For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

SANDEEP KUMAR PATEL's Blog (238)

शार्दूलविक्रीडित छंद

शार्दूलविक्रीडित छंद

इस छन्द में चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में १९ वर्ण होते हैं। १२ वर्णों के बाद तथा चरणान्त में यति होती है। गणों का क्रम इस प्रकार है - गुरु-गुरु-गुरु (मगण ), लघु-लघु-गुरु (सगण ), लघु-गुरु-लघु (जगण), लघु-लघु-गुरु (सगण ) गुरु-गुरु-लघु (तगण ), गुरु-गुरु-लघु (तगण ), गुरु |

 

माँ विद्या वर दायिनी भगवती, तू बुद्धि का दान दे |

माँ अज्ञान मिटा हरो तिमिर को, दो ज्ञान हे शारदे ||

हे माँ पुस्तक धारिणी जगत में, विज्ञान विस्तार दे…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 29, 2013 at 7:26pm — 10 Comments

सब्ज़ दिल

प्रेम के विशाल बटवृक्ष 

जिसमें भावनाओं की गहरी 

जड़ें और यकीन की 

मजबूत साखें

उसमें झूमता है 

इठलाता है 

सब्ज़ दिल 



रिवाजों और रस्मों की 

तेज आँधियाँ भी 

बेअसर होती हैं इस 

विशाल वृक्ष के आगे

जब यकीन के मजबूत तने में 

तना होता है…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 29, 2013 at 12:00pm — 9 Comments

ग़ज़ल "बह रही गंगा अजल से पापियों के वास्ते"

हो गये सब सर कलम कुछ रोटियों के वास्ते 

जैसे उगते हों शज़र बस आरियों के वास्ते 



दौरे वहशत पूछिए मत, बढ़ रही कैसी हवस 

है परेशां बाप अपनी बच्चियों के वास्ते 



कुछ निवाले छीन लेते हैं गरीबों से भले 

रोज़ दाना लाएं साहब मछलियों के वास्ते 

देश के रक्षक उगाते बेच कर ईमान अब 

नोट की फसलें सियासी इल्लियों के वास्ते 



दौर है रफ़्तार का, फुर्सत नहीं खुद के लिए 

व्यस्त हैं सब कागज़ी कुछ चिन्दियों के…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 19, 2013 at 11:18am — 33 Comments

ग़ज़ल "आदमीयत हो गयी है बेअसर हम क्या कहें"

पश्चिमी तूफां से हैं सब दर-ब-दर हम क्या कहें 

आदमीयत हो गयी है बेअसर हम क्या कहें

 

दौर धोखों और फरेबों का चला है इस कदर 

रहजनी अब कर रहे हैं राहबर हम क्या कहें

 

सच बयानी आजकल घाटे का सौदा हो गया 

झूठ कहना हो गया है अब हुनर हम क्या कहें

 

जिंदगी सब जी रहे हैं जिंदगी की खोज में 

है यहाँ पर कौन किसका हमसफ़र हम क्या कहें



लूटते शैतान इज़्ज़त चीखती हैं बच्चियां  

पत्थरों का शहर है, पत्थर बशर हम क्या…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 15, 2013 at 4:12pm — 6 Comments

ग़ज़ल "दरमियाने इश्क जब दुश्वारियां आने लगीं"

 

दरमियाने इश्क जब दुश्वारियां आने लगीं

एक दूजे में नज़र सौ खामियाँ आने लगीं



मैं ये सोचे हूँ कि कोई याद मुझको भी करे  

तुम परेशां हो कि फिर से हिचकियाँ आने लगीं

 

माँ का दामन है या है मेरा बिछौना मखमली

गोद में जाते ही मीठी झपकियाँ आने लगी

 

हम अकेले रो रहे थे अपने दिल के जख्म पर

और हमारा साथ देने सिसकियाँ आने लगीं

 

