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तेरा एहसास ..

एक एहसास तुझे पाने का..

मुझमें उत्साह जगा देता है...
एक एहसास तुझे खोने का ..…
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Added by Lata R.Ojha on March 12, 2011 at 10:30pm — 3 Comments

कुछ मेरे शेर

(1)

मै तेरे खयालो मै खोया हु अकसर

तू रातो को मुझको सताने लगी है

तू   छोड़   ना   देना   साथ   मेरा

तू खुद से ज्यादा याद आने लगी है

 

(2)

उसको देखू तो लगे चाँद को देखा

मेने आज फिर मेरे भगवान को…

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Added by Tapan Dubey on March 12, 2011 at 1:30pm — 2 Comments

रिश्ते सूखे फूल गुलाबों के

रिश्ते सूखे फूल गुलाबों के 
भूले जैसे हर्फ़ किताबों के
 
ये मिलना भी कोई मिलना है 
इस से अच्छे दौर हिजाबों के
 
सीधी सच्ची बातें कौन सुने 
शैदाई है लोग अजाबों के
 
दौर फकीरी का भी हो जाये 
कब तक देखें तौर रुआबों के 
 
 ना छिपता,ना पूरा दिखता है
पीछे जाने कौन नकाबों के
 
कई सवारों ने ठोकर खाई 
जाने…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 12, 2011 at 2:30am — 7 Comments

सांसद निधि बढ़ाना, कितना जायज ?

सांसदों की निधि बढ़ाने की मांग पर आखिरकार सरकार ने मुहर लगा ही दी। बरसों से देश के सैकड़ों सांसद यह मांग करते आ रहे थे कि उनकी निधि 2 करोड़ से बढ़ाकर 5 करोड़ रूपये कर दी जाए। सांसदों की इन बहुप्रतीक्षित मांग के लिए एक समिति भी बनाई गई थी, जिसके माध्यम से सांसद निधि बढ़ाने की सिफारिश सरकार से की गई थी और जिसमें अंतिम छोर के गांव-गरीब के विकास की दुहाई दी गई थी। पहले तो इस मुद्दे पर सरकार की दिलचस्पी नजर नहीं आई थी, लेकिन सरकार के अंदर व बाहर तो वही सांसद हैं, जिन्हें संसद में प्रस्ताव पारित करने का… Continue

Added by rajkumar sahu on March 12, 2011 at 1:00am — No Comments

क्या जिंदगी ????

मै खुद की बेबसी से मजबूर हैरान हूँ

खबर क्या तुम्हें कैसे चल रही है जिंदगी

 

हर सुबह हर शाम अधूरी एक आश में,

दिल के विरह की आग में जल रही है जिंदगी

 

किससे करे शिकवा,और क्युओं करूँ

अटूट प्रेम में छली गयी मेरी जिंदगी

 

क्या खबर कब थमेगा जिंदगी का कारवाँ

बेमतलब की ईन राहो पर खल रही है जिंदगी

 

तेरी दगाबाजी से दिल यूँ चूर-चूर हो गया क्यूँ ये

 बेवफा तेरे दर्द का सितम सह रही है जिंदगी तू

Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 11, 2011 at 10:08pm — 3 Comments

Gazal

गजल

औरों पे कभी, बोझ न बन,
बहरहाल जाँ सोज न बन।


कायम इज्जत रखनी हो तो,
मेहमां किसी का रोज न बन।


जो किश्ती को ही ले डूबे,
दरिया की वो मौज न बन।


बगैर दावतनामा कभी,
कही शरीके-भोज न बन।


अपने गिरेबाँ में रहा करो ‘चंदन‘
बेखुदी में राजा भोज न बन।।

Added by Nemichand Puniya on March 11, 2011 at 8:00pm — 2 Comments

ख्वाबो मे

मैं ख्वाबों मे तुझको देख पाउ तो कैसे,

मैं नजरों से तुझको हटाऊ तो कैसे ,



कई  जिम्मेदारियाँ हे कंधे  पर मेरे,

दो  घड़ी हि सही,सो  जाऊँ तो कैसे,



प्यार करते है जिसको दिलों जां से हम,

हाल-ए-दिल उसको मै बताऊँ तो कैसे,



जल रही हे ये आग…

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Added by Tapan Dubey on March 11, 2011 at 6:00pm — 4 Comments

उनके परम प्रिये ,

उनके परम प्रिये ,

बार बार झटके दिए ,

उन्होंने बार बार जोड़ा ,

और वो झटके में तोड़ दिए ,

उनके परम प्रिये ,

पहली गलती माँ बाप की ,

जो अब देता हैं दिखाई ,

उनकी उम्र थी चालीस की ,

और सोलह के मिले ,

उनके परम प्रिये ,

अब हुई ओ तिस की ,

और ये साठ के करीब हैं ,

अजब लगा था उन्हें ,

पति के जगह अंकल पहचान दिए ,

उनके परम प्रिये ,

एक दिन उस अंकल के ,

उस प्रिया को सब्ज बाग दिखाया ,

उनको अपने करीब पाया ,

और दोनों निकल लिए… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on March 11, 2011 at 12:33pm — 1 Comment

जागो, सितारे और भी हैं.

