बैंक ने रेहन रखी संपत्तियों की नीलामी की सूचना छपवाई।साथ में फोन पर बात करती किसी लड़की की भी फोटो छप गई। बैंक वाले खुश थे कि इससे नीलामी प्रक्रिया का प्रचार प्रसार होगा,मुफ्त में ।उधर फोटो वाली लड़की आग - बबूला हो रही थी --
' भला ऐसा कैसे कर सकते हैं ये बैंक वाले?'
' कर चुके,' दूसरे ग्राहक ने आं खें मटकाई।
' अरे मैं तो इस ऑफिस में कल पैसे जमा कराने आई थी,जब ये बैंक वाले अपने नोटिस बोर्ड की फोटो ले रहे थे...करम..ज ...ले सब।'
' और संपत्ति विवरण में आपकी भी फोटो…
Added by Manan Kumar singh on January 16, 2020 at 7:00pm — 6 Comments
जिस्म तो नश्वर है, ये मिट जाएगा
प्रेम पर अपना अमर हो जाएगा
सोच मत खोया क्या तूने है यहाँ
एक लम्हा भी दहर हो जाएगा
माना ये छोटा है पर धीरज तो धर
बीज एक दिन ये शजर हो जाएगा
भाग्य में जितना लिखा था मिल गया
अपना इसमें भी गुजर हो जाएगा
जीस्त बेफिक्री में काटी है मगर
मौत का उस पर असर हो जाएगा
तिरगी से डर के क्यूँ रहना भला
आज या फ़िर कल सहर हो जाएगा
सीख कुछ मेरे…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 16, 2020 at 2:30pm — 1 Comment
जो दुनिया को सबका ही घर कहता है
वो क्यों मुझ को रहने से डर कहता है।१।
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हद से बढ़कर निजता का अभिमान हुआ
अब हर क़तरा खुद को समन्दर कहता है।२।
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मिट्टी की तासीरें जिस को ज्ञात नहीं
वो लालच में धरती बन्जर कहता है।३।
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ढोंगी है या फिर कोई अवतार लखन
मालिक बनकर खुद को नौकर कहता है।४।
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जिसके पास नहीं है दाना वो भी अब
मैं दाता हूँ, …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 16, 2020 at 5:17am — 12 Comments
Added by विवेक ठाकुर "मन" on January 15, 2020 at 5:19pm — 6 Comments
ना मर्म का मेरे भान किसी को, लेकिन फिर भी जिंदा हूँ
ना औरत, ना पुरुष हूँ, कहने को मैं किन्नर हूँ|
सारा समाज धुत्कार मै खाती, जैसे समाज पे अभिशाप कोई
सोलह शृंगार कर हर दिन सजती, जैसे सुहागिन औरत हूँ |
मात-पिता भी कलंक समझते, बदनामी का उनकी कारण हूँ
दुख-दर्द भी ना कोई पूछता, जैसी उनकी ना मै कोई हूँ |
ना रोजी-रोटी का साधन कोई, मांग…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 15, 2020 at 11:56am — 3 Comments
2×16
अशआर की आंखें खुलती है, जब सारा आलम सोता है।
मेरे कमरे में रात गए तंजीम का मौसम होता है।
तकदीर के हाथों सौंप दिया जब तूने मुझे महबूब मेरे,
मेरी हालत को सुनकर क्यों अब तन्हाई में रोता है।
खुशियों से गम का रिश्ता जग में ऐसा लगता है हमको,
कोई हाथों में रसगुल्लें देकर पीठ में कील चुभोता है।
मैंने तो सदा चाहा है यही इस गम को रिहा कर दूं खुद से,
हर और शिकारी बैठा है और ये पिंजरे का तोता है
उसकी मेहनत का फल…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 15, 2020 at 12:38am — 6 Comments
Added by khursheed khairadi on January 14, 2020 at 7:08pm — 5 Comments
अच्छा लगा तेरा प्रेम से मिलना
कुछ अपनी कही, कुछ मेरे सुनना
स्वार्थ से भरी इस दुनियाँ में
सभी के हित की बातें करना ||
वक़्त के संग में तेरा बदलना
हसमुखता को धारण करना
उड़ान भर खुली हवा में
सुंदर, ख्वाबो की माला बनुना ||
हौंसलों भर अपने उर में
भूल के बीती बात को आगे बढ़ना
याद आ जाए कोई भुला-बिसरा
