212 212 212 212
1
एक आवाज़ कानों में आती रही
रूह के पार मुझको ले जाती रही
2
ख़्वाब आँखों को हर पल दिखाती रही
ज़िन्दगी उम्र भर बरगलाती रही…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on January 16, 2021 at 10:38pm — 17 Comments
122 122 122 122
किसी और मंज़िल पे जाने का दिल है
कहीं और दुनिया बसाने का दिल है
अभी मैं नहीं इश्क में सरफरोश
मगर इस कदर जाँ लुटाने का दिल है
अभी तो नदी के सफ़र पे हूँ पैहम
समंदर के साहिल पे जाने का दिल है
कभी मुट्ठियों भर सितारे जला दूँ
कभी वादियों को जलाने का दिल है
कभी खाक कर दूँ सभी जख्म़ दिल के
युँ ही शय जलाने बुझाने का दिल है
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Aazi Tamaam on January 16, 2021 at 1:30am — No Comments
221 2121 1221 212
अपनी खता लिखूं या ख़ुदा का किया लिखूं .
इस दौरे नामुराद को किसका लिखा लिखूं .
उठती नहीं है तेरी तरफ मेरी उंगलियां,
फिर कौन सी कलम से तुझे बेवफा लिखूं.
मैं तेरा नाम ला नहीं सकता बयान में,
अपने ख़्याल पर बता किस का पता लिखूं.
मेरी पुकार तो नहीं जाएगी आप तक,
मैं किसके जरिए साल मुबारक नया लिखूं.
है याद मुझको तेरा वो छूना मेरे क़दम,
तब कैसे खुद को तेरी नज़र से गिरा…
Added by मनोज अहसास on January 15, 2021 at 11:33pm — 6 Comments
2122 1212 22/112
एक पत्थर सा बस पड़ा हूँ मैं
हूँ मुसाफ़िर या रास्ता हूँ मैं (1)
अब कोई ढूँढता नहीं मुझको
एक मुद्दत से लापता हूँ मैं (2)
ज़िंदगी आजकल जहन्नम है
ख़्वाब जन्नत के देखता हूँ मैं (3)
छोड़ कर सब चले गए हैं या
भीड़ में फिर से खो गया हूँ मैं (4)
अब नहीं इंतिज़ार तेरा पर
रास्ता रोज़ देखता हूँ मैं (5)
हर तरफ है अजीब वीरानी
खुद में शायद उजड़ रहा हूँ मैं…
Added by सालिक गणवीर on January 15, 2021 at 8:00pm — 8 Comments
२२/२२/२२/२२
दुनिया जिससे डरती होगी
प्यार न उससे करती होगी।१।
*
जैसा इसको नोच रहे हम
कैसी कल ये धरती होगी।२।
*
चाँद नगर क्या जाना यारो
भूमि वहाँ भी परती होगी।३।
*
जितना विष हम पिला रहे हैं
नित्य नदी एक मरती होगी।४।
*
चाँद को जब बदसूरत करने
दुनिया रोज उतरती होगी।५।
*
धरती के मन की हर पीड़ा
पलपल और उभरती होगी।६।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 15, 2021 at 8:04am — 4 Comments
2122 1122 1122 22
फिर खुला याद के कमरे का ज्यूँ रौज़न कोई
त्यों ही फिर दौड़ पड़ा याद का तौसन कोई
शेर में ज़िक्र है कोचिंग व घने कुहरे का
चाहता हूँ किसी रिक्शे पे चले मन कोई
मैंने कुछ शेर केमिस्ट्री के कहे हैं, जिससे
मेरे महबूब के दिल में हो रिएक्शन कोई
किस तरह मैंने सजाया है मेरे दिलबर को
आके देखे मेरी ग़ज़लों का ये गुलशन कोई
शायरी गीत सभी कुछ जो लिखा है मैंने
जान तेरा है असर मेरा नहीं फ़न…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 14, 2021 at 2:08pm — 6 Comments
आणविक अनुप्रस्थान लघु कथा
वेदना से संवेदना हो तो मानवीय प्रकल्प उपजता है ऐसा मेरा सोचना था , तुम क्या सोचती हो इसी विषय में मैं अनभिज्ञ था , फिर एक दिन तुम बिना बताये कहीं चली गई। आभास था जाओगी और वो आभास प्रकटतः घटित भी हुआ। मुझे लेकिन इस अजन्मे विरह का अभ्यास किंचित न था सो मैं खिन्नता से खिसियानी बिल्ली अर्थात बिल्ले सा भ्रमित मन से एकांत में उतर गया। अब तक अपने…
