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Dr. Vijai Shanker's Blog (202)

सरकार - इनकी उनकी--- डॉo विजय शंकर

लोगों की , लोगों से , लोगों के लिए
सरकार होती है ,
हमने इनकी , उनकी ,
हर इनकी , हर उनकी ,
सरकार बना दी , लोगों से छीन कर ।
हालात ये हैं कि अब हर एक
ठगा सा लगता है,
दूसरे की हो सरकार तो
डरा डरा सा लगता है ॥
खुद अपनी हो सरकार तो
ज्यादा ही अड़ा अड़ा सा लगता है ॥
अपनी स्वतंत्रता , अपना राज , अपनी सरकार ,
सब कुछ अपना अपना है , दूजे सब बेकार ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

Added by Dr. Vijai Shanker on January 29, 2015 at 10:29am — 30 Comments

जनतंत्र पूर्ण हो जाएगा --- डॉ o विजय शंकर

ये हुकूमतें , ये शान,

ये ऐशो -आराम ,

किस से हैं , किस की बदौलत हैं ,

जिस दिन ये यह अहसास हो जाएगा ,

उस दिन जनतंत्र भी पूर्ण हो जाएगा ॥



बत्तीस रूपये प्रतिदिन में

जिंदगी गुजारने वाले,

किसके बनाये हुए हैं ,

इनकी सोच , इन्होंने ही

एक एक वोट जोड़कर ,

तुझ जैसों को राजा बनाया है ||



महल की ऊपरी आखिरी ईंट तक

बुनियाद की शुक्रगुजार होती है ,

ख्याल कर ,

ये कब से तुझको

इतना ऊंचा उठाये हैं अपने सिर पर ,

इनका तो ख्याल… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on January 26, 2015 at 11:10am — 19 Comments

कितनी अपनी है जिंदगी --- डॉ o विजय शंकर

अपनी होते हुए भी कितनी अपनी है जिंदगी ,

हम नाचते हैं जिंदगी भर , नचाती है जिंदगी।



बस में बिलकुल नहीं है किसी के भी जिंदगी

खुद पर जिंदगी भर कितनी हावी है जिंदगी।



हसरत है तुझे जी लें एक बार अपने ही ढंग से

पर तू तो अपने ही ढंग से जिलाती है जिंदगी।



वो नाचने वाला है ,हुनर है , यही रोजी है उसकी ,

उसको भी अपने ही ढंग से नचाती है जिन्दंगी |



उसकी मर्जी ,करम कैसे - कैसे कराती है जिंदगी

निष्ठुर अपने ही ढंग से हँसाती-रुलाती है जिंदगी… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on January 23, 2015 at 10:42am — 15 Comments

जन भ्रमित है , मन भ्रमित है -- डॉ o विजय शंकर

जन भ्रमित है ,

मन भ्रमित है ,

जन-इच्छा , बनी नहीं ,

जन-शक्ति , जगी नहीं ,

जनतंत्र है , तंत्र को

जन की ही खबर नहीं ,

कोई फ़िकर नहीं |

तंत्र जन जन से दूर है ,

जन तंत्र से मजबूर है ,

विवश है, लाचार है,

डरा ,सहमा , बीमार है,

कुछ कह नहीं पाता ,

जनादेश देने वाला,

आदेश , किसी को ,

दे नहीं पाता ,

तंत्र व्यस्त है , स्वयं में मस्त है ,

जन उपेक्षित है , हालात से त्रस्त है ,

तंत्र क्या क्या पा रहा है,

जन क्या क्या खो… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on January 20, 2015 at 9:07am — 23 Comments

अच्छे दिन व्यापार हुआ करते हैं-- डॉ o विजय शंकर

दुआओं में याद कीजियेगा ,

जब याद कीजियेगा ,

दुआ कीजियेगा।

मिलते हैं तो कहते हैं ,

आपकी सुबह अच्छी हो ,

शाम अच्छी हो ,

रात अच्छी हो,

जितनी बार मिलते हैं , हर बार कहते हैं ।

दिन रहते , विदा होते हैं , तो

आपका दिन अच्छा हो , कहते हैं ।

दुआओं में असर होता है ,

लोग यूँ भी दुआ करते हैं ,

हाथ मिला कर कहते हैं,

सिर को थोड़ा झुका कर कहते हैं ,

मुस्कुरा कर कहते हैं ,

जिसे जानते हैं , उस से कहते हैं ,

नहीं जानते , उस से भी…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on January 18, 2015 at 11:30am — 14 Comments

