अरबों माल डकार के राजा जी गै छूट।
जनहित में संदेश है लूट सके तो लूट।।
निकले जब वो जेल से यूँ दिखलाया रंग।
अभिवादन थे कर रहे जीत लिया ज्यों जंग।।
बाहर आकर वायु मे चुम्बन रहे उछाल।
इतने घृणीत कर्म का कोई नही मलाल।।
हर्षित चेलाराम के जमीं न पड़ते पाँव।
बेशरमी रख ताख पे खुश हो करते काँव।।
झिंगुर घुरवा से कहे "जितबे तुहीं चुनाव।
कट्टा पिस्टल साथ हैं डर जइहैं सब गाँव"।।
आशीष यादव
Added by आशीष यादव on May 17, 2012 at 9:00am — 22 Comments
ये साथ बिताए लम्हें, तुम्हे याद बहुत आयेंगे,
जब सोचोगे हो तन्हा तो तुमको तड़पायेंगे।।।।
वो फर्स्ट…
Added by आशीष यादव on May 1, 2012 at 10:30pm — 14 Comments
बटेश्वरनाथ गाँव के सबसे बड़े आदमी हैं। भगवान का दिया हुआ सबकुछ है उनके पास। माता पिता अभी सलामत हैं। दो लड़के और एक लड़की भी है। बड़ा लड़का गटारीनाथ ८ साल का है। लड़की सुनयनी ६ साल की और सबसे छोटा लड़का मेहुल नाथ अभी ३ साल का है जिसे प्यार से सब मेल्हू कहते हैं।
बटेश्वरनाथ के पिता कोई ३ साल पहले रिटायरमेन्ट लिये थे जब मेल्हू का जन्म हुआ था। रिटायरमेन्ट के समय खूब सारा पैसा भी मिला था। ये लोग खानदानी रईस भी थे। बटुकनाथ के पिता बहुत सारा पैसा छोड़ गये थे। इनके परिवार की खूबियाँ बहुत…
ContinueAdded by आशीष यादव on March 17, 2012 at 9:00am — 16 Comments
क्यों आज तुम्हे अब चैन नहीं है महलों में?,
Added by आशीष यादव on January 24, 2012 at 3:00pm — 27 Comments
अमावास की रात अब बहुत सुकून देती है
वो भी भादों की अमावास हो तो क्या कहने
उसके अलावा हर रात को…
Added by आशीष यादव on September 12, 2011 at 1:00pm — 16 Comments
मै पश्चिम वाली कोठरी में आलमारी पर पड़े सामानों को इधर-उधर कर के देख रहा था| तभी मेरी नज़र एक निमंत्रण कार्ड पर पड़ी| कार्ड के ऊपर देखने पर पता चला की वो निमंत्रण भैया के नाम से था, प्रेषक वाली जगह के नाम से मै अनजान था| कौतुहल वश मैंने बड़ी आसानी से अन्दर के पत्र को निकाल कर देखा, अगले दिन बारात आने वाली थी| दर्शनाभिलाषी में पढने पर ज्ञात हुआ की वह निमंत्रण भैया के एक मित्र के बहन की शादी का था| मै और भैया एक ही स्कूल में पढ़े थे और उनके लगभग सारे मित्र मुझे भी…
ContinueAdded by आशीष यादव on August 10, 2011 at 10:00am — 11 Comments
और बहुत कुछ जग में सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|
आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए||
जी करता है, पिघल मै जाऊं, तेरे साँसों की गरमी में|
अजब सुकून मुझे मिलता है तेरे हाथों की नरमी से||
मै तुझमे मिल जाऊं ऐसे, कोई भी मुझको ढूंढ़ न पाए|
आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए|
और बहुत कुछ जग में सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|
जब-जब गिरती नभ से बूँदें , मै पूरा जल जल जाता हूँ|
जी करता है भष्म हो जाऊं, पर तुमको…
Added by आशीष यादव on August 3, 2011 at 6:30pm — 18 Comments
Added by आशीष यादव on March 10, 2011 at 2:25pm — 15 Comments
Added by आशीष यादव on February 4, 2011 at 7:47am — 12 Comments
अक्सर…
ContinueAdded by आशीष यादव on January 13, 2011 at 9:36am — 11 Comments
वो कौन है,
अतीत जैसा पास है,
या कि मेरा आज है,
व आगे का एहसास है|
मैं फंसा इन उलझनों में, सोचता,
वो कौन है|
जो गा सकूँ वो गान है,
कि मिला सकूँ वो तान है,
या कि मेरा सम्मान है|
ये सुलझ जाए पहेली, जान लूँ,
वो कौन है|
मधुरव भरा वो साज है,
या कि नवोढ़ा लाज है,
मेरे लिए क्यूँ राज है?
एक रूप सदिश बने तब, कह सकूँ,
वो कौन है|
गुल है वो कि बाग़…
ContinueAdded by आशीष यादव on January 13, 2011 at 9:32am — 14 Comments
बहार की व्यथा
अभी कुछ साल ही तो बीते हैं |
बसंत की तरह निरंतर प्रसन्नचित,
उजड़े चमन को भी खिला देने वाला मै,
साथ लिए चलता था सुरभित मलय पवनों को |
हर-एक गुलशन को चाहत थी मेरी,
मेरे स्पर्शों की, मेरे छुवन की |
हर कली मेरा स्पर्श पाकर फूल होना चाहती थी |
मै भी खुश होता, सबको खुश करता, आगे बढ़ जाता |
धीरे-धीरे सब कुछ बदला |
जगह, समाज, धर्म, मंदिर, मस्जिद,
मतलब सब कुछ |
तब मुझे दुःख नहीं हुआ |
मै क्या जानता था की इस…
Added by आशीष यादव on November 19, 2010 at 11:00am — 16 Comments
Added by आशीष यादव on November 19, 2010 at 10:43am — 5 Comments
Added by आशीष यादव on November 15, 2010 at 10:00am — 6 Comments
Added by आशीष यादव on November 11, 2010 at 2:30pm — 11 Comments
Added by आशीष यादव on October 9, 2010 at 9:30am — 14 Comments
Added by आशीष यादव on October 9, 2010 at 8:52am — 18 Comments
Added by आशीष यादव on September 26, 2010 at 11:00pm — 11 Comments
Added by आशीष यादव on September 18, 2010 at 12:04am — 5 Comments
हसीं इतना है तेरा ख्याल, पल भर के लिए दिल से निकलता नहीं|
पहले जैसे भी हम जी लिए पर, जीवन अब तेरे बिन देखो चलता नहीं||
वो गज़ब का समय था हमारे लिए, तेरी पहली नज़र का, पहले प्यार का|
सारी बाते बिछड़ जायेंगी एक दिन , कैसे भूलूंगा दिन तेरे इकरार का||
तेरे पहलू में रहने की जिद पे अड़ा, लाख बहलाऊं ये दिल बहलाता नहीं|
हसीं इतना है तेरा ख़याल...............................................
तेरे गेसुओं की घनी छाँव में, मेरा डेरा बने, एक बसेरा बने|
मेरी हर…
Added by आशीष यादव on September 4, 2010 at 10:30am — 8 Comments
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