सुबह से हो रही मूसलाधार बरसात रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी, अब तो दोपहर होने वाली थी. पिछले कई दिनों से बादल छाते तो थे लेकिन बरसने में कंजूसी कर देते थे, मानो इसरार की कामना रखते हों. मौसम पिछले कुछ दिनों की तुलना में काफी अच्छा हो गया था, उमस ख़त्म हो गयी. उसके इलाके में पानी भरने लगा था और आज वह काम पर भी नहीं जा पाया. दुकान में उसका एक दोस्त भी काम करता था, जिसने उसकी नौकरी लगवाई थी, ने मालिक को उसके न आ पाने का बता दिया था.
कल रात की उमस में जब वह खाना खाकर पड़ोस के रहमान भाई के…
Added by विनय कुमार on July 17, 2019 at 5:36pm — 4 Comments
ऑफिस से बाहर निकलते ही उसका सर चकरा गया, गजब की लू चल रही थी. अब तपिश चाहे जितनी भी हो, काम के लिए तो बाहर निकलना ही पड़ता है. फोन में समय देखा तो दोपहर के ३.३० बज रहे थे. इस शहर में वह कम ही आना चाहता है, दरअसल मुंबई जैसे शहर में नौकरी करने के बाद ऐसे छोटे शहरों और कस्बों में उसे कुछ खास फ़र्क़ नजर नहीं आता.
सुबह आते समय तो ठीक था, लेकिन अभी उसे जाने के नाम पर ही बुखार चढ़ने लगा. स्टेशन से इस ऑफिस की दूरी बमुश्किल ३० मिनट की ही थी. लेकिन न तो यहाँ कैब थी और न ही किसी ऑटो के दर्शन हो रहे…
Added by विनय कुमार on June 12, 2019 at 6:58pm — 2 Comments
"अरे महमूद भाई, कहाँ हो. आज सोसाइटी की मीटिंग में नहीं जाना क्या", रजनीश ने घर में कदम रखते हुए आवाज लगायी.
"आ रहे हैं भाई साहब, आजकल पता नहीं क्या हो गया है, ऑफिस से आने के बाद खामोश से रहते हैं", भाभीजान ने पानी का ग्लास रखते हुए कहा.
"कुछ परेशानी होगी ऑफिस की, मैं पूछता हूँ उससे. वैसे भी आजकल काम बहुत बढ़ गया है और तनाव भी", रजनीश ने सोफे पर बैठते हुए कहा और पानी का ग्लास उठा लिया.
"चाचू, मेरी चॉकलेट कहाँ है", कहते हुए छोटी आयी और रजनीश की गोद में चढ़ने लगी. रजनीश ने…
ContinueAdded by विनय कुमार on June 10, 2019 at 7:30pm — 6 Comments
सुबह का अखबार जैसे खून से सना हुआ था, इतनी वीभत्स खबर छपी थी जिसकी कल्पना करके ही दिमाग सुन्न हो जा रहा था. सामने चाय की प्याली रखी हुई थी लेकिन उसे पीने की इच्छा मर चुकी थी. उसने अपना सर पकड़ा और बिस्तर पर ही निढाल हो गयी.
"क्या हो गया है इस समाज को, अब और कितना नीचे गिरेंगे हम लोग?, उसके मुंह से बुदबुदाहट की शक्ल में आवाज निकली.
कुछ देर बाद कामवाली बाई आयी और उसने देखा कि चाय वैसे ही रखी है तो उसने टोका "मैडम, तबियत ठीक नहीं है क्या? मैं दूसरी चाय बना लाती हूँ और कोई दवा भी ला…
Added by विनय कुमार on June 9, 2019 at 11:16pm — 10 Comments
"याद पिया की आए" ठुमरी लैपटॉप में मद्दम स्वर में बज रही थी, बाहर बरसती हुई बूंदों का शोर मन में हलचल मचाना चाह रही थी. उसने अपनी चाय की प्याली उठायी और होठों से लगा लिया. चाय कुछ ठंडी हो गई थी लेकिन उसे इसका एहसास नहीं था. उसे तो अधखुली आँखों से खिड़की के बाहर टपकती बारिश की बूंदें दिख रही थी और उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली साहब की जादुई आवाज सुनाई दे रही थी.