क्यों बैठ गए तुम थककर,
ओढ़ विफलताओं की चादर;
उठो, नतीजे और भी हैं.

इक घोंसला ही उजड़ा है,
चमन पूरा ही बाकी है;
जोड़ो, कि तिनके और भी हैं.

नदी के इक किनारे पर,
जो नाविक लौट न आया;
ढूंढो, किनारे और भी हैं.

तुम्हारे आँगन में तारा,
नहीं टूटा तो रोते हो;
जागो, सितारे और भी हैं.

Added by neeraj tripathi on March 11, 2011 at 11:30am — 3 Comments

व्यंग्य - बुखार के मौसम में...

जिस तरह परीक्षा के मौसम में छात्र, अभी दिमागी बुखार से तप रहे हैं, कुछ ऐसा ही देश-दुनिया में विश्वकप क्रिकेट का खुमारी बुखार छाया हुआ है। इन बुखारों के मौसम में शायद ही कोई बच पा रहा है और हर कोई किसी न किसी तरह से मानसिक तौर पर बुखार की चपेट में है। क्रिकेट की खुमारी तो ऐसी छाई है, जिससे सटोरियों की चल निकली है तथा वे हर गंेद व रन पर मौज कर रहे हैं। हालात यह है कि वे खाईवाली मैदान में नोटों की गड्डी की गरमाहट से तप रहे हैं। बेचारी तो देश की जनता है, जो न तो कुछ बोल सकती है और न ही हुक्मरानों… Continue

Added by rajkumar sahu on March 11, 2011 at 11:22am — 1 Comment

यूँ हुआ क्यूँ कर

 
ज़िक्र बदरंग हर हुआ क्यूँ कर
हर ख़ुशी के लिए दुआ क्यूँ कर
 
नाव कागज़ की खूब तैरे है 
आदमी इस तरह  हुआ क्यूँ कर
 
आज तक धडकनों में तूफां हैं 
आप ने इस क़दर छुआ क्यूँ कर
 
लोग चुपचाप क़त्ल देखे है
कौन पूछे कि ये हुआ क्यूँ कर
 
या कि राजा है या कि रंक यहाँ 
ज़िन्दगी  इस क़दर जुआ क्यूँ कर
 
मैंने रस्ते बनाये आप…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on March 11, 2011 at 12:00am — 6 Comments

अब जाना जफा ज़माने की......................

सजा मिली है मुहब्बत में वफ़ा  निभाने की|

अब जाना जफा ज़माने की.......................
उसने पल भर में उम्मीदों का गला घोंट दिया|
जिंदगी भर न भूलू उसने ऐसी चोट दिया|-२
हसरतें रह गयी पलकों पे उसे सजाने की|
अब जाना जफा ज़माने की......................
उसने इकरार मुहब्बत का बार -बार किया|
मैंने भी बेसुध बेख़ौफ़ उसे प्यार दिया|
यही तमन्ना अब उसको भूल जाने की,
करूँ तमन्ना अब उसको भूल जाने की|
अब…
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Added by आशीष यादव on March 10, 2011 at 2:25pm — 15 Comments

प्रभु ये क्या गजब कर डाला ,

प्रभु ये क्या गजब कर डाला ....



एक बार एक भक्त ,

भगवान शिव की ,

लगातार आराधना की ,

उसने भगवन शिव की ,

मन जीत ली ,

एक दिन भगवन शिव ,

दर्शन दिए ,

उससे बोले ,

एक वर मांगने के लिए ,

उसने सोचा ,

फिर बोला ,

भगवन मुझे किसी भी ,

त्रिसंकू बिधानसभा का ,

निर्दलीय सदस्य बना दो ,

प्रभु यही एक वर दो ,

भगवान शिव ने कहा ,

ऐसा ही होगा ,

इतना बोल भगवन कैलाश गए ,

तब माँ पार्बती ने कहा ,

प्रभु ये क्या गजब कर…

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Added by Rash Bihari Ravi on March 10, 2011 at 1:30pm — 1 Comment

अक्सर सोच कर ,

अक्सर सोच कर

समझ कर

चुप रह जाता हूँ ,

जब गहराई में

जाता हूँ ,

तो बस

इतना ही पाता हूँ ,

अक्सर सोच कर ,

समझ कर

चुप रह जाता हूँ ,

नेता बना हैं ,

देश को लुटने के लिए ,

मगर नेता जी की

बात सोचता हूँ ,

बहुत कुछ पाता हूँ

अक्सर सोच कर ,

समझ कर

चुप रह जाता हूँ ,

बेटा बना हैं ,

माँ बाप को चूसने के लिए ,

मगर सरवन कुमार को ,

सोचता हूँ तो ,

बहुत कुछ पाता हूँ

अक्सर सोच कर ,

समझ कर… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on March 10, 2011 at 1:30pm — 2 Comments

