For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आशीष यादव's Blog (64)

अरबों माल डकार के

अरबों माल डकार के राजा जी गै छूट।
जनहित में संदेश है लूट सके तो लूट।।

निकले जब वो जेल से यूँ दिखलाया रंग।
अभिवादन थे कर रहे जीत लिया ज्यों जंग।।

बाहर आकर वायु मे चुम्बन रहे उछाल।
इतने घृणीत कर्म का कोई नही मलाल।।

हर्षित चेलाराम के जमीं न पड़ते पाँव।
बेशरमी रख ताख पे खुश हो करते काँव।।

झिंगुर घुरवा से कहे "जितबे तुहीं चुनाव।
कट्टा पिस्टल साथ हैं डर जइहैं सब गाँव"।।

  • आशीष यादव

Added by आशीष यादव on May 17, 2012 at 9:00am — 22 Comments

ये साथ बिताए लम्हें, तुम्हे याद बहुत आयेंगे

ये साथ बिताए लम्हें, तुम्हे याद बहुत आयेंगे,

जब सोचोगे हो तन्हा तो तुमको तड़पायेंगे।।।।



वो फर्स्ट…

Continue

Added by आशीष यादव on May 1, 2012 at 10:30pm — 14 Comments

एक पैग (कहानी)

बटेश्वरनाथ गाँव के सबसे बड़े आदमी हैं। भगवान का दिया हुआ सबकुछ है उनके पास। माता पिता अभी सलामत हैं। दो लड़के और एक लड़की भी है। बड़ा लड़का गटारीनाथ ८ साल का है। लड़की सुनयनी ६ साल की और सबसे छोटा लड़का मेहुल नाथ अभी ३ साल का है जिसे प्यार से सब मेल्हू कहते हैं।

 बटेश्वरनाथ के पिता कोई ३ साल पहले रिटायरमेन्ट लिये थे जब मेल्हू का जन्म हुआ था। रिटायरमेन्ट के समय खूब सारा पैसा भी मिला था। ये लोग खानदानी रईस भी थे। बटुकनाथ के पिता बहुत सारा पैसा छोड़ गये थे। इनके परिवार की खूबियाँ बहुत…

Continue

Added by आशीष यादव on March 17, 2012 at 9:00am — 16 Comments

हम अब नहीं फंसने वाले (कविता )

क्यों आज तुम्हे अब चैन नहीं है महलों में?,

लाखों के बिस्तर पर भी नींद नहीं आती?
क्यों घूम रहे हो आज मध्य तुम जनता के,
क्यों आज बार की परियां तुम्हे नहीं भातीं?




वो पांच सितारा होटल, जहाँ ठहरते…
Continue

Added by आशीष यादव on January 24, 2012 at 3:00pm — 27 Comments

भादों की अमावास

अमावास की रात अब बहुत सुकून देती है

वो भी भादों की अमावास हो तो क्या कहने

उसके अलावा हर रात को…

Continue

Added by आशीष यादव on September 12, 2011 at 1:00pm — 16 Comments

चुड़ैल

 

            मै पश्चिम वाली कोठरी में आलमारी पर पड़े सामानों को इधर-उधर कर के देख रहा था| तभी मेरी नज़र एक निमंत्रण कार्ड पर पड़ी| कार्ड के ऊपर देखने पर पता चला की वो निमंत्रण भैया के नाम से था, प्रेषक वाली जगह के नाम से मै अनजान था| कौतुहल वश मैंने बड़ी आसानी से अन्दर के पत्र को निकाल कर देखा, अगले दिन बारात आने वाली थी| दर्शनाभिलाषी में पढने पर ज्ञात हुआ की वह निमंत्रण भैया के एक मित्र के बहन की शादी का था| मै और भैया एक ही स्कूल में पढ़े थे और उनके लगभग सारे मित्र मुझे भी…

Continue

Added by आशीष यादव on August 10, 2011 at 10:00am — 11 Comments

क्यों तू ही मन को भाये...

और बहुत कुछ जग में  सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|

आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए||



जी करता है, पिघल मै जाऊं, तेरे साँसों  की गरमी में|

अजब सुकून मुझे मिलता है तेरे हाथों की नरमी से||

मै तुझमे मिल  जाऊं ऐसे, कोई भी मुझको ढूंढ़ न पाए|

आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए|

और बहुत कुछ जग में सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|



जब-जब गिरती नभ से बूँदें  , मै पूरा  जल जल जाता हूँ|

जी करता है भष्म  हो जाऊं, पर तुमको…

Continue

Added by आशीष यादव on August 3, 2011 at 6:30pm — 18 Comments

अब जाना जफा ज़माने की......................