Added by DR ARUN KUMAR SHASTRI on January 12, 2021 at 3:29am — No Comments
छंद मुक्त रचना
तिथि १२ जनवरी 21 समय 2.3 6 सुबह
डॉ अरुण कुमार शास्त्री / एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त
मिला है वक्त जो भी इस ज़हान में …
ContinueAdded by DR ARUN KUMAR SHASTRI on January 12, 2021 at 2:41am — No Comments
221 2121 1221 212
होता नहीं है ख़त्म मेरा काम भी कभी
कैसे करे ये दिल बता आराम भी कभी (1)
अब हो न जाँऊ यार मैं बदनाम भी कभी
हो जाए मुफ्त में न मेरा नाम भी कभी (2)
क्या क्या चुरा लिया है ये मुझसे न पूछिये
लूटा गया है मुझको सर-ए-आम भी कभी (3)
कुछ इस तरह से छोड़ गए हैं मुझे यहाँ
आते नहीं हैं मुद्दतों पैगाम भी कभी (4)
करते रहे हवाई सफ़र मुफ़्त में सदा
कुछ लोग तो चुकाते नहीं दाम भी कभी …
Added by सालिक गणवीर on January 10, 2021 at 11:00pm — 6 Comments
' आजादी के झंडे बिक रहे हैं।'
' पिछले साल वाले भी?'
' क्या?'
' महकमों के पुराने झंडे नये दाम में बिकते हैं। बिल बन जाती ।'
' जाने दो।आजादी का जश्न है,धूम से मने।'
' मिलेगी कब?'
' अबे बुरबक! कब की मिल चुकी, सन सैंतालीस में।'
'सरकारी राशन का पर्याय बनी जिंदगी,मिलावट का जहर और आदमी का खून पीता आदमी!यही आजादी है?'
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on January 10, 2021 at 9:09am — 2 Comments
समय का चक्र घूमता
कठोर काल झूमता
प्रचंड वेग धारता
दहाड़ता , पछाड़ता
लपक- लपक, झपक - झपक
नगर - नगर , डगर- डगर
मृत्यु - बिगुल फूँकता
बन के वज्र टूटता
सिरिंज की कमान से
वैक्सिन के वाण से
संक्रमण को नष्ट कर
यह कोरोना ध्वस्त कर
निकालेगा जहान से
खड़ा हुआ वो शान से
विजय ध्वजा को धारेगा
मनुज कभी न हारेगा
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on January 8, 2021 at 7:44pm — 2 Comments
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 7, 2021 at 11:26am — 3 Comments
1222/1222/122
1
महकता वो चमन लाऊँ कहाँ से
जुदा जिसका तसव्वुर हो ख़िज़ाँ से
2
कभी पूछा है तुमने कहकशाँ से
हुए गुम क्यों सितारे आसमाँ से
3
न जाने क्या मिलाया था नज़र में
न चल पाए क़दम इक भी वहाँ से
4
सँभलने के लिए कुछ वक़्त तो दो
अभी उतरा ही है वो आसमाँ से
5
किसी सूरत बहार आए गुलों पर
उड़ी है इनकी रंगत ही ख़िज़ाँ से
6
हटा दे तीरगी जो मेरे दिल की
दिया वो लाऊँ…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on January 6, 2021 at 7:08pm — 3 Comments
२२/२२/२२/२२
जनता पर हर वार सियासी
नेता की है हार सियासी।१।
*
खून खराबा झेल रहा नित
होकर यह सन्सार सियासी।२।
*
बाहर बाहर फूट का दिखना
भीतर जुड़ना तार सियासी।३।
*
बस्ती में आने मत देना
कोई भी अंगार सियासी।४।
*
घर फूटेगा हो जाने दो
बातें बस दो चार सियासी।५।
*
देश का पहिया जाम पड़ा है
दौड़ रही बस कार सियासी।६।
*
संकट का क्या अन्त करेगा
झूठा हर अवतार सियासी।७।
*
दम घोटे है नित जनता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2021 at 10:17am — 12 Comments
अरकान- 2122 1122 1122 112/22
तेरे खाने के लिये मुफ्त का माल अच्छा है
