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पतझड़ छोड़ वसन्त में, उग जाते हैं शूल
जीवन में रहता नहीं, समय सदा अनुकूल।१।
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सावन सूखा बीतता, कभी डुबोता जेठ
बिना भूल के भी समय, देता कान उमेठ।२।
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करते सुख की कामना, मिलते हैं आघात
जब बोते सूखा पड़े, पकने पर बरसात।३।
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अनचाही जो हो दशा, दुखी न होना मीत
देना मुट्ठी बंद ही, रही समय की रीत।४।
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रहा निराला ही सदा, यहाँ समय का खेल
जीवन कटे बिछोह में, मरण कराता मेल।५।
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छुरी बगल में मीत के, दुश्मन के कर फूल
कैसे…
Posted on August 24, 2024 at 9:23am
किसने पायी मुक्ति है, कौन हुआ आजाद।
प्रश्न खड़ा हर द्वार पर, आजादी के बाद।।
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कहने को तो भर गये, अन्नों से गोदाम।
फिर भी भूखे पेट हैं, इतने क्योंकर राम।।
गर्म आज भी खूब है, क्यों काला बाजार।
हर चौराहे लुट रही, बहुत आज भी नार।।
अन्तिम जन है आज भी, पहले जैसा दीन।
चोर उचक्के हो गये, खुशियों में तल्लीन।।
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हाथ लिए जो लाठियाँ, अब भी पाता दाद।
किसने पायी मुक्ति है, कौन हुआ आजाद।।
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देशभक्ति अब गौंण है, गद्दारी …
Posted on August 14, 2024 at 2:53pm — 8 Comments
जिस को भी कड़वे लगे, बाबू जी के बोल
उसने समझो खो दिया, हर अमृत अनमोल।१।
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बाबू जी ने क्या किया, कह दे जो औलाद
समझो उसने कर लिया, सकल पुण्य बर्बाद।२।
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बाबू जी करते कहाँ, भौतिक सुख की आस
उन के मन में चाह बस, सन्तानें हों पास।३।
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सोचा सब के चैन की, खुद रहकर बेचैन…
Posted on August 8, 2024 at 6:24am — 6 Comments
विरही मन कहता फिरे, समझे पीड़ा कौन
आँगन,पनघट, राह सह, हँसी उड़ाये भौन।१।
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करते हैं दो चार जो, परदेशी से नैन
जले विरह की आग में, उन का मन बेचैन।२।
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घुमड़ी बदली देखकर, मन में भड़की आग
जिस के पिय परदेश में, फूटे उस के भाग।३।
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जब साजन परदेश में, शृंगारित ना केश
सावन दावानल लगे, जलता हर परिवेश।४।
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पिया मिलन की प्यास जो, तन मन करे अधीर
रूठी-रूठी भूख को, लगती विष सी…
Posted on August 3, 2024 at 11:30am — 2 Comments
सादर आभार आदरणीय
अपने आतिथ्य के लिए धन्यवाद :)
मुसाफिर सर प्रणाम स्वीकार करें आपकी ग़ज़लें दिल छू लेती हैं
जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी
प्रिय भ्राता धामी जी सप्रेम नमन
आपके शब्द सहरा में नखलिस्तान जैसे - हैं
शुक्रिया लक्ष्मण जी
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी!आपने मुझे इस क़ाबिल समझा!
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