मैंने चुप की आवाज़ सुनी !
जबसे गूँगे से बात करी !!
वर्षों तक देखा है उनको !
तब जाके ये तस्वीर बनी!!
चोर-चोर मौसेरे भाई!
उनकी आपस में खूब छनी!!
कोई कैसे घायल ना हो!
वो थी ही मृग सावक नयनी !!
बीवी साड़ी माँग रही थी!
मेरी तो तनख़्वाह कटनी!!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 17, 2014 at 11:25am — 8 Comments
अपना फ़र्ज़ निभाने दे!
फिर से वही बहाने दे !!
तेरा भी हो जाऊँगा !
खुद का तो हो जाने दे !!
गैरों के घर खूब रहा!
अपने घर भी आनें दे !!
मूर्ख दोस्त से अच्छा है !
दुश्मन मगर सयाने दे!!
कागज़ की फिर नाव बनें !
बचपन वही पुराने दे !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 17, 2014 at 11:00am — 15 Comments
ख़्वाबों पे उसका पहरा है!
यादों का सागर गहरा है !!
चीखें वो फिर सुनाता कैसे!
मुझको तो लगता बहरा है !!
आईने में भी देखा कर !
क्या ये तेरा ही चेहरा है !!
बातें उसनें कर दी ऐसी !
दिल में सन्नाटा ठहरा है !!
कतरा -कतरा जीता हूँ मैं!
मेरे अन्दर भी सहरा है !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 12, 2014 at 1:00pm — 7 Comments
इक दिन अपना नाम बताकर !
हँसती है वो आँख चुराकर!!
पत्थर का है शहर जानलो!
घर से निकलना सर बचाकर !!
तेरी गर मासूका ना हो !
खुद को ही खत रोज़ लिखाकर!!
मुझको खुद से दूर कर दिया!
इतना अपने पास बुलाकर !!
इक दिन वो सुन लेगा तेरी !
बस तू जाके रोज़ कहाकर!!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 12, 2014 at 12:30am — 4 Comments
इक ऐसा भी घर बनवाना!
जिसमे रह ले एक ज़माना !!
खुद से खुद की बातें करना !
जब खुद के ही हिस्से आना !!
वो मरा है तू भी मरेगा !
लगा रहेगा आना जाना !!
कुछ ऐसा भी कर ले पगले !
जो बन जाए एक फ़साना !!
खुद से ही भागेगा कब तक !!
खुद से चलता नहीं बहाना !!
भूल गया हो गर वो मुझको !
उसको मेरी याद दिलाना !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 11, 2014 at 11:21am — 8 Comments
मैं अपने ही साथ रहूँगा!
खुद में तुझसे बात करूँगा!!
अब चाहे जिससे मिलना हो!
दर्पण अपने साथ रखूँगा!!
मेरे कद को ढाँक सके जो !
ऐसी चादर साथ रखूँगा!!
उनको हँसकर मिलने तो दो!
मैं भी दिल की बात करूँगा!!
बातें बहुत ज़बानी कर लीं!
मैं भी खत इक बार लिखूँगा!!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 11, 2014 at 11:00am — 12 Comments
१-ये कैसा दर्पण
जिसमे सबकुछ
मुझसा ही दिखता है
२-मेरी मर्ज़ी
उनके लम्हे भर का क़र्ज़
जीवन भर लौटाऊँ
३-वो सबकी नज़रों में था
लेकिन खुद को ही नहीं देख पाया
४- पहले मुझे ज़िंदा करो
फिर मरने की बात करना
५-उन्हें हँसी तो आयी
बहाना
मेरा रोना ही सही
६-देखते है
ज़िंदा रहने की धुन में
खुद को कितनी बार मारता है वो
७-मैं
मैख़ाने का रास्ता भूल जाऊँ
इसलिए आज
वो आँखों से पिला रही…
Added by ram shiromani pathak on August 8, 2014 at 3:16pm — 4 Comments
वीर हैं सपूत सारे, भारती के नैन-तारे!
युद्धभूमि में सदैव झंडा गाड़ देते हैं!!
प्रचंड तेज भाल पे,चाहे हो द्व्ंद्व काल से!
भारती के शत्रुओं का,सीना फाड़ देतेहै!!
विश्व धाक मानता है,वीरता को देख देख !
बड़े बड़ों को भी सदा,ये पछाड़ देते है!!
