हुए थे सूरमा कई, जो खेले थे जान पर ,
Added by dilbag virk on January 16, 2012 at 10:17pm — 3 Comments
कुछ पन्ने इसके पलट गये
कुछ को न हाथ लगाया है
कुछ याद पुरानी बाकी है
कुछ में इतिहास समाया है
कुछ में वो बीता बचपन है
जिनकी इक अमिट निशानी है
कुछ में है लिखा हुआ छुटपन
कुछ में अनकही कहानी है
कुछ पन्ने बीती रातों से
कुछ ख्वाबों…
ContinueAdded by Amit Pandey on January 16, 2012 at 9:30pm — 5 Comments
समझ सॆ परॆ हैं हम,,,,,
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यॆ मत सॊच कि इतनॆ गिरॆ हैं हम ॥
फ़क्त तॆरॆ इक वायदॆ पॆ मरॆ हैं हम ॥१॥
हॊशियारी की हरियाली न दिखावॊ,
ऎसॆ तॊ तमाम सारॆ खॆत चरॆ हैं हम ॥२॥
दिल मॆं कैद कर लॆं तुम्हॆं क्यूं कर,
कानूनी अदालत कॆ कटघरॆ हैं हम ॥३॥
हमारी हस्ती कॊ तॊलतॆ हॊ तराजू पॆ,
क्या समझॆ बॆज़ान सॆ बटखरॆ हैं हम ॥४॥
नॆकियॊं का दामन नहीं छॊड़ा कभी,
चाहॆ ला्खॊं मु्सीबत मॆं घिरॆ हैं हम ॥।५॥
शैतान की परवाह नहीं है जी…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on January 16, 2012 at 9:01pm — 3 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 16, 2012 at 6:20pm — 2 Comments
करवट लेता है नया साल
आओ कुछ उम्मीदें कर लें
अरमानों के कुछ बूटों को
दामन में हम अपने सी लें l
नेकी हो भरी दुआओं में
मायूस ना हो कोई चेहरा
जीवन हो शांत तपोवन सा
खुशिओं का रंग भरे गहरा l
ना आग बने कोई चिंगारी
ना आस बने कोई लाचारी
जग में फैला हो अमन-चैन
ना कहीं भी हो कोई बेगारी l
ओंठों पे खिली तबस्सुम हो
हर दिल में नूर हो इंसानी
आँखों में रोशन हों…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on January 15, 2012 at 8:00pm — No Comments
ये दुनिया गोल है
यहाँ बड़ा ववाल है
हर चीज का मोल है
बड़ा गोलमाल है l
बातों में तो मिश्री
मन में कोई चाल है
है बहेलिया ताक में
बिछा के बैठा जाल है l
कहीं ताल लबालब
कहीं पड़ा अकाल है
क्यों इतना अन्याय
उठता रहा सवाल है l
कर पायें आपत्ति
ऐसी कहाँ मजाल है
बात-बात में लोगों की
खिंच जाती खाल है l
-शन्नो अग्रवाल
Added by Shanno Aggarwal on January 15, 2012 at 7:37am — 4 Comments
है समय की दरकार l
ये है संसार
कभी ना
किसी पर
करना एतबार l
झूठ के खार
कब जाने
किस पर
कर देंगे वार l
खिला हरसिंगार
कब कौन
लूट जाये
पेड़ की बहार l
आज है प्यार
कल को
नफरत के
होंगें अंगार l
है समय की दरकार l
-शन्नो अग्रवाल
Added by Shanno Aggarwal on January 15, 2012 at 6:00am — 2 Comments
स्त्री और प्रकृति
प्रकृति और स्त्री
कितना साम्य ?
दोनों में ही जीवन का प्रस्फुटन
दोनों ही जननी
नैसर्गिक वात्सल्यता का स्पंदन,
अन्तःस्तल की गहराइयों तक,
दोनों को रखता एक धरातल पर
दोनों ही करूणा की प्रतिमूर्ति
बिरले ही समझ पाते जिस भाषा को
दोनों ही सहनशीलता की पराकाष्ठा दिखातीं
प्रेम लुटातीं उन…
Added by mohinichordia on January 14, 2012 at 10:30am — 9 Comments
हर कोना शख्सियत को
Added by Yogyata Mishra on January 14, 2012 at 10:30am — 4 Comments
खुला मौसम गगन नीला
धरा का तन गीला - गीला l
पतंगों की उन्मुक्त उड़ान
तरु-पल्लव में है मुस्कान l
मकर-संक्रांति को भारत के हर प्रांत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. और वहाँ के वासी अलग-अलग तरीके से इस त्योहार को मनाते हैं. पंजाब में इसे लोहड़ी बोलते हैं जो मकर-संक्राति के एक दिन पहले की शाम को मनायी जाती है. और उत्तरप्रदेश में, जहां से मैं आती हूँ, इसे मकर-संक्रांति ही बोलते हैं. लोग सुबह तड़के स्नान करते हैं ठंडे पानी में. और इस दिन को खिचड़ी दिवस के रूप…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on January 13, 2012 at 5:30pm — 7 Comments
Added by Yogyata Mishra on January 13, 2012 at 3:00pm — 4 Comments
आँसू ----
आँसू नहीं छंद होते हैं
आँसू नहीं नियम होते हैं
भावों की अनुभूति है आँसू
कभी ख़ुशी कभी गम होते हैं..
