काफिया : कर चल दिए रदीफ़: आ
बहर : २२१२ २२१२ २२१२ २२१२
थी जान जब तक वो लडे फिर जाँ लुटा कर चल दिये
इस देश की खातिर वे खुद को भी मिटा कर चल दिये|
लड़ते गए सब वीरता से टैंकरों के सामने
झुकने दिया ना देश को खुद शिर कटा कर चले दिए |
परिवार को कर देश पर कुर्बान खुद लड़ने गए
वो वीर थे जो देश की इज्जत बचा कर चल दिये |
एकेक ने मारा कई को फिर शहीदों से मिले
अंतिम घडी तक फर्ज अपना सब निभा कर चल दिए…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 26, 2016 at 10:34pm — No Comments
बहर : २१२ २१२ २१२ २१२
पेट को चाहिए खाद्य, नारा नहीं
पेट जितने से भर जाय, सारा नही |
भावना की कमी, जाँचना चाहिए
भूखे को चाहिए खाना,चारा नहीं |
सारे रिश्ते बिगड़ते हैं, तकरार से
शत्रुवत और हो जाता यारा नहीं |
बात है कर्ण प्रिय ,’आयगा अच्छा दिन”
अब किसी को भी यह, लगता प्यारा नहीं |
देख कर ठण्ड वातावरण क्या कहें
पी गए मय मधुर किन्तु प्यारा नहीं |
सिन्धु जल मेघ बन फिर बरसता…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 25, 2016 at 8:30am — 6 Comments
कुकुभ छंद -२
देश की एकता, अखण्डता, सबकी वाहक है हिंदी
भाव, विचार, पूर्णता, संस्कृति, सभी का प्रतिरूप हिंदी |
आम जन की मधुर भाषा है, भारत को नई दिशा दी
है विदेश में भी यह अति प्रिय, लोग सिख रहे हैं हिंदी ||
सहज सरल है लिखना पढ़ना, सरल है हिन्द की बोली
संस्कृत तो माता है सबकी, बाकी इसकी हम जोली |
हिंदी में छुपी हुई मानो, आम लोग की अभिलाषा
जोड़ी समाज की कड़ी कड़ी, हिंदी जन-जन की भाषा ||
ताटंक -१
देश की…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 14, 2016 at 3:57pm — 4 Comments
प्रजातंत्र के देश में, परिवारों का राज
वंशवाद की चौकड़ी, बन बैठे अधिराज |
वंशवाद की बेल अब, फैली सारा देश
परदेशी हम देश में, लगता है परदेश |
लोकतंत्र को हर लिये, मिलकर नेता लोग
हर पद पर बैठा दिये, अपने अपने लोग |
हिला दिया बुनियाद को, आज़ादी के बाद
अंग्रेज भी किये नहीं, तू सुन अंतर्नाद |
संविधान की आड़ में, करते भ्रष्टाचार
स्वार्थ हेतु नेता सभी, विसरे सब इकरार |
बना कर लोकतंत्र को,…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 13, 2016 at 7:30am — 27 Comments
बहर २१२२ २१२२ २१२२ २१२
दोस्तों के वेश में देखो यहाँ दुश्मन मिले
चाह गुल की थी मगर बस खार के दंशन मिले |
यारों का अब क्या भरोसा, यारी के काबिल नहीं
जग में केवल रब ही है, जिन से ही सबके मन मिले|
गुन गुनाते थे कभी फूलों में भौरों की तरह
सुख कर गुल झड़ गए तो भाग्य में क्रंदन मिले |
कोशिशें हों ऐसी हर इंसान का होवे भला
उद्यमी नेकी को शासक से भी अभिनन्दन मिले |
देश भक्तों ने है त्यागे प्राण औरों…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 10, 2016 at 7:30am — 5 Comments
बहर : २ १ २ २ २ १ २ २ २ १ २
आई जब तू जिन्दगी हँसने लगी
तू मेरे हर सपने में रहने लगी |
धीरे धीरे तेरी चाहत बढ़ गई
देखा तू भी प्रेम में झुकने लगी |
जिन्दगी का रंग परिवर्तन हुआ
प्रेम धारा जान में बहने लगी |
राह चलते हम गए मंजिल दिखा
फिर भी जीना जिन्दगी गिनने लगी |
देखिये शादी के इस बाज़ार में
हाट में दुल्हन यहाँ बिकने लगी |
शमअ बिन तो तम…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 7, 2016 at 7:30am — 8 Comments
१ २ २ / १ २ २ / १ २ २ /१ २
याँ कुछ लोग जीते भलों के लिए
जिओ जिंदगी दूसरों के लिए |
गुणों की नहीं माँग दुख वास्ते
सकल गुण जरुरी सुखों के लिए |
मैं गर मुस्कुराऊं, तू मुँह मोड़ ले
शिखर क्यूँ चढूं पर्वतों के लिए ?
