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Tasdiq Ahmed Khan's Blog (117)

ग़ज़ल _ घर की बर्बादी के हालात नज़र आते हैं |0

(फाइ ला तुन _फ इ लातुन _फ इ लातुन _फे लुन)

घर की बर्बादी के हालात नज़र आते हैं |

उनके तब्दील खयालात नज़र आ ते हैं |

सिर्फ़ मेरी ही नहीं उनसे तलब मिलने की

वो भी मुश्ताक़े मुलाकात नज़र आ ते हैं |

जिनके वादों ने हसीं ख्वाब दिखाए मुझको

उफ़ बदलते हुए वो बात नज़र आ ते हैं |

उनकी यादों को भुलाऊँ तो भुलाऊँ कैसे

वो तसव्वुर में भी दिन रात नज़र आ ते हैं |

बे असर यूँ न हुईं मेरी वफाएँ यारो

उनके सोए हुए…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on August 6, 2018 at 6:49am — 26 Comments

ग़ज़ल (क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई)

ग़ज़ल (क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई)

(फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन _फाइ लुन)

क्या ख़ता कोई रशके क़मर हो गई |

जो खफा मुझसे तेरी नज़र हो गई |

आँख में तेरी अश्के नदामत न थे

इस लिए हर दुआ बे असर हो गई |

ग़म तबाही का तुमको नहीं है अगर

आँख क्यूँ देख कर मुझको तर हो गई |

ख़त्म शिकवे गिले सारे हो जाएंगे

गुफ्तगू उनसे तन्हा अगर हो गई |

यह करामत हमारे अज़ीज़ों की है

यूँ न उनकी अलग रह गुज़र हो गई…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 29, 2018 at 3:21pm — 18 Comments

ग़ज़ल (हम अगर राहे वफ़ा में कामरां हो जाएँगे)

(फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ ला तुन _फाइ लु न)

हम अगर राहे वफ़ा में कामरां हो जाएँगे l

सारी दुनिया के लिए इक दास्तां हो जाएँगे l

आप ने हम को ठिकाना गर न कूचे में दिया

हम भरी दुनिया में बे घर जानेजाँ हो जाएँगे l

बे रुखी जारी रही फूलों से गर यूँ ही तेरी

खार भी तेरे मुखालिफ बागबां हो जाएँगे l

जैसे हम बचपन में मिलते थे किसे था यह पता

मिल नहीं पाएंगे वैसे जब जवां हो जाएँगे l

ज़िंदगी में इस तरह आएंगे…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 18, 2018 at 7:30am — 17 Comments

ग़ज़ल (जानेमन मुझको मुहब्बत का ज़माना याद है)

(फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलुन)



याद है तेरी इनायत, ज़ुल्म ढाना याद है |

जानेमन मुझको मुहब्बत का ज़माना याद है |

हम जहाँ छुप छुप के मिलते थे कभी जाने जहाँ

आज भी वो रास्ता और वो ठिकाना याद है |

भूल बैठे हैं सितम के आप ही क़िस्से मगर

दर्द, ग़म,आँसू का मुझको हर फ़साना याद है|

इस लिए दौरे परेशानी से घबराता नहीं

मुश्किलों में उनका मुझको मुस्कुराना याद है |

घर के बाहर यक बयक सुन कर मेरी आवाज़ को…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 2, 2018 at 5:30pm — 20 Comments

ग़ज़ल (हो गई उनकी महरबानी है)

(फाइलातुन _मफाइलुन_फेलुन)

कोई मुश्किल ज़रूर आनी है |

हो गई उनकी महरबानी है |

तिशनगी जो बुझाए लोगों की

तुझ में सागर कहाँ वो पानी है |

और मुझ से वो हो गए बद ज़न

बात यारों की जब से मानी है |

खा गई घर का चैन मँहगाई

उनकी जिस दिन से हुक्म रानी है |

ज़ख्म तू ने दिए हैं ले कर दिल 

जुल की फितरत तेरी पुरानी है |

इंक़लाब आए क्यूँ न बस्ती में

उन पे आई गज़ब जवानी है…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 19, 2018 at 9:30am — 17 Comments

ग़ज़ल (न मुँह को फेर के यूं आप जाएं ईद के दिन)

