चोर-मन
कमर खुजाती उस स्त्री पर
पंजे मारकर बैठ गई आँख
मदन-मन खुजाने लगा पांख |
अभी उड़ान भरी ही थी कि
पीठ पर पत्नी ने आके ठोका
रसगुल्लामुँह हो गया चोखा |
जवाब में रख दीं बातें इमरती
छत की धूप और सुहानी सरदी
सचेती स्त्री संभल के चल दी |
बहलाने लगा मूंगफली के बहाने
चोर-मन ढूंढता बचने के ठिकाने
भर चिकोटी पत्नी लगी मुस्कुराने |
सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by somesh kumar on November 28, 2017 at 9:36am — 4 Comments
मछली और दाँत
अचानक ! बरसात आती है
सड़क चलती लड़की
भीग जाती है |
एक्वेरियम की छोटी रंगीन
मछली तैर-तैर के
मन रीझ जाती है ||
x x x x x x x x
देखता हूँ टकटकी लगाए
जब तक ना होती ओझल |
“दाना-दाना-दाना-दाना”
उकसाता पुरुष मन चंचल ||
x x x x x x x x x x
बेटी सहसा आ,छेड़ देती बात
हमले से,काँप उठता है गात |
और मैं देखता हूँ छोटी मछली
और बढ़ते हुए बड़े-बड़े दाँत ||
सोमेश कुमार(मौलिक…
ContinueAdded by somesh kumar on June 16, 2017 at 2:48pm — 1 Comment
गाँव जबसे कस्बे - - - -
गाँव जबसे कस्बे
होने लगे |
बीज अर्थों के,रिश्तों में
बोने लगे |
गाँव जबसे कस्बे- - - -
पेपसी,ममोज़ चाऊमीन से
कद बढ़ गया |
सतुआ-घुघुरी-चना-गुड़ से
बौने लगे |
पातियों का संगठन
खतम हो गया
बफ़र का बोझ अकेले ही
ढोने लगे |
गाँव जबसे कस्बे- - - -
पत्तलों कुल्ल्हडो की
खेतियाँ चुक गईं |
थर्माकोल-प्लास्टिक से
खेत बोने लगे…
ContinueAdded by somesh kumar on June 15, 2017 at 9:30am — 3 Comments
लोकतंत्र के दड़बे में
मुर्गी जब से मोर हो गई
सावन ही सावन दिखता है
सब कुछ मनभावन दिखता है |
लोकतंत्र के पिंजड़े में
कौए जब से कैद हो गए
टांय-टांय का टेर लगाते
सब कुछ मनभावन बतलाते |
लोकतन्त्र के फुटपाथों पर
दाना खाता श्वेत कबूतर
बस कूहू-कूहू गाता है
सब मधुर-मधुर बतलाता है |
लोकतन्त्र के हरे पेड़ पर
कठफोड़वा हो गया कारीगर
“अहं-बया” चिल्लाता है
सब कुछ अच्छा बतलाता है…
ContinueAdded by somesh kumar on June 12, 2017 at 9:00am — No Comments
चुग्गा
उस अज़नबी स्त्री की
मटकती पतली कमर पे
पालथी मारकर बैठा है
मेरा जिद्दी मन |
पिंजरे का बुढ़ा तोता
बाहर गिरी हरी मिर्च देख
है बहुत ही प्रसन्न |
x x x x x x x x
पसीना-पसीना पत्नी आती है
मुझपे झ्ल्ल्लाती है
रोती मुनिया बाँह में डाल
मिर्च उठाकर चली जाती है
x x x x x x x x x
तोता मुझे और
मैं तोते को
देखता हूँ |
वो फड़फड़ा कर
पिंजरा हिलाता है…
ContinueAdded by somesh kumar on June 11, 2017 at 11:32am — 2 Comments
एक दो तीन- - - एक दो तीन
फिर अनगिन
मन्डराती रहीं चीलें
घेरा बनाए
आतंक के साएँ में
चिंची-चिंची-चिंची
पंख-विहीन |
एक दो तीन- - -
फुदकी इधर से
फुदकी उधर से
घुस गई झाड़ी में
पंजों के डर से
जिजीविषा थी जिन्दा
करती क्या दीन !
