’’वेगवती छन्द’’
इसमें विषम चरण में तीन सगण-(112) तथा एक गुरू-(2) तथा
सम चरण में तीन भगण-(211) तथा दो गुरू-(22) होते हैं।
.1.
कण कारक ज्यों मन कृष्णा। कारण कृष्ण कमाल सुतृष्णा।
जन.लोक अतीव नसाना। घोर. विरोध सजाय मसाना।।
जगती तल-अम्बर-वर्षा। बाढ़-हुताशन ज्यों यम हर्षा।
अब तो मन सोच सुकर्मा। कार्य सुहाय अघोर.विकर्मा।।
.2.
मन राम सुनाम विचारो। मानव से नित प्यार सॅवारो।
वन-बाग-सुभाष सुधारो। कर्म-सुधर्म सदा मन धारो।।
रख हाथ…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 21, 2013 at 9:56am — 14 Comments
!!! शालिनी छन्द !!!
शालिनी छन्द के प्रत्येक चरण मे 11 वर्ण होते है तथा इसमें एक मगण, दो तगण तथा दो गुरू होते हैं।
-1-
राधे-राधे गीत जो गा रहे हैं।
कृष्णा जैसे मीत वो पा रहे है।।
आत्मा से औचित्य भी भा रहे हैं।
काया के अट्टालिका ढा रहे हैं।।
-2-
भावों से पाया जमीं सार सारा।
बीथीं-बीथीं भाग्य का पार पारा।।
दुःखों से आनन्द का धार* धारा।.......*मार्गं
पश्चातापों से सभी जार* जारा।।......*पाप
-3-
वृक्षों-बृक्षों से फले कामनाएं।
तारों-तारों में…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 18, 2013 at 9:09am — 18 Comments
!!! घर की मुर्गी दाल बराबर !!!
कालिमा की घोर नाशक आभा दबे पांव क्षितिज मे अपना आधिपत्य जमाने को उतावली हो रही थी और इधर नित्य क्रिया के फलस्वरूप मुर्गे ने कुकड़ू कूं.............. कुकड़ू कूं........बांग के साथ ही जीवनमय युध्द का बिगुल फूंक दिया। सृष्टि में एक विस्मयकारी, मुग्धकारी और मनोहारी दृश्यों का सजीव प्रस्तुति प्रसारित होने लगा। मुर्गा किशोरवय था। शिकार का हर दांव-पेंच बहुत ही बारीकी से समझता था। इसीलिए आज भी…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 16, 2013 at 7:59am — 12 Comments
!!!-ः दोहे:-!!!
पानी - पानी हो रही, लोकतंत्र सरकार।
हर क्षेत्र में असफल है, देश विदेश करार।।1
पानी नकसिर चढ़ गया, लोक तंत्र बेहाल।
जल संसाधन लूटता, बोतल भर कर माल।।2
जल संकट से घिर गया, अब यह पृथ्वी लोक।
जन मन रंजन कर रहा, नहि भविष्य का शोक।।3
सुबह बाल रवि तेज है, प्रखर प्रचण्डहि धूप।
सलिल अंबु जीवन लिए, मिलते नहि नल कूप।।4
जल ही जीवन जान लें, नीर वारि पय तोय।
पानी बिना सृष्टि नहीं, धरा हवा नभ…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 15, 2013 at 10:10pm — 9 Comments
!!!ःः! दोहे !ःः!!!
पानी - पानी हो रही, लोकतंत्र सरकार।
हर क्षेत्र में असफल है, देश विदेश करार।।1
पानी नकसिर चढ़ गया, लोक तंत्र बेहाल।
जल संसाधन लूटता, बोतल भर कर माल।।2
जल संकट से घिर गया, अब यह पृथ्वी लोक।
जन मन रंजन कर रहा, नहि भविष्य का शोक।।3
क्षीण बाल रवि तेज है, प्रखर प्रचण्डहि धूप।
सलिल अंबु जीवन लिए, मिलते नहि नल कूप।।4
जल ही जीवन जान लें, नीर वारि पय तोय।
सृष्टि पानी बिना नहीं, धरा हवा नभ…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 15, 2013 at 9:11am — No Comments
!!! कुण्डलियां !!!
