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ग़ज़ल (शुक्र तेरा अदा नहीं होता)

2122-1212-22

शुक्र तेरा अदा नहीं होता

और वा'दा वफ़ा नहीं होता

तू न तौफ़ीक़ दे अगर मौला 

एक सज्दा अदा नहीं होता 

सिर्फ़ तौबा पे बख़्शने वाले 

कोई तुझ-सा बड़ा नहीं होता 

घर नहीं, है वो एक वीराना 

ज़िक्र जिस में तेरा नहीं होता 

सबके अहवाल जानता है तू

कुछ भी तुझ से छुपा नहीं होता 

तेरी रहमत के आसरे पर हूँ 

तू जो चाहे तो क्या नहीं होता

और बे-ज़र 'अमीर'…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 4, 2022 at 11:08pm — 7 Comments

ना तुझे पाने की खुशी ना तुझे खोने का ग़म

ना तुझे पाने की खुशी, ना तुझे खोने का ग़म 

मिल जाए तो मोहब्बत, ना मिले तो कहानी है 

ना आँखों में आँसू और ना चेहरे पर पानी  

बेचैन मोहब्बत में, बदनाम जवानी है 

ना तेरे साथ की चाहत,…

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Added by AMAN SINHA on October 4, 2022 at 12:38pm — 3 Comments

असली चेहरा

फिर जंगल का राजा हाथी ही बना है।पर, अब उसके साथ बिल्लियाँ, भेड़ें आदि हैं। भेड़ियों की बहुतायत है।समरसता, न्याय, सबको काम देने का ऐलान हो चुका है।उधर शेर -मंडल दहाड़ मारकर जंगल को सिर पर उठाए है कि इस ढुलमुल हाथी को उनलोगों ने ही पाल -पोसकर बड़ा किया।काम लायक बनाया,पर यह तो पाला- बदलू निकला।इसपर कोई क्या भरोसा करेगा? राज -पक्ष की ओर से इन सब बातों को विधवा -विलाप करार दिया गया है। शेर -दल की अब बिल्लों के दल से…

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Added by Manan Kumar singh on October 4, 2022 at 10:40am — 2 Comments

ग़ज़ल (...महफ़ूज़ है)

2122 - 2122 - 2122 - 212

वो जो हम से कह चुके वो हर बयाँ महफ़ूज़ है

दास्तान-ए-ग़ीबत-ए-कौन-ओ-मकाँ महफ़ूज़ है 

मुश्त'इल करने की हम को कोशिशें कितनी हुईं

लो हमारे दिल में देखो सब यहाँ महफ़ूज़ है 

हक़-बयानी जिसका शेवा हो कभी झुकता नहीं 

दार तक रंग-ए-रुख़-ए-ताब-ओ-तवाँ महफ़ूज़ है 

ज़ब्त कहते हैं जिसे वो है समंदर में कहाँ 

ये उलट देता है सब-कुछ जो जहांँ महफ़ूज़ है 

ज़र्फ़ ये बख़्शा है रब ने…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 3, 2022 at 10:54pm — 2 Comments

एनकाउंटर(लघुकथा)

'कभी- कभी  विपरीत विचारों में टकराव हो जाता है।चाहे- अनचाहे ढंग से अवांछित लोग मिल जाते हैं,या वैसी स्थितियाँ प्रकट हो जाती हैं। या विपरीत कार्य- व्यवसाय के लोगों के बीच अपने- अपने कर्तव्य- निर्वहन को लेकर मरने- मारने तक की नौबत आ जाती है। यदा- कदा तो परस्पर की लड़ाई- भिड़ाई में प्राणी इहलोक- परलोक के बीच का भेद भी भुला बैठते हैं।अभी यहाँ हैं,तो तुरंत ऊपर पहुँच जाते हैं।पहुँचा भी दिए जाते हैं।' प्रोफेसर  पांडेय ने अपना लंबा कथन समाप्त किया। मंगल और झगरू उनका मुँहदेखते रह…

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Added by Manan Kumar singh on October 3, 2022 at 8:03pm — 4 Comments

असली - नकली. . . .

असली -नकली . . . .

सोच समझ कर पुष्प पर, अलि होना आसक्त ।

नकली इस मकरंद पर  , प्रेम न करना व्यक्त ।।

गुलदानों में आजकल, सजते नकली फूल ।

सच्चाई के तोड़ते, नकली फूल उसूल ।।

गुलशन सूने से लगें, भौंरे लगें उदास ।

नकली फूलों से भला, कब बुझती है प्यास ।।

मरीचिका सी जिन्दगी, यहाँ प्यास ही प्यास ।

पतझड़ के परिधान में, मुस्काता मधुमास ।।

अब कागज के फूल से, गुलशन है गुलज़ार ।

नकली फूलों का नहीं, मुरझाता संसार…

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Added by Sushil Sarna on October 2, 2022 at 10:01pm — 6 Comments

आजकल(लघुकथा)

‘मीलॉर्ड! इसने मुझे हमेशा गलत ढ़ंग से छुआ है,मेरी रजा के खिलाफ भी।’

‘और?’