झट से उसका हाल जानना ||
काम, क्रोध और…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 14, 2020 at 5:22pm — 4 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
ये मत समझो मान के अपना गले लगाने आया है
जीवन में खुशियाँ कैसे हैं भेद चुराने आया है।१।
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अनहोनी सी लगती मुझको अब कुछ होने वाली है
नदिया के तट आज समन्दर प्यास बुझाने आया है।२।
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जिसके पुरखे भटकाने की रोटी खाया करते थे
वो कहता है आज देश को राह दिखाने आया है।३।
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जिस बस्ती को दसकों पहले हमने खूब सदाएँ दी
उस बस्ती को सूरज देखो आज जगाने आया है।४।
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अपने हिस्से तूफाँ तो थे माझी भी क्या खूब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2020 at 7:28am — 10 Comments
भ्रम जाल ये कैसा फैला
खुद को खुद ही भूल चुका
ना वाणी पर संयम किसीका
उर में माया, द्वेष भरा |
कोह में अपना विनती भाव भुलाया
जो धैर्य भी से दूर हुआ
गरल इतना उर में भरा है कि
क्षमा, प्रेम करना ही भूल गया |
करुणा दया भी पास नहीं अब
पशुत्व के जैसा बन चुका
भलाई का दामन ओढ़ की जाने
पीठ पीछे चुरा घोप रहा |
आत्महित में अनेत्री बन गए जैसे
भयंकर बैर का…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 13, 2020 at 4:29pm — 4 Comments
प्रकृति-सत्य
मेरे पिछवाड़े के पेड़ों के पत्ते
पतझर में अब पीले नहीं होते
ऋतु परिवर्तन से पहले ही, डरे-डरे
तन-मन हारे मारे-मारे उढ़ते फिरते
कि जैसे यह अकुलाते पत्ते नहीं हैं
हज़ारों घायल पक्षी…
ContinueAdded by vijay nikore on January 13, 2020 at 8:00am — 4 Comments
2122 2122 2122 212
सब हवाले कर दिया तुझको मसीहा जान कर,
अब कहाँ जायें बता गैरों को अपना मान कर।
मत करो उससे शिकायत अपने घाटे लाभ की,
जिसको तुमने सर चढ़ाया दिल की बातें मान कर।
तेरा उससे प्यार है औरों से नफरत की उपज,
बरसों के रिश्ते भी चल उसके लिए कुर्बान कर।
वक्त का पहिया है ये तो चलना इसका काम है,
आने वाले कल की खातिर आज की पहचान कर।
खुद को उसको सौंपकर निश्चित हुए बैठे हैं हम,
उसको बस इतनी…
Added by मनोज अहसास on January 12, 2020 at 11:00pm — 4 Comments
तुम्हारे हित देशहित से बड़े क्यूँ है?
ये दुश्चरित्र है तुम्हारा,
सताता मुझे क्यूँ है?
तुम इन्सान ही बुरे हो,
इल्जाम धर्म और जात पर क्यूँ है?
तुम्हे इसमें सुकून है बहुत,
ये मेरे सुकूं को खाता क्यूँ है?
ये धर्म के ठेकेदार हैं,
फिर मानवता के भक्षक क्यूँ हैं?
ये दोषी है समाज…
ContinueAdded by Dr. Geeta Chaudhary on January 12, 2020 at 8:09pm — 4 Comments
मुद्दत से इंतजार में बैठे थे हम जिनके ,
वो आये भी तो अजनबियों कि तरहां।
के तोड़ गये अरमानो के घरोंदों को वो ऐसे,
उजाड़ देती है खिज़ा गुलशन को जिस तरहां।
बेहाल दिल हे और रूह भी हमारी ,
बहता है दर्द जिस्म में अब ऐसे
जैसे मचलता हे पानी दरिया में जिस तरहां।
के अश्क़ अब बहते नहीं इन आँखों से,
बस आहें ही निकलती हे अब सांसो से ।
ज़िन्दगी हमारी अब हो गई हे कुछ ऐसे,
जैसे खाती हे नाव हिलोरे तूफां में जिस तरहां।
अब ना…
ContinueAdded by Bhupender singh ranawat on January 12, 2020 at 11:28am — 2 Comments
चंद क्षणिकाएँ :......
होती है
बिना हत्या के भी
हत्या
अदृश्य भावों की
खून की लालिमा से भी गहरे
लाल रिश्तों की
................
