रथ-वाहन हन हन बहे, बहे वेग से देह ।
सड़क मार्ग अवरुद्ध कुल, बरसी घातक मेह ।
बरसी घातक मेह, अवतरण गंगा फिर से ।
कंकड़ मलबा संग, हिले नहिं शिव मंदिर से ।
करें नहीं विषपान, देखते मरता तीरथ ।
कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ ॥
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on June 26, 2013 at 3:58pm — 6 Comments
रुष्ट-त्रिसोता त्रास दी, खोले नेत्र त्रिनेत्र |
बदी सदी से कर गए, सोता पर्वत क्षेत्र |
सोता पर्वत क्षेत्र, बहाना कुचल डालना |
मरघट बनते घाट, शांत पर महाकाल ना |
शिव गंगा का रार, झेल के जग यह रोता |
नहीं किसी की खैर, त्रिलोचन रुष्ट त्रिसोता ||
त्रिसोता= गंगा जी
मौलिक/ अप्रकाशित
Added by रविकर on June 26, 2013 at 12:00pm — 6 Comments
खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप ।
खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप ।
बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई ।
ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई ।…
ContinueAdded by रविकर on June 25, 2013 at 3:30pm — 13 Comments
तपत तलैया तल तरल, तक सुर ताल मलाल ।
ताल-मेल बिन तमतमा, ताल ठोकता ताल ।
ताल ठोकता ताल, तनिक पड़-ताल कराया ।
अश्रु तली तक सूख, जेठ को दोषी पाया ।…
ContinueAdded by रविकर on June 24, 2013 at 9:30am — 6 Comments
Added by रविकर on June 6, 2013 at 8:30am — 8 Comments
छली जा रहीं नारियां, गली-गली में द्रोह ।
नष्ट पुरुष से हो चुका, नारिजगत का मोह |
नारिजगत का मोह, गोह सम नरपशु गोहन ।
बनके गौं के यार, गोरि-गति गोही दोहन ।…
ContinueAdded by रविकर on April 22, 2013 at 5:00pm — 3 Comments
मौलिक अप्रकाशित
धनुही ताके फाग में, आसमानि सुनसान |
नीलकंठ नीलांग को, बैंगनिया पकवान |
बैंगनिया पकवान, सभी को चढ़ी हरेरी |
पीले…
मौलिक/अप्रकाशित
नारा की नाराजगी, जगी आज की भोर ।
यह नारा कमजोर था, नारा नारीखोर ।
नारा नारीखोर, लगे सड़कों…
ContinueAdded by रविकर on March 11, 2013 at 9:04pm — 4 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
दीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय ।
पाला इस गणतंत्र ने, पाला आम नशाय ।
पाला आम नशाय, पालता ख़ास सँपोला ।
भानुमती…
ContinueAdded by रविकर on March 4, 2013 at 9:22am — 16 Comments
मौलिक/अप्रकाशित
जब कभी रस्ता चले ।
फब्तियां कसता चले ।।
जान जोखिम में मगर-
मस्त-मन हँसता चले…
Continueमौलिक / अप्रकाशित
राना जी छत पर पड़े, गढ़ में बड़े वजीर |
नई नई तरकीब से, दे जन जन को पीर |
दे जन जन को पीर, नीर गंगा जहरीला |
मँहगाई *अजदहा, समूचा कुनबा लीला |…
Added by रविकर on March 2, 2013 at 5:38pm — 3 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
बड़ा बटोरा आज तक, लोलुपता ने माल |
बेंच बेंच दूल्हा किया, शादीघर बदहाल |
शादीघर बदहाल, सुता चैतन्य आज है ।…
ContinueAdded by रविकर on March 2, 2013 at 4:44pm — 10 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
जीना मुश्किल हो गया, बोला घपलेबाज |
पहले जैसा ना रहा, यह कांग्रेसी राज |
यह कांग्रेसी राज, नियम से करूँ घुटाला |
पर सांसत में जान, पडा इटली से पाला |…
Added by रविकर on March 1, 2013 at 5:30pm — 9 Comments
मौलिक - अप्रकाशित
खर्राटों के बीच में, सोया आँखें मीच |
पता नहीं किस तरफ से, देह दबाया नीच |
देह दबाया नीच, सींच कर खेत हटा था-
मग में बीचो बीच, सिंह दमदार डटा था |…
Added by रविकर on March 1, 2013 at 5:15pm — 5 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
करकश करकच करकरा, कर करतब करग्राह ।
तरकश से पुरकश चले, डूब गया मल्लाह ।
डूब गया मल्लाह, मरे सल्तनत मुगलिया ।
जजिया कर फिर जिया, जियाये बजट हालिया ।
धर्म…
Added by रविकर on March 1, 2013 at 10:45am — 22 Comments
मौलिक
अप्रकाशित
मसले सुलझाने चला, आतंकी घुसपैठ ।
खटमल स्लीपर सेल बना, रेकी रेका ऐंठ ।
रेकी…
Added by रविकर on February 25, 2013 at 9:14am — 10 Comments
मौलिक
अप्रकाशित
लगा ले मीडिया अटकल, बढ़े टी आर पी चैनल ।
जरा आतंक फैलाओ, दिखाओ तो तनिक छल बल ।।
फटे बम लोग मर जाएँ, भुनायें चीख सारे दल…
ContinueAdded by रविकर on February 23, 2013 at 4:19pm — 7 Comments
मौलिक -अप्रकाशित
सत्तावन "जो-कर" रहे, जोड़ा बावन ताश ।
महल बनाया दनादन, "सदन" दहलता ख़ास ।
सदन दहलता ख़ास, किंग को नहला पंजा।
रानी दहला जैक, कसे हर रोज शिकंजा ।
धक्का इक्का खाय, हिले नहिं पाया-पत्ता ।
खड़ा ताश का महल, शक्तिशाली कुल सत्ता ।।
Added by रविकर on February 9, 2013 at 10:40am — 11 Comments
एकनिष्ठ हों कोशिशें, भाई-चारा शर्त |
भाग्योदय हो देश का, जागे आर्यावर्त |
जागे आर्यावर्त, गर्त में जाय दुश्मनी |
वह हिंसा-आमर्ष, ख़तम हों दुष्ट-अवगुनी |
संविधान ही धर्म, मर्ममय स्वर्ण-पृष्ठ हो |
हो चिंतन एकात्म, कोशिशें एकनिष्ठ हों ||
Added by रविकर on February 7, 2013 at 2:34pm — 5 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
खरी-खरी खोटी-खरी, खरबर खबर खँगाल ।
फरी-फरी फ़रियाँय फिर, घरी-घरी घंटाल ।
घरी-घरी घंटाल, मीडिया माथा-पच्ची ।
सिद्ध होय गर स्वार्थ, दबा दे ख़बरें सच्ची ।
परमारथ का ढोंग, बे-हया देखे खबरी ।
करें शुद्ध व्यवसाय, आपदा क्यूँकर अखरी ??
Added by रविकर on February 4, 2013 at 1:25pm — 9 Comments
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