(नई कविता) अतुकान्त
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तपतॆ हुयॆ,
रॆत कॆ भूगॊल मॆं,
पढ़ रही हूं
तुम्हारी यादॊं का,
इतिहास,
और,,
गढ़ रही हूँ,
उम्मीदॊं कॆ,
विज्ञान की,
नई प्रयॊगशाला,
समाज-शास्त्र कॆ,
दु:सह नियम,
जकड़ॆ हुयॆ हैं,
मर्यादाऒं की बॆड़ियाँ,
फिर भी,,,,
विश्वास का गणित,
कह रहा है,
एक दिन,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on June 3, 2013 at 9:30am — 9 Comments
वीर छन्द,,,(आल्हा छन्द)
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सदा न यॊद्धा रण मॆं जीतॆ, रहॆं न सदा हाँथ हथियार ।
जीना मरना वहीं पड़ॆगा,जिसका जहां लिखा करतार ॥
कई साल तक रहा ज़ॆल मॆं, बाँका सरबजीत सरदार ।
उसॆ छुड़ा ना पायॆ अब तक,सॊतॆ रह गयॆ पाँव पसार ॥
हाय हमारॆ मौनी बाबा, करतॆ रहॆ नॆह- सत्कार ।
लूटा खाया इस भारत कॊ,गूँगी …
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on May 5, 2013 at 5:00am — 28 Comments
एक प्रयास,,आप सबकॆ चरणॊं मॆं सादर समर्पित है,,,
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(१) मदिरा सवैया =
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मारति गॆंद गिरी यमुना जल, बीचहिँ धार बहात चली !!
भाषत राज गुनीजन जानहु, मानहुँ कुम्भ नहात चली !!
त्रॆतहिँ कॆवट की तरिनी जसि, राम चढ़ॆ उतिरात चली !!
आनहुँ गॆंद अबै मन-मॊहन, ग्वालन ग्वालन बात चली !!
(२) मदिरा सवैया =
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भूल हमारि भई मनमॊहन, खॆल खॆलाइ लियॊ तुम का !!
दाँव हमारि रहै तबहूँ हम, दाँव दिलाय दियॊ…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 18, 2013 at 2:30pm — 18 Comments
दॊ सवैया (मत्तगयंद) हॊली संदर्भ मॆं
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1)
रंग बिरंग गुलाल लियॆ सखि, ताकत झाँकत गैल हमारी !!
संग दबंग लफंग लियॆ कछु, आइ गयॊ अलि छैल-बिहारी !!
मॊहन माधव मारि दई तकि, जॊबन बीच भरी पिचकारी !!
भूल गई सुधि लाजनि तॆ सखि,भीगि गई रँग कॆशर सारी !!
2)
अंग अनंग उमंग उठी सखि, भंग मतंग करैं किलकारी !!
हूक उठी…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 30, 2013 at 8:30am — 11 Comments
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झाँसी की रानी रहॊगी प्राण लॆकर ही मेरॆ,
मौनी बाँध बैठी हॊ बॊल न उचारती हॊ ॥
बनाय खाय सिगड़ी बुझाय बिस्तर लगा,
औंधी पड़ी खाट पर तुम डकारती हॊ ॥
सात फॆरॆ जॊ लॆ लियॆ तुम्हॆं धॊबी मिल गया,
कपड़ॆ दिन मॆं सात जॊड़ी उतारती हॊ ॥
बताती रहती हॊ धौंस माई बाप की मुझॆ,
चमचॆ सॆ बॆलन सॆ झाड़ू सॆ मारती हॊ ॥
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सखी तरकीब तूनॆ नहीं है बताई मुझॆ,
प्रॆम-सौंदर्य कॊ कैसॆ तुम निखारती हॊ ॥
आतॆ हैं पिया पीकर…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 14, 2013 at 3:00am — 3 Comments
शिव पार्वती विवाह (खण्ड-काव्य) सॆ कुछ छन्द
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मत्तगयंद सवैया :-
