तन्हाई का कैसा यारो फंडा
कोई कैसे तन्हा भी हो सकता है ?
फूल कही
हो खुशबु उसके साथ रहे ,
खुशबू हो जो वो भी हवा के साथ बहे
खुशबु से
हम सब का दामन भरता है ,
तन्हाई का कैसा यारो फंडा है ,
कोई कैसे
तन्हा भी हो सकता है ?
दिल के साथ है धड़कन ,
आँख के साथ स्वप्न ,
सुखदुख
साथ में मिलके बनता है जीवन ।
जीवन धार में मिलके जीवन चलता है ,
तन्हाई
का कैसा यारो फंडा है ।
कोई कैसे तन्हा भी हो सकता है ?
दीप के साथ
है…
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Added by DEEP ZIRVI on October 18, 2010 at 9:00pm —
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क्या हमारे सितारे झूठ बोलते हैं ,
ये सोच कर मेरा दिल जलता हैं ,
एक जन सेमसंग गुरु का रट लगाया ,
मेरे पॉकेट से अच्छा चूना लगवाया ,
एक बादशाह हैं अच्छा उल्लू बनाया ,
हप्ता क्या सालो मला ना चमक पाया ,
एक महानायक हमें जो बताया ,
हकीकत के पास उन्हें भी ना पाया ,
सर जी ने बोला आइडिया बदल देगी ,
नही पता था तीस रुपया वो काट लेगी ,
गलती से बेटा ने दबा दिया जो फोन आया ,
मेरे बैलेंस से तीस रुपया का चूना लगाया ,
बाद में पता चला १० और खा गया वो…
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Added by Rash Bihari Ravi on October 18, 2010 at 7:30pm —
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मुफलिस ही रहने दो हमको
हम न मांगे चांदी -सोना .
इश्क की दौलत पास हमारे ,
कैसी ग़ुरबत -कैसा रोना
जाहिद जाने रसमे -इबादत,
हमको उसके ,इश्क की आदत
जिसके नूर की एक शफक से,
रोशन दिल का कोना- कोना
इश्क- ए- खुदा हो जाने दे कामिल
उसकी नज़र में ,होकर शामिल
दिन भर रब की मैय को पीकर
रात में चादर तान के सोना
ये है सराय घर न तेरा
जिसमे लगाया तूने डेरा
कल आयेंगे , और मुसाफिर
मालिक बदले रोज बिछौना
आनंद तनहा
Added by anand pandey tanha on October 18, 2010 at 7:00pm —
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धड़कते दिल की सदा है तू
मुहब्बतों की खुदा है तू
के तेरा नाम है मुहब्बत
किसे खबर है के क्या है तू
तेरी ज़रूरत है इस जहाँ को
दहकती हुई हर इक फ़िज़ा को
तू ही मंदिर तू ही मस्जिद
तू ही बच्चे की तोतली बोली
तू ही ममता का बे हिसाब साया
तू ही है पापा की डांट जानूं
तू ही चिड़ियों की चहचहाहट
तू ही है कलियों की मुस्कुराहट
तेरे दम से बहार क़ायम
मैं क्या गिनाऊँ तेरे गुणों को
के तू मुहब्बत है तू…
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Added by mohd adil on October 18, 2010 at 6:30pm —
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धूप के दरिया में नहाता है गुलाब
फिर भी ताज्जुब है मुस्काता है गुलाब
जिनके चेहरों पर उदासी होती है
मुस्कुराना ऐसों को सिखाता है गुलाब
जब किसी के लिए बिखरता है
तब कहीं जाके चैन पाता है गुलाब
रास्ते में बिखेर कर खुद को
साथ राही के भी जाता है ग़ुलाब
जो ज़माने में नामवर थे कभी
वाक़ए उन के सुनाता है गुलाब
Added by mohd adil on October 18, 2010 at 6:00pm —
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दशहरा के अवसर पर १७ अक्टूबर २०१० को वाराणसी स्थित श्री शारदापीठ मठ सभागार में वरिष्ठ शायर श्री अनुराग शंकर वर्मा के ग़ज़ल संग्रह "कहने को जुबां है"का विमोचन और इस मौके पर कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया. मैं भी आमंत्रित था यह आयोजन कई मायनों में यादगार रहा. पहली बात यह कि श्री अनुराग जी अभी उम्र के ८३ वें वर्ष में चल रहे है और यह उनका पहला संग्रह है. जो उनकी स्वयं की इच्छा से नहीं बल्कि दूसरों के अधिक प्रयास से साकार रूप ले सका है. अनुराग जी का सारा लेखन उर्दू में है और उसे समेटना काफी मुश्किल था…
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Added by Abhinav Arun on October 18, 2010 at 4:30pm —
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विशेष लेख-
भारत में उर्दू :
संजीव 'सलिल'
*
भारत विभिन्न भाषाओँ का देश है जिनमें से एक उर्दू भी है. मुग़ल फौजों द्वारा आक्रमण में विजय पाने के बाद स्थानीय लोगों के कुचलने के लिये उनके संस्कार, आचार, विचार, भाषा तथा धर्म को नष्ट कर प्रचलित के सर्वथा विपरीत बलात लादा गया तथा अस्वीकारने पर सीधे मौत के घाट उतारा गया ताकि भारतवासियों का मनोबल समाप्त हो जाए और वे आक्रान्ताओं का प्रतिरोध न करें. यह एक ऐतिहासिक सत्य है जिसे कोई झुठला नहीं सकता. पराजित…