तपता सूरज देख कर, मौसम है बेहाल।
तरू, उपवन, जन ताप से, नित.नित हुए हलाल।।
नित.नित हुए हलाल, निरूत्तर ठगे खडे़ हैं।
निर्वस्त्रहि भी ढाल, धर्म में डटे अड़े है।।
अब कालहु का काल, इन्द्र भगवन को जपता।
धरा करे चित्कार, जेठ सूरज सा तपता।।
के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 14, 2013 at 9:00pm — 16 Comments
!!! गजल !!!
वज्न- 2122, 2122, 2122, 212
अब वतन को लूटकर सिर कांटना क्या पीर है।
आम जनता रोज मरती शापता क्या पीर है।।
घूस खोरी या कमीशन खूब करते ठाठ से।
मुफलिसी का हाथ थामे रास्ता क्या पीर है।।1
जिन्दगी की डोर टूटी बम धमाका जोर से।
आदमी अब आदमी ना वासना क्या पीर है।।2
न्याय भी अब राग गाती या गरीबी-ताज हो।
जन्म का अधिकार कहती आत्मा क्या पीर है।।3
जेठ सूरज की नवाजिश वृक्ष जलकर मर रहे।
आश का पंछी…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 27, 2013 at 7:46pm — 16 Comments
!!! गजल !!!
वज्न- 2122, 1212, 22
ऐ खुदा शहर की अदा क्या है।
आज बन्दा लुटा बता क्या है।।
दिल ने आहट सुना जवां जैसे।
तुम न आए अगर दुवा क्या है।।
जां में उल्फत सनम कसम खाये।
रब न मंजिल यहां मिला क्या है।।
शहर जल कर धुआं-धुआं नभ तक।
फिर न जाने सुबह हुआ क्या है।।
हम मिलेंगे वहां जहां ’सत्यम’।
अब तो नफरत भुला खता क्या है।।
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 21, 2013 at 9:01am — 19 Comments
!!! नव गीत !!!
जन्नत सा खुशनुमा ये, लखनऊ है हमारा।
ये चमन है हमारा,
हम सुमन हैं सितारा
ये गोमती सुधारा,
मंगल करे हमारा
हम सादगी से जीते, इतिहास है हमारा।1 जन्नत सा...
नव रूप हो रहे हैं,
नवजात जन्म लेते
लम्बी चुप सी गलियां,
छत पर पतंग उड़ाते
पार हो रही नभ में ये, विकास है हमारा।2 जन्नत सा...
उलझन कभी न होती,
बसती रही कलोनी
बागों के दायरे भी,
सौन्दर्य को बढ़ाते
है नवाबी गवाही, चश्म सांस है…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 19, 2013 at 1:01pm — 14 Comments
!!! नवगीत !!!
नयनन के कोर से, ढरकि गये अंसुआं।
खारे जल बिन्दु भी, बन गये मोतियां।।
जीवन के रंग में,
गुलशन बसंत में-
पतझर के ढ़ंग से,
उजड़ गयी बगिया।1...खारे जल..
नयनन के नील में,
सागर सी झील मे-
रेशम की गेंद संग,
डूब गये छलिया।2...खारे जल..
कर्म के सफर में,
काटों के पथ पर,
नागों को मथ कर,
नाचे गउ चरइया।3....खारे जल..
धर्म की जीत को,
सत्यम के रीति को,
गीता के गीत को,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 15, 2013 at 9:39am — 12 Comments
!!! गजल !!!