इश्क के झोंके फरेबी खुश्बुओं से क्या मिले

“दीप” फिर नफ़रत भरी कुछ आँधियाँ आने…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 14, 2013 at 7:00pm — 5 Comments

ग़ज़ल "जो पता हो गये निशाने सब "

=====ग़ज़ल======

जो पता हो गये निशाने सब

तीर आने लगे चलाने सब

आँख खोली सुबह हक़ीकत ने

ख्वाब टूटे मेरे सुहाने सब

उनकी मासूम अदा देखें जो

थाम लेते हैं दिल दीवाने सब

कितनी तारीफ मैं करूँ उनकी

कम ही लगते हैं ग़ज़लो गाने सब

उनके दीदार जब हुए जाना

क्यूँ भटकते हैं उनको पाने सब

दौरे रुखसत में दोस्त आए हैं

बस जनाज़ा मेरा उठाने सब

झूठ आया है सामने अब तो

जान पाए…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 14, 2013 at 12:07pm — 9 Comments

सभी के दिल मे बसना चाहता है

लो पत्थर इश्क़ करना चाहता है
मेरी मानिंद जलना चाहता है

लगा के हौसलों के पर युवा अब
बड़ी परवाज़ भरना चाहता है

फलक में जा भुला बैठा जो सबको
ज़मीं पर क्यूँ उतरना चाहता है

सहारे की ज़रूरत है उसे क्या
जो गिर के अब सँभलना चाहता है

बना हमदाद दुनिया में वही जो
सभी के दिल मे बसना चाहता है

संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 2:57pm — 7 Comments

कहने से डरते हैं आशिक चाह छुपाए होते हैं

कहने से डरते हैं आशिक चाह छुपाए होते हैं

दिल के इक कोने मे अक्सर आह छुपाए होते हैं

दिखते हैं आज़ाद परिंदे पर लौटें दिन ढलते ही

घर औ बच्चों की वो भी परवाह छुपाए होते हैं

हमको है मालूम जमाना छेड़ेगा इन ज़ख़्मों को

प्यारी सी मुस्कान में उनकी थाह छुपाए होते हैं

मजबूरी में जो तुमसे डंडे खाते हैं मूक बने

भूल नहीं वो तूफ़ानी उत्साह छुपाए होते हैं

दर दर भटके खूब युवा थक हार गये चलते चलते

भ्रष्टाचारी मंज़िल की हर राह…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 17, 2013 at 2:59pm — 8 Comments

दो घनाक्षरियां / संदीप कुमार पटेल

(1)

सुनो मृगनयनी है चाँद जैसा मुख इसे,

ओढनी ओढ़ा के आज, थोडा शरमाइए

घूरते क्यूँ हमें ऐसे, मैं हूँ जानवर जैसे

लोग सब देख रहे, नज़रें हटाइए

ऐसे ही खड़ी हो काहे, गघरी झुलात कहो

प्रेम है यदि तो फिर, उसे न छुपाइए

और यदि है नहीं तो, काम एक कीजिए जी

मुझे घूरने से अच्छा, नीर भर लाइए । 

(2)

मिले कल नेता जी तो , पूछ लिया हमने ये

कद्दू जैसी तोंद का ये, राज तो बताइए

दुबले थे आप कुर्सी मिलने से पहले तो

हुआ ये कमाल कैसे,…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 16, 2013 at 12:30pm — 14 Comments

मोरे अँगना मे फूल खिलो आज

मोरे अँगना मे फूल खिलो आज 

री गोरी मोरे ...............आज

मुख लागे है चंद चकोरा

कोमल कोमल तन है गोरा

लोचन लागे हैं अभिरामा

सोचूँ का दैइ हों मैं नामा

नाचे मनवा हमारो छेड़ साज़

मोरे अँगना मे फूल खिलो आज

खिल खिल हँसता देखे हमको

चितवन खूब लुभावे सबको

देखत कौन अघाय छवि को

दिन में धूल चटाय रवि को

करे बगिया खुदी पे आज नाज़

मोरे अँगना मे फूल खिलो आज

सोचूँ जियरा भींच भींच…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 15, 2013 at 1:32pm — 12 Comments