सजा मिली है मुहब्बत में वफ़ा  निभाने की|

अब जाना जफा ज़माने की.......................
उसने पल भर में उम्मीदों का गला घोंट दिया|
जिंदगी भर न भूलू उसने ऐसी चोट दिया|-२
हसरतें रह गयी पलकों पे उसे सजाने की|
अब जाना जफा ज़माने की......................
उसने इकरार मुहब्बत का बार -बार किया|
मैंने भी बेसुध बेख़ौफ़ उसे प्यार दिया|
यही तमन्ना अब उसको भूल जाने की,
करूँ तमन्ना अब उसको भूल जाने की|
अब…
Continue

Added by आशीष यादव on March 10, 2011 at 2:25pm — 15 Comments

तुम

तुम्हारे ही सहारे से मेरा हर पल गुजरता है,

तुझ में डूब कर के ही मेरा पल-पल गुजरता है|



मै कितना प्यार करता हूँ तुम्हे किस तरह बतलाऊं,

जो बेहोश हूँ तेरी याद में क्यों होश में आऊं|



हसीं हो तुम बहुत सचमुच बहुत ही खुबसूरत हो,

बस आशिक मै नहीं तेरा, सभी की तुम जरुरत हो|



तुम्हारे होंठ तो मुझको कोई गुलाब लगते है,

तुम्हारी झील सी आँखें है या शराब लगते है|



गुजारूं रात मै कोई तेरी जुल्फों की छावों में,

यही इच्छा मेरी बस जाऊं मै तेरी… Continue

Added by आशीष यादव on February 4, 2011 at 7:47am — 12 Comments

वो कौन है-2

वो कौन है,

 

अतीत जैसा पास है,

या कि मेरा आज है,

व आगे का एहसास है|

मैं फंसा इन उलझनों में, सोचता,

वो कौन है|

 

जो गा सकूँ वो गान है,

कि मिला सकूँ वो तान है,

या कि मेरा सम्मान है|

ये सुलझ जाए पहेली, जान लूँ,

वो कौन है|

 

मधुरव भरा वो साज है,

या कि नवोढ़ा लाज है,

मेरे लिए क्यूँ राज है?

एक रूप सदिश बने तब, कह सकूँ,

वो कौन है|

 

गुल है वो कि बाग़…

Continue

Added by आशीष यादव on January 13, 2011 at 9:32am — 14 Comments

बहार की व्यथा

बहार की व्यथा



अभी कुछ साल ही तो बीते हैं |

बसंत की तरह निरंतर प्रसन्नचित,

उजड़े चमन को भी खिला देने वाला मै,

साथ लिए चलता था सुरभित मलय पवनों को |



हर-एक गुलशन को चाहत थी मेरी,

मेरे स्पर्शों की, मेरे छुवन की |

हर कली मेरा स्पर्श पाकर फूल होना चाहती थी |

मै भी खुश होता, सबको खुश करता, आगे बढ़ जाता |



धीरे-धीरे सब कुछ बदला |

जगह, समाज, धर्म, मंदिर, मस्जिद,

मतलब सब कुछ |

तब मुझे दुःख नहीं हुआ |

मै क्या जानता था की इस…

Continue

Added by आशीष यादव on November 19, 2010 at 11:00am — 16 Comments

मै आइना हूँ

मै, जो वाकिफ करता हूँ तुमको, तुमसे|

पहचान बताता हूँ तुम्हारी|

क्या हो तुम, किस बात पे गुरुर है तुम्हे,

सब दिखता हूँ मै|



खामियां क्या हैं? झलक रही हैं चेहरे पर,

ये मै ही हूँ, जो तुम्हे दिखता हूँ,

और बताता हूँ की तुम क्या हो|



आओ मेरे सामने, हकीकत बयां करूँगा|

यदि तुम मुझे तोड़ भी दो तो भी

तुम्हारी बुराइयां नहीं छिपेगीं|

मेरे टुकडो के बराबर गुना तुम्हारी खामियां नज़र आएगी|



इतने दूर क्यों खड़े हो?

कितने ऊँचाई पर हो, आओ मै… Continue

Added by आशीष यादव on November 19, 2010 at 10:43am — 5 Comments

मैंने सारे बंधन तोड़ दिए

मैंने सारे बंधन तोड़ दिए,

भंवर में ही उनको छोड़ दिए|

ऐसा उसने कहा था|



ये है बिलकुल हकीकत,

रहा मै वहीँ तक|

साथ में औरों को जब

वो जोड़ लिए........

मैंने सारे..................



वाकई मै गलत था,

इसका क्या मतलब था?

कुछ कहे ही बगैर

उनको छोड़ दिए............

मैंने सारे......................



नाव फिर कभी न बहती,

भार भी न वो सहती|

साथ दोनों को तन्हा ही

छोड़ दिए..................

