==========नज्म/गीत ==========
हर मौसम लगे बहार, तुम से मिलकर
इस दिल को मिले करार, तुम से मिलकर
पल पल भी मुश्किल से कटता है तुम बिन
इक पल भी इक साल सा लगता है तुम बिन
घडी का काँटा रुक रुक चलता है तुम बिन
सूरज चढ़ के देर से…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 22, 2012 at 10:45am — 5 Comments
============= गीत =============
मेरी इबादत हो तुम्ही, मेरा हो पूजन, ऐ मेरे सजन
मेरा ये तन औ ये मन, तुमको है अर्पण, ऐ मेरे सजन
सुबहो शाम, रात दिन, याद मुझे आ रहे
वो बिताये पल सुहाने नैनों में समा रहे
खिल रहे नए पुष्प, मन की वाटिका में गा रहे
तुमसे ही चलती हैं साँसे तुमसे है जीवन, ऐ मेरे सजन
मेरी इबादत हो तुम्ही, मेरा हो पूजन, ऐ मेरे सजन
मेरा ये तन औ ये मन, तुमको है अर्पण, ऐ मेरे सजन
छा रहे है मेघ घने आपकी ही प्रीत के…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 21, 2012 at 12:28pm — 8 Comments
मुक्तिका "सावन"
मेघों का गर्जन है सावन
बूंदों का अर्पण है सावन
हरियाली चहुँ ओर बिखेरे
कितना मन रंजन है सावन
दीनों की छत से टप टप स्वर
दुःख का अनुरंजन है सावन
शीतल बूंद गिरे जब तन पर
अतिशय तप भंजन है सावन
छेड़े धुन मल्हार पवन जब
मीठा स्वर गुंजन है सावन
"दीप" सजे सब मंदिर देखो
भोले का पूजन है सावन
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 21, 2012 at 9:00am — 3 Comments
जिसे देख के नाचूँ झूमूँ गाऊं ख़ुशी से
मुझे इश्क हुआ है उसी से, उसी से
मेरी रूह वही है, मेरा जिस्म वही है
मेरी आह वही है, मेरी राह वही है
मेरा रोग वही है, औ दवा भी वही है
मेरा साया पीछे छूटे भला कैसे मुझी से
मुझे इश्क हुआ है उसी से, उसी से
जिसे देख के नाचूँ झूमूँ गाऊं ख़ुशी से
मुझे इश्क हुआ है उसी से, उसी से
मेरी यार वही है , दिलदार भी वही है
वो ही सावन है , औ फुहार भी वही है
वो ही…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 18, 2012 at 1:00pm — 11 Comments
"क्या कहूँ "
धीरे धीरे चलती पवन
गंभीर हो
चिंतन में डूबे को
समय देख रहे हो
या प्रवाह को महसूस कर रहे हो मेरे
या पदचाप सुन रहे हो
आने वाले समय के
क्यूँ आज…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2012 at 1:38pm — 3 Comments
कह मुकरियाँ
एक प्रयास किया है मुकरियाँ लिखने का दोस्तों आशा करता हूँ मार्गदर्शन मिलेगा
जब आती है नए ख्वाब दिखाती है
फिर अपनी बात से ही मुकर जाती है
उसको होती नहीं फिर हमारी दरकार
क्या मित्र सजनी ??? ना मित्र सरकार
जब आती है कली कली खिल जाती है
भंवरों के गुन्जन को गती मिल जाती है
उसके आने से मिल जाए दिल को करार
क्या मित्र सजनी ??? ना मित्र बहार
उसके बिना सब फीका सा लगता है
छप्पन भोग भी नीका न…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 14, 2012 at 1:16pm — 7 Comments
ढोल- नगाड़े
हाथी- घोड़े
आतिशबाजी
इतने रंग
सब हैं संग
कभी पालकी लिए
कभी रणभूमि
कभी रंगभूमि
चले जा रहे हैं
भागे जा रहे…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 14, 2012 at 10:59am — 4 Comments
"मौन एक सशक्त अभिव्यक्ति है "
लब खामोश हैं
कुछ कम्पन है
कहना चाह रहे हैं
पर खामोश हैं
फिर भी कोई तो है
जो कर रहा है बात
चुप चुप…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 6:30pm — 3 Comments
कभी अपने नाखून देखे हैं
अपने अल्फाजों के नाखून
हाँ यही बहुत पैने हैं तीखे हैं
चुभते हैं
ज़रा तराश लो इन्हें
इनकी खरोंचों से चुभन होती है
ये विदीर्ण कर जाते हैं
मेरे मोम से कोमल ह्रदय को…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 2:59pm — 9 Comments
सब जानते हैं
क्या चल रहा है
कैसे चल रहा है
हल भी है
लेकिन चुप है
क्यूंकि इनके दिलों ने
धडकना छोड़ दिया है
वो केवल फड-फडाता है
घुटन पसंद हैं इन्हें…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 13, 2012 at 10:00am — 12 Comments
मित्रों दोहों के रूप में कुछ अपने जीवन के अनुभव और विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ अपने विचार अवश्य रखें प्रसन्नता होगी
==========दोहे =========
पीर पराई देख के , नैनन नीर बहाय
दया जीव पे जो करे, वो मानव कहलाय
सब धर्मों का एक ही, तीरथ भारत देश
