1222 1222 1222 1222
बह्रे हजज़ मुसम्मन सालिम
जो बोला है वही लिखती मेरा सम्मान है हिन्दी
है बिन्दी माँ के माथे सी पिता का मान है हिन्दी
तुम्हारी माँ अग्रजा मम शिखा का मान है हिन्दी
है सरकारी वो रोटी आज भोजन आन है हिन्दी
खड़ी बोली है हरियाणा कि दिल्ली प्रान है हिन्दी
न है अनजान कोई उससे मेरी शान है हिन्दी
कहूँ क्या आपसे साथी स्वयं भण्डार भाषा है
वो सुमधुर गीत फिल्मों के बड़ा…
ContinueAdded by Chetan Prakash on September 16, 2022 at 7:30pm — No Comments
रूपसी के कोठे पर रसिया लोगों की भीड़ है।सभी अपनी हाल की देहरादून यात्रा का बड़े हौसलापूर्वक वर्णन कर रहे हैं। लखू सेठ, "बड़ी सुखद यात्रा रही,रूपसी बाई।"
गगन बिहारी पांडे बोले,"लगा जैसे स्वर्ग सीधे धरती पर उतर आया हो।"
छोटू दादा: अपुन तो दंग रह गए वहां की अतिथि शाला देखकर।बड़ी भली व्यवस्था थी, देवि।"
अपने प्रति इतना आदरपूर्वक संबोधन सुनकर रूपसी चौंक -सी गई।
"कौन अतिथि शाला,दादा?" रूपसी ने सवाल किया।
"मंजरी सदन।"
"अच्छा।पहुंच ग....ए.....।"रूपसी कहते -कहते रूक…
Added by Manan Kumar singh on September 16, 2022 at 7:27pm — 5 Comments
तड़प रही है
गर्म रेत पर
मरती हुई नदी
पहले तो बाँधों ने लूटा
फिर पावर प्लांटों ने लूटा
तिस पर सारे नाले मिलकर
हर पल इसको देते कैंसर
जल्द हमारे कंधों पर
होगी ये लाश लदी
मरती नदियाँ मरते जंगल
पूँजी का मंगल ही मंगल
छोड़ सूर्य की साफ ऊर्जा
होता जीवाश्मों पर दंगल
बात-बात पर खाँस रही है
ये बीमार सदी
गर्म हो रही सारी दुनिया
भजन करें सब ले…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 16, 2022 at 12:00am — 7 Comments
1212 / 1122 / 1212 / 22
उठाओ जितनी भी चाहे क़सम ज़माने की
निकल सकेगी न हसरत हमें मिटाने की
जहाँ ये सारा हमारा वतन रहेगा, सुनो
हमारे वास्ते गर्दिश है सब ज़माने की
जिसे भी देखिये पत्थर लिये हुए है वो
करेगा बात यहाँ कौन दिल मिलाने की
तड़प के ख़ुद ही मेरी राह पर पड़ा है वो
बना रहा था जो बातें मुझे भुलाने की
जिसे भी देखिये वो होश-मंद है यारो
सुनेगा कौन यहाँ बात फिर दिवाने…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 15, 2022 at 5:16pm — 5 Comments
221 2121 1221 212
ख़ुशबू, चमन, बहार से आगे की चीज़ है।
जो ज़िंदगी है, प्यार से आगे की चीज़ है।
जारी है एक जंग जो ग़म और ख़ुशी के बीच,
यह जंग जीत-हार से आगे की चीज़ है।
अक्सर उफ़ुक़ को देख के आता है ये ख़याल,
कुछ है जो इस हिसार से आगे की चीज़ है।
कैसे बताऊं किस पे टिकी है मेरी निगाह,
मंज़िल से, रहगुज़ार से आगे की चीज़ है।
हद्द-ए-निगाह से भी परे है कोई वजूद,
इक वह्म ऐतबार से आगे की चीज़…
Added by जयनित कुमार मेहता on September 15, 2022 at 10:30am — 7 Comments
हिन्दी दिवस पर कुछ दोहे :
हिन्दी अपने देश में, माँगे अपना मान ।
अंग्रेजी के ग्रहण से, धूमिल इसकी शान ।।
अंग्रेजी को देश में, इतना क्यों सम्मान ।
हिन्दी का अपमान तो, भारत का अपमान ।।
हिन्दी हिन्दुस्तान के, माथे का सरताज ।
हिन्दी तो है हिन्द के , जन-जन की आवाज ।।
हिन्दी से अच्छा नहीं, करना यूँ परहेज ।
अंग्रेजी के तेज को, हिन्द करे निस्तेज ।।
कण -कण में अब हिन्द के , हिन्दी गूँजे आज ।
नहीं चलेगा…
Added by Sushil Sarna on September 14, 2022 at 8:37pm — 6 Comments
ग़ज़ल
1222 1222 1222 122
रहे जिससे मरासिम थे वही अखबार निकला