‘मुझे नींद से भी जगाता रहा है।’

‘कब से?’

‘शुरू से ही।’

‘फिर भी?’

‘तबसे जब मैं कली हुआ करता था।’ फूल ने अपनी वेदना का इजहार किया।

जज ने अपने कोट में लगे फूल की तरफ देखा।वह अपनी जगह पर कायम था,शांतिपूर्वक।जज को तसल्ली हुई।

‘फिर आज क्या हुआ?’

‘आज तो कुछ नहीं हुआ,मीलॉर्ड! पर अब भी इसकी आदतें तब्दील नहीं हुईं।यह आज भी कलियों को परेशान करता है।फूलों की नींद हराम…

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Added by Manan Kumar singh on October 1, 2022 at 5:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल नूर की- दर्द है तो कभी दवा है ये



दर्द है तो कभी दवा है ये,

इश्क़ है या कि मोजज़ा है ये.

.

जो बिख़रने का सिलसिला है ये

ख़ुशबू होने ही की सज़ा है ये.

.

हम जो रोते हैं कुफ़्र होता है

मज़हब-ए-इश्क़ में मना है ये.

.

अपनी ताक़त को वो समझता है  

हुस्न के साथ मसअला है ये.

.

ख़त भला तेरा मैं जलाऊँगा?

आँसुओं से भभक गया  है ये.

.

हम तो फिरऔन इसको कहते हैं

ये समझता रहे ख़ुदा है ये. 

.

ग़म यहीं है यहीं कहीं होगा

तेरे देखे से छुप…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on September 29, 2022 at 11:30am — 17 Comments

ग़ज़ल

 22  22  22  22  22  2

 

मोद-सुमन  जो नित्य हृदय के पास रहे

सौरभ  का  भी  जीवन  में  आवास  रहे

 

मार्ग भले  ही छोटा  या  फिर  लम्बा हो

पैरों पर  प्रति  पल  अपने  विश्वास  रहे…

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Added by Ashok Kumar Raktale on September 28, 2022 at 7:30pm — 12 Comments

ज़िंदा हूँ अब तक मरा नहीं

ज़िंदा हूँ अब तक मरा नहीं, चिता पर अब तक चढ़ा नहीं

साँसे जब तक मेरी चलती है, तब तक जड़ मैं हुआ नहीं

जो कहते थे हम रोएंगे, कब तक मेरे ग़म को ढोएंगे?

पहले पंक्ति में खड़े है, जो कहते है कैसे सोएँगे?

 

मैं धूल नहीं उड़ जाऊंगा, धुआँ नहीं गुम हो जाऊँगा

हर दिल में मेरी पहूंच बसी, मर के भी याद मैं आऊँगा

कैसा होता है मर जाना, एक पल में सबको तरसाना

मूँह ढाके शय्या पर लेटा, मैं तकता हूँ सबका रोना

 

साँसों को रोके रक्खा है, कफन भी…

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Added by AMAN SINHA on September 26, 2022 at 2:00pm — No Comments

गाड़ी निकल रही है

गीत

*

कच्चे रास्तों गडारों से,

गाड़ी निकल रही है।

*

जा रहे हैं किधर कोई,

बूझता ही नहीं।

फूट रहे हैं सर क्योंकर,…

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Added by Ashok Kumar Raktale on September 23, 2022 at 10:30am — 8 Comments

ग़ज़ल (ऐ ख़ुदा दिल को क्या हुआ है ये)

2122 - 1212 - 22/112

ऐ ख़ुदा  दिल को  क्या  हुआ  है ये

किसकी  चाहत  में खो  गया  है ये

पेट  में   तितलियाँ   सी  उड़ती  हैं

इश्क़  की  क्या  ही  इब्तिदा  है  ये

याद-ए-जानाँ  तो  है दवा  है  गोया

दिल-ए-मुज़्तर  का  आसरा   है  ये

कौन  सुन  पायेगा   मेरे   दिल  की

दिल-ए-सोज़ाँ   तो   बे-सदा   है  ये…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 23, 2022 at 9:48am — 6 Comments

गीत -२

प्रेम रस का पान आओ फिर करें

सृष्टि का नव गान आओ फिर करें !

*

हम जले दावानलों से,

आँधियों से तुम बिखर।

आ गये  हैं  एक  जैसी,

भाग्य  की  बाँधी डगर।।

*

भूल कर  बीते  दुखों  के दर्द को

मोहिनी मुस्कान आओ फिर करें !

*

सोच मन पर क्या न बीती,

और  घायल  मन  न  कर।।

तय करें फिर साथ मिलकर,

जिन्दगी   का  यह  सफर।।

*

नव सृजन को पथ मिला साथी मिले

नीड़  का  निर्माण  आओ  फिर करें !