जीवन, रेखा पार -- डॉo विजय शंकर

गरीब होता नहीं है ,

गरीब घोषित होता है ।

वैसे ही जैसे सूखा घोषित होता है,

जैसे बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र घोषित होता है ।

गरीबी की एक रेखा होती है ,

होती वो गरीबी अमीरी के बीच की है ,

सम्मान वश उसे गरीबी की रेखा कहते हैं ,

आदमी जितना इस रेखा को जानता है ,

उतना विषुवत रेखा को नहीं जानता है ।

उसको लांघ गए तो वाह,

गरीब घोषित होने के चांस बन गए ।

होना न होना तो अलग ,

हो भी गए तो क्या पा जाओगे ,

नहीं होगे तो क्या है, जो खो दोगे ।

हाँ, एक… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on January 8, 2015 at 2:00pm — 10 Comments

गरीबी - एक विषय : डॉo विजय शंकर

कवि थे ,

गरीबी बहुत है ,

अच्छे वाक-जाल में

बयान की , कविता अच्छी बनी ,

मित्रों ने चाय-वाय की फरमाइश की ,

खूब वाह-वाही मिली ,

चाय-वाय रात भर चली ||



लेखक थे ,

गरीबी पर लेख छपा था ,

दिन भर बधाईयाँ आती रहीं ,

बहुत खुश थे , आग्रह भी था ,

ख़ास मित्रों ,पत्नी और बच्चों को ,

मंहगे रेस्त्रां में डिनर पर ले गए ,

गरीबी पर डिस्कशन खूब हुआ ,

खाना - पीना देर रात तक हुआ ,

देर हो ही गयी , रात देर से लौटना हुआ ॥



फ्री… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on January 2, 2015 at 8:23pm — 20 Comments

नव वर्ष शुभ हो --- डॉ o विजय शंकर

खुशियाँ, हम हर किसी से बाँट लेते हैं,

खुश भी हो लेते हैं।

गम किस से बांटे , सोंच नहीं पाते हैं ,

खुद ही सह लेते हैं।

फिर भी कुछ तो अपने ऐसे होते ही हैं ,

जो हमारे ग़मों को बाँट लेते हैं।

वो कुछ बहुत ख़ास अपने ही होते हैं।

जो दुःख में साथ होते हैं।

कितने ऐसे हैं जो दुखों को हमारे पास

आने नहीं देते हैं।

रास्ते में रोक लेते हैं,

खुद पे ले लेते हैं।

हम उन्हें जानते नहीं ,

पहचानते भी नहीं ,

वे सामने कभी आते नहीं,

नव वर्ष… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 31, 2014 at 11:24pm — 16 Comments

अंधकार को अंधकार से मिटाते हैं -- डा० विजय शंकर

रौशनी से अन्धकार तो सब मिटा लेते हैं

हम अंधकार को अंधकार से मिटाते हैं |

एक बुराई हटाई , हटाई क्यों , हटाई नहीं ,

साइड में लगाईं , नई बुराई लगाई |

एक फेल को दूजे फेल से बदल दिया ,

एक असफल को फिर असफल होने का

अवसर दिया , और जोरदार एलान किया ,

देखो , हमने कैसा परिवर्तन कर दिया ,

और एक कमजोर का उत्थान भी कर दिया |

क्योंकि हम वीर हैं , हर हाल में जी लेते हैं ,

किसी बुराई से डरते नहीं ,

हर बुराई में जी लेते हैं ,

हर बुराई को झेल लेते हैं… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 30, 2014 at 1:03pm — 24 Comments