तमन्नाओं का झुंड
बेबसी की बेड़ियाँ
मिट गई ज़िंदगी
रगड़ते- रगड़ते
ऐड़ियाँ
फुटपाथ पर
............................
भूख की झंकार
प्रश्नों का अम्बार
पेट का संसार
.............................
रिश्तों के राग
पैसे की आग
झुलसे…
Added by Sushil Sarna on January 11, 2020 at 8:42pm — 6 Comments
कान और कांव कांव
*****
एक आदमी(नकाब में) :तेरे कान कौवे ले गए।
दूसरा:एं?
पहला:और क्या?वो देखो, कौवे उड़ते जा रहे हैं।
दूसरा व्यक्ति दो कौवों के पीछे दौड़ने लगा। उसके पीछे एक एक कर लोग दौड़ने लगे। कारवां बन गया....गुबार देखते बनता था ... कारवां के पिछले हिस्से में दौड़ते हांफते लोग एक दूसरे से सवाल करते कि आखिर वे कहां जा रहे हैं,क्या कर रहे हैं? हां, आगे के हिस्से की आवाज में आवाज जरूर मिलाते कि ' वापस दो,वापस दो...।' कोई कोई तो ' वापस लो..वापस लो..' की भी आवाज…
Added by Manan Kumar singh on January 11, 2020 at 2:58pm — 6 Comments
2×16
बेकार सताते हो खुद को बेकार तमाशा करते हो,
जो छुपकर तुमको देख रहा तुम उसको ढूंढा करते हो।
जब पास कोई तस्वीर नहीं, न उसका पता मालूम तुम्हें,
दर दर की ठोकर खाकर बस तकलीफ़ बढ़ाया करते हो।
मिल जाएगा वो है शक इसमें, खो जाओगे तुम ये मुमकिन है
सागर को पाने की जिद में क्यों झील का सौदा करते हो।
ऐसा तो कोई दस्तूर नहीं अजनबियों में कोई बात न हो,
तुमको ही पुकारा है मैंने,पीछे क्या देखा करते हो।
गर मांगने से…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 11, 2020 at 12:27am — 3 Comments
221 2121 1221 212
मंजिल भी थी, चराग भी थे ,हौसला न था ।
अब सबसे कह रहा हूं ,उधर रास्ता न था ।
यह किसकी दस्तरस में धुँआ है मेरी सहर,
कल शब तो इस मकां में दिया भी जला न था।
लेकर चला रकीब मुझे तेरी राह पर,
इक शख्स बस वही था जो मुझसे खफा न था।
मुद्दत के बाद भी तेरी तस्वीर दिल में है,
तेरा फरेब तेरे करम से बड़ा न था ।
उसके जवाब में थे कई उंगलियों के रंग,
लगता है उसने खत मेरा पूरा पढ़ा न था…
Added by मनोज अहसास on January 9, 2020 at 11:39pm — No Comments
नियति-निर्माण
नियति मेरी, पूछूँ एक सवाल
इतना तो बता दो मुझको
वास्तव में यह हिंसक नहीं है क्या
घोर अन्याय नहीं है क्या ...
कि हाथों में तुम्हारे रही है हमेशा
मेरे भविष्य की डोर
और मैं ...
ज़िन्दगी की इमारत की
किसी भी मंज़िल पर पहुँचा तो जाना
जागते सोचते हर धूलभरे कमरे में पाया
उदासीन खालीपन
और मेरी छाती में रहीं गिरफ़्तार
कितने अधबने अनबुने नामहीन
सनातन…
ContinueAdded by vijay nikore on January 9, 2020 at 9:30pm — 4 Comments
जो हैं भूखे यहाँ ठहर जाएँ
शेष सब संग संग उड़ जाएँ
कमी नहीं यहाँ पे दानों क़ी
हो जो बरसात मेरे घर आएँ
पेट भरता है चंद दानों से
फ़िर क्यूँ सहरा में घूमने जाएँ
लोग भारत के बहुत अच्छे हैं
ख़ुद से पहिले हमें हैं खिलवाएँ
मार कंकर भगाते हैं बच्चे
फिर वही प्यार से हैं बुलावाएँ
प्रचंड गर्मी में जब तडपते हैं
पानी हमको यहीं हैं पिलवाएँ
खेत खलिहान सौंधी सी ख़ुशबू
छोड़ मिट्टी क़ो 'दीप' क्यूँ…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 9, 2020 at 5:30pm — 3 Comments
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