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शारद, शॆष, सुरॆश दिनॆशहुँ, ईश कपीश गनॆश मनाऊँ ॥
पूजउँ राम सिया पद-पंकज, शीश गिरीश खगॆशहिं नाऊँ ॥
बंदउँ चारहु बॆद भगीरथ, गंग तरंगहिं जाइ नहाऊँ ॥
मातु-पिता-गुरु आशिष…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on March 9, 2013 at 9:30pm — 31 Comments
दुखीराम नॆ जब जब दीनानाथ के द्वार पर ख़ुशामद की,,,,नतीज़ा हर बार उनकी पत्नी की कोंख से कन्या रत्न की ही प्राप्ति हुई,,इस तरह शासकीय जन-गणना मॆं चार अंकॊं की बढ़ोत्तरी हो गईं,,,लेकिन दुखीराम की ख़ुशामद परॆड अब तो पहले से भी ज्यादा बढ़ गई,,,ख़ुशामद करनॆ के स्थान भी अनगिनत हो गये, भगवान तो भगवान अब दुखीराम पंडित, मौलवी, और तुलसी, नीम, पीपल, बरगद,सभी की ख़ुशामद करनॆ लगॆ,,,और आखिरकार इस बार दुखीराम की ख़ुशामद नें अपना रंग दिखाया,,और दुखीराम कॆ घर मॆं कुल का चिराग़ जगमगाया,, दुखीराम कॆ सारे दुख:…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on March 4, 2013 at 3:30am — 14 Comments
कुछ चट-पटॆ सॆर ...मॆरॆ मौला
मॆरी बद्दुआ मॆं तासीर, हॊ जायॆ मॆरॆ मौला,
इस कुर्सी कॊ बबासीर, हॊ जायॆ मॆरॆ मौला !!१!!
ना चल सकॆ न बैठ पायॆ,सलीकॆ सॆ कभी,…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on February 27, 2013 at 9:00pm — 18 Comments
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कुछ चट-पटॆ शेर = मगर बड़ॆ दिलॆर ,,,,,
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एक मुशायरा कराया था,बाज़ कॆ बाप नॆ !!
नॆवलॆ की गज़ल पॆ,खूब दाद दी साँप नॆ !!१!!
शॆर की सदारत, निज़ामत थी बाघ की,
बकरॆ कॆ हाँथ पाँव लगॆ, खुद ही कांपनॆं !!२!!
मॆं-मॆं करता रहा वॊ,माइक पॆ बस खड़ा,
हिरण की नज़र लगी, हालत कॊ भाँपनॆ !!३!!
खरगॊश कॊ निमॊनिया, हॊ गया ठंड सॆ,
काला कुत्ता लगा उसॆ,कम्बल मॆं ढ़ाँपनॆ !!४!!
सियार कॊ सियासती,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 21, 2013 at 10:30pm — 13 Comments
एक गज़लनुमाँ,,,,,,,,,,,,(मसाला)
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कभी पास आनॆ का और, कभी दूर जानॆ का ॥
सलीका अच्छा नहीं मॊहब्बत मॆं तड़फ़ानॆ का ॥१॥
काबिल न थॆ हम तॊ, इनकार कर दॆतॆ हुज़ूर,
फ़ायदा क्या हुआ इतना, अफ़साना बनानॆ का ॥२॥
जिसकॊ चाहा है वॊ, किसी और का हॊ गया,
बता ऎ ज़िन्दगी क्या करूँ, मैं इस ख़ज़ानॆ का ॥३॥
वफ़ा करॆ या जफ़ा उसकी,तबियत की बात है,
मॆरा तॊ वादा है उससॆ, फ़क्त वादा निभानॆ का ॥४॥
मँहगाई मॆं मॊहब्बत निभायॆ, क्या खाकॆ…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 21, 2013 at 4:00am — 20 Comments
एक गज़लनुमाँ ***तहज़ीब उधार लॆं
चलॊ किसी सॆ तॊ तहज़ीब उधार लॆं ,
गल्ती अपनी-अपनी हम स्वीकार लॆं !!१!!
दूसरॊं कॆ मकान मॆं झाँकनॆ सॆ…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on February 19, 2013 at 1:30pm — 5 Comments
भारत माँ की जय बॊलॊ
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प्रॆम प्रणय कॆ अनुबंधॊं सॆ, मॆरा कॊई संबंध नहीं हैं !!