ये खुशियाँ , ये गम --- डा० विजय शंकर

दुःख तो हम कितने ही झेल जाते हैं ,

ये तो खुशियाँ हैं जो संभाले नहीं संभाली जाती हैं।



ये दर्द हैं , दुःख है जो हम हमेशा छुपा ले जाते हैं ,

बस ये खुशियाँ हैं जो हर बार चेहरे पे आ जाती हैं।



हम खुशियों को लोगों में बाँटने की बात करते हैं ,

लोग जाने कैसे हैं , लोगों को ही बाँट लेते हैं ।



दुःख दर्द कितने अपने हैं , छिपाओ तो बस छिपे रहते हैं ,

खुशियां गैर ,परायी , बेमुर्रव्वत हैं ,जाहिर हो जाती हैं |



खुशियाँ हैं ,आती हैं ,जाती हैं, कितनी… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 25, 2014 at 11:15am — 11 Comments

रिश्ते हैं , बन जाते हैं -- डा० विजय शंकर

लोग मिलते हैं ,

जीवन में आते हैं ,

रिश्ते हैं , बन जाते हैं |

कभी छाँव में दो पल साथ बिताते हैं ,

कभी तपती दोपहरी भी सह जाते हैं ,

कभी चट्टान से बन जाते हैं ,

कभी बरगद की तरह हो जाते हैं,

कभी फूलों की तरह आते हैं ,

सब महका , महका जाते हैं ,

रिश्ते हैं , बन जाते हैं |



रिश्ते बनते हैं ,

बनते जाते हैं ,

कभी छूट भी जाते हैं ,

कभी कहीं बिखर जाते हैं ,

कभी बिखरने की वजह से छूट जाते हैं।

कभी कांच से भी नाज़ुक रह जाते हैं… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 21, 2014 at 9:40am — 20 Comments

तुम्हारा मौन जो कह गया -- डॉo विजय शंकर

दिल में जो था मेरे ,

मैंने कहा , मैं कह गया ॥

सब कुछ कह गया ॥

सुन लिया तुमने ,

और कुछ ,

कुछ भी नहीं कहा ॥

शांत , सब सुन लिया ,

मौन एक , बस , धर लिया।

ये मौन तुम्हारा ,

दीर्घ मौन तुम्हारा ,

कितना कुछ कह गया ,

कितना गहरा उतर गया ||

इसी में डूबता - उतराता रहूंगा

मैं , अब उम्र भर ,

और समझता रहूंगा ,

विवशता तुम्हारी ,

सब सुनना , सुन लेना ,

कुछ न कहना , कुछ भी न कहना ,

एक बोझ , लिए रहना ,

उस बोझ को सहते… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 17, 2014 at 11:33am — 12 Comments

इण्डिया शब्द की व्युत्पत्ति -- डॉo विजय शंकर

देश-प्रेम से ओत-प्रोत लोगों में देश के लिए भावुक हो जाना स्वभाविक है। पर भावुकता के साथ साथ यथार्थ को यथावत स्वीकार कर लेना भी देशप्रेम ही है।

ओ बी ओ स्वर्ण जयंती महोत्सव में ' भारत बनाम इण्डिया ' के सन्दर्भ में इण्डिया शब्द की व्युत्पत्ति पर एक दृष्टि डाल लेना किंचित विसंगत न होगा।

सामान्यतः यह माना जाता है कि जीवन - दायनी गंगा ने इस देश की संस्कृति निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया और सिंधु नदी ने इस देश को पाश्चात्य विश्व में एक पहचान दी और एक नाम दिया | सिंधु नदी भारत के… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 14, 2014 at 10:04am — 9 Comments

घर वो होता है -- डॉo विजय शंकर

घर वो होता है ,

जहां आपका सदैव

इन्तजार होता है ।

जहां आप जाते नहीं ,

आप , जहां भी जाते हैं ,

वहीँ से जाते हैं ।

घर न दूर होता है , न पास होता है ,

जहां से हम सारी दूरियां नापते हैं ,

घर वो होता है ।

घर वो होता है,

जहां माँ होती है ,

जहां से माँ आपको कहीं भी भेजे ,

आपका इन्तजार वहीँ करती होती है ।

माँ जननी होती है , जनम देती है ,

धरती पर लाती है , माँ घर बनाती है ,

माँ ही घर देती है ,जब तक माँ होती है ,

अपने सब… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 10, 2014 at 9:51am — 22 Comments