मुसीबत है अभी जीवन निरा श्रृंगार निकला
शबे ग़म दिल मिरा टूटा रही वो आँख रोती
कई दिन हो गये सूरज न वो संसार निकला
अँधेरे अधखुली आँखों मुझे अब देखते हैं
बुरा हो इश्क़ तेरा यार वो अख़बार निकला
न कोई दोस्त है दुनिया न ही हमदम यहाँ है
जिसे गलहार समझा था अभी खूँख़्वार निकला
न हमजोली बचा है आज तो…
ContinueAdded by Chetan Prakash on September 12, 2022 at 8:30pm — No Comments
221 1221 1221 122
ख़्वाबों को ज़रा आँख के पानी से निकालो
इन बुलबुलों को अश्क-फ़िशानी से निकालो
ईमान की कश्ती पे मुहब्बत की मसर्रत
इस कश्ती को तूफ़ां की रवानी से निकालो
इस रास्ते पे वस्ल की उम्मीद नहीं है
तरकीब कोई राह पुरानी से निकालो
ग़ज़लों को रखो नफ़रती शोलों से बचाकर
अश'आर सभी लफ़्ज़ गिरानी से निकालो
इक रोज़ गुज़र जाऊँगा ज्यूँ वक़्त गुज़रता
भावों में रखो…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 12, 2022 at 2:30pm — 18 Comments
जब तक तुमने खोया कुछ ना, दर्द समझ ना पाओगे
चाहे कलम चला लो जितना, कुछ ढंग का लिख ना पाओगे
जो तुम्हारा हृदय ना जाने, कुछ खोने का दर्द है क्या
पाने का सुकून क्या है, और ना पाने का डर है क्या
कैसे पिरोओगे शब्दों में तुम, उन भावों को और आंहों को
जो तुमने ना महसूस किया हो, जीवन की असीम व्यथाओं को
जब तक अश्क को चखा ना तुमने, स्वाद भला क्या…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 12, 2022 at 2:09pm — No Comments
Added by Usha Awasthi on September 12, 2022 at 12:31pm — 2 Comments
2122 2122 2122 212
दिन ढले,रातें गईं,बढ़ती ही जाती पीर है
'याद कर जिंदा रहें कल',आपकी तकरीर है। 1
हो रहा सब कुछ हवा तो क्या हुआ तकदीर है
चूमने को पास मेरे आपकी तस्वीर है।2
ले गईं मोती बहाकर जब समद की शोखियाँ
बन रहे तब से घरौंदे और मन मतिधीर है।3
आंसुओं का मोल किसने है चुकाया इस जहां?
सोचता रख लूं संजो इनकी बड़ी तासीर है।4
फूल की ख्वाहिश लिए चलता रहा मैं रात -दिन
क्या हुआ अब सामने…
Added by Manan Kumar singh on September 8, 2022 at 7:08pm — 2 Comments
2122 - 1122 - 1122 - 112/(22)
दिल धड़कने की सदा ऐसी भी गुमसुम तो न थी
इतनी बे-परवा मेरी जान कभी तुम तो न थी
हम तड़पते ही रहे तुम को न अहसास हुआ
अपनी उल्फ़त की कशिश इतनी सनम कम तो न थी
सब ने देखा मेरी आँखों से बरसता सावन
थी वो बरसात बड़े ज़ोरो की रिम-झिम तो न थी
तुम जिसे ज़ीनत-ए-गुल समझे थे अरमान मेरे
गुल पे क़तरे थे मेरे अश्कों के शबनम तो न थी
क्यूँ न आहों ने मेरी आ के तेरे दिल को…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 6, 2022 at 11:02pm — 21 Comments
122 - 122 - 122 - 122
वो गर हमसे नज़रें मिलाने लगेंगे
रक़ीबों पे बिजली गिराने लगेंगे
ये लकड़ी है गीली उठेगा धुआँ ही
सुलगने में इसको ज़माने लगेंगे
करोगे जो बातें बिना पैर-सर की
कई इनमें फिर शाख़साने लगेंगे
उमीदों को जिसने न मरने दिया हो
हदफ़ पर उसी के निशाने लगेंगे
तेरी शाइरी से परेशाँ हैं जो-जो
तेरी नज़्में ख़ुद गुनगुनाने लगेंगे
ये जो बात तुमने कही है बजा…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 6, 2022 at 10:11pm — 4 Comments
कितना कठिन था बचपन में गिनती पूरी रट जाना
अंकों के पहाड़ो को अटके बिन पूरा कह पाना
जोड़, घटाव, गुणा भाग के भँवर में जैसे बह जाना
किसी गहरे सागर के चक्रवात में फँस कर रह जाना
