आज पिर्तु दिवस पर मै श्रधान्जली के रूप में अपना नाम ;; कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा'' रखता हूँ ,आने वाली रचनाओ में इसी नाम से आप लोग ,अपना प्यार और आशीर्वाद दें...धन्यवाद
Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 20, 2010 at 2:15pm —
2 Comments
हर जगह
छलांग नहीं लगाया जा सकता ॥
मंजिल तक
पहुचने के लिए
सीढियों की ज़रूरत
तो पड़ती ही है ॥
इन सीढियों को
हम जितनी
मेहनत /श्रम /लगन से बनायेगें ....
ये सीढिया ...
उतनी जल्दी ही
हमें अपनी मंजिल तक
पंहुचा देगी ॥
----------बबन पाण्डेय
Added by baban pandey on June 20, 2010 at 9:56am —
3 Comments
मैं तुझ से मिलने आऊंगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा
हर रात हौले से जब बंद करेगी तू अपनी आँखें
तेरे सपनो के द्वार इक दस्तक मैं दे जाऊँगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा
मैं तुझ से मिलने आऊंगा
लाख लगा ले तू पहरा अपने महलों की द्वारों पे
नज़र उठा के देख ज़रा लिखा है मैने नाम तेरा चाँद सितारों मे
जानता हूँ हर रोज़ जाती है तू फूलों के बागों मे
बालों मे लगाती है इक गजरा पिरोके उनको धागों मे
इक दिन बनके फूल तेरे गजरे का तुझ ही को महकाऊँगा
मैं…
Continue
Added by Pallav Pancholi on June 20, 2010 at 12:47am —
5 Comments
कौन कहता है ........मै इन्सान नहीं हूँ ,
हरकतें तो वही हैं ,मतलब भगवान नहीं हूँ ॥
मन में सब दुनियावी इच्छओं का ढेर लगा है ,
सब है फिर भी मुझको भी, ९९ का फेर लगा है ॥
मन की सारी चिंताएं बिलकुल, सबके जैसी हैं ,
मेरी हैं सबसे अलग, तुम्हारी बताना कैसी है ॥
हम तो सबका भला मांगते, ऐसा मन कहता है ,
पर हमेशा अपने भले की ,दुआ ये मन करता है ॥
हूँ इन्सान पर कहता हूँ'' मै बेईमान नही हूँ '',
अगर यह सच है, तो लगता है ''इन्सान नही हूँ…
Continue
Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 19, 2010 at 8:01pm —
3 Comments
करो जीवन मे जो प्रण,
पुरा करने को उसे,
कर दो तन-मन सब कुछ अर्पण।
राह मे आए चाहे कितनी भी कठिनाइयां,
चाहे हँसती रहे तुमपर सारी दुनिया,
अगर पक्का है तुम्हारा इरादा,
तोड़ सकते हो तुम हर बाधा,
सदा रखो स्वयं पर नियंञण,
अस्वीकार कर दो लोभ का हर निमंञण,
ज्यों-ज्यों लक्ष्य के प्रति बढेगा आर्कषण,
चिड़िया की तरह तिनका तिनका उठाना होगा,
तुम्हे रात-दिन अपना पसीना बहाना होगा,
हिम्मत मेहनत और लगन से
पुर्ण किया जो तुमने… Continue
Added by Raju on June 19, 2010 at 12:46pm —
5 Comments
माँ ....
मैं तुम्हें खोज लूँगा
तुम यहीं कहीं हो
मेरे आस -पास .... ॥
आपकी अस्थियां
प्रवाहित कर दी थी मैंने
गंगा में ॥
भाप बन कर उड़ी
गंगा -जल
और फिर बरस कर
धरती में समा गई
मैं सुबह उठकर
धरती को प्रणाम करता हू
इसे चन्दन समझ
माथे पर तिलक लगाता हू ॥
ऐसा कर
आपका
प्यार और वात्सल्य
रोज पा लेता हू .. माँ ॥
-------------बबन पाण्डेय
Added by baban pandey on June 19, 2010 at 6:20am —
5 Comments
आस का पंछी
मन इक् आस का पंछी
मत क़ैद करो इसे
क़ैद होंने के लिए
क्यां इंसान के
तन कम हैं
Added by rajni chhabra on June 19, 2010 at 1:00am —
3 Comments
दरिया में ही ख़ाक हुए, ये कैसा शरारा है.
साहिल पे ही डूब गए, ये कैसा किनारा है.
यहाँ छांव जलाती है,मुस्कान रुलाती है.
रातों में खुद को खुद की ही, परछाईं डराती है .
ये कौन सी दुनिया है, ये कैसा नज़ारा है.
साहिल पे ही डूब गए, ये कैसा किनारा है.