वज़्र के समान देह,नैनों में प्रचंड आग!!
काँप जाता शत्रु जब ,ये दहाड़ देते है!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 8, 2014 at 1:30pm — 13 Comments
खिली रातरानी यहाँ,हुई रुपहली रात!
कानों में आ फिर कहो,वही प्यार की बात !!
अधरों से बातें करें,नयनों से आदेश!
घायल कर जाती सदा,झटके जब वे केश !!
कर में कर लेकर किया,हमने यूँ अनुबंध!
खिला रहे फूले फले,प्यारा मृदु सम्बन्ध !!
वही रुपहली रात है,सुन्दर सुखद प्रभात!
लेकिन तुम बिन हो प्रिये,किससे मन की बात !!
दीवाना कुछ यूँ हुआ,न दिवस दिखे न रात !
खुद से ही करने लगा,बहकी बहकी…
Added by ram shiromani pathak on July 12, 2014 at 6:00pm — 7 Comments
रक्त पिपासु कीड़ा है नाम!
दर्द देना उनका है काम!!
कहें दर्द को कम करता जी!
वाह हमारे नेता जी!!
स्वेत वस्त्र पर दिल है काला!
गरीबोँ का खाते निवाला!!
फ़िर भी वो भूखा रहता ज़ी!
वाह हमारे नेता जी!!
जनता के पैसे खा जाते !
फ़िर भी सब को आँख दिखाते !!
मै तो सज्जन हूँ कहता जी!
वाह हमारे नेता जी!!
बोलबचन बस झूठे वादे!
गंदे इनके सदा इरादे!!
बिन बुलाया भूत दीखता जी!
वाह हमारे नेता…
Added by ram shiromani pathak on June 26, 2014 at 2:30pm — 10 Comments
22122
लाचार हो क्या?
सरकार हो क्या?
छुट्टी पे छुट्टी,
इतवार हो क्या?
छूते ही ज़ख़्मी,
औजार हो क्या?
बेचा है खुद को,
बाज़ार हो क्या?
तारीफ कर दूँ,
अशआर हो क्या?
खुद से ही बातें,
बीमार हो क्या?
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on May 8, 2014 at 5:30pm — 33 Comments
यह जीवन का चक्र है,पतझड़ फिर मधुमास!
बस कुछ दिन की बात है,हो क्यों मित्र उदास!!
नेता नित नित गढ़ रहे ,नये नये भ्रमजाल !
जनता भूखों मर रही,इनकी मोटी खाल !!
स्वाभिमान को बेचकर,क्रय कर लाये लोभ!
जानबूझकर ढो रहे,केवल कुंठित क्षोभ!!
झूठा ही इक बार तो,कर दो यूँ इकरार!
जीवित हो जाऊँ पुनः,कह दो मुझसे प्यार!!
माना तुमको है नहीं,अब तो मुझसे प्यार!
किया करो हँसकर कभी,बातें ही दो चार!!…
Added by ram shiromani pathak on April 17, 2014 at 11:00pm — 16 Comments
अपना फ़र्ज़ निभाने दे!
फिर से वही बहाने दे !!
तेरा भी हो जाऊँगा !
खुद का तो हो जाने दे !!
गैरों के घर खूब रहा!
अपने घर भी आनें दे !!
मूर्ख दोस्त से अच्छा है !
दुश्मन मगर सयाने दे!!
कागज़ की फिर नाव बनें !
बचपन वही पुराने दे !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on April 14, 2014 at 11:30pm — No Comments
नयनों की इस झील का, कितना निर्मल नीर।
बूँद बूँद कहती रही, देखो तल की पीर॥
वो आती हैं जब यहाँ, होता है आभास!
तपते पग को ज्यों मिले,पथ पर कोमल घास!!
मन शुक फिर बनने लगा,चखने चला रसाल !!
कितना मोहक रूप है,कितने सुन्दर गाल!!
केश कहूँ या तरु सघन,होता है यह भ्राम!!
इन केशों की छाँव में,कर लूँ मैं विश्राम!!
प्रेममयी इस झील का,अविरल मंद प्रवाह!
इसकी परिधि अमाप है,और नहीं है थाह!!
रंगों की वर्षा…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on March 20, 2014 at 8:00pm — 11 Comments
1-विवशता
मुश्किल वक्त मैं उसकी मदद नहीं कर पाया
पता है क्यों?