अक्सर ऐसे मौकों पर, जब वह नितांत अकेले ही रहना चाहता है, फ़ोन को साइलेंट मोड में कर देता है. लेकिन आज न जाने कैसे वह भूल गया था और फोन का…
Added by विनय कुमार on May 20, 2019 at 8:00pm — 4 Comments
यह तीसरी बार था जब वह व्यक्ति चिल्ला रहा था और उठ कर भागने का प्रयास कर रहा था "मुझे कुछ नहीं हुआ है, मुझे जाने दो". खून का बहना अभी तक रुका नहीं था और उसके चेहरे से लेकर कपड़ों तक फ़ैल गया था. दो कम्पाउंडरों ने उसे पकड़ कर वापस लिटा दिया और डॉक्टर फिर से उसके सर पर दवा लगाकर पट्टी बांधने की तैयारी कर रहा था.
बमुश्किल आधे घंटे पहले ही उसने सड़क के दूसरी तरफ इस एक्सीडेंट को होते हुए देखा था और रात के सन्नाटे में वह अपनी गाड़ी मोड़कर वापस आया. वहां मौजूद लोगों की मदद से उसने उसे इस हस्पताल में…
Added by विनय कुमार on May 4, 2019 at 6:19pm — 6 Comments
"देखो आज का अखबार, एक लड़के ने जिसे कोई भी सहूलियत हासिल नहीं थी, राज्य सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर ली. जिसे करना होता है ना, वह लैंप पोस्ट की रौशनी में भी पढ़ लेता है", पिताजी आज फिर उबल रहे थे. इस बार भी राकेश असफल हो गया, वह खुद बहुत उदास था.
"लक्ष्य तो निर्धारित करते नहीं ठीक से, बस साधनों का रोना रोते रहोगे. मुझे लगता था कि मेरे रिटायर होने से पहले मैं भी सुनूंगा कि एक बाबू का लड़का बड़ा अधिकारी बन गया. लेकिन जनाब को तो कोई मतलब ही नहीं है इन सब से", अभी तक उनका बड़बड़ाना जारी था.
पहले…
Added by विनय कुमार on May 2, 2019 at 5:45pm — 6 Comments
"अरे, उस भलेमानस के पास जाना है, चलिए मैं ले चलता हूँ", सामने वाले व्यक्ति ने जब उससे यह कहा तो उसे एकबारगी भरोसा ही नहीं हुआ. अव्वल तो लोग आजकल किसी का पता जानते ही नहीं, अगर जानते भी हैं तो एहसान की तरह बताते हैं. और राकेश के बारे में उसकी राय तो भलेमानस की बिलकुल ही नहीं थी.
चंद साल ही तो हुए हैं जब राकेश उसकी टोली का सबसे खतरनाक सदस्य हुआ करता था. किसी को भी मारना पीटना हो, धमकाना हो या वसूली करनी हो तो राकेश सबसे आगे रहता था. और इसी वजह से उसे एक प्राइवेट फाइनेंस कंपनी में नौकरी भी…
Added by विनय कुमार on April 25, 2019 at 7:14pm — 6 Comments
"हम तो आज भी पल्लू सरक जाए तो तुरंत ठीक कर लेते हैं. लेकिन ये आजकल की बहुरिया, मजाल है कि पल्लू सर पर टिके", रुक्मणि को नई बहू का कपड़ा पहनना बिलकुल नहीं भा रहा था और वह रवि के सामने भी कहने से नहीं चूकीं.
रवि ने पलटकर उनकी तरफ देखा और मुस्कुरा दिए. वह भी नई बहू को पिछले दो दिन से बमुश्किल साड़ी सँभालते देख रहे थे.
"अब हर आदमी तुम्हारी तरह तो नहीं बन सकता ना राजेश की अम्मा, तुमको पता तो है कि बहू शहर में नौकरी करती है और इसके नीचे कई लोग काम भी करते हैं", रवि ने बात सँभालने की कोशिश…
Added by विनय कुमार on April 9, 2019 at 6:18pm — 12 Comments
"अरे पागल हो गए हो क्या, उस ऑटो को क्यों जाने दिया. इतना टेंशन हैं चारोतरफ और हम लोग यहाँ फंसे हुए हैं जहाँ तीन दिन पहले ही दंगे हुए थे", राजेश एकदम बौखला गया.
"चिंता मत करो, अब स्थिति कुछ ठीक हैं, दूसरा आ जायेगा", उसने इत्मीनान से कहा और सामने सड़क पर देखने लगा.