इसलिये लगता चुनावों का वबाल अच्छा है
ये अलग बात कि सूरत न भली हो लेकिन
कुछ न कुछ हर कोई करता ही कमाल अच्छा है
हम जवाबों से परखते हैं रज़ामन्दी को
मुस्कुरा दे वो अगर समझो सवाल अच्छा है
हद से बाहर तो हर इक चीज़ बुरी लगती है
हद में रह कर जो किया जाए धमाल अच्छा है
अस्मतें रोज़ ही माँ बहनों की बिकती हैं…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 5, 2021 at 12:57pm — 5 Comments
मन में जब है प्यास रे जोगी
क्या लेना सन्यास रे जोगी।१।
*
महलों जैसे सब सुख भोगे
क्यों कहता बनवास रे जोगी।२।
*
व्यर्थ किया क्यों झूठे मद में
यौवन का मधुमास रे जोगी।३।
*
हम से कहता वासना त्यागो
छिप के करता रास रे जोगी।४।
*
खुद ही जब ये निभा न पाया
औरों से क्या आस रे जोगी।५।
*
मत कह बन्धन मुक्त हुआ है
तू भी हम सा दास रे जोगी।६।
*
तन का है या मन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2021 at 7:30am — 6 Comments
नए वर्ष चल थाम उंगली दिखाऊँ
तुझ को बहुत काम करने को हैं
दिये जो जख्म गत वर्ष तूने
इस साल तुझ ही को भरने को हैं
आ चल दिखाऊँ तुझे यह स्कूल
दीवारों पे जाले हैं खाली पड़ा है
भरोसा दिलाना, घर से बुलाना
जिम्मा तुम्हारा यह सचमुच बड़ा है
आ चल दिखाऊँ सड़कें वो पटरी
वीरान चक्का भोंपू बहरा हैं
इंजन को जंग है चालक उनींदे
महीनों से सब कुछ यहीं ठहरा है
आ चल दिखाऊँ तुझको वीरानी
वीरान झूले…
ContinueAdded by amita tiwari on January 3, 2021 at 12:00am — 1 Comment
बलात्कार - लघुकथा –
चौबीस पच्चीस साल की युवती रोशनी पुलिस स्टेशन के गेट पर एक अनिर्णय और असमंजस की स्थिति में खड़ी थी।कभी एक कदम अंदर की ओर बढ़ाती लेकिन अगले ही पल पुनः उस कदम को पीछे कर लेती।
उसकी इस मनोदशा को उसका मस्तिष्क तुरंत ताड़ गया,"क्या हुआ? इतने जोश में निकल कर आईं थी।सब जोश ठंडा पड़ गया थाने तक आते आते।"
"नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।मैं कुछ आगे पीछे की ऊँच नीच के बारे में सोच रही हूँ।"
"कमाल है, इसमें सोचना क्या है? बलात्कार हुआ है तुम्हारे साथ।"
तभी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 1, 2021 at 6:36pm — 9 Comments
1222 1222 122
उसे पहले कभी देखा नहीं था
वो दिल के पास जो रहता नहीं था (1)
लगी है शह्र की इसको हवा अब
हमारा गाँव तो ऐसा नहीं था (2)
बहुत कुछ बोलती थीं आँखें उसकी
ज़ुबाँ से वो कभी कहता नहीं था (3)
अँधेरों ने रखा था क़ैद जब तक
उजाला दूर तक फैला नहीं था (4)
न जाने क्या हुआ भरता नहीं है
पुराना घाव तो गहरा नहीं था (5)
वही तन कर खड़ा रहता है आगे
कभी जो सामने बैठा नहीं…
Added by सालिक गणवीर on January 1, 2021 at 2:30pm — 6 Comments
भूल मन पीड़ा विगत की गा रहा है
शुभ रहे नव वर्ष ये जो आ रहा है।१।
*
आँख जब आँसू झराने को विवश थी
अन्त उस मौसम का होने जा रहा है।२।
*
जिन्दगी होगी सुहानी आज से फिर
भोर का सूरज हमें समझा रहा है।३।
*
बह न पाए फिर लहू इन्सानियत का
ये वचन मन को सभी के भा रहा है।४।
*
पेट भर भूखे को रोटी नित मिलेगी
साथ यह उम्मीद साथी ला रहा है।५।
*
बाँटना …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2021 at 8:25am — 11 Comments
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