वह डरे व् फसे जानवर की तरह खूँखार हो गया था//
२-लौट आया
मैं वहाँ से लौट तो आया
लेकिन खुद को अधूरा छोड़कर//
३-विवादित विचार
उनका सम्बन्ध इसलिए टूटा
क्यूंकि वे
विवादित विचारों तक ही सिमटे रहे//
४-अकेलापन
बाज़ार के अकेलेपन से इतना ऊब गया हूँ…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on February 21, 2014 at 1:00pm — 13 Comments
रह जाएगा धन यहीं,जान अरे नादान!
इसकी चंचल चाल पर,मत करिये अभिमान!!
सत्कर्मों से तात तुम,कर लो ह्रदय पवित्र!
उजला उजला ही दिखे,सारा धुँधला चित्र!!
सागर में मोती सदृश,अंधियारे में दीप!
पाना है यदि राम को,जाओ तनिक समीप!!
मन गंगा निर्मल रखें,सत्कर्मों का कोष!
ऐसे नर के हिय सदा,परम शांति संतोष!!
जाग समय से हे मनुज,सींच समय से खेत!
समय फिसलता है सदा,ज्यों हाथों से रेत!!
मन करता फिर से चलूँ,उसी…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on February 10, 2014 at 10:30pm — 19 Comments
उनके आते ही यहाँ,खिले ह्रदय में फूल!
कोयल भी गानें लगी,पवन हुआ अनुकूल!!
मंद मंद चलने लगी,देखो प्रेम बयार!
कानों में आ कह रही,कर लो थोड़ा प्यार!!
अधरों के पट खोलकर,की है ऐसी बात !!
शब्द शब्द में बासुँरी,फिर मधुमय बरसात!!
कह न सका जब मैं उन्हें,तुम हो मन के मीत!
शायद तब से कवि बना,लिख लिख गाता गीत!!
फिर से मै घायल हुआ,पता नहीं वह कौन!
मुझे व्यथित करके सदा,हो जाती है मौन!!
बजा बाँसुरी प्रेम की,डालो…
Added by ram shiromani pathak on February 9, 2014 at 5:30pm — 24 Comments
१-मूक भाषा
उनसे बात करने के लिए
शब्दों कि आवश्यकता नहीं
पता है क्यूँ ?मेरा
सन्देश वाहक "मौन" है//
२-कोशिश
आज फिर से वो पकड़ा गया
कुछ नया करने कि चोर कोशिश में //
३-चैन कि नींद
शायद इस दुनियां से ऊब गया था
तभी तो
बड़ा सा पत्थर ओढ़कर सो गया है //
४-ऐसा भी
बड़े अज़ीब लोग है
पीट रहे हैं उसे
और उसी से ज़ुर्म भी पूछ रहे है //
५-नाकाम…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on January 14, 2014 at 9:00pm — 16 Comments
धैर्य रखो मत हो विकल,सुन लो मेरी बात!
अल्प दिवस हैं कष्ट के ,होगी स्वर्ण प्रभात!!
लोभ कपट को त्यागकर,मीठी वाणी बोल!!
यह जीवन का सार है,सहज वृत्ति अनमोल!!
अपनापन गोठिल जहाँ,वहाँ परस्पर द्वंद !
पापा कहते थे वहाँ ,बढ़ते दुःख के फंद!!
भ्रष्ट आचरण त्यागकर,करना मधुरिम बात !
होगी वर्षा नेह की,प्यार भरी सौगात !!
पापा कहते थे सदा,सुन लो मेरे लाल!
जीवन में होना सफल ,बहके कदम सँभाल!!
सत्कर्मों से ही…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on December 15, 2013 at 11:00pm — 15 Comments
1-मरणोपरांत
भूख से मरा था
शायद! इसीलिए
मरणोपरांत अखबार में
फ़ोटो छपी है
२-लाभ
आपके हीरे कि अँगूठी से अच्छा तो मेरा
मिट्टी का दीपक है
कम से कम
रात में प्रकाश तो फैलाता है
३-सौदा
आज उसके बच्चे भूखे नहीं सोये
वो कह रहा था
कुछ फर्क नहीं पड़ता
थोड़ा रक्त बेचने पर
४-तृप्ति
भूख शांत हो गयी
जली रोटी थी तो क्या? हुआ…
Added by ram shiromani pathak on December 12, 2013 at 12:21am — 27 Comments
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