(मफाइलुन _फ इलातुन_मफाइलुन_फ इलुन)

न मुँह को फेर के यूं आप जाएं ईद के दिन |

मेरे गले से  लगें   या लगाएँ ईद के दिन |

अकेले हम ख़ुशी कैसे मनाएँ ईद के दिन |

ख़ुदा क़सम वो बहुत याद आएँ ईद के दिन |

जो पिछले साल थाशामिल हमारी खुशियों में

उसी हसीन की यादें सताएँ ईद के दिन |

गरज़ है क्या भला हम साया ग़ैर मुस्लिम है

उसे बुलाके सिवइयाँ खिलाएँ ईद के दिन |

ख़ुदा ने अर्श से भेजा है तुहफा फरहत का

न दिल…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 15, 2018 at 8:30pm — 17 Comments

ग़ज़ल _तक़दीर आज़माने की ज़हमत न कीजिए

(मफऊल _ फाइलात _ मफाईल _फाइलुन)

तक़दीर आज़माने की ज़हमत न कीजिए |

उस बे वफ़ा को पाने की हसरत न कीजिए |

बढ़ने लगी हैं नफरतें लोगों के दरमियाँ

मज़हब की आड़ ले के सियासत न कीजिए |

जलवे किसी हसीन के आया हूँ देख कर

महफ़िल में आज ज़िक्रे कियामत न कीजिए |

आवाज़ तो उठाइए हक़ के लिए मगर

इसके लिए वतन में बग़ावत न कीजिए |

बैठा है चोट खाके हसीनों से दिल पे वो

जो कह रहा था मुझ से मुहब्बत न कीजिए…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 12, 2018 at 10:30pm — 19 Comments

ग़ज़ल _मेरे हबीब सिर्फ तू क़ुरबत की बात कर

मफ ऊल _फाइलात_ मफाईल _फाइलुन

उलफत की गर नहीं तो अदावत की बात कर |

मेरे हबीब सिर्फ़ तू क़ुरबत की बात कर |

दीदार कर के आया हूँ मैं एक हसीन का

मुझ से न यार आज क़यामत की बात कर |

लोगों के बीच होने लगीं ख़त्म उलफतें

मज़हब के नाम पर न सियासत की बात कर |

तदबीर पर है सिर्फ नजूमी मुझे यकीं

तू देख कर लकीर न क़िस्मत की बात कर |

ईमान बेचता नहीं मैं हूँ सुखन सरा

मुझ से मेरे अज़ीज़ न दौलत की बात कर…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 6, 2018 at 3:30pm — 19 Comments

ग़ज़ल (दोस्तों वक़्त के रहबर का तमाशा देखो)

(फाइला तुन _फ इलातुन _फ इ ला तुन _फेलुन)

दोस्तों वक़्त के रहबर का तमाशा देखो |

कोई तकलीफ में, खुश कोई है फिरक़ा देखो |

कोई पत्थर की तरह आपकी ठोकर में है

मेरे महबूब ज़रा गौर से कूचा देखो |

आपको करना है दीदार गरीबी का अगर

जाके फुट पाथ का रातों में नज़ारा देखो |

हर किसी शख्स के हाथों में नहीं यूँ पत्थर

फ़िर कोई आ गया कूचे में दिवाना देखो |

गिडगिडाने से कभी हक़ नहीं मिल पाएगा

कर के तब्दील ज़रा…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 19, 2018 at 10:30am — 8 Comments

ग़ज़ल (जिस को कुछ ग़म न हो कमाई का)

(फाइलातुन - - मफा इलुंन - - - फेलुन)

जिस को कुछ ग़म न हो कमाई का |

वो करे काम आशनाई का |

मुझको ले आए ग़म की सरहद तक

शुक्रिया उनकी रहनुमाई का |

झूटी तुहमत पे तैश खाते हो

यह तरीक़ा नहीं सफ़ाई का |

मनज़िले इश्क़ पा सकेगा वही 

सह लिया जिसने ग़म जुदाई का |

मैं वफादार था लगा फ़िर भी 

मुझ पे इल्ज़ाम बे वफाई का |

ज़ुल्म उस हद तलक रहें मह दूद

आए मौक़ा न जग हँसाई…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 15, 2018 at 8:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल(हुस्न और इश्क़ की कहानी है)