बीच भंवर में अटक गए, मंजिल से हम भटक गए.
वक़्त ने ऐसा पत्थर फेंका, सारे सपने चटक गए.
मापतपुरी को अब बस, मालिक का सहारा है.
साहिल पे ही डूब गए, ये कैसा किनारा है
गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल- 9334414611
Added by satish mapatpuri on June 18, 2010 at 11:12am —
5 Comments
गर्म हवा की तपिश से
उठे ववंडरों ने
उनकी आँखों में धूल झोंक दी
उनके कपडे भी उड़ा ले गयी
वे नंगा हो गए ॥
मगर .....
गर्म खबरों ने
उनको नंगा नहीं किया
क्योकि .... उन्होनें
नोटों की माला से
अपना शारीर ढक रखा था ॥
अब
गर्म खबरों में
गर्म हवा जैसी ताकत कहां ??
Added by baban pandey on June 18, 2010 at 6:56am —
4 Comments
(१)
शादी ....
समझौते की गाडी मे
स्नेह की सीट पर बैठकर
अंतिम स्टेशन तक
पहुचने की चाह रखने वाले
दो सहयात्री ॥
(२)
गर्लफ्रेंड -बॉय फ्रेंड का प्यार .....
कसमों - वादों की सिलवट पर
लुका -छिपी की नमक के साथ
पिसी गई
मुस्कराहट की चटनी ॥
(३)
पत्नी का प्यार ........
उबड़ -खाबड़ रास्तो पर
रातों को उगने वाला
गंध -विहीन
कैक्टस के फूल
सूघने जैसा ॥
(४)
शाली (पत्नी की छोटी बहन ) का…
Continue
Added by baban pandey on June 18, 2010 at 6:54am —
3 Comments
दोहा का रंग भोजपुरी के संग:
संजीव वर्मा 'सलिल'
सोना दहलs अगनि में, जैसे होल सुवर्ण.
भाव बिम्ब कल्पना छुअल, आखर भयल सुपर्ण..
*
सरस सरल जब-जब भयल, 'सलिल' भाव-अनुरक्ति.
तब-तब पाठकगण कहल, इहै काव्य अभिव्यक्ति..
*
पीर पिये अउ प्यार दे, इहै सृजन के रीत.
अंतर से अंतर भयल, दूर- कहल तब गीत..
*
निर्मल मन में रमत हे, सदा शारदा मात.
शब्द-शक्ति वरदान दे, वरदानी…
Continue
Added by sanjiv verma 'salil' on June 17, 2010 at 8:54am —
3 Comments
अरसे से तेरी याद मे जिंदा हूँ,करूँ अब ओर इंतज़ार कैसे
हर कसम इश्क़ की तोड़ी है तूने,करूँ तेरे नये वादे पे ऐतबार कैसे
ये जो जख्म हैं सीने पे मेरे, इक नाज़ुक कली ने दिए हैं मुझे
काँटों के बीच खिले इस गुलाब से अब मैं करूँ प्यार कैसे
ना हो वो बदनाम मेरे नाम के साथ, ओढ़ ली इसलिए गुमनामी मैने
अब तुम ही बताओ लाउ उसका नाम ज़ुबान पर भरे बाजार कैसे
दियों की तरह अरसे से जला रखा हे दिल दुनिया उसकी रोशन करने को
आँखो मे आँसू लेकर अब ओर मनाउ दीवाली का यह…
Continue
Added by Pallav Pancholi on June 17, 2010 at 12:15am —
5 Comments
कथा-गीत:
मैं बूढा बरगद हूँ यारों...
संजीव 'सलिल'
*
MFT01124.JPG
*
मैं बूढा बरगद हूँ यारों...
है याद कभी मैं अंकुर था.
दो पल्लव लिए लजाता था.
ऊँचे वृक्षों को देख-देख-
मैं खुद पर ही शर्माता था.
धीरे-धीरे मैं बड़ा हुआ.
शाखें फैलीं, पंछी आये.
कुछ जल्दी छोड़ गए मुझको-
कुछ बना घोंसला रह पाये.
मेरे कोटर में साँप एक
आ बसा हुआ मैं बहुत दुखी.
