प्रतिशोध - लघुकथा –
"मोहन बाबू, पूरा मोहल्ला बाहर होली खेल रहा है। आप सारे परिवार के साथ घर में ही हैं"।
" सुखराम जी, हम लोग होली नहीं खेलते"।
"कोई खास कारण"?
"हाँ, कुछ ऐसा ही समझ लीजिये"।
"अगर बुरा ना लगे तो क्या मैं जान सकता हूँ"?
"पूरा मोहल्ला जानता है, आप भी जान जाओगे, अभी नये नये आये हो"।
"क्या आप को बताने में ऐतराज़ है"?
"ऐसी तो कोई बात नहीं है, आइये"।
दोनों पड़ोसी बैठ गये।
"सुखराम जी मेरी तीन बेटियाँ थीं। सबसे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 13, 2017 at 6:30pm — 12 Comments
विश्व महिला दिवस - लघुकथा –
सुक्कू बाई आज फिर लेट हो गयी थी इसलिये डरते डरते मिसेज सिन्हा के घर में घुसी। सारा घर साफ़ सुथरा दिख रहा था। रसोईघर में सब वर्तन धुले हुए करीने से लगे थे। बाथरूम में देखा मैले कपड़ों का ढेर भी गायब था। लॉन में गयी तो देखा बाहर धुले कपड़े सूख रहे थे । उसने सोचा कि उसके रोज रोज लेट आने और नागा करने से परेशान होकर मैम साब ने दूसरी बाई रख ली।
मैम साब पूजा घर में थी। मैम साब बाहर निकली और सीधे रसोईघर में चली गयीं। थोड़ी देर बाद ट्रे में चाय और…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 9, 2017 at 1:02pm — 8 Comments
श्रद्धा - लघुकथा –
शिव रात्रि के मौके पर गाँव में शिव जी की रथ यात्रा निकाली जा रही थी। गाँव के हर घर के आगे रथ यात्रा रुक जाती थी । रथ यात्रा के साथ जो स्वंय सेवक लोग जुलूस के रूप में चल रहे होते थे वह घर के लोगों को आग्रह करते थे कि भोले नाथ जी के दर्शन का लाभ लें। घर के सभी लोग, स्त्रियाँ और बच्चे दर्शन करते और दान पात्र में कुछ दान पुन्य भी करते। बदले में उन्हें कुछ प्रसाद भी मिलता |
रथ यात्रा का जुलूस अभी गाँव के बीच हरिजन टोला में ही था कि दो दस बारह वर्ष के लड़के एक…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on February 26, 2017 at 10:18am — 14 Comments
खुशियों की चाबी - लघुकथा –
कालूराम फ़ुट्पाथ पर जूते मरम्मत करता था। उसके पास में ही रहमान तालों की चाबियाँ बनाता था।
"कालू भैया, कई दिन से देख रहा हूं कि आप कुछ दुखी हो। आजकल घर से खाना भी नहीं लाते। खाली चाय और डबल रोटी से काम चलाते हो"।
"हाँ रहमान भाई, तुमने सही कहा। मेरा घर बिखर रहा है।जब से बेटे की शादी हुई है, घर का माहौल बिगड़ गया है"।
"ऐसी क्या वज़ह हुई है"।
"बेटे की बहू अलग होना चाहती है"।
"तो हो जाने दो अलग"।
"वह चाहती है कि हम लोग इस घर…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on February 24, 2017 at 10:30am — 6 Comments
सीढ़ियाँ – लघुकथा -
"सर, यह क्या सुन रही हूँ।आप तो डाइरेक्टर बनने वाले थे।मगर आप को जी एम से डिमोट कर के मैनेजर बना दिया"।
"यह सब तुम्हारी वज़ह से हुआ है लीला", वर्मा जी अपनी सैक्रेटरी पर झल्ला पड़े।
"सर, मैंने क्या किया। मैं तो सदैव वही करती रही हूं, जो आप कहते रहे हो"।
"पर इस बार नहीं किया ना,मैंने तुम्हें शनिवार को सी एम डी के बंगले पर जाने को कहा था"।
"सर, मैंने सुना था कि नया सी एम डी बहुत खड़ूस है।मैं डर गयी थी।पर आपने मेरी जगह दूसरी लड़की भेज दी थी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on February 4, 2017 at 1:44pm — 15 Comments
आहुति – लघुकथा -