सबको देता ये शरण, कैसा भी हो वेश
मोक्ष आखिरी लक्ष्य है, हर मानव का दीप
मोती पाना कठिन है, गहरे सागर सीप
दीप जलाओ ज्ञान का, मन से मन का मेल
बाती जिसमें शास्त्र की, रीतों का हो…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 8:38pm — 9 Comments
देखो
तूफ़ान उठ रहा है
सागर मचल रहा है
लहरें उठ रही हैं
आसमान छू लेने को
चल रहा अपनी धुन में
दुनिया से बेखबर
स्वतंत्र
बाधाओं को लांघते…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 6:23pm — 6 Comments
मैं बंजर जमीं पे चमन ढूंढता हूँ
यूँ दिल को जलाते जलन ढूंढता हूँ
हैं हर-सू धमाके डराते दिलों को
है आतंक फिर भी अमन ढूंढता हूँ
था इतिहास में जो परिंदा सुनहरा
मैं वो हिंद औ वो वतन ढूंढता हूँ
जो लिपटे तिरंगा बदन से सुकूँ लूं
वो दो गज जमीं वो कफ़न ढूंढता हूँ
जो पैसा कमाना अभी सीखते हैं
मैं उनमे कलामो रमन ढूंढता हूँ
है अब की सियासत बुरी "दीप"…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 3:00pm — 7 Comments
उठता यूँ हिजाब देख के
उनको ही तकते रह गए
काला तिल रुखसार पर
लेता जाँ है जाने जिगर
दिल पे है कैसा ये असर
न रही दुनिया की खबर
रंगत औ शबाब देख के
उनको ही तकते रह गए
लगती है जैसे गुल बदन
उठती है मीठी सी चुभन
धरती है या है वो गगन
सीने में चाहत की अगन
होंठों में गुलाब देख के
उनको की तकते रह गए
गहरा वो कोई सागर
या कल कल सा कोई निर्झर…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 11:44am — 6 Comments
देश हित वाली बात हिल-मिल सुनाइए
ज्ञान का प्रकाश दे जो दीप वो जलाइए
देश पर विदेशियों की रीत न चलाइए
मान सम्मान अपने देश का बचाइये
अपना संस्कारों वाला देश नव बनाइये
रीत औ रिवाजों वाले गीत अब गाइए
छोटों को गरीबों को कभी मत सताइए
हो सके तो उनको भी गले से लगाइए
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 11, 2012 at 3:00pm — 8 Comments
"स्वप्न"
सूदखोर नहीं मानते
आते हैं हाथ जोड़ के
देते हैं कर्ज
चंद दिनों के बाद
दोगुना वसूल करते हैं
सूद
ले जाते हैं लूट के सारे सुन्दर स्वप्न
छाती फुला के अकड़…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 10, 2012 at 7:07pm — 6 Comments
रात आई
काली चुनरी ओढ़ के
नीले व्योम को ढँक लिया
घुप्प अँधेरा,
सन्नाटे बातें करते हैं
हवाओं से
दूर से आती हैं कुछ आवाजें
डरावनी सी भयानक सी
कानों में खुसफुसाती…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 6, 2012 at 3:30pm — 5 Comments
मरासिम उनसे था मेरा सूफियाना सा
गा भी लेते थे हम
सुना भी लेते थे हम
इबादत उनकी किया करते थे
खुदा से रूठ जाते थे
मना भी लेते थे हम
वक़्त-ए-फुरकत
उनसे वादा किया था
एक कतरा न गिरेगा कभी
ये आब-ए-जमजम
मेरी आँखों से
तो पाकीजा आब से भरे ये प्याले
रोज भरते तो हैं
पर छलकते कभी नहीं
और लोग हमें संगदिल सनम कहते हैं
ये कैसा वादा लेकर वो गए हैं
उस दिन से लेकर आज तक…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 2, 2012 at 5:37pm — 5 Comments
हुश्न को माह कहते हो कमाल करते हो
आदमी को खुदा बुत को जमाल करते हो
चश्म में डूब कर उनका जबाब देते हैं
मौन पलकें झुका के जो सवाल करते हो
नोट में वोट दे ईमान बेच कर तुम ही
बात सुनते नहीं नेता बबाल करते हो
इश्क की आग में सूखा जला हुआ तन्हा
तुम उसे दीद दे ताज़ा निहाल करते हो
है हकीकत जमाने की तुझे पता लेकिन
ढूँढने को ख़ुशी क्या क्या ख़याल करते हो
छोड़ के हाथ जिसने तोड़ दिया हर रिश्ता
साथ…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 1, 2012 at 3:38pm — 6 Comments
देखना तुझको मुसीबत तो नहीं
है मुहब्बत ये शरारत तो नहीं
मर मिटे उसके बदन पर वो मगर
चाहना बस हुश्न चाहत तो नहीं
हार बैठा हूँ जिगर पर ये बता
गैर से तुझको मुहब्बत तो नहीं
छोड़ आया हूँ सभी दुनिया-जहाँ
अब तुझे मुझसे शिकायत तो नहीं
तोड़ के रिश्ते मिले किसको सुकूं
इश्क चाहत है बगावत तो नहीं
देख कर क्यूँ आह भरते हो सनम
इश्क अंदाजे अदावत तो नहीं
खेलना दिल से नहीं आता मुझे…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 30, 2012 at 2:30pm — 4 Comments
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