ये मोहब्बत भी क्या चीज़ होती है -- डॉo विजय शंकर

हर बात की वजह होती है

ये मोहब्बत ही क्यों बेवजह होती है

और जो बवजह हो , वो कुछ भी हो ,

यक़ीनन, वो मोहब्बत नहीं होती है ॥



जानकार कहते हैं ,

बिना हिलाये तो पता भी नहीं हिलता ,

बिना किये तो कुछ भी नहीं होता है ,

फिर ये मोहब्बत क्यूँकर अपने आप होती है ।



यूँ तो बहुत जगाये रहती है , फिर भी ,

ये मोहब्बत क्यों एक गहरी नींद का ,

एक ख़्वाब सी लगती है जो हमेशा

टूट जाने के डर के साये में रहती है ॥



मोहब्बत कोई गुनाह तो नहीं है ,… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 7, 2014 at 9:51am — 14 Comments

क्षणिकायें - 4 -डॉo विजय शंकर

प्यार का
अर्थ खोजोगे
प्यार खो दोगे

दोस्ती की
वजह खोजोगे
दोस्ती खो दोगे

रिश्तों का अर्थशास्त्र
न काम करे अर्थ ,
न करे शास्त्र

राजनीति
बिना दूध दही
ढेरों नवनीत

शाश्त्रों का अर्थ
अपना अपना
अर्थशास्त्र

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on December 1, 2014 at 8:30am — 21 Comments

मन-भावक इतिहास - डॉo विजय शंकर

अच्छा लगता है
पुरखों को याद करना ,
उनकीं कथाएं , उनकीं उब्लब्धियाँ ,
सुनना और बयान करना ॥
एक गौरवपूर्ण अतीत और
उसकी सुनहरी स्मृतियाँ ॥
और , सुन्दर सपने देखना ,
फिर कोई भगीरथ आएगा
गंगा क्या , इस बार स्वर्ग ही
धरती पर उतार लाएगा ॥
अभी से दलाल या ठेकेदार
ढूँढ लो , उसके संपर्क में रहो,
स्वर्ग का टिकट वही न दिलाएगा ॥


मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on November 26, 2014 at 10:30pm — 16 Comments

क्षणिकाएँ - 3 - डा० विजय शंकर

भला आदमी है वो ,
भला करता है ,
सौदागरों की तरह ।

रहमदिल है वह
दुआ करता है
भिखारियों की तरफ ।

आशीर्वाद देता है वह
चढ़ावा चढ़ जाने के बाद
पुजारी है वह ।

सब कर देगा वह
सब पा लेने के बाद
वादा है उसका ,
नेता है वह ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on November 19, 2014 at 5:46pm — 26 Comments

गुनाह होना आम हो गया - डॉo विजय शंकर

वो गुनाह को पनाह देते रहे

वो पनपता रहा , वो मौज करते रहे .

गुनाह होना रोज का काम हो गया

ऐसा काम , कि बस आम हो गया ,

जब चाहे , जहां हो जाये ,

कौन जानें , कब , कहाँ हो जाये .

हालात ये हैं कि अब लोग चौंकते नहीं ,

कहीं , कुछ भी , हो जाए बोलते नहीं ,

कहीं , किसी से , कुछ पूछतें नहीं

उस तरफ , उफ्फ … देखते नहीं ,

ये हालात हैं , जो शर्मिन्दा कभी हुए नहीं ,

जब कि गुनाह खुद बेइंतहा शर्मिन्दा है ....

कि लोगो में उसके लिए कोई खौफ नहीं है

इस… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on November 7, 2014 at 10:59am — 22 Comments

जो प्रिय है -डा० विजय शंकर.

कोई सच प्रिय है

कोई सच अप्रिय है

कोई कोई तो कटु है |

सच तो सच है ॥

सच है, इसीलिये तो सच है |

और इसीलिये तो, है ॥



झूठ वो है जो नहीं है ,

फिर भी है , क्योंकि

हम मान रहे हैं, कि है,

हम इसलिए मान रहे हैं

क्यों कि वह हमको प्रिय है ॥



हमको क्या प्रिय है,

वो झूठ , जो है नहीं ,

जो है नहीं , कहीं नहीं

वह हमको प्रिय है ॥

जो है नहीं वो हमको

प्रिय कैसे हो सकता है ||



वो क्या है जो हमें

प्रिय है और है… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on October 31, 2014 at 8:09pm — 13 Comments

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