वज्न-2122, 2122, 2122, 212
तुम जो आये जिन्दगी में, बात सादर हो गयी।
जिन्दगी की सारी सरिता, आज सागर हो गयी।।
आपसी मत भेद भूले, कामना सच हैं नये।
बात रातों की करे तो, चांदनी कर हो गयी।।
हुस्न के जल्वे दिखे है, शाम शबनम की खुशी।
हम सफर जो साथ रहता, आंख कातर हो गयी।।
बन्दगी अब बन्दगी है, रंग - रंगत एक से।
आज फिर राधा-किशन है, बात सुन्दर हो गयी।।
आपकी ही बांसुरी में, गोपियों की लालसा।
राम का दर्शन…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 12, 2013 at 12:00pm — 28 Comments
!!! नवगीत !!!
अब तो आजा मीत मेरे, पलकें हो गई नम।
गीत में यूं दर्द छिपें हैं, सासें हो गई गर्म।।
जीवन इक पल का लगता है,
दिन लगता इक वर्ष।
रातें तारों जैसी लगती है,
अनगिनती हर पल।।..... अब तो आजा.....
तुम बिन सूनी सब गलियां,
सूना लगता है उपवन।
जलघट बिन पनघट जाती हूं,
छलक-छलक जाता यौवन।।..... अब तो आजा ...
अखिंयां राह बिछी फूलों संग,
बगिया हैं बौराए सब।
प्राण उड़-उड़ जाते पत्तों से,
रूक जाती…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 10, 2013 at 7:29pm — 10 Comments
उम्मीद के चमन में सांसों सी हैं दुआएं।
सुख दुःख दो शिलाएं, इक आए इक जाए।।
हम दोस्त है सभी के
क्यों दुश्मनी निभाएं
सुन्दर भाव संवारें,
अन्तर्मन व्यथाएं ।।1उम्मीद के---
फूलों औ कलियों से
सुगन्धित हैं दिशाएं
अपनी ही आस्था से
बस प्यार को बढ़ाएं।।2 उम्मीद के---
मौसम आये जाये
खुशबहार-पतझड़ से
सुजन में खिन्नता है
दुर्जन खिल खिलाएं।।3 उम्मीद के---
कुछ शहंशाह ऐसे
जो मुल्क बेचते हैं
रोते उदास…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 8, 2013 at 9:26pm — 16 Comments
32 वर्णो का डमरू दण्डक ‘‘ल सब‘‘ अर्थात इसके बत्तीसों वर्ण लघु होते है।
‘‘कमल नमन कर तमस शमन कर, उजस उरन भर हरष सकल नर।
अपजस हर मन सब रस तन भर, कलश सगर सम हृदय तरल कर।।
हलधर मत कह जन मन भय डर, भग कर लठ लय तड़ तड़ तब मर।
हलधर जय जय भगवन छत धर, मन भय हर-हर भजन करत तर।।‘‘
भावार्थ- कमल आदित्य के समान ही समस्त तिमिर को नष्ट करने वाला, हृदयों मे उल्लास, ओज और सभी प्राणियों में हर्ष का संचार करके दुःखों और सारी विकृतियों को दूर करने वाला है। यह शुभ…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 8, 2013 at 8:00am — 12 Comments
!!! मेरे घर आई एक नन्हीं परी !!!
(आ0 गनेशजी सर जी को सादर शुभकामनाओ सहित समर्पित।)
चतुर्दश चन्द्र रूप सुखं। दिव्य तेज मुखारविदं।।
कर क्रीडति किन किन धुनं। किलकत मंद मंद हॅसं।।
सुख पाय तके छवि बलं। रवि रश्मि रति सरस मनं।।
जय हो श्री गनेशजी शुभं। जय हो श्री गनेशजी शुभं।।
के0पी0सत्यमध् मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 6, 2013 at 9:15am — 4 Comments
!!! प्यारी बेटी !!!
बेटी, सुनहरी धूप सी.....!
बेटी, नीम की छांव सी....!
बेटी, धन सी कामना...!
बेटी, कुल को तारना....!
बेटी, जीवन की आदि.अन्त....!