गोविंदी को आज चार दिन हो गये बैंकों के चक्कर काटते हुए। हज़ार हज़ार के चार नोट लेकर घूम रही थी। ना कोई सुनने वाला, ना कोई मदद करने वाला। तीन साल के इकलौते बच्चे को पड़ोसिन के सहारे छोड़ कर आती थी। एक एक पैसे को मुँह ताक रही थी। उसका मर्द ठेके पर मजदूरी करता था। एक दिन भी नागा करना परिवार पर आर्थिक बज्रपात होता। घर खर्च चलाना दूभर हो रहा था। मगर आज गोविंदी कुछ मन में ठान कर आई थी। बैंक की लाइन में लगे हुए लोगों से बड़ बड़ा रही थी,
"भाई, कोई ऐसी तरक़ीब बताओ जिससे आज…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 15, 2016 at 6:43pm — 11 Comments
घरोंदा - लघुकथा –
"सुनोजी, तुम्हारे रिटायरमेंट में डेढ़ साल बचा है।रिटायर होने के बाद यह सरकारी मकान छोड़ना होगा।कुछ सोचा है, कहाँ जांयेंगे"।
"सुधा, अभी अपने पास डेढ़ साल है। कुछ ना कुछ इंतज़ाम हो जायेगा"।
"इतने साल की नौकरी में तो कोई तीर मारा नहीं, अब डेढ़ साल में क्या चमत्कार कर लोगे"।
"सुधा, तुम यह कैसी बातें करती हो।बत्तीस साल, बेदाग नौकरी की है।रिटायर होने पर पी एफ़ और ग्रेचुटी का इतना तो पैसा मिल ही जायेगा कि दो कमरों का फ़्लैट खरीद सकूं"।
" वाह…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 5, 2016 at 1:05pm — 6 Comments
दिवाली – ( लघुकथा ) –
"अम्मा, हम लोग दिवाली क्यों नहीं मनाते, हमारी हर रात एक जैसी ही रहती है, न पटाखे, न रोशनी की लड़ियां, न नये कपड़े, न खीर पूड़ी वाले पकवान"।
"मनायेंगे मेरी बिट्टो, अगली साल जरूर मनायेंगे"।
"अम्मा, अगली साल ऐसा क्या होने वाला है"।
"तेरा बापू आयेगा परदेश से, ढेर सारे पैसे लेकर, इसलिये"।
"अम्मा, यही तसल्ली तुम पिछले तीन साल से दे रही हो"।
"बिटिया, तुम्हारे भाग्य में कम से कम यह तसल्ली तो है, बहुत लोगों के नसीब में तो यह तसल्ली भी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 28, 2016 at 7:13pm — 4 Comments
विरासत - (लघुकथा)-
सुजाता मैडम पिछले तीन दिन से कक्षा सात के छात्रों को विरासत के मायने समझा रहीं थीl जो छात्र तेज और मेधावी थे, वे तो पहले रोज ही समझ गये लेकिन अधिकांश छात्र अभी भी इसका वास्तविक मतलब नहीं जान पाये थेl मैडम ने इसे सरल तरीके से समझाने के लिये छात्रों को एक गृह कार्य दिया कि सभी छात्र अपने परिवार के बुजुर्गों से पूछ कर पिछली तीन पीढ़ियों द्वारा छोड़ी गयी चल और अचल संपत्तियों का व्यौरा लिख कर लायेंl
आज मैडम उस शीर्षक को अंतिम रूप देकर समाप्त कर देना चाह रही थींl…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 4, 2016 at 9:01pm — 22 Comments
सरकारी अनुदान - ( लघुकथा ) -
"अरी ओ कुसुमा, अभी तू इधर ही खड़ी है! जल्दी से फारिग होकर आजा! देख सूरज निकल आया है"!
"वही तो सोच रही हूं अम्मा, किधर जायें,चारों तरफ़ तो खेत खलिहान में आदमी लोग दिख रहे हैं"!
"इसलिये तो कहते हैं बिटिया कि अंधियारे में ही हो आया करो"!
"अम्मा, तुम तो खुद ही देख चुकी हो कि पिछले महीने दो लड़कियों को जंगली जानवर उठा ले गये"!
"अरे बिटिया, गाँव देहात में यह सब कहानी किस्से तो चलते ही रहते हैं!कौन जाने सच क्या है"!
"पर अम्मा, तुम…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 31, 2016 at 10:46am — 12 Comments
आक्रोश – (लघुकथा) –
" रूपा, तू यहाँ, रात के दो बजे! आज तो तेरी सुहागरात थी ना"!
