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मिथिलेश वामनकर's Blog (124)

तेरे होंठों से जुदा जाम रहा हूँ लेकिन -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

2122 - 1122 - 1122 - 22 या 112

 

तेरे होंठों से जुदा जाम रहा हूँ लेकिन

रोजे-अव्वल से ही बदनाम रहा हूँ लेकिन

 

हक़ जताने से कभी हक़ नहीं होता…

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Added by मिथिलेश वामनकर on November 16, 2015 at 11:30am — 16 Comments

मखमली चाँदनी रोज आया करो---(ग़ज़ल)--- मिथिलेश वामनकर

212---212---212---212

 

मखमली चाँदनी रोज आया करो

पर सितारों से आमद छुपाया करो

 

तितलियों ने लिए है नए पैरहन

ऐ…

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Added by मिथिलेश वामनकर on November 13, 2015 at 9:00am — 16 Comments

हरेक बात, करामात कह रहा हूँ मैं-- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

1212 - 1122 - 1212 – 22

 

हरेक बात, करामात कह रहा हूँ मैं

वो दिन को रात कहें, रात कह रहा हूँ मैं

 

लगे है आज तो खाली ख़याल अच्छे दिन…

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Added by मिथिलेश वामनकर on November 9, 2015 at 11:00pm — 6 Comments

तसव्वुफ़ का है आलम, जिंदगी रोने नहीं देती--(ग़ज़ल)-- मिथिलेश वामनकर

1222—1222—1222—1222

 

तसव्वुफ़ का है आलम, जिंदगी रोने नहीं देती

ये मैली-सी चदरिया मोह की धोने नहीं देती

 

दिखे जो नींद में यारो, वो सपने हो नहीं…

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Added by मिथिलेश वामनकर on November 6, 2015 at 10:03pm — 14 Comments

ये लॉन एक खफ़ा-सी किताब है कोई---(ग़ज़ल)--- मिथिलेश वामनकर

1212 - 1122 - 1212 – 112

 

न ओंस है, न शफक है, न ताब है कोई

ये लॉन एक खफ़ा-सी किताब है कोई

 

झुका झुका सा मुझे देख, सब यही कहते  …

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Added by मिथिलेश वामनकर on November 5, 2015 at 4:36pm — 19 Comments

होंठों पे जिनके दीप जलाने की बात है--- (ग़ज़ल)--- मिथिलेश वामनकर

221 2121 1221 212

 

होंठों पे जिनके दीप जलाने की बात है

सीने में उनके आग लगाने की बात है

 

झाड़ी के फैलते हुए हाथों को काट…

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Added by मिथिलेश वामनकर on November 4, 2015 at 12:34pm — 27 Comments

नज़र अपनी सितारों पर टिकाने से जरा पहले--(ग़ज़ल)--मिथिलेश वामनकर

1222—1222—1222—1222

 

नज़र अपनी सितारों पर टिकाने से जरा पहले

जमीं पर तुम जमा लेना सलीके से कदम अपने

 

फलक को चाँद भी रौशन करे खुद के उजालों…

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Added by मिथिलेश वामनकर on November 2, 2015 at 5:28pm — 14 Comments

संसार हो गया है, अब अंगहीन जैसे---(ग़ज़ल)--- मिथिलेश वामनकर

221—2122—221--2122

 

संसार हो गया है, अब अंगहीन जैसे

सब लोग सोचते है, केवल मशीन जैसे

 

ये जात ही जुदा है, बस नाम ‘लोकसेवक’…

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Added by मिथिलेश वामनकर on November 1, 2015 at 11:00pm — 14 Comments

ऐ सुखनवर साथ चल -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

2122---2122---2122---212

 

दौर बदला है, बदल जा,   ऐ सुखनवर साथ चल 

सोचता है जिस जबां में, उस जबां में लिख ग़ज़ल

 

जिंदगी बदलाव है...... गर थम गए…

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Added by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 2:44pm — 36 Comments

ग़ज़ल-- बढ़िया है-- (मिथिलेश वामनकर)

22—22—22—22—22—2

 

गुलशन में फिर भौंरा आया,  बढ़िया है

फूलों से काटों का नाता,  बढ़िया है

 

आज उफ़क तक सरसों देखी, दिल बोला-…

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Added by मिथिलेश वामनकर on October 28, 2015 at 4:03pm — 15 Comments

धूप की तकसीम में कुछ तो हुआ है देखना-- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

