For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Featured Blog Posts (1,174)

ग़ज़ल : हो गयी नंगी सियासत, वजह क्या है ?

 

ग़ज़ल

भूख-वहशी , भ्रम -इबादत वजह क्या है

हो गयी नंगी सियासत, वजह क्या है ?

 

मछलियों को श्वेत बगुलों की तरफ से -

मिल रही क्या खूब दावत, वजह क्या है ?

 

राजपथ पर लड़ रहे हैं भेडिये सब…

Continue

Added by Ravindra Prabhat on May 24, 2011 at 11:31am — 2 Comments

कैसे दोगे पीर ...?

स्वाती की बूंदों सा टपका

स्नेह, बन गया मोती

विरहा चातक जलता फिरभी

बन दीपक की ज्योती...



नयनों में छवि छोड़ सदा को

चाँद बस गया दूर…

Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on May 15, 2011 at 8:25am — 5 Comments

मेरी अपनी दो ग़ज़लें....

साथियो,

सादर वंदे,

मैं संगीत की साधना में रत उसका एक छोटा सा विद्यार्थी हूँ और कला एवं संगीत को समर्पित एशिया के सबसे प्राचीन " इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ " में एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हूँ...मुझे भी ग़ज़लें कहने का शौक़ है...मैं " साबिर " तख़ल्लुस से लिखता हूँ... अपनी लिखी दो ग़ज़लें आप सबकी नज़र कर रहा हूँ...नवाज़िश की उम्मीद के साथ......

 

= एक =

रूह शादाब कर गया कोई.…

Continue

Added by डॉ. नमन दत्त on May 14, 2011 at 9:00am — 13 Comments

एक आरजू

मेरी आवाज़ में कुछ ऐसा असर हो जाये !

याद  जिसको मै करूँ उसको खबर हो जाये !!


काश तशरीफ़…
Continue

Added by Hilal Badayuni on May 14, 2011 at 5:30am — 8 Comments

सामयिक गीत : देश को वह प्यार दे दो... ----संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत :

देश को वह प्यार दे दो...

संजीव 'सलिल'

*

रूप को अब तक दिया जो,

देश को वह प्यार दे दो...



इसी ने पाला हमें है.

रूप में ढाला हमें हैं.

हवा, पानी रोटियाँ दीं-

कहा घरवाला हमें है.



यह जमीं या भू नहीं है,

सच कहूँ माता मही है.

देश हित हो ज़िंदगी यह-

देश पर मरना सही है.



आँख के सब स्वप्न दे दो,

साँस का सिंगार दे दो...

*

देश हित विष भी पियें हम.

देश पर मरकर जियें हम.

देश का ही गान… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on May 12, 2011 at 3:57pm — 2 Comments

मेरे आत्मीय बाबा नागार्जुन .....[महेंद्रभटनागर]

मेरे आत्मीय बाबा नागार्जुन 

[महेंद्रभटनागर]

बाबा नागार्जुन (मैथिली भाषा के कवि ‘यात्री’ / घर का नाम — वैद्यनाथ मिश्र) का जन्म सन् 1911; ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा (जून) के दिन बताया जाता है।…

Continue

Added by MAHENDRA BHATNAGAR on May 6, 2011 at 10:30am — 2 Comments

मुक्तिका: मैं --- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

मैं
संजीव 'सलिल'
*
पुरा-पुरातन चिर नवीन मैं, अधुनातन हूँ सच मानो.
कहा-अनकहा, सुना-अनसुना, किस्सा हूँ यह भी जानो..



क्षणभंगुरता मेरा लक्षण, लेकिन चिर स्थाई हूँ.

निराकार साकार हुआ मैं वस्तु बिम्ब परछाईं हूँ.



परे पराजय-जय के हूँ मैं,…
Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on May 3, 2011 at 2:01pm — 5 Comments

~हिंसा~

यूँ तो 

बहुत पहले से 
रखी थी 
वह किताब शेल्फ में
उठा कर…
Continue

Added by AjAy Kumar Bohat on April 27, 2011 at 4:30pm — 4 Comments

पक्षपात

पक्षपात





दोष लगेगा उस पर

पक्षपात का

गर ज़रा सा भी दुःख

न वो देगा मुझे

मैं भी तो एक ज़र्रा हूँ

उसकी कायनात का

उसी कारवां की

एक… Continue

Added by rajni chhabra on April 24, 2011 at 4:30pm — 7 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
नवगीत-तुलसी के बिरवे ने

नवगीत

------------x----------------

 

तुलसी के बिरवे ने तेरी 
याद दिलाई है
सर्दी नहीं लगी थी फिर भी
खांसी आई है…
Continue

Added by Rana Pratap Singh on April 13, 2011 at 10:00am — 13 Comments

मै नारी हूँ

मै नारी हूँ

अक्सर मै इसी सोच में खो जाती हूँ

क्या मुझे वो अधिकार मिला है ?

मै जिसकी अधिकारी हूँ ?

मै नारी हूँ



मनु कि  अर्धांगिनी मै

विष्णु- शिव कि संगिनी मै

मै अक्सर सोचा करती हूँ…

Continue

Added by Rajeev Kumar Pandey on April 12, 2011 at 9:30pm — 6 Comments

उंगलियाँ सब पर उठातें रहें है हम............