"सही कह रही हो मौसी, आज हमारी सुहागरात थी! तुम्हारी सहेली के उस लंपट छोरे के साथ जिसे तुम बहुत सीधा बता रहीं थी! बोल रहीं थीं कि उसके मुंह में तो जुबान ही नहीं है"!
"क्या हुआ, इतनी उखडी हुई क्यों है"!
"उसी से पूछ लो ना फोन करके, अपनी सहेली के बिना जुबान के छोरे से"!
"अरे बेटी, तू भी तो कुछ बोल! तू तो मेरी सगी स्वर्गवासी बहिन की इकलौती निशानी है"!
"तभी तो तुमने उस नीच के…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 17, 2016 at 10:53am — 26 Comments
आरक्षण – (लघुकथा ) –
राज्य के कुछ तेज तर्रार देशी कुत्तों ने समाज की महा पंचायत बुलाई ! प्रदेश के कोने कोने से देशी कुत्ते एकत्र हुए ! सबसे बुजुर्ग कुत्ते को सभापति बनाया गया! तेज तर्रार कुत्तों में से एक प्रवक्ता बनाया गया! प्रवक्ता ने मंच से संबोधित किया,
"साथियो, आप सभी को ज्ञात है कि हमारी क़ौम वफ़ादारी की मिसाल है! हम बिना किसी लोभ, लालच के घरों, बाज़ारों और सड़कों की चौकीदारी करते हैं! मगर अफ़सोस की बात है कि मानव जाति हमारे साथ घोर अन्याय करती है! हमें कोई सुविधा नहीं दी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 12, 2016 at 12:02pm — 4 Comments
आवारगी – ( लघुकथा ) -
मुंबई जाने वाली एक्सप्रेस गाडी में टिकट चैक करने पर टी सी गोस्वामी जी को दो लडके बारह तेरह साल की उम्र के बिना टिकट मिले!
"कहां जा रहे हो"!
"शहर"!
"कौनसे शहर"!
"मालूम नहीं, जहां तक गाडी लेजाय"!
"टिकट क्यों नहीं लिया"!
"साब टिकट के पैसे नहीं थे!तीन दिन से कुछ खाया भी नहीं है!गॉव में सूखा और अकाल है!भुखमरी फ़ैली है!सोचा था शहर जाकर कहीं ढावा या होटल में वर्तन धोने का काम कर लेंगे तो रोटी तो मिलती रहेगी"!
"अब बिना…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 16, 2016 at 7:06pm — 16 Comments
"राजू बेटा, क्या कर रहा है! मेरी दवा खत्म हो गयी है! मेरी डायरी ले जा और मेरी दवाइंयॉ ले आ"!
"मॉ, आज क्लब में हम लोग मदर्स डे मना रहे हैं! मुझे क्लब का सैक्रेटरी होने के नाते मदर्स डे के ऊपर एक भाषण देना है! अपनी सोसाइटी में काम करने वाली बाइयों एवम अन्य महिला कर्मचारियों को वस्त्र, मिठाईयां और दबाईयां वितरण करनी हैं! अतःउसी की रूप रेखा तैयार कर रहा हूं! आज तो बहुत मुश्किल है! "!
“तो बेटा ऐसा कर कि उसी महिलाओं की लिस्ट में मेरा भी नाम लिख ले”!
मौलिक व अप्रकाशित
Added by TEJ VEER SINGH on May 14, 2016 at 1:00pm — 12 Comments
मज़दूर दिवस – ( लघुकथा ) -
कारखाने में मज़दूर दिवस मनाया जा रहा था! मंच पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री मुख्य अतिथि के रूप में विराजमान थे! उनके दायीं ओर प्रदेश के मुख्य मंत्री और बायीं तरफ़ कारखाने के मालिक सेठ धनपति लाल मौज़ूद थे!
कारखाने के चुंनिंदा कामगारों को सम्मानित किया जाना था! सर्वश्रेष्ठ कामगार का पुरुस्कार सुखराम को मिलना था! सेठ जी ने माइक पर जैसे ही संबोधित करना शुरू किया! तभी सेठ जी के सैक्रेटरी ने सेठ जी के कान में बताया “आपके कार्यालय के ए सी को जांच करते समय…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 1, 2016 at 3:00pm — 28 Comments
दरार – ( लघुकथा ) -
मीरा और मोहन कितने खुश थे जब उनके परिवार वालों ने उनके प्रेम विवाह को मंज़ूरी दे दी!मीरा के तो पैर ज़मीन पर ही नहीं पड रहे थे! हनीमून के लिये श्रीनगर गये!दौनों की खुशियां सातवें आसमान पर थीं!