बेटी, मंदिर की साधु-संत....!
बेटी, गृहस्थ की पहली कड़ी.....!
बेटी, आनन्द की बेल चढ़ी......!
बेटी, दो कुटुम्ब की आधार-शान....!
बेटी, मधु-अमृत और सम्मान......!
बेटी सुख-दुःख की छाया.....!
बेटी, श्रृंगार की पेटी-माया...!
बेटी, सतरंगी इन्द्रधनुष...!
बेटी, सास की साजिश......!
बेटी,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 5, 2013 at 2:13pm — 14 Comments
मृत्युंजयी
रणभेरी बज उठी प्रिय!,
मैं मस्तक तिलक लगाऊॅ।
भारत मां को स्वतंत्र कराया,
मिलकर सोलह श्रृंगार किया।
प्यारी सद्भावना देवी को,
मैं श्रध्दा सुमन चढ़ाऊॅ।।--- रणभेरी....
देश की खातिर जिये अभी तक,
क्षमा-दान सब उत्सर्ग किया।
आ गई परीक्षा की घड़ी,
मैं शौर्य गीत ही गाऊॅ ।।--- रणभेरी...
दुनियां में अमन चैन रखने को,
सीटीबीटी बहिष्कार किया ।
परमाणु सम्पन्न देशों…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 3, 2013 at 9:54pm — 10 Comments
!!! लखनऊ शहर !!!
जीवन है सरस लखनऊ सदा!!!
नवाबी सुरूर,
बागों की हूर
हुस्न औ शबाब,
हजरत आदाब।
अमनों शहर मजहबी सजदा।
जीवन है सरस लखनऊ सदा!!1
मस्जिद आजान
मंदिर रस गान
अमृत औ नीरज
साहित्य धीरज।
शायर कवि कहते बेपरदा।
जीवन है सरस लखनऊ सदा!!2
भूल भुलईया
दिलकुशा छइयां
गंजो का गंज
बागों का ढंग।
यहां हरियाली रहती फिदा।
जीवन है सरस लखनऊ सदा!!3
गलियों की महक
अहातों की चहक
पतंगी जुनून
फाखता…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 2, 2013 at 9:23am — 18 Comments
!!! मां !!!
मां -एक मात्र ऐसी स्तम्भ है,
जिस पर सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड टिका है।
और हम अज्ञानी-अहंकारी-विकारी,
मां का अनादर करते है-
लज्जित करते है।
हम इस ब्रहमाण्ड को परे रख कर
स्वयं को सर्वज्ञ - अभिन्न,
विधाता बने फिरते है।
सुखी-स्वस्थ्य-सम्पन्न होने की चाह,
दया-मुक्ति-परमार्थ होने की आश,
धिक-धिक-धिक है हमारी सोच।
धिक्कार है! ऐसा आत्मबोध!
आह! अकेला ही रह जाएगा,
मां को छोड़...
और मां!
फिर भी मां है।
अन्त समय में भी मां…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 1, 2013 at 7:58am — 10 Comments
मां!
आंचल-आशीष, प्यार-दुलार
दया-दान, क्षमा-उपकार है।
सहज-प्रकृति-अभिव्यक्ति
सृष्टि-दृष्टि-संस्कार है।
माया-मोह, ममता-मनमोहनी
सानिध्य-सहिष्षुण-सद्व्यवहार है।
मां!
श्रृध्दा-गरिमा, प्रेरक-उध्दारक
धूप-छांव, सर्दी-गर्मी-बरसात है।
लक्ष्मी-सरस्वती, सीता-सावित्री
दुर्गा-शारदा, काली-कपाली-चामुण्डा है।
ज्योति-ज्ञान, विचारक-संवाहक
आचार-विचार, शब्द-उच्चारण है।
मां!
पूजा-पाठ, आस्था-सद्गुरू
पतित-पावनी गंगा-जमुना-गोदावरी है।
हां! यही…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 30, 2013 at 9:12am — 12 Comments
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