मैंने… Continue

Added by आशीष यादव on November 15, 2010 at 10:00am — 6 Comments

बनकर साकी आया हूँ

बनकर साकी आया हूँ मै आज जमाने रंग|

ऐसी आज पिलाऊंगा, सब रह जायेंगे दंग||



अभी मुफिलिसी सर पर मेरे, खोल न पाऊं मधुशाला|

फिर भी आज पिलाऊंगा मै हो वो भले आधा प्याला|

ऐ मेरे पीने वालों तुम, अभी से यूँ नाराज न हो|

मस्त इसी में हो जावोगे, बड़ी नशीली है हाला|



एक-एक पाई देकर मै जो अंगूर लाया हूँ|

इमानदारी की भट्ठी पे रख जतन से इसे बनाया हूँ|

तनु करने को ये न समझना, किसी गरीब का लहू लिया|

राजनीति से किसी तरह मै अब तक इसे बचाया हूँ|



हर बार… Continue

Added by आशीष यादव on November 11, 2010 at 2:30pm — 11 Comments

सब्र की इन्तहा

इन्तहा है, हमारे सब्र की,
न जाने कब ये खत्म होगी,
जाने कब जागेंगे, और कसेंगे पीठ अपनी,
कब सचेत होंगे,
कब रोकेंगे हम विध्वंस को|
क्यों हम कहते हैं की मान जाओ,
जबकि हम जानते है,
वो कहने से नहीं मानेंगे,
वो नहीं समझेंगे मानवता को|
हम अपने सामर्थ्य से रोक सकते हैं उन्हें,
फिर भी सब्र किये बैठे हैं|
बहुत बड़ी इन्तहा है हमारे सब्र की,
अनंत तो नहीं, पर उसकी ही ओर|

Added by आशीष यादव on October 9, 2010 at 9:30am — 14 Comments

वो कौन है जिसकी याद सताती है हमें||

वो कौन है जिसकी याद सताती है हमें|

न जाने किस तरफ ये रोज बुलाती है हमें||



खोजता हूँ मै उसे मिलती नहीं वो मुझको|

रात को लेकिन चुपके से जगाती है हमें||



कहीं मिले जो कभी मुझसे साफ़ कह दूँ मैं|

की कौन है और ऐसे सताती है हमें||



देर तक तन्हा बैठ कर के यूँ ही सोचते हैं|

फिर याद उसकी जमीं महफ़िल में लाती है हमें||



फूल के जैसे खिल के वो मेरे सिने में|

साथ हूँ इसका एहसास कराती है हमें||



एक अनजान सहारा सी बन गयी है वो|

अश्क… Continue

Added by आशीष यादव on October 9, 2010 at 8:52am — 18 Comments

इक नयी ज़िन्दगी

कुछ समय में यहाँ से चले जायेंगे,

इक नयी ज़िन्दगी को फिर अपनाएंगे|

याद आएगा कुछ, कुछ भूलेगा नहीं,

बाँध यादों की गठरी को ले जायेंगे|



क्या पता होगा अपना ठिकाना कहाँ,

क्या करें तय की हमको है जाना कहाँ|

मंजिल सामने होके आवाज देगी,

वक़्त के रास्ते हमको आजमाएंगे|

कुछ समय में .......................



तब तमाम ऑफिस के छोड़ कर मामले,

जी होगा साथ दोस्तों के कॉलेज चलें|

तब न होंगे ये दिन, ये समय, ये घडी,

गर होंगे तो ये दिन ही नज़र… Continue

Added by आशीष यादव on September 26, 2010 at 11:00pm — 11 Comments

माँ

एक अक्षर का एक शब्द ये, कैसे करे हम इसका गान;

सूरज चाँद सितारों से भी बढ़कर रहता जिसका मान|

वन उपवन ये झरनें नदियाँ दे न पते इतना सुख;

एक पल में ही दे देती है माँ वो सुख जितना महान||



माँ न हो तो किसी चीज की कोई भी कल्पना कैसी;

इसके बिना तो जग झूठा है, झूठी है हम सबकी शान|

एक अक्षर का एक शब्द.....................................



सुख हो या दुःख सबमे रखती है अपने बच्चों को खुश;

सब कुछ सहती पर रखती है नित्य प्रति बच्चों का ध्यान |

एक अक्षर का… Continue

Added by आशीष यादव on September 18, 2010 at 12:04am — 5 Comments

तेरा ख़याल

हसीं इतना है तेरा ख्याल, पल भर के लिए दिल से निकलता नहीं|

पहले जैसे भी हम जी लिए पर, जीवन अब तेरे बिन देखो चलता नहीं||



वो गज़ब का समय था हमारे लिए, तेरी पहली नज़र का, पहले प्यार का|

सारी बाते बिछड़ जायेंगी एक दिन , कैसे भूलूंगा दिन तेरे इकरार का||

तेरे पहलू में रहने की जिद पे अड़ा, लाख बहलाऊं ये दिल बहलाता नहीं|

हसीं इतना है तेरा ख़याल...............................................



तेरे गेसुओं की घनी छाँव में, मेरा डेरा बने, एक बसेरा बने|

मेरी हर…

Continue

Added by आशीष यादव on September 4, 2010 at 10:30am — 8 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service