एक दिन अंतरंग क्षणों में, कसमे वादे के दौर में, मीरा ने मोहन को अपने साथ हुई एक घटना सुना दी,” वह जब सोलह साल की थी!उसके दूर के रिश्ते के मामाजी ने उसके साथ ज़बरदस्ती की थी! उसने मॉ को रो रो कर सारा वाकया सुनाया! वह चाहती थी कि पुलिस में शिकायत कर दो! पर मॉ ने…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 26, 2016 at 11:50am — 10 Comments
कैक्टस का फ़ूल –( लघुकथा ) –
कालेज की ग्रीष्मकालीन छुट्टियों में सुबोध इस बार अपने मित्र आनंद का आग्रह टाल ना सका और उसके गॉव आगया!काफ़ी बडा गॉव था!कहने को गॉव था पर शहरी हर सुविधा मौज़ूद थी!रेलवे स्टेशन,बस स्टॉप,अस्पताल,बैंक ,बिजली,पानी,टी वी,इंटरनैट आदि सब उपलब्ध था!
बैठक में सुबोध अकेला बैठा था कि एक सज्जन मिलने आगये!बडा अजीब प्रश्न किया,"क्या तुम भी माया को देखने आये हो"!
सुबोध कुछ कहता उससे पहले ही आनंद आगया और वह सज्जन खिसक लिये!सुबोध को कुछ समझ नहीं आया अतः आनंद से…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 18, 2016 at 8:06pm — 6 Comments
सोने की चिडिया - (लघुकथा ) -
"भाई साहब, आपने घनश्याम के साथ बहुत बडा अन्याय कर दिया"!
"ऐसा क्या होगया छोटे, कुछ साफ़ साफ़ बोल ना"!
"आपके इस फ़ैसले पर सारी बिरादरी और खानदान थू थू कर रहा है"!
"किस फ़ैसले की बात कर रहा है "!
" घनश्याम की शादी का फ़ैसला ! ऐसी बदसूरत लडकी आजतक पूरे समाज और रिश्तेदारी में नहीं आयी, ना रंग, ना रूप, पता नहीं घनश्याम जैसे गोरे चिट्टे, सुंदर,सजीले , शिक्षित और प्रोफ़ेसर बेटे के लिये यही एक लडकी मिली थी आपको"!
" छोटे, कभी कभी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 13, 2016 at 10:45am — 10 Comments
कसक – ( लघुकथा ) –
रोहित बिहार के पटना ज़िले के एक छोटे से गॉव के एक गरीब किसान परिवार का इकलौता मगर होनहार पुत्र था!वह हैदराबाद विश्वविद्यालय में "भारतीय राजनीति का गिरता स्तर" विषय पर शोध कार्य कर रहा था!उसकी कार्य शैली और थीसिस के संस्करण देख उसके गाइड चकित थे!
राजनीतिज्ञों को जैसे ही इन बातों की हवा लगी, वे रोहित को साम, दाम, दंड, भेद खरीदने में लग गये!वे नहीं चाहते थे कि उसका शोध कार्य छपे!सबके चेहरे बेनक़ाब हो जायेंगे!जब कोई युक्ति कारगर साबित नहीं हुई तो रोहित को खत्म…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 10, 2016 at 11:52am — 6 Comments
समूचा क्षेत्र सूखे और अकाल की चपेट में था! चारों ओर त्राहि त्राहि मची हुई थी!लोग एक एक बूंद पानी को तरस रहे थे!ऐसे में गॉव के प्रधान वीर पाल ने आस पास के सभी गॉवों में मुनादी पिटवा दी कि बारिस करवाने के लिये महायज्ञ और भागवत कथा का आयोजन कराया जा रहा है!यह कार्य क्रम पंद्रह दिन चलेगा!मथुरा वृंदावन से साधु संत और भागवत कथा वाचक बुलाये जायेंगे!अनुमानित खर्चा इक्यावन हज़ार के लगभग होगा!सभी लोग अपनी सामर्थ्य और श्रद्धा से इस दान पुन्य के महोत्सव मे बढ चढ कर भाग लें!
नियत तिथि पर प्रधान…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 7, 2016 at 11:00am — 12 Comments
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