मैं किस किस की बातें सुनाऊं यहाँ
जले शमअ कोई शमो के लिए |
मकाँ और दुकाने जो भी हैं यहाँ
जवाँ केलिए ना बड़ों के लिए |
मौलिक…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on August 24, 2016 at 8:30pm — 5 Comments
कुकुभ छंद -२
जीवन में दुःख के लिए तो, गुण जरुरी नहीं होता
हमेशा दुख है घुसपैटिया, अनाहूत पाहुन होता |
योग्यता, प्रतिभा जरूरी है, गर दिल में सुख की इच्छा
चढ़ता वही पर्वत शिखर पर, जिसमे है सशक्त स्वेच्छा |
प्रकृति कब कुपित हो लोगों से, कोई नहीं कभी जाने
करते गलती मानव जग में, कभी भूल से अनजाने |
जल प्रलय में डूबे हजारों, मकान थे नदी किनारे
ज़खमी न जाने जितने हुए, कितने अल्ला को प्यारे |
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on August 23, 2016 at 10:19am — 5 Comments
भारत में हर मास में, होता इक त्यौहार
केवल सावन मास है, पर्वों से भरमार |1|
रस्सी बांधे साख में, झूला झूले नार
रिमझिम रिमझिम वृष्टि में, है आनन्द अपार |२|
जितने हैं गहने सभी, पहन कर अलंकार
साथ हरी सब चूड़ियाँ, बहू करे श्रृंगार |३|
काजल बिन्दी साड़ियाँ, माथे का सिन्दूर
और देश में ये नहीं, सब हैं इन से दूर |४|
कभी तेज धीरे कभी, कभी मूसलाधार
सावन में लगती झड़ी, घर द्वार अन्धकार…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on August 6, 2016 at 8:00am — 4 Comments
अन्तर कितना हो गया, कौमें नहीं करीब
पहला छोर अमीर तो, अन्तिम छोर गरीब |६|
शुद्ध भाव से सीखते, कपटीपन का पाठ
बिना भ्रष्ट आचार के.नहीं राजसी ठाठ |७|
जनता हित के नाम से, नेता करते काम
पेटी भरते स्वयं की, ले भारत का नाम |८|
काला धन सोने नहीं, देता सुख की नींद
कर भरकर ईमान से, हँसो मनाओ ईद |९|
रख कर 'काली' सम्पदा, किया भ्रष्ट ईमान
सब जनता मानते उन्हें,,कलियुग का भगवान्…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on July 27, 2016 at 6:00am — 5 Comments
दोहे !
डायन महँगाई करे, पिया को परेशान
काट छाँट हर चीज़ में, कम हुआ खान -पान
खमा बहादुर ही करे, कायर का क्या काम
क्रोध घृणा की भावना, खुद को करे तमाम |
रस्सी खोलो मोह की, फिर देखो संसार
भौतिक धन दौलत सभी, दुनियाँ निरा असार |
चिंता छोड़ जहान की, चिन्तन कर भगवान
चिन्ता मन का रोग है, चिन्ता चिता समान
ज्योत जलाकर ज्ञान की, रोशन कर तू राह
राह नहीं चलना सरल, आँधार है अथाह…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on July 25, 2016 at 5:00pm — 6 Comments
ईमान पर न टंगती, आज देश की नीति
बे-ईमानी हो गई, हर पार्टी की रीति |1|
भूल हुई है आम से, जनता अब पछताय
बाहर पहुंच दाल है, भात नमक से खाय |२|
टूट गये सब वायदे, समय हुआ प्रतिकूल
अब चुनाव ही हारकर, वो समझेगा भूल |३|
शुभदिन अब कब आयगा, हुए भले दिन दूर
महँगाई को झेलने, जनता है मजबूर |४|
देखा समतावाद को, है स्वांग अर्थ हीन
धनियों की यह मंडली, दूर है दीन हीन |५|
मौलिक…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on July 21, 2016 at 9:30am — 5 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २२
जिंदगी क्या है ज़रा नज़रे उठा कर देखो
अश्क बारी बंद कर चश्में सुखा कर देखो |
जिंदगी भर लालसा के पीछे भागे तुम क्यूँ
शांति से तुम सोचकर कारण पता कर देखो |
मुफलिसी को तुम भी हंसी में चिढ़ाया होगा
मुफलिसों को कुछ कभी तो तुम खिला कर देखो |
चश्मा पहने हो जो उसको साफ़ करना होगा
शान शौकत धन के ऐनक को हटा कर देखो |
मानुषिकता में नहीं कोई बड़ा या…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on July 17, 2016 at 7:30am — No Comments
बह्र: २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
रदीफ़: चाहता हूँ , काफिया : ना (अना )
दिल के धड़कनों को कम करना चाहता हूँ
आज घटित घटना को विसरना चाहता हूँ |
जीवन में घटी है कुछ घटनाएँ ऐसी
सूखे घावों को नहीं कुतरना चाहता हूँ |…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on June 22, 2016 at 7:30am — 4 Comments
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