मैंने देखे सुख के आँसू
हंसते गाते झिलमिल आँसू
दुःख मे भी देखे हैं आँसू
रोते-रोते दर्दीले आँसू ..
बेटी की विदा बेला पर
छलक पड़े आँखों के आँसू
गौरव के पल आने पर भी
बह निकले आँखों से आँसू ..
कभी किसी की मृत्यु पर भी
खूब बहाए मैंने आंसू
शिशु जन्म के अवसर पर भी
रुक न सके आँखों मे…
Added by dr a kirtivardhan on January 13, 2012 at 2:00pm — 3 Comments
पेंच जो लड़ी......
चढ़ी पतंगे डोर पे,छूने को आकाश.
होड़ मची है काट की,उड़े पास ही पास.
उड़े पास ही पास,उमंगें नभ को छूती.
वो...काट की बोल रही,होंठों पे तूती.
कहता है अविनाश पेंच जो लड़ी,
कटी पतंगें कहलाती ,दम्भी और नकचढ़ी.
अविनाश बागडे.
Added by AVINASH S BAGDE on January 13, 2012 at 11:07am — 3 Comments
ये तेरी बेरुखी की इंतेहा है या मेरी ख्वाहिशों का कसूर,
आज भी रोने के लिए हम तेरे शाने को तरसते हैं।
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तेरे साथ ही हूँ मगर अब वो एहसास नहीं दिखता,
जो गुदगुदा जाता था मुझे, कभी बस राहों मे तेरे मिल जाने से !
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दिल में सोई हुई तमन्नाओ का इज़हार करके देखो,
ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है, किसी से प्यार करके…
Added by Vasudha Nigam on January 13, 2012 at 10:00am — 6 Comments
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 13, 2012 at 1:29am — 6 Comments
मत पूंछियॆ,,,,,,,,,,
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मतलब की बात करियॆ, बेकार का हाल मत पूछियॆ ॥
जैसी भी है अपनी है, सरकार का हाल मत पूछियॆ ॥१॥
लहराती है नैया, सरकार की तॊ लहरानॆ दीजियॆ,
आप माझी सॆ मगर,पतवार का हाल मत पूछियॆ ॥२॥
चिल्लातॆ चिल्लातॆ अन्ना की तबियत तंग हुई,
अपनॆ भारत मॆं, भ्रष्टाचार का हाल…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 12, 2012 at 5:30pm — 4 Comments
कलम को तलवार कर दिया,,,,,,,,,,
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सिखाकर आप ने उपकार कर दिया ।
लो हम पे एक और उधार कर दिया ॥१॥
अब उम्र भर न अदा कर पायेंगे हम,
इस कदर आपने कर्जदार कर दिया ॥२॥
ज़माना नीलाम कर देता आबरू मेरी,
वो आप हैं जो कि खबरदार कर दिया ॥३॥…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 12, 2012 at 5:00pm — 5 Comments
मेरी आवाज़ .....
आवाज़,जो मुल्क की बेहतरी के लिए है,
उसे कोई दबा नहीं सकता|
दीवार ,जो मेरी आवाज़ दबा सके,
कोई बना नहीं सकता|
जब जब चाहा जालिमों ऩे,आवाज़ दबी हो,
किस्सा, कोई बता नहीं सकता|
क़त्ल कर सकते हो मेरे जिस्म को, कातिल ,
विचारों को कोई दबा नहीं सकता|
खिलेगा कोई फूल उपवन मे,देखना उसको,
खुशबू को कोई चुरा नहीं सकता|
कहाँ से पाला भ्रम अमर होने का,सियासतदानों ,
मौत से कोई पार पा नहीं सकता|
दबाओ के कब तलक मेरी आवाज़ ,दरिंदो…
Added by dr a kirtivardhan on January 12, 2012 at 3:00pm — 5 Comments
तिरंगा
तीन रंग मे रंग हुआ है,मेरे देश का झंडा
केसरिया,सफ़ेद और हरा,मिलकर बना तिरंगा.
इस झंडे की अजब गजब,तुम्हे सुनाऊं कहानी
केसरिया की शान है जग मे,युगों-युगों पुरानी.
संस्कृति का दुनिया मे,जब से है आगाज़ हुआ
केसरिया तब से ही है,विश्व विजयी बना रहा.
शान्ति का मार्ग बुद्ध ने,सारे जग को दिखलाया
धवल विचारों का प्रतीक,सफ़ेद रंग कहलाया.
महावीर ने सत्य,अहिंसा,धर्म का मार्ग बताया
शांत रहे सम्पूर्ण विश्व,सफ़ेद धवज फहराया.
खेती से भारत ने…
Added by dr a kirtivardhan on January 12, 2012 at 12:30pm — 1 Comment
कुछ हाइकु
नारी----
.
बेबस नारी
परिवार पालती
रुखा खाकर.
कुल हाडी------
.
आरोपित है
जीवन देने वाली
कुल हाडी है.
आदमी----
आदमी देखो
गिरगिट सा रंग
मन मे भरा.
dr a kirtivardhan
Added by dr a kirtivardhan on January 12, 2012 at 12:30pm — 4 Comments
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