एक दो तीन- - -
झाड़ी में पहले से
कुंडली लगाए
बैठे थे विषदंत
घात लगाए
टूट पड़े उस पे
दंत अनगिन | एक दो तीन- - -
प्राणों को…
ContinueAdded by somesh kumar on June 10, 2017 at 10:14am — 3 Comments
मुखौटा
संसद से सड़क तक
फैले हुए मुखौटे मुँह चिढ़ाते हैं मुझे
और मैं हंसकर उनकी उपेक्षा कर देता हूँ
और मुझसे यह अपेक्षा की भी जाती है !
आखिर वो भी तो मेरी - - - सी स्सस्सस्सीईई
ढाँप लेता हूँ
कम्बल बढ़ने लगी है सर्दी
पहन लेता हूँ मुखौटा
बढ़ने लगी है भीड़ सी--- सीईईईईईईई !
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on December 3, 2016 at 11:38pm — 3 Comments
Added by somesh kumar on December 31, 2015 at 1:00pm — 2 Comments
Added by somesh kumar on December 25, 2015 at 7:54pm — 7 Comments
Added by somesh kumar on October 2, 2015 at 5:30pm — 4 Comments
हौसलों का पंछी -2(गतांक से आगे )
उनके बैठने के बाद मैं फिर पूछता हूँ-सारी कहानी क्या है ?और बस प्रकाश के नाम से ?
“उस समय काम अच्छा चल रहा था |उसे नासिक पढ़ने के लिए भेज दिए |सोचा कुछ बन जाएगा |पर- - - -वो साला चार साल तक पढ़ाई के नाम पर ऐययासी करता रहा |फिर सुधारने के लिए शादी कर दी |पर साला कुत्ता का पोंछ | सब चौपट करता गया |हम खून जला-जलाकर जोड़ते रहे वो दारू और रंडीबाजी में उड़ाता रहा | ”
“इसका मतलब आप ने अन्धविश्वास किया ?”
“बड़ा था मैं तो अपना फर्ज़ समझकर…
ContinueAdded by somesh kumar on June 20, 2015 at 7:30pm — 3 Comments
हौसलों का पंछी(कहानी,सोमेश कुमार )
“हवा भी साथ देगी देख हौसला मेरा
मैं परिंदा ऊँचे आसमान का हूँ |”
कुछ ऐसे ही ख्यालों से लबरेज़ था उनसे बात करने के बाद |ये उनसे दूसरी मुलाकात थी|पहली मुलाक़ात दर्शन मात्र थी |सो जैसे ही बनारस कैंट उतरा तेज़ कदमों से कैंट बस डिपो के निकट स्थित उनके कोलड्रिंक के ठेले पर जा पहुँचा |जाने कौन सी प्रेणना थी कि 4 घंटे की विलंब यात्रा और बदन-तोड़ थकावट के बावजूद मैंने उनसे मिलने का प्रण नहीं छोड़ा |
“दादा,एक छोटा कोलड्रिंक दीजिए|” मैंने…
ContinueAdded by somesh kumar on June 19, 2015 at 7:52pm — 1 Comment
Added by somesh kumar on June 15, 2015 at 2:16pm — 13 Comments
दो दिल दो रास्ते
मोबाईल पर मैसेज आया –“गुड बाय फॉर फॉरएवर |”
कालीबाड़ी मन्दिर पर उस मुलाकात के समय जब तुमने आज तक का एकमात्र गिफ्ट प्यारा सा गणेश दिया था तो उसके रैपर पर बड़े आर्टिस्टिक ढंग से लिखा था-फॉर यू फॉरएवर और अब ये !|
यूँ तो तुम सदा कहते थे -मुझे एक दिन जाना होगा |
पर इसी तिथि को जाओगे जिस रोज़ मेरी ज़िन्दगी में आए थे दो साल पहले |वो भी इस तरह |इसकी कल्पना भी ना की थी |
अगला मैसेज-मुझे याद मत करना |अगर तुम मुझे याद करोगी तो मैं स्थिर नहीं रह…