(फ़ा इलातुन--मफाइलुन--फ़ेलुन)

हुस्न और इश्क़ की कहानी है।

एक है आग एक पानी है।

कह रही है वफ़ा जिसे दुनिया

उसको पाने की मैं ने ठानी है।

बन के आए हैं वो तमाशाई

आग घर की किसे बुझानी है।

सोच कर कीजियेगा तर्के वफ़ा

अपनी यारी बहुत पुरानी है।

घिर गए मुश्किलों में और भी हम

आप की बात जब से मानी है।

वो अदावत से काम लेते हैं

हम को जिन से वफ़ा निभानी है।

प्यार को क्या…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 9, 2018 at 3:00pm — 17 Comments

ग़ज़ल(चरागे उम्मीद जल गया है)

(मफा इलातुन---मफा इलातुन)

किसी का लहजा बदल गया है।

चरागे उम्मीद जल गया है।

मैं क्यूँ न समझूँ इसे मुहब्बत

वह मेरा शाना मसल गया है

भला खफ़ा क्यूँ हैं आइने पर

था हुस्न दो दिन का ढल गया है।

ख़ुदा मुहाफ़िज़ है अब तो दिल का

निगाह से तीर चल गया है।

वो मिल गए तो लगा है ऐसा

जो वक़्ते गर्दिश था टल गया है।

जो बीच अपने था भाई चारा

उसे त अस्सुब निगल गया है।

मिली है तस्दीक़…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 9, 2018 at 3:00pm — 15 Comments

ग़ज़ल(मुहब्बत में धोका उठाने चले हैं ) -

(फ ऊलन -फ ऊलन-फ ऊलन-फ ऊलन )



मुहब्बत में धोका उठाने चले हैं।

हसीनों से वह दिल लगाने चले हैं।

सज़ा जुर्म की वह न दे पाए लेकिन

मेरा नाम लिख कर मिटाने चले हैं।

लगा कर त अस्सुब का आंखों पे चश्मा

वो दरसे मुहब्बत सिखाने चले हैं ।

अदावत भी जिनको निभाना न आया

वो हैरत है उल्फ़त निभाने चले हैं ।

बहुत नाम है ऐबगीरों में जिनका

हमें आइना वो दिखाने चले हैं ।

अचानक इनायत न उनकी हुई है

वो…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 29, 2018 at 12:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल (कीजियेगा हुस्न वालों से मुहब्बत देख कर )

(फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फाइलुन )



कीजियेगा हुस्न वालों से मुहब्बत देख कर|

हो गए बर्बाद कितने लोग सूरत देख कर |



यूँ नहीं उसकी बुझी आँखों में आई है चमक

वह रुखे दिलबर पे आया है मुसर्रत देख कर|



बागबां आख़िर सितम ढाने से बाज़ आ ही गया

यकबयक फूलों की गुलशन में बग़ावत देख कर |



देखता है कौन यारो आजकल किरदार को

लोग रिश्ता जोड़ते हैं सिर्फ़ दौलत देख कर |



बे वफ़ाई के सिवा इन से तो कुछ मिलता नहीं

आज़माना हुस्न की चौखट पे…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 19, 2018 at 1:30pm — 8 Comments

नज़्म (इंसानियत का ख़ून )

(फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलुन )



बन गया है आज का इंसान हैवां दोस्तो |

पाक औरत का रहेगा कैसे दामां दोस्तो |

पेश आया था कभी दिल्ली में जैसा वाक़्या |

हो गया कठुआ ,रसाना में भी वैसा हादसा |

जिसको सुन कर हो रहे हैं जानवर दुनिया के ख़्वार |

कर दिया इंसान ने इंसानियत को शर्म सार |

यह नहीं है ख़्वाब कोई है हक़ीक़त दोस्तो |

आसिफ़ा है वह लुटी है जिसकी इज़्ज़त दोस्तो |

उम्र उस मासूम की थी सिर्फ़ लोगों आठ साल |

मुफ़लिसी थी घर में लेकिन था नहीं कोई…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 18, 2018 at 10:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल(डर लग रहा है तेवरे दिलदार देख कर )

ग़ज़ल(डर लग रहा है तेवरे दिलदार देख कर )



(मफ ऊल-फाइलात-मफाईल-फाइलुन/फाइलात)