उंगलियाँ सब पर उठातें रहें है हम,

आईनों से चेहरा छिपातें रहें है हम,



भ्रष्टाचार को हमनें जरुरत बना लिया,

मुल्क को अपनें ड़ुबातें रहें है हम,



रोंशनी से तिलमिलाती है आंखें हमारी,

बेईमानी से नज़रें मिलातें रहें है हम,



सियासत के बकरों का पेट नही भरता,

देश को चारे में खिलातें रहे है हम,



कितने ही बच्चें सोतें हैं यहाँ भूखें,

और सांपों को दुध पिलातें रहें हैं हम,



'अन्ना जी' का बहुत बहुत शुक्रियां,

वर्ना तो धोखा ही… Continue

Added by अमि तेष on April 8, 2011 at 2:00pm — 14 Comments

भावनात्मक दरारें

माता पिता की ज़ख्मों वाली पीठ,

को न सहलाना,

परिवार की मुस्कुराहटों में,

न मुस्काना,

दोस्तों की खामोशियों में,

चुप रह जाना,

अपनों के दिलों में,

न झाँक पाना,

हमारी मजबूरियां नहीं,

कमजोरियां हैं,

जो अक्सर अपने,

बंधनों के,

एक धागे को,

तोड़ जाती हैं,

भावनात्मक दरारें हैं ये,

नहीं भरो तो,

निशान छोड़ जाती हैं .



किसी शीतल सुबह,

अपनी हथेलियों में,

ओस की बूँदें भरो,

अपने अहं को कर किनारे,

उसमे मिलाओ,

प्रेम… Continue

Added by neeraj tripathi on March 26, 2011 at 3:25pm — 15 Comments

सामयिक गीत: राम जी मुझे बचायें.... -- संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत:

राम जी मुझे बचायें....

-- संजीव 'सलिल'

*

राम जी मुझे बचायें....



एक गेंद के पीछे दौड़ें ग्यारह-ग्यारह लोग.

एक अरब काम तज देखें, अजब भयानक रोग..

राम जी मुझे बचायें,

रोग यह दूर भगायें....

*

परदेशी ने कह दिया कुछ सच्चा-कुछ झूठ.

भंग भरोसा हो रहा, जैसे मारी मूठ..

न आपस में टकरायें,

एक रहकर जय पायें...

*

कड़ी परीक्षा ले रही, प्रकृति- सब हों एक.

सकें सीख जापान से, अनुशासन-श्रम नेक..

समर्पण-ज्योति… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 31, 2011 at 12:06pm — 3 Comments

व्यंग्य - फेकोलॉजी के फायदे

हाल के कुछ बरसों में अंग्रेजी ने अपनी खासी पैठ जमायी है, मगर वहीं हिंग्लिश का भी गुणगान चरम पर है। जहां देखें, वहां इंग्लिश नहीं, हिंग्लिश का जलवा। अंग्रेजी में कई लॉजीकल तथा लॉजी से जुड़े विषयों एवं तथ्यों के बारे में अक्सर पढ़ने को मिलता है। मसलन, सोशियोलॉजी, एस्ट्रोलॉजी, ऑडियोलॉजी, टेक्नालॉजी समेत तमाम इंग्लिश डिक्शनरी में शब्द हैं, जिनके हिन्दी में अपने मायने व अर्थ हैं। जब इंग्लिश के साथ हिंग्लिश का खुमारी चढ़े तो जाहिर है, कुछ तो संकर वर्ण पैदा होंगे ही। ऐसा ही एक शब्द लोगों की बोलचाल में… Continue

Added by rajkumar sahu on April 4, 2011 at 12:09am — 3 Comments

मुक्तिका: गलत मुहरा ----- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                          



गलत मुहरा



संजीव 'सलिल'

*

सही चहरा.

गलत मुहरा..



सिन्धु उथला,

गगन गहरा..



साधुओं पर

लगा पहरा..



राजनय का

चरित दुहरा..



नर्मदा जल

हहर-घहरा..



हौसलों की

ध्वजा फहरा..



चमन सूखा

हरा सहरा..



ढला सूरज

चढ़ा कुहरा..



पुलिसवाला

मूक-बहरा..



बहे पत्थर…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 21, 2011 at 6:40pm — 7 Comments

कविता :- सच कहना तुम भूली मुझको ?

कविता :- सच कहना तुम भूली मुझको ?…

Continue

Added by Abhinav Arun on March 20, 2011 at 6:30pm — 18 Comments

हर उर भरे रंग हर होली कर संग

हर उर भरे रंग हर होली कर संग 

(मधु गीति सं. १७३३, दि. २० मार्च, २०११) 

 

हर उर भरे रंग, हर होली कर संग;…

Continue

Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on March 20, 2011 at 1:49pm — 2 Comments

नवगीत: तुमने खेली हमसे होली ----संजीव 'सलिल'

नवगीत:



तुमने खेली हमसे होली



संजीव 'सलिल'

*

तुमने खेली हमसे होली

अब हम खेलें.

अब तक झेला बहुत

न अब आगे हम झेलें...

*

सौ सुनार की होती रही सुनें सच नेता.

अब बारी जनता की जो दण्डित कर देता..

पकड़ा गया कलेक्टर तो क्यों उसे छुडाया-

आम आदमी का संकट क्यों नजर न आया?

सत्ता जिसकी संकट में

हम उसे ढकेलें...

*

हिरनकशिपु तुम, जन प्रहलाद, होलिका अफसर.

मिले शहादत तुमको अब आया है अवसर.

जनमत का हरि क्यों न मार… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 19, 2011 at 11:52pm — 2 Comments

Featured Monthly Archives

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service