हमने हर मौसम को आते जाते देखा है

हमने हर मौसम को आते जाते देखा है

हमको लेकिन सबने बस मुस्काते देखा है



झूठी बातें झूठे किस्से बतलाते हैं लोग

पत्थर को कब दर्पण से शरमाते देखा है



पर्दा रखना ठीक लगा हमको दुनिया में अब

फूलों पर जब भँवरों को मंडराते देखा है



कछुआ और खरगोश पुरानी बातें हैं यारो

अब गदहों को हमने मंजिल पाते देखा है



मंदिर मंदिर मिन्नत करके जिसको पाया था

उसको ही कल हमने आँख दिखाते देखा है



गाली देते फिरता था जो गुंडा राहों में

उसको ही अब… Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 14, 2013 at 12:37pm — 25 Comments

तुमको पाया मानो मैंने नया जन्म पाया

शादी की प्रथम सालगिरह की पूर्व संध्या में अपनी जीवन संगिनी को समर्पित एक रचना



शाम सुहानी रात दीवानी दिवस एक लाया

तुमको पाया मानो मैंने नया जन्म पाया



मन में अंतर्द्वंद बहुत था कैसा होगा वो

सपने देखे जैसे मैंने वैसा होगा वो

या नाज़ुक सुंदर फूलों के जैसा होगा वो

छुईमुई सा शरमाएगा क्या ऐसा होगा वो



तभी सामने इक सुंदर सा चाँद निकल आया

तुमको पाया मानो मैंने नया जन्म पाया



हाथ में सुन्दर वरमाला औ तुम थी सकुचाई

धीरे धीरे पग रख रख… Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 6:50pm — 29 Comments

"ग़ज़ल" तू क्या तेरी हस्ती है क्या ये ध्यान में ला

ग़ज़ल कहने का प्रयास किया है

तू क्या तेरी हस्ती है क्या ये ध्यान में ला

अब उठ खड़ा हो खुद को फिर मैदान मे ला

मज़हब की बातें औ नहीं ईमान की कर

पहले ज़रा इंसानियत इंसान में ला

जब तक जिया उसको बुरा सबने कहा है

क्यूँ रोते हो अब तुम उसे शमशान में ला

नेता है उसको क्या पता क्या है ग़रीबी

उसको कभी इस कोयले की ख़ान मे ला

क्यूँ दीप जलता खुद पे ही इतरा रहा है

दम आजमा तू खुद को इस तूफान में…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 11, 2013 at 3:45pm — 20 Comments

समस्त ओ बी ओ परिवार को हिंदी नववर्ष और नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाएं

समस्त ओ बी ओ परिवार को हिंदी नववर्ष और नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाएं

 

अर्गला स्तोत्र को हिंदी में छंदबद्ध करने का प्रयास किया है

 

अथ अर्गला स्तोत्र

 

 

शिवा जयंती माता काली, भद्रकाली है नाम

क्षमा स्वधा कपालिनी स्वाहा, बारम्बार प्रणाम

दुर्गा धात्री माँ जगदम्बे,  जपता आठों याम

मात मंगला हे चामुंडे, हरो क्रोध अरु काम

सबकी पीड़ा हरने वाली, तुमको नमन हजार 

व्याप्त चराचर में तुम माता, तेरी जय जयकार

जय दो यश…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 11:00pm — 17 Comments

वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है "ग़ज़ल"

इक ताज़ा ग़ज़ल पेशेखिदमत है आपके जानिब

 

वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है

ग़मों में मुस्कुराने का बहाना ढूँढ लेता है

 

फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या  

बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है

 

मुसलसल चोट खाता है मगर आशिक है क्या कीजे

मुहब्बत करने को मौसम सुहाना ढूँढ लेता है

 