इक़रार में छुपा हुआ इनकार देख कर।

डर लग रहा है तेवरे दिलदार देख कर ।

जो आरज़ूए दीद थी काफूर हो गई

रुख़ पर पड़ी निक़ाब की दीवार देख कर ।

दिल की ख़ता है और निशाना जिगर पे है

तीरे नज़र चलाइए सरकार देख कर ।

अगला निशाना तू ही है दहशत पसन्द का

हँस ले तू ख़ूब घर मेरा मिस्मार देख कर ।

शायद बना लिया गया फिर…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 11, 2018 at 4:39pm — 23 Comments

ग़ज़ल (मेरी आँखों में तस्वीरे दिलदार है )

(फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन---फ़ाइलुन)



हो रहा उनका हर वक़्त दीदार है |

मेरी आँखों में तस्वीरे दिलदार है |



कुछ तो है दोस्तों शक्ले महबूब में

देखने वाला कर बैठता प्यार है |



उनका दीदार मुमकिन हो कैसे भला

उनके चहरे पे बुर्क़े की दीवार है |



मुझ पे तुहमत दग़ा की लगा कर कोई

कर रहा ख़ुद को साबित वफ़ादार है |



चाहे दीदारे दिलबर ,दवाएं नहीं

वो हकीमों मुहब्बत का बीमार है |



उसको क्या वारदाते जहाँ की ख़बर

जो पढ़े ही नहीं…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on March 14, 2018 at 11:30am — 32 Comments

ग़ज़ल (वो लगता है आफ़ात करने चले हैं )

(फ़ऊलन--फ़ऊलन--फ़ऊलन--फ़ऊलन)



शुरूए इनायात करने चले हैं |

वो लगता है आफ़ात करने चले हैं |



ख़ुदा ख़ैर पाबंदियाँ हैं नज़र पर

मगर वो मुलाक़ात करने चले हैं |



यक़ीं ही नहीं उम्र ढलने का उनको

जो तब्दील मिर आत करने चले हैं |



खिलाना है फ़िरक़ा परस्तों को मुंह की

वो लोगों फ़सादात करने चले हैं |



मुहब्बत के अंजाम से हैं वो ग़ाफ़िल

जो इसकी शुरुआत करने चले हैं |



भला किस तरह कर दें उसको नुमायाँ

सनम से जो हम बात करने चले हैं…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on March 8, 2018 at 5:00pm — 18 Comments

ग़ज़ल ( आप से मैं प्यार करना चाहता हूँ )

(फ़ाइलातुन ---फ़ाइलातुन ---फ़ाइलातुन )



बह्रे आतिश पार करना चाहता हूँ |

आप से मैं प्यार करना चाहता हूँ |



जिस खता की आपने मुझको सज़ा दी

वो खता सौ बार करना चाहता हूँ |



शहरे दिलबर छोड़ कर जाने से पहले

मैं विसाले यार करना चाहता हूँ |



बंदिशें मेरी निगाहों पर हैं लेकिन

उन का मैं दीदार करना चाहता हूँ |



फेर कर बैठे हुए हैं आप चहरा

मैं निगाहें चार करना चाहता हूँ |



मैं ख़ुदा हाफ़िज़ तुम्हें कहने से पहले

इश्क़ का…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on March 3, 2018 at 6:30pm — 9 Comments

तरही ग़ज़ल --2 (शौक़े वफ़ा में ग़म न उठाएँ तो क्या करें )

(मफऊल -फाइलात -मफाईल -फाइलुन )

.

शौक़े वफ़ा में ग़म न उठाएँ तो क्या करें |

वादा वफ़ा का हम न निभाएँ तो क्या करें |

.

मजबूर हो के हो गया दीवाना जिनका दिल

अब जान भी न उनपे लुटाएँ तो क्या करें |

.

गैरों की बात हो तो उसे कर दें दर गुज़र

पर हम पे ज़ुल्म अपने ही ढाएँ तो क्या करें|

.

उम्मीद जिसके आने की न ज़िंदगी में हो

उसको न अपने दिल से भुलाएँ तो क्या करें |

.

बैठे हुए हैं सामने महफ़िल में गीब्ती

उन…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 25, 2018 at 9:00pm — 6 Comments

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