ContinueAdded by somesh kumar on June 11, 2015 at 11:30pm — 1 Comment
Added by somesh kumar on June 10, 2015 at 9:02pm — 4 Comments
रुकी-रुकी सी इक ज़िन्दगी –सिक्वेल 2
25 साल का सोनू मुझसे चार साल बाद मिल रहा था |इससे पहले जब मिला था तो उसकी शादी नहीं हुई थी |यूँ तो उसका मेरे घर पर बराबर आना-जाना है |पर दिल्ली में रहने और एकाध दिन के लिए ही गाँव में ठहरने के कारण उससे चार सालों से नही मिला था |जाति से लुहार और पेशे से ट्रक-ड्राईवर |पर मेरे पिताजी से उसके पिताजी और उसके आत्मीय सम्बन्ध थे |बस पिताजी की एक छोटी सी मदद के बदले पूरा परिवार मेरे पिता के लिए हमेशा खड़ा रहता था |जब उसकी शादी तय हुई तो पिताजी दिल्ली…
ContinueAdded by somesh kumar on June 9, 2015 at 1:12pm — 3 Comments
Added by somesh kumar on May 13, 2015 at 4:44pm — 7 Comments
रुकी हुई सी एक ज़िन्दगी
फ़्लैट में जब दाखिल हुआ तो वो मेरे साथ बगल वाले सोफे पर बैठ गया |उसके रिटायर्ड पिताजी ने पहले पानी दिया और कुछ देर बाद चाय बनाकर ले आए |हाल-चाल की औपचारिकता के बाद मैंने कहा यहाँ घुटन सी है |बाहर पार्क में चलते हैं और हम बाहर निकल आए |ई.टी.ई ट्रेनिंग के 9 साल बाद आज मिलना हुआ था |छह माह पहले वो फेसबुक पर टकराया था |वहीं पर थोड़ा सा उसने अपने जीवन के उतार-चढ़ाव का हल्का-फुल्का जिक्र किया था और तभी से उससे मिलने का मन हो रहा था |
“आगे क्या सोचा है…
ContinueAdded by somesh kumar on April 5, 2015 at 12:27pm — 8 Comments
दीवारों में दरारें-4
मीना का घर रामनवमी के दिन
“मीना,भोग तैयार है |- - - जाS ,लडकियों को बुला ला|”
“जी मम्मी |”
“अरी मीना,यूँ सुबह-सुबह कहाँ चली ?” चौखट पर बैठे अख़बार पढ़ रहे दादा जी ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा
“भोग लगाने के लिए कन्याओं को बुलाने |”मीना ने धीमी आवाज़ में कहा
“अच्छा-अच्छा,जा जल्दी जा,पड़ोस में छोटी लड़कियाँ वैसे ही कम हैं अगर दूसरे लोग उनके घर पहले चले गए तो हमें ईंतज़ार करना पड़ेगा |”
“जी,दादा जी |”कहकर वो…
ContinueAdded by somesh kumar on March 22, 2015 at 9:00pm — 8 Comments
दीवारों में दरारें-3
मीना की अध्यापिका पद पर नियुक्ति के बाद
"मैडम,आपको सुनीता मैडम ने लंच के लिए अपने क्लास रूम में बुलाया है | “आशा ये सन्देशा देकर चली जाती है |
रूम में पहुँचने पर |
“आ गई बेटा |” सुनीता दलाल की नानी पुष्पा ने मीना गौतम को देखकर कहा |
सुनीता के बीमार होने के कारण नानी सुनीता के यहाँ आईं थी और लंच में गर्मागर्म खाना उसके लिए लेकर आ गईं थी |
“इसकी क्या ज़रूरत थी,नानीजी ,मैं तो इसके लिए भी रोटियाँ लाई हूँ |”मीना ने…
ContinueAdded by somesh kumar on March 18, 2015 at 10:30am — 10 Comments
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