तभी एक दूसरा ऑटो आता दिखाई पड़ा, ऑटो ड्राइवर को देखकर ही राजेश को समझ आ गया कि यह गैर मज़हबी है और वह थोड़ा पीछे हो गया.
"आ जाओ, चलना नहीं हैं क्या", कहते हुए वह राजेश का हाथ खींचते हुए ऑटो में बैठ गया.
कुछ समय बाद…
Added by विनय कुमार on April 2, 2019 at 5:36pm — 10 Comments
चिट्ठियाँ नहीं जानती
वो तो बस चली आती हैं
कभी सही पते पर
तो अक्सर गलत पते पर
लेकिन उन्हें क्या पता
कि वह सालों साल
धूल खाती रहेंगी
दरअसल उनका गंतव्य
बदल चुका होता है
लेकिन लोग अपने पते
इन चिट्ठियों के लिए
अक्सर नहीं बदलते
बस फोन नंबर ही
बदल लेते हैं
सन्देश मिलते रहते हैं
उन बदले हुए नंबरों पर
लेकिन चिट्ठियाँ आती रहती हैं
उन पुराने पतों पर
लोग अक्सर भूल जाते हैं
लोग उन्हें अब नहीं बदलते…
Added by विनय कुमार on March 19, 2019 at 7:13pm — 6 Comments
दोस्त क्यूँ होते हैं, इस सवाल का जवाब जिंदगी के अलग अलग समय में अलग अलग हो सकता है. लेकिन एक जवाब तो कामन है कि जो आपके लिए हमेशा खड़ा रहे, आपकी हर मुसीबत में काम आए, वही असली दोस्त होता है. बहरहाल अधिकांश दोस्त ऐसे होते भी हैं, बस कुछेक अपवाद को छोड़कर.
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि अगर सियापा ही न करें तो दोस्त कैसे, ये अलग बात है कि आप माने या न माने. अमूमन ऐसे दोस्त तो जिंदगी के शुरूआती दिनों में ही मिलते हैं जब आपके ऊपर किसी किस्म के सियापे का कोई असर नहीं पड़े. और मुझे तो बिलकुल नहीं…
Added by विनय कुमार on March 19, 2019 at 7:00pm — 2 Comments
चलो मुद्दों की बात करते हैं
वही मुद्दे जिनसे वो डरते हैं
वादे जितने भी उनको करने हों
बेहिचक वो तो किया करते हैं
बात जो पूछ लो गरीबों की
वो अमीरों की बात करते हैं
आपने प्रश्न उनसे जो पूछे
देशद्रोही करार करते हैं
है कहाँ रोजगार गर पूछो
बैंड बाजे की बात करते हैं
क्या किसानों की करेंगे ये मदद
सोना, आलू से पैदा करते हैं
इनकी नज़रों में जनता उल्लू है
उल्लू ये सीधा किया करते…
Added by विनय कुमार on March 15, 2019 at 4:05pm — 6 Comments
कल से ही खबर आ रही थी कि क्षेत्र में कुछ संदिग्ध लोग देखे गए हैं और रात में चौकसी बढ़ा दी गयी थी. हमेशा की तरह रमेश और रोशन एक साथ ही नाईट ड्यूटी पर थे. जैसे जैसे रात आगे बढ़ रही थी, चारो तरफ अँधेरा कुछ यूँ गहरा रहा था मानो इस रात की सुबह होगी ही नहीं. अचानक एक खटका हुआ और रोशन ने अपनी राइफल आवाज़ की तरफ तान दी. कुछ मिनट तक सन्नाटा रहा और उनको लग गया कि कोई खतरा नहीं है.
"तू तो निरा डरपोक ही है रोशन, जरा सी आहट हुई नहीं कि घबरा जाता है", रमेश ने उसे छेड़ते हुए कहा.
"अच्छा तो पंडित, तू…
Added by विनय कुमार on February 18, 2019 at 7:20pm — 2 Comments
आज बचवा चाचा बहुत उदास दरवाजे पर बैठे थे. वैसे तो उदास उनका पूरा गांव ही हो गया था, अधिकांश नौजवान शहरों के बिजबिजाते भीड़ का हिस्सा बनने चले गए थे. कुछ जो बचे थे वह गांव में अक्सर रात को ही आते थे, दिन में तो उनका समय देसी शराब के ठेके या सिनेमा हाल पर ही बीतता था. हर घर में इक्का दुक्का बुजुर्ग ही बचे थे जो दिन को किसी तरह काट रहे थे. जितना होता एक दूसरे से बात करते या अपने अपने रोग को लेकर खटिया पर पड़े रहते.