2122---2122---2122---212

धूप की तकसीम में कुछ तो हुआ है देखना

आज फिर सूरज सवालों में घिरा है देखना

 

नीम के ये जर्द पत्ते आंसुओं-से झर गए

इस फिज़ा की आँख में कंकड़…

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Added by मिथिलेश वामनकर on October 21, 2015 at 3:03pm — 9 Comments

बंदगी जिनका सफीना था--(ग़ज़ल)-- मिथिलेश वामनकर

2122-- 1122 --1122 –112

 

बंदगी जिनका सफीना था, वही पार गए

नाखुदाओं पे भरोसा जो किया, हार गए

 

अम्न के वास्ते इस पार से उस पार गए…

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Added by मिथिलेश वामनकर on October 20, 2015 at 1:32am — 13 Comments

जरा सा पास आकर देख तो लो----(ग़ज़ल)---मिथिलेश वामनकर

1222---1222---122

 

जरा सा पास आकर देख तो लो

कभी पलकें उठाकर देख तो लो

 

अगरचे तिश्नकामी गम बहुत है

उसे आँसू…

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Added by मिथिलेश वामनकर on October 19, 2015 at 2:08am — 18 Comments

गुमसुम क्यों नदी का तीर है---- ग़ज़ल----मिथिलेश वामनकर

2122 – 2122 – 2122 – 212

 

चाँदनी जब रात, गुमसुम क्यों नदी का तीर है?

मौन है जल किसलिए, पूछो कि क्यों गंभीर है?

 

प्यार के झुरमुट अंधेरों से लिपट सोते…

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Added by मिथिलेश वामनकर on October 15, 2015 at 2:44pm — 12 Comments

राजधानी जो आये पता कर चले--(ग़ज़ल)-- मिथिलेश वामनकर

212—-212---212---212

 

पूछते रह गए आप क्या कर चले?

वो मेरी जिंदगी हादसा कर चले.

 

 गुमटियाँ शह्र से जो हटा कर चले…

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Added by मिथिलेश वामनकर on October 14, 2015 at 4:30pm — 23 Comments

कभी मैं खेत जैसा हूँ कभी खलिहान जैसा हूँ -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

1222—1222—1222—1222

 

कभी मैं खेत जैसा हूँ, कभी खलिहान जैसा हूँ

मगर परिणाम, होरी के उसी गोदान जैसा हूँ

 

मुझे इस मोह-माया, कामना ने भक्त…

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Added by मिथिलेश वामनकर on September 27, 2015 at 9:30am — 28 Comments

ग़ज़ल :: (बह्र-ए-शिकस्ता) -- कभी ये रहा है बेहद, कभी मुख़्तसर रहा है -- मिथिलेश वामनकर

फ़'इ'लात फ़ाइलातुन फ़'इ'लात फ़ाइलातुन 

1121 - 2122 - 1121 – 2122

 

कभी ये रहा है बेहद, कभी मुख़्तसर रहा है

मेरा दर्द तो हमेशा, दिलो-जां जिगर रहा है…

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Added by मिथिलेश वामनकर on September 23, 2015 at 10:00am — 18 Comments

आज हमें होश में आने का नहीं -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

2122-- 1122 --1122 --112

 

इस तरह आज हमें होश में आने का नहीं

मुफ्त आई है मगर यार पिलाने का नहीं

 

सिर्फ रोता हुआ हर गीत सुनाने का नहीं…

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Added by मिथिलेश वामनकर on September 21, 2015 at 4:25am — 22 Comments

वो बदल जाए खुदारा बस इसी उम्मींद पर-- (ग़ज़ल)-- मिथिलेश वामनकर

2122---2122---2122---212

 

वो बदल जाए खुदारा बस इसी उम्मींद पर

हर दफा उनकी ख़ता रखते रहे ज़ेरे-नजर

 

ये इशारे मानिए दरिया बहुत गहरा…

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Added by मिथिलेश वामनकर on September 19, 2015 at 3:00am — 24 Comments

नज़र इंसान की घातक हुई क्या?-- ग़ज़ल -- मिथिलेश वामनकर

1222---1222---122

 

नज़र इंसान की घातक हुई क्या?

अभी नासाफ़ थी, हिंसक हुई क्या?

 

भरोसा जिन्दगी से उठ गया जो…

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Added by मिथिलेश वामनकर on September 17, 2015 at 4:11am — 21 Comments

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"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
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