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Added by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2010 at 9:56am —
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कश्ती का है क़ुसूर न मैरा क़ुसूर है
तूफान है बज़ीद के डुबोना ज़रूर है
जो मैरे साथ साथ है साए की शक्ल मैं
महसूस हो रहा है वही मुझ से दूर है
मोजों का यह सुकूत न टूटे तो बात हो
दरया मैं डूबने का किसी को शऊर है
देखा है जब से तुमको निगाहों मैं बस गये
हद्दे निगाह सिर्फ़ तुम्हारा ज़हूर है
दामन मैं सिर्फ़ धूप के दरया समाए हैं
सहरा को इस वजूद पे फिर भी गुरूर है
Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 17, 2010 at 7:00pm —
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सच की जीत मनाएँ हम
टूटे दिलों को एक मनाएँ हम
आज के दिन को एकता के रूप मैं मनाएँ हम
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई एक होजाएँ हम
जीत हुई सच्चाई की
और रावण हार गया
छोड़ कर जीवन परलोक सिधार गया
सच्चाई के रखवालों ने
नेकी के करने वालों ने
एक एसा सबक़ सीखा दिया उसको
हमेशा के लिए मिटादिया उसको
सारे नेकी के करने वालों ने
उस को याद करेगें शेतानो मैं
राम का नाम रहेगा हर…
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Added by mohd adil on October 17, 2010 at 12:30pm —
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धरा नागपुर की पावन पर चमत्कार हुआ अनमोल
विजयदशमी की पावन बेला पर केशव माधव हरी हरी बोल ;
जन सेवा का लिया व्रत और स्वयमसेवक जो कहलाये
सघन पेड़ बरगद का जैसे ,फैलता फैलते ही जाएँ
श्रम साधित वन्दना हमारी मानवहित करते जाएं
बन कर भारती पूत अमोल केशव माधव हरी हरी बोल ;
धरा नागपुर की पावन पर चमत्कार हुआ अनमोल
विजयदशमी की पावन बेला पर केशव माधव हरी हरी बोल ;
डगर कठिन ये सफर कठिन हो हम को निज मंजिल…
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Added by DEEP ZIRVI on October 17, 2010 at 8:00am —
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सच्चे मोती की हे तलब मुझ को
कितने दरया खंगालता हूँ मैं
ठोकरे एक सबक़ सिखाती हैं
खुद को गिर कर संभालता हूँ मैं
फिर भी तारों को छू नही पाता
लाख खुद को उछालता हूँ मैं
एक तबस्सुम सजा के होटो पर
दर्द को अपने पालता हूँ मैं
आओ दरयाओं पानी लेजाओ
अपने आँसू निकालता हूँ मैं
Added by mohd adil on October 17, 2010 at 12:30am —
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आँखों मैं चले आना सीने मैं उतर जाना
तुम दर्द अगर हो तो फिर मुझ मैं बिखर जाना
रस्ता ना बताए गा मंज़िल के इलाक़े को
तुम खूब समझते हो तुमको है किधर जाना
वो आग उठा लाया सूरज के इलाक़े से
मैने था कभी जिस को साए का शजर जाना
रुकती हैं कहाँ जाकर यह इल्म नहीं कोई
हमने तो हवाओं को मसरूफ़े सफ़र जाना
ए शाम के शहज़ादो क्यूँ जश.न मैं डूबे हो
क्या तुमने अंधेरों को सामने सहर जाना
Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 16, 2010 at 10:30pm —
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माँ को क़ुदरत सलाम करती हॅ
माँ को फ़ितरत सलाम करती हॅ
प्यार के सब बने पुजारी हैं
आस्था के बने भिखारी हैं
जब दिया मैं जलता हूँ
देख कर तुझ को मुस्कुराता हूँ
अपने सीने से तू लगा मुझ को
और स्नेह से तू सजा मुझ को
अपनी ममता का आसरा दे दे
अपने चरणो मैं तू जगह दे दे
फूल बनकर महकता जाऊँ मैं
और स्नेह मैं गुनगुनाऊँ मैं
मेरी माता महान है कितनी
यह हक़ीक़त जवान है कितनी
दरदे दिल की मेरे दवा…
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Added by mohd adil on October 16, 2010 at 7:30pm —
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आज वह अखबार पढते हुए ना जाने क्यों इतना उदास था ! इसी बीच उसकी नन्ही बच्ची ग्लोब लेकर उसके पास आ गई और कहने लगी:
"पापा, आज क्लास में बता रहे थे कि भारत ऋषि मुनियों और पीर फकीरों की धरती है, और उसको सोने की चिड़िया भी कहा जाता है ! आप ग्लोब देख कर बताईये कि भारत कहाँ हैं ?"