बिंदिया पायल कंगन कजरा, मॆरॆ तट बन्ध नहीं हैं !!
ना कॊई खॆल खिलौनॆ, ना गुब्बारॆ भर कर लाया हूँ !!
आज तुम्हारॆ चरणॊं मॆं, बस अंगारॆ लॆ कर आया हूँ !!
मिट्टी की अजब मिठास कहॆगी, भारत माँ की जय बॊलॊ !!
मॆरॆ जीवन की हर सांस कहॆगी, भारत माँ की जय बॊलॊ !!१!!
मॆरी कविता की बस कॆवल, इतनी ही परिभाषा है !!
श्रृँगार-सुरा कॆ बॊल नही यह,दिनकर वाली भाषा है !!…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on February 4, 2013 at 9:17pm — 10 Comments
मत्तगयंद सवैया :-
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आदि अनादि अखंड अगॊचर, मॊह न क्षॊभ न काम न माया !!
तॆज त्रि-खंड प्रचंड अलौकिक,ब्याधि अगाधि दुखादि मिटाया !!
संत-अनंत न जानि सकॆ कछु,वारिहि बीच ब्रम्हांण्ड-निकाया !!
भाँषत वॆद पुराण सुधी जनि, पार न काहु रती भर पाया !!
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( मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 18, 2013 at 11:00am — 3 Comments
दुर्मिल सवैया
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कवि-कॊबिद हार गयॆ सबहीं, नहिं भाँष सकॆ महिमा हर की ॥
प्रभु आशिष दॆहु बहै कविता, सरिता सम कंठ चराचर की ॥
नित नैन खुलॆ दिन-रैन मिलॆ,समुहैं छवि शैल-सुता वर की ॥
कवि राज गुहार करॆं तु्म सॆ, त्रिपुरारि सुनॊ विनती नर की ॥
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दुर्मिल सवैया
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हरि नाम रटा कर री रसना,हरि नाम बिना जग ऊसर है !!
सब ज्ञान - बखान परॆ धर दॆ,बिन नॆह हरी मन मूसर है !!
जिय चाह रहा…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 16, 2013 at 11:03pm — 11 Comments
माँ तुमसॆ बलिदान माँगती है :--
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भारत कॆ सैनिकॊं की हत्या पर, इंद्रासन हिला नहीं,
प्रलयं-कारी शंकर का क्यॊं, नयन तीसरा खुला नहीं,
शॆष अवतार लक्ष्मण जागॊ, मत करॊ प्रतीक्षा इतनी,
मर्यादाऒं मॆं बंदी भारत माँ,दॆ अग्नि-परीक्षा कितनी,
हॆ निर्णायक महा-पर्व कॆ, तुम फिर सॆ जयघॊष करॊ,
युद्ध-सारथी बन भारत कॆ, जन-जन मॆं जल्लॊष भरॊ,
भारत माँ की बासंती चूनर,तुमसॆ नया बिहान माँगती है !!
महाँकुम्भ मॆं महाँ-युद्ध कर, यॆ रक्तिम स्नान माँगती…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 12, 2013 at 10:30pm — 12 Comments
कलम की नॊंक सॆ
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फ़ांसी कॆ फन्दॊं कॊ हम,गर्दन का दान दिया करतॆ हैं,
गॊरी जैसॆ शैतानॊं कॊ भी,जीवन-दान दिया करतॆ हैं,
क्षमाशीलता का जब कॊई, अपमान किया करता है,
अंधा राजपूत भी तब, प्रत्यंचा तान लिया करता है,
भारत की पावन धरती नॆं, ऎसॆ कितनॆं बॆटॆ जायॆ हैं,
मातृ-भूमि कॆ चरणॊं मॆं, जिननॆ निजशीश चढ़ायॆ हैं,
दॆश की ख़ातिर ज़िन्दगी हवन मॆं, झॊंकतॆ रहॆ हैं झॊंकतॆ रहॆंगॆ !!