चिड़ियों के अंडे खाता था-
ले गया सपेरा, किया…
Continue
Added by sanjiv verma 'salil' on June 17, 2010 at 12:06am —
6 Comments
इक बार क्या मिला वो ,हर दिल अज़ीज़ हो गया ,
पल दो पल में वो मेरे दिल के, करीब हो गया ॥
अनजान थे जो अब तक, उसके असरार से ,
अंजुमन में हुई जब उसकी आमद, हबीब हो गया ॥
फिजां में ना था कही पे, उसका नामोनिशां ,
है हर शख्श की जुबां पर, यही ''मेरा नसीब हो गया ॥
जो बदनामी के डर से, राहें अपनी बदल गए ,
हैं ! वो बने हम -सफर ,कुछ किस्सा अजीब हो गया ॥
जिंदगी को करीने से, सजा रखी थी हमने ''कमलेश '',
उसने दस्तक दी जब से ,दिले -मंजर बे-तरतीब हो…
Continue
Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 16, 2010 at 9:35pm —
4 Comments
हम कैसे भुला दें जहन से, भोपाल कांड को ,
जिसने हिला के रख दिया ,पूरे ब्रह्माण्ड को ॥
भोपाल मे इंसानी लाशों के, अम्बार लगे थे ,
बुझ गए जीवन दिए जो, अभी-अभी जगे थे ॥
कोई किसी का ,कोई किसी का ,रिश्ता मर गया ,
जिंदगी समेटने की कोशिश मे ,सब कुछ बिखर गया ॥
जिनकी आँखों की गयी रौशनी , जीने की भूख गयी ,
खिली हुई कुछ उजड़ी कोखें , कुछ कोखें पहले सूख गयी ॥
सालों बाद स्मृत पटल पर, यादें धुंधली नही हुई हैं ,
भयावह मंजर से अब भी '' उसकी…
Continue
Added by कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा on June 16, 2010 at 11:48am —
7 Comments
yeh meri pahli gazal hai is site par..... saath he saath jeeven me pahli baar ghazal likhne ki koshish ki hai aap sabhi ke sujhav amantrit hain
हाय मेरी मोहब्बत मोहब्बत ना रही.... यह तो अब एक फसाना हो गया............
रात ही तो आया था वो ख्वाब मे.... पर लगता है उससे मिले एक ज़माना हो गया
मुझे दिलासे दे देकर मुझसे भी ज़्यादा रोए हैं मेरी आँखो के आँसू.........
लगता है मेरा रोना उसके मुस्कुराने का बहाना हो…
Continue
Added by Pallav Pancholi on June 16, 2010 at 1:25am —
13 Comments
उमर भर
का साथ
निभ जाता
कभी एक ही
पल मैं
बुलबुले मैं
उभरने वाले
अक्स की उमर
होती है
फक्त एक ही
पल की
Added by rajni chhabra on June 16, 2010 at 12:40am —
7 Comments
सर्दी मैं गर्मी और
गरमी मैं शीतलता
का एहसास
प्यार के ताने बने से बुनी
ममतामयी माँ
के आँचल सी
खादी केवल नाम नही हैं
खादी केवल काम नहीं हैं
खादी परिचायक है
सवाव्लंबन का
स्वाभिमान का
देश के प्रति
आपके अभिमान का
रंग उमंग और
प्यार के धागे से बुनी
देश ही नहीं
विदेश मैं भी पाए विस्तार
खादी को बनाइये
अपना जूनून
खादी दे
तन मन को सुकून
Added by rajni chhabra on June 14, 2010 at 4:35pm —
7 Comments
अम्बर के वातायन से जब चाँद झांकता है भू पर, .
जाने दिल में क्यों हूक उठती - जाने क्यों तेरी याद आती.
स्वप्न संग कोमल शैय्या पर जब सारी दुनिया सोती.
किसी आम्र की सुघर शाख से कोकिल जब रसगान छेड़ती.
पागल पवन गवाक्ष- राह से ज्योंही आकर सहलाता,
तेरे सहलाए अंगों में जाने क्यों टीस उभर आती.
जाने दिल में क्यों हूक उठती- जाने क्यों तेरी याद आती.
बीते हुए पल का बिम्ब देख रजनी की गहरी आँखों में.
एक दर्द भयानक उठता है दिल पर बने हुए घावों में.
घावों से यादों का…
Continue
Added by satish mapatpuri on June 14, 2010 at 4:31pm —
6 Comments
सदियों से भोजपुरिया माटी की एक अलग पहचान रही है। इस माटी ने केवल भोजपुरी समाज को ही नहीं अपितु माँ भारती को ऐसे-ऐसे लाल दिए जिन्होंने भारतीय समाज को हर एक क्षेत्र में एक नई दिशा एवं ऊँचाई दी एवं विश्व स्तर पर माँ भारती के परचम को लहराया। भोजपुरिया माटी की सोंधी सुगंध से सराबोर ये महापुरुष केवल भारत का ही नहीं अपितु विश्व का मार्गदर्शन किए और एक सभ्य एवं शांतिपूर्ण समाज के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। यह वोही भोजपुरिया माटी है जिसको संत कबीर ने अपने विलक्षणपन से तो शांति, सादगी एवं राष्ट्र के…
Continue
Added by Prabhakar Pandey on June 14, 2010 at 1:25pm —
7 Comments