गांव था तो गांव के अपने सुख दुःख भी थे. सबसे ज्यादा झगड़ा तो खेतों को लेकर ही…
Added by विनय कुमार on February 4, 2019 at 7:03pm — 6 Comments
दो तीन बार सोमारू आवाज़ लगा चुका था, हर बार वह उसकी तरफ उचटती नजर से देखता और खाट पर लेटे लेटे सोचता रहा. अंदर से तो उसे भी लग रहा था कि उसको जाना चाहिए लेकिन फिर उसका मन उसे रोक देता. वैसे तो बात बहुत बड़ी भी नहीं थी, इस तरह की घटनाओं से उसको अक्सर दो चार होना ही पड़ता था. लेकिन अगर कोई बड़ी जात वाला यह सब कहता तो उसे तकलीफ नहीं होती थी.
"दद्दा, जल्दी चलो, सब लोग तुम्हरी राह देखत हैं", सोमारू ने इस बार थोड़ी तेज आवाज में कहा.
वह खटिया से उठा और बाहर निकलकर लोटे से मुंह धोने लगा. गमछी…
Added by विनय कुमार on January 14, 2019 at 6:00pm — 12 Comments
रेशमा की नजर फिर उस लड़की पर पड़ी जो कल ही यहाँ लायी गई थी. बेहद घबराई और लगातार रोती हुई वह लड़की देखने में तो किसी गरीब घर की ही लगती थी लेकिन पढ़ी लिखी भी लगती थी. उससे रहा नहीं गया तो वह उसकी तरफ बढ़ी और पास जाकर उसने पूछा "क्या नाम है रे तेरा और कहाँ से आयी है? यहाँ रोने धोने से कुछ नहीं होता, जितनी जल्दी सब मान लेगी, उतना बढ़िया. वर्ना तेरी दुर्गति ही होनी है यहां पर".
लड़की ने उसकी तरफ देखा, रेशमा की आँखों का सूनापन देखकर वह सिहर गयी. उसने रेशमा का हाथ पकड़ा और फफक पड़ी "मुझे यहाँ से बचा…
Added by विनय कुमार on January 8, 2019 at 5:52pm — 12 Comments
आज उसके छह महीने पूरे हो रहे थे, कल से वह वापस अपनी खूबसूरत और आरामदायक दुनिया में जा सकता था. उसे याद आया, जब से सरकार ने नियम बनाया था कि हर डॉक्टर को छह महीने गांव में प्रैक्टिस करनी पड़ेगी, उसके लिए यह करना सबसे कठिन था. पिताजी की अच्छी खासी दुनिया थी उस महानगर में, बड़ी हवेली, भरा पूरा परिवार और हर तरह की सुख सुविधा. एम बी बी एस करने के बाद सबने यही कहा था कि छह महीने तो फटाफट गुजर जायेंगे और उसके बाद पिताजी महानगर में ही सब इंतज़ाम करा देंगे.
गांव में जिसके घर वह रह रहा था,…
Added by विनय कुमार on December 25, 2018 at 1:12pm — 6 Comments
Added by विनय कुमार on December 24, 2018 at 12:07am — 4 Comments
"आज फिर नींद नहीं आ रही है आपको, भूलने की कोशिश कीजिये उसे", रश्मि ने बेचैनी से करवट बदलते हुए राजन से कहा और उठकर बैठ गयी. कुछ देर तक तो वह अँधेरे में ही राजन का सर सहलाते रही, फिर उसने कमरे की बत्ती जला दी.
"लाइट बंद कर दो रश्मि, अँधेरे में फिर भी थोड़ा ठीक लगता है. उजाला तो अब बर्दास्त नहीं होता, काश उस दिन मैं नहीं रहा होता", राजन ने रश्मि की गोद में सर छुपा लिया.
धीरे धीरे रश्मि ने अब अपने आप को संभाल लिया था लेकिन अभी भी जब वह बाहर निकलती, उसे लगता जैसे लोगों की निगाहें उससे…
Added by विनय कुमार on October 26, 2018 at 12:24pm — 14 Comments
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