*

हम रहे साथी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 23, 2022 at 5:00am — 6 Comments

‘गुनगुन करता गीत नया है’

गुनगुन करता गीत नया है,

क़दम बढ़ाता मीत नया है

*

दर्द दिखा हर ओर भरा है,

अचरज है हर पोर भरा है,

शब्दों में खामोशी जितनी,

भीतर उतना शोर भरा है।

कानों ने…

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Added by Ashok Kumar Raktale on September 22, 2022 at 10:30pm — 7 Comments

गीत

तुम  कह   देती   एक  बार

प्राण! मुझ को, तुमसे प्यार।।

*

मिट जाती जन्मों की प्यास

छा   जाता  मन  में  उजास।

खो  जाते   सकल   संत्रास

पूरित  होती  स्वर्णिम आस।।

*

पीड़ा  हो  जाती तार - तार

तुम   कह   देती  एक  बार

प्राण! मुझ को, तुमसे प्यार।।

*

पोंछ देती तुम नयन गीले

पड़ जाते सब आबंध ढीले।

हो जोते हरित, सब पर्ण पीले

मृत्यु कहती , जा और जी ले।।

*

मन  से   लेती   जो  पुकार

तुम   कह   देती  एक …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 22, 2022 at 8:30pm — 6 Comments

श्राद्ध पक्ष के कुछ दोहे. . . .

श्राद्ध पक्ष के कुछ दोहे. . . . .

घर- घर पूजे श्राद्ध में, पितरों को संतान ।

श्रद्धा पूरित भाव से, उनको दे सम्मान ।।

श्राद्ध सनातन रीत है, श्राद्ध पितर सम्मान ।

सच्चे मन से मानिए, श्राद्ध शास्त्र विधान ।।

श्राद्ध पक्ष में पूजती, पुरखों को सन्तान ।

श्रद्धा से तर्पण करें, उनका कर के ध्यान ।।

श्राद्ध पक्ष विचरण करें , पितर धरा के पास।

आकर दें आशीष वो , ऐसा है विश्वास ।।

जीते जी माँ बाप का, सदा करो सम्मान ।

जा…

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Added by Sushil Sarna on September 19, 2022 at 5:20pm — 6 Comments

ग़ज़ल : बहुत वो देर लगी आग दिल लगाने में

1212     1122     1212     22 / 122

 

बहुत  सी देर लगी आग दिल  लगाने  में 

उन्होंने खेल जो खेला उसे  उसे मिटाने में 

अभी तो आप नहीं भूल पाए प्यार सनम !

लगेगा वक़्त अभी आग वो  बुझाने  में 

वो रात कल भी तो गुज़री है भारी मुझ पर जाँ 

 अभी कोशिश मिरी बस ज़िन्दगी बनाने में

तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा हमें रुलाकर भी

कि शम'अ बुझ अभी जाती है आज़माने…

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Added by Chetan Prakash on September 19, 2022 at 3:30pm — 5 Comments

लडकपन

पहली बार उसको मैंने, उसके आँगन में देखा था 

उसकी गहरी सी आँखों में, अपने जीवन को देखा था

मैं तब था चौदह का, वो बारह की रही होगी 

खेल खेल में हम दोनों ने, दिल की बात कही होगी 

 

समझ नहीं थी हमें प्यार की, बस मन की पुकार सुनी 

बचपन के घरौंदे ने फिर, अमिट प्रेम की डोर बुनी 

उसे देखकर लगता था जैसे, बस ये जीवन थम…

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Added by AMAN SINHA on September 19, 2022 at 2:51pm — 8 Comments

पाँच दोहे ......

पाँच  दोहे. . .

कल में कल की कल्पना, कल में कल की प्यास ।

कल में साँसें ले रहा, जीवन का विश्वास ।।

तिमिर लोक में प्रेम का, अद्भुत है इतिहास ।

सुर्ख साँझ के साथ ही, बढ़े मिलन की प्यास ।।

सब जानें ये जिन्दगी , केवल है आभास ।

फिर भी क्यों आभास का, जीव करे विश्वास ।।

हर लकीर पर है लिखा, जीवन का संघर्ष ।

तकलीफों के जलजले, डूबा जिसमें हर्ष ।।

हर तम का संसार में, होता एक प्रभात ।

सुख की छोटी सी किरण…

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Added by Sushil Sarna on September 17, 2022 at 8:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल (तुम्हारी एक अदा पर ही मुस्कराने की)

1212 / 1122 / 1212 / 22(112)

तुम्हारी एक अदा पर ही मुस्कराने की 

लगी है शर्त सितारों में जगमगाने की 

तुम्हारे आने से फिर लौट आई है रौनक़ 

भुला चुके थे अदा लब तो मुस्कुराने की 

तुम्हीं ने आ के ये वीराना कर दिया रौशन 

तमन्ना थी न ज़रा हमको झिलमिलाने की 

छुपा लूँ आओ तुम्हें मैं इन्हीं निगाहों में 

नज़र लगे न कहीं तुम को इस ज़माने की 

तड़प रहा है मेरी याद में मेरा मोहसिन 

सिखा के कारीगरी…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 17, 2022 at 1:12pm — 6 Comments

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