बंद कोष्ठकों के अंदर खुदको जकड़ा सा पाना
चिन्हों और संकेतों के भूल-भुलैया में खो जाना
वेग, दूरी, समय, आकार, जाने कितने आयाम रहे
रावण के दस सिर के जैसे इसके दस विभाग रहे
मूलधन और ब्याज दर में ना जाने कैसा रिश्ता था
क्षेत्रमिति और…
ContinueAdded by AMAN SINHA on September 5, 2022 at 2:58pm — 2 Comments
२२१/२१२१/२२१/२१२
*
अपनी शरण में लीजिए आकार दीजिए
जीवन को एक दृढ़ नया आधार दीजिए।।
*
व्याख्या गुणों की कीजिए दुर्गुण निथार के
सारे जगत को मान्य हो वह सार दीजिए।।
*
पथ से परोपकार व सच के न दूर हों
नैतिक बलों की शक्ति का संचार दीजिए।।
*
अच्छा करें तो हौसला देना दुलार कर
करदें गलत तो वक़्त पे फटकार दीजिए।।
*
गुरुकुल बृहद सा गेह है मुझको लगा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2022 at 7:30am — 6 Comments
( 1 )
आ जाये दिल खुश हो जाये
चला जाय तो भादों आवे
चाकर बन पैरों गिर पसरा
क्या सखि साजन ? ना सखि भँवरा !
( 2 )
दादुर मोर पपीहा बोले
कोयल सी वो बोली बोले
समीर बहती है दिल-आँगन
क्या सखि साजन ? ना सखि सावन !
( 3 )
पोर- पोर में रस भर जावे
चहुँओर मुरलिया सी बाजे
खुशियों का नहीं जग में अंत
क्या सखि साजन ? ना सखि…
ContinueAdded by Chetan Prakash on September 4, 2022 at 3:36pm — No Comments
दोहा मुक्तक-मुफलिसी ..........
चौखट पर ईमान की, झूठे पहरेदार ।
भूख, प्यास, आहें भरे, रुदन करे शृंगार ।
नीर बहाए मुफलिसी, जग न समझा पीर -
फुटपाथों पर भूख का, सजा हुआ बाजार ।
* * * * *
मौसम की हैं झिड़कियाँ, तानों का उपहार ।
मुफलिस की हर भोर का , क्षुधा करे शृंगार ।
क्या आँसू क्या कहकहे, सब के सब है मौन -
दो रोटी के वास्ते, तन बिकता सौ बार ।
सुशील सरना / 4-9-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on September 4, 2022 at 2:51pm — 4 Comments
2122 1212 22
जितना बढ़ते गए गगन की ओर
उतना उन्मुख हुए पतन की ओर
साज-श्रृंगार व्यर्थ है तेरा
दृष्टि मेरी है तेरे मन की ओर
फल परिश्रम का तब मधुर होगा
देखना छोड़िए थकन की ओर
मन को वैराग्य चाहिए, लेकिन
तन खिंचा जाता है भुवन की ओर
"जय" भी एकांतवास-प्रेमी है
इसलिए आ गया सुख़न की ओर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by जयनित कुमार मेहता on September 4, 2022 at 1:25am — 7 Comments
हिंदी क्या है?
बस एक लिपि?
नहीं
बस एक भाषा?
नहीं
बस एक अनुभव है?
नहीं
हिंदी आत्मा है,
सम्मान है, स्वाभिमान है
भारत की पहचान है
हिंदी क्या है?
बस एक बोली?
नहीं
बस एक संवाद का माध्यम?
नहीं
बस एक भाव?
नहीं
हिंदी जान है, गुमान है,
आर्याव्रत का अभिमान है
हिंदी क्या है?
एक रास्ता है
जिसपर…
ContinueAdded by AMAN SINHA on August 31, 2022 at 10:24am — No Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
***
न मन के सहारे रहे साथ अपने
न सुख के पिटारे रहे साथ अपने।।
*
कभी साथ देने न मझधार आयी
कि सूखे किनारे रहे साथ अपने।।
*
बहारें भले मुह फुलाती हों अब भी
खिजां के नजारे रहे साथ अपने।।
*
खुशी ने जो पाले अछूतों में गिनते
दुखों के दुलारे रहे साथ अपने।।
*
नदी नीर मीठा लिए गुम गयी पर
समन्दर वो खारे रहे साथ अपने।।
*
भले आज फैली अमा हर तरफ हो
कभी चाँद तारे रहे साथ …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 29, 2022 at 9:30pm — 8 Comments
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