बुरी आदत है उसकी एक का दो चार करने की

पडोसी पर नज़र रख के फ़साना ढूँढ लेता है

 

अहम् झूठा नहीं करता गिला…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 5, 2013 at 11:08pm — 28 Comments

अतुकान्त

गद्य के खंड रचे

प्रवाह भर भर के

इतना प्रवाह के

कविता टिक न सकी

पल भर को

उड़ गयी कहीं दूर

बहुत दूर

कवियों की खोज मे



और लेखक इतराता है

अतुकान्त का बोध कराता

स्वयं को

गुपचुप मुस्काता

सोचता है

कौन जानता है

कविता का आंतरिक सौंदर्य

बाहरी परिवेश

इंफ्रास्ट्रकचर ठीक

मतलब सब ठीक

अंदर जा के

किसको क्या मिला है

लय छन्द ताल

व्यर्थ हैं भाव के बिना

फिर एक मुस्कान भरता है

देखा हो गया न…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 4, 2013 at 2:09pm — 10 Comments

हास्य घनाक्षरी

हास्य घनाक्षरी

 

आप तो पहाड़ हम माटी भुरभुरी वाली

धूल न हो जाएँ कहीं , गले न लगाइए

आपका शरीर है ये तन से अमीर बड़ा

दुबले गरीब हम रहम तो खाइए

माटी वाला घर मेरा और द्वार छोटा बना

टूट नहीं जाए ज़रा धीरे धीरे आइए

फूल थी जो आप कद्दू हो गयी हो आजकल 
ऐसा क्या है खाया ज़रा हमें भी बताइए

 

संदीप पटेल “दीप”

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 3, 2013 at 11:30pm — 16 Comments

तुम बिन

प्यास है

लरजते होंठों में

आज भी वही

जब कहा था तुमसे

मैं प्यार करता हूँ

और देखा था

खुद को

तुम्हारी आँखों से

पागल सा

दीवाना सा

कुछ पल बाद

वो झुकीं

और इक मीठी सी सदा

हट पागल

जाता हूँ

आइने के सामने

देखने वही

अक्स

लेकिन धुंधला

हो जाता है

मुझे याद है अब भी

जब तुमने

झांका था

मेरी आँखों में

थामा था

सिरहन भरा

मेरा…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 3, 2013 at 9:00pm — 22 Comments

दर्द चेहरे पे नहीं भूल से लाया करिए "ग़ज़ल"

===========ग़ज़ल===========

 

दर्द चेहरे पे नहीं भूल से लाया करिए

लुत्फ़ लेता है ज़माना ये छुपाया करिए

 

सच है हर बात तो फिर सामने आया करिए

आइने से यूँ निगाहें न चुराया करिए

 

हर कोई अपना नज़र तुमको भी आएगा  

चंद लम्हों को सही “मैं” तो भुलाया करिए

 

चश्म में इश्क अगर देखना हो सच्चा तो

कोई मजलूम कलेजे से लगाया करिए

 

हो बड़े गर तो गरीबों को सहारा देकर

इस अमीरी को कभी आप भुनाया…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 31, 2013 at 3:30pm — 13 Comments

सार/ललित छंद

सार/ललित छंद (16+12मात्रायें:- छन्नपकैया की जगह "आई होली छाई होली," का प्रयोग)



आई होली छाई होली, पवन चली मतवारी

रंग लगाते झूम झूम के, मस्त हुए नर नारी



आई होली छाई होली, रंग उड़े सतरंगी

भंग चढ़े है सर पे सबके, होती है हुड़दंगी



आई होली छाई होली, बुरा कोई न माने

रंगों का मौसम ये प्यारा, आता प्रीत बढ़ाने



आई होली छाई होली, भर भर के पिचकारी

कान्हा रंगों को बरसाते, भीगे राधा प्यारी



आई होली छाई होली, यौवन की ले हाला

रंग चटक… Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 21, 2013 at 12:43pm — 6 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
3 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना आँखों को किसने सीखा है दिल से…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service