गड़बड़ मत कर समझकर ,

गड़बड़ मत कर समझकर ,
चल हरदम सत्य पथ पर ,
रख हरदम पकर मन पर ,
गड़बड़ मत कर समझकर ,
समझ मत (निर्णय) हर पल ,
कम कर गम हँस हँस कर ,
बढ़ चल डगर संभलकर ,
गड़बड़ मत कर समझकर ,
हरदम समय पर सब कर ,
अक्सर समय पकर सच कर ,
बढ़ बस बढ़ पथ बन कर ,
गड़बड़ मत कर समझकर ,

Added by Rash Bihari Ravi on March 10, 2011 at 1:17pm — 1 Comment

जरा इधर भी करें नजरें इनायत

1. समारू - कांग्रेस व डीएमके में खटास पैदा हो गई है।



पहारू - वर्चस्व की लड़ाई में ऐसा ही होता है।





2. समारू - लड़खड़ा कर जीत रही भारतीय टीम।



पहारू - यह तो पुरानी आदत है।





3. समारू - सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी पद से पीजे थामस को बाहर का रास्ता दिखा दिया।



पहारू - चलो, भारतीय व्यवस्था में एक और दाग लगने से बच गया।





4. समारू - प्रधानमंत्री ने कहा है कि सीवीसी मामले में उन्हें कुछ पता नहीं था।



पहारू - आखिर, यहां… Continue

Added by rajkumar sahu on March 9, 2011 at 7:14pm — No Comments

बंद दिल के पिंजरे के पंछी

दिल का पंछी
बंद दिल के पिंजरे के पंछी
चल अब उड़ जा यहाँ से रे
उजड़ गया अब बाग़ बगीचा सब लगे बेगाना रे
कुदरत ने जिसे संवारा इंसान ने उसे काट डाला रे
सुनने वाला कोइ नहीं तेरे जीवन की कहानी रे
आने वाला पल तुझे दर्द ही दिए जाए रे
इस मतलब भरी दुनिया में तेरा दर्द न जाने कोई रे
नहीं कह सकता हाले दिल किसी को है कैसी तेरी जिंदगानी रे
तेरे ही लहू से विधाता ने लिखी तेरी कहानी रे
इस बंद ह्रदय में तू कब तक फडफाड़ाऐगा चल फुर्र हो जा रे
"अभिराजअभी"

Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 9, 2011 at 6:43pm — 2 Comments

सामयिक नव गीत: मचा कोहराम क्यों?... संजीव वर्मा 'सलिल

सामयिक नव गीत



मचा कोहराम क्यों?...



संजीव वर्मा 'सलिल'

*

(नक्सलवादियों द्वारा बंदी बनाये गये एक कलेक्टर को छुड़ाने के बदले शासन द्वारा ७ आतंकवादियों को छोड़ने और अन्य मांगें मंजूर करने की पृष्ठभूमि में प्रतिक्रिया)

अफसर पकड़ा गया

मचा कुहराम क्यों?...

*

आतंकी आतंक मचाते,

जन-गण प्राण बचा ना पाते.

नेता झूठे अश्रु बहाते.

समाचार अखबार बनाते.



आम आदमी सिसके

चैन हराम क्यों?...

*

मारे गये सिपाही अनगिन.

पड़े… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 9, 2011 at 7:46am — 2 Comments

आचार्य श्यामलाल उपाध्याय की कवितायेँ :

आचार्य श्यामलाल उपाध्याय की कवितायेँ :

मित्रों!

प्रस्तुत हैं कोलकाता निवासी श्रेष्ठ-ज्येष्ठ हिंदीसेवी आचार्य श्यामलाल उपाध्याय की कुछ रचनाएँ

१. कवि-मनीषी…

Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 9, 2011 at 7:32am — 2 Comments

धनपशु का पुरस्कार

देश में अलग-अलग विधाओं व उपलब्धियों पर पुरस्कार दिए जाने की परिपाटी है। इन पुरस्कारों के लिए चुनिंदा नाम पर मुहर लगती है, मगर भ्रष्टाचार के दानव के मुखर होने के बाद इन दिनों मैं सोच रहा हूं कि देश में एक और पुरस्कार दिए जाने की जरूरत है और वो है, धनपशु पुरस्कार। देश में एक-एक कर भ्रष्टाचार की हांडी फूट रही है और टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कामनवेल्थ घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला तथा इसरो घोटाला के भ्रष्टाचार लोक से धनपशुओं का पदार्पण हो रहा है। भ्रष्टाचार कर देश को खोखला करने वाले ऐसे धनपशुओं को… Continue

Added by rajkumar sahu on March 9, 2011 at 12:11am — 1 Comment

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