! हम बुड्ढे तो हुए क्लीन-बोल्ड!" उनमें से एक ने दूसरे से कहा, लेकिन ख़ुद के…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 10, 2020 at 2:34pm — 4 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
***
आओ नाचें, झूमें, गायें फिर से अब के होली में
इक-दूजे को खूब लुभायें फिर से अब के होली में।१।
**
देख के जिसको मन ललचाये ज़न्नत के वाशिन्दों का
रंगों के घन खूब उड़ायें फिर से अब के होली में।२।
**
जीवन में रंगत हो सब के संदेश हमें देे होली
रोते जन को यार हँसायें फिर से अब के होली में।३।
**
आग सियासत चाहे कितनी यार लगाये नफरत की
प्रेम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 10, 2020 at 7:30am — 8 Comments
बह्र मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ महज़ूफ़ 16-रुक्नी
(बह्र-ए-मीर)
2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2
छुपे हैं जाने कितने क़िस्से होली के इन रंगों में
प्यार मुहब्बत यारी रिश्ते होली के इन रंगों में
बच्चों की अठखेली इनमें और दुआएँ पुरखों की
जवाँ दिलों के ख़्वाब मचलते होली के इन रंगों में
नीला सब्ज़ गुलाबी पीला लाल फ़िरोज़ी नारंगी
जीवन के सब रंग झलकते होली के इन रंगों में
सदा मनाते आए होली मिल कर सब हिंदुस्तानी…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 10, 2020 at 12:00am — 4 Comments
ग़ज़ल ( 221 2121 1221 212 )
महसूस होता क्या उसे दर्द-ए-जिगर नहीं
या दर्द मेरा कम है कि जो पुर-असर नहीं
**
महलों में रहने वाले ही क्या सिर्फ़ हैं बशर
फुटपाथ पर जो सो रहे वो क्या बशर नहीं
**
साक़ी सुबू उड़ेल दे है तिश्नगी बहुत
ये प्यास दूर कर सके पैमाना-भर नहीं
**
इंसान सब्र रख ज़रा ग़म की भले है शब
किस रात की बता हुई अब तक सहर नहीं
**
या रब ग़रीब का हुआ…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 9, 2020 at 11:30pm — 5 Comments
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