कलम की नॊंक सॆ आँधियॊं कॊ हम,रॊकतॆ रहॆ हैं रॊकतॆ रहॆंगॆ…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 10, 2013 at 8:30pm — 16 Comments
वाह रॆ !
कानून
कानून बनानॆ वालॊ
और
कानून के रखवालॊ
अपनी आपनी पगड़ी सँभालॊ,
राज्य सभा मॆं
पचास प्रतिशत का आरक्षण
और
चौराहॆ पर आबरू का भक्षण,
कहनॆ कॊ अधिकार दियॆ हैं सम,
मॆरॆ जन्म पर छा जाता है मातम,
और ज्यॊं- ज्यॊं मॆरी उम्र बढ़नॆ लगती है
परिवार पर नई आफ़त चढ़नॆ लगती है,
घर की चौखट दायरा समेटनॆ लगती है,
जब बॆटी अपना दुपट्टा लपॆटनॆ लगती है,
मॆरी किस्मत चूल्हा चौंका बर्तन रॊटी,
ऊपर सॆ घर भर की सब…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 24, 2012 at 5:30pm — 16 Comments
उसका पैग़ाम बॊलॆगा,,,,,,,
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न जानॆं अदालत मॆं कल, किसका नाम बॊलॆगा ॥
यकीनन जब भी बॊलॆगा, वह बॆ-लगाम बॊलॆगा ॥१॥
मौत कॆ खौफ़ सॆ ज़रा भी, डरता नहीं है कभी,
मौन तॊड़ॆगा जिस दिन,फ़िर खुलॆ-आम बॊलॆगा ॥२॥
ठॊकरॆं मारनॆ वालॊ वॊ,हरॆक की ख़बर रखता है,
वॊ कुछ नहीं बॊलॆगा कल, उसका काम बॊलॆगा ॥३॥
लफ़्ज़ॊं मॆं उसकॆ समाया है,समन्दर तॆज़ाब का,
कल हर एक कॆ लबॊं सॆ, उसका पैग़ाम बॊलॆगा ॥४॥
आँधियॊं का अँदॆशा है,सभी चिरागॊं कॊ जला…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 19, 2012 at 3:00am — 4 Comments
यकीन करॊ,,,,,,,,
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यहाँ भी सब गॊल-माल है,यकीन करॊ !!
सब अपनी-अपनी चाल है,यकीन करॊ !!१!!
उनकॆ स्विस बैंकॊं मॆं, सड़ रहॆ हैं नॊट,
हमारी किस्मत कंगाल है, यकीन करॊ !!२!!
गाँधी कॆ पुजारी ही, जातॆ हैं संसद मॆं,
संसद नहीं वॊ टकसाल है, यकीन करॊ !!३!!
यॆ बजातॆ हैं बैठ कॆ,चैन की बंशी वहां,
यहाँ जनता का बुरा हाल है,यकीन करॊ !!४!!
तरक्की दॆश की, सुहाती नहीं है इनकॊ,
आँख मॆं सुअर का बाल है,यकीन करॊ !!५!!…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 18, 2012 at 2:00pm — 2 Comments
ट्राई करॊ,,,,,,,,,,,,
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शायद मिल ही जायॆ, लाइन ट्राई करॊ ॥
कभी कर दॆगी दिलपॆ, साइन ट्राई करॊ ॥१॥
मॊबाइल नंबर शायद, पहचानती हॊ वॊ,
पी.सी.ऒ. सॆ डालकॆ, क्वाइन ट्राई करॊ ॥२॥
हॆलॊ हाय बॊलॆ ग़र, बनॆगी बात वरना,
बर्थ-डॆ पार्टी मॆं हॊकॆ, ज्वाइन ट्राई करॊ ॥३॥
मॆहनत का फल भी, मिलॆगा यकीनन,
फ़्रॆन्डसिप,रॊज़ डॆ, वॆलॆन्टाइन ट्राई करॊ ॥४॥
ग़र प्यार मॆं हॊ गई, बद-हज़मी तुम्हॆं,
काला नमक और, अजवाइन ट्राई करॊ ॥५॥
प्यार कॆ चक्कर…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on December 18, 2012 at 3:30am — 4 Comments
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