उसकी नज़र सहसा अखबार के उस पन्ने पर जा टिकी जो कि हत्या, लूटपाट,आगज़नी, दंगा फसाद, आतंकवाद, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भूख से होने वाली मौतों,धार्मिक झगड़ों और मंदिर-मस्जिद विवादों से भरा पड़ा था ! उसकी बेटी ने एक बार फिर…
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Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:20pm —
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महाभारत का घटनाचक्र एक बार फिर से दोहराया गया ! लेकिन इस बार जुआ युधिष्ठिर नहीं बल्कि द्रौपदी खेल रही थी! देखते ही देखते वह भी शकुनी के चंगुल में फँसकर अपना सब कुछ हार बैठी ! सब कुछ गंवाने के बाद द्रौपदी जब उठ खडी हुई तो कौरव दल में से किसी ने पूछा:
"क्या हुआ पांचाली, उठ क्यों गईं?"
"अब मेरे पास दाँव पर लगाने के लिए कुछ नहीं बचा " द्रौपदी ने जवाब दिया !
तो उधर से एक और आवाज़ आई:
"अभी तो तुम्हारे पाँचों पति मौजूद है, इनको दाँव पर क्यों नहीं लगा देती ?"
द्रौपदी ने शर्म से…
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Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:00pm —
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मुलजिम को संबोधित करते हुए न्यायधीश ने कहा:
"तुम पर आरोप है कि तुम सीमा पार से ५ लाख रुपये की जाली करंसी, १० लाख रुपये ने नशीले पदार्थ और भारी मात्रा में गोला बारूद लाते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किए गए हो ! इस से पहले कि अदालत कोई निर्णय सुनाये, क्या तुम अपनी सफाई में कुछ कहना चाहोगे?"
दोनों हाथ जोड़ कर मुलजिम ने जवाब दिया,
"केवल एक सवाल पूछने की इजाज़त चाहूँगा हुज़ूर !"
"इजाज़त है", न्यायधीश ने कहा
"जाली करंसी, नशीले पदार्थ और हथियारों का ज़िक्र तो आपने कर दिया, मगर मुझ से…
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Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:00pm —
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बला का चेहरा तमाशा दिखाई देता है
हक़ीक़तों मैं जनाज़ा दिखाई देता है
चमक रहा था जो आकाश पर बना सूरज
ज़मीं पे आन के बोना दिखाई देता है
किसी चिता की यह जल कर बढ़ाएगा शोभा
वो एक दरखत जो सूखा दिखाई देता है
हमारी धरती पे नफ़रत के बीज बो के कोई
हवा के दोश पे उड़ता दिखाई देता है
हुआ ना आज भी सेराब बद दुआ लेकर
वतन से दूर जो भागा दिखाई देता है
Added by mohd adil on October 16, 2010 at 6:30pm —
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(हर नारी मिनौती है .. यहाँ दृश्य अरुणाचल का है , इसलिए बांस, धान , सूरज , सीतापुष्प , पहाड़ के बिम्ब भी उसी प्रदेश के हैं. बरई, न्यिओगा वहाँ के लोक जीवन से जुड़े गीत हैं - जैसे हम बन्ना- बन्नी , आला , बिरहा से जुड़े हैं ... इस संगीत को बांसों से जोड़ा है .. जैसे बांस के खोखल से निसृत होकर ये मिनौती की आत्मा में पैठ गए हैं ... नारी के मन और आत्म को समझाते हुए पुरुष से अंतिम प्रश्न पर कविता समाप्त होती है ...)
मेरे बांस
पहचानते…
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Added by Aparna Bhatnagar on October 16, 2010 at 5:00pm —
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यह तमन्ना है मुझे आज पुकारे वो भी
मेरी आँखो के करे आके नज़ारे वो भी
सिर्फ़ बाक़ी हे तेरी याद का हल्का सा दिया
यादे माज़ी के छुपे सारे सितारे वो भी
खुदगर्ज़ जेहन से मिट जाए अना की तस्वीर
अपनी पोशाक रयाकार उतारे वो भी
चाँदनी रात हे खूशबू की महक हे हर सू
आके दरया पे ज़रा ज़ुल्फ संवारे वो भी
जो बहुत दूर है. नज़रों से तखय्युल के परे
फलसफा कहता हे रोशन हैं सितारे वो भी
Added by mohd adil on October 16, 2010 at 5:00pm —
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आंधियां चल दीं आज़मानें सौ ,
गढ़ लिए हमने आशियानें सौ.
जिनकी हस्ती नहीं बसाने की ,
वो चले बस्तियां ढहानें सौ.
पुलिस के वास्ते बस एक थाना ,
माफिया के यहाँ ठिकानें सौ.
जीते जी तो हुआ न कोई एक,
अब मरा है चले नहानें सौ.
सफेदी ज़ुल्फ़ की यूँ ही तो नहीं ,
एक दिल यहाँ फसानें सौ.
लाख हैं बालियाँ चिडियाँ दस बीस,
खेत में बन गयीं मचानें सौ.
कटी उस ओर है खुशियों की पतंग,
लूटने चल दिए दीवानें…
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Added by Abhinav Arun on October 16, 2010 at 4:03pm —
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