अपनो से दूर
अपने पराये
पराये अपने
चुटकी भर
सिंदूर से
पास मेरे
तन मन
अर्पण
मैं सुखी
उसकी खुशी
हर चाहते
सपने उमंग
चेहरे पर तेज
हर पल साथ
साँसो के साथ
मेरे अपने
उसके अपने
निर्स्वाथ सेवा
हम दो शब्द
प्यार के नहीं
जज्बातो से खेलते
हर सपने तोड़ते
शिव है हम
मगर वह सीता
सह गयी जुल्म
मगर ना मिला
राम को…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on January 7, 2014 at 11:00pm — 18 Comments
१. “ मैं ”
मैं-मैं तू करके हुआ, भौतिक सुख में लीन
अहम् भाव और देह की, रहा बजाता बीन
रहा बजाता बीन , नहीं ‘मैं’ को पहचाना
परम तत्व को भूल ,जोड़ता रहा खजाना
क्या दिखलाकर दाँत, करेगा केवल हैं हैं ?
जब पूछें यमराज, कहाँ बतला तेरा मैं ||
२. “ तुम “
तुम-मैं मैं-तुम एक है , परम ब्रम्ह का अंश
जाति- धर्म इसका नहीं , और न कोई वंश
और न कोई वंश ,यही तो अजर - अमर…
ContinueAdded by अरुण कुमार निगम on January 7, 2014 at 10:57pm — 12 Comments
मुट्ठी से रेत की तरह
फिसल गया ये साल भी
पिछले साल की तरह,
वही तल्खियाँ, रुसवाइयाँ,
आरोप, प्रत्यारोप,बिलबिलाते दिन
लिजलिजाती रातें, दर्द, कराहें
दे गया सौगात में |
सोचा था पिछले साल भी
होगा खुशहाल, बेमिशाल
लाजवाब आने वाला साल,
भर लूँगी खुशियों से दामन
महकेगा फूलों से घर आँगन
खुले केशों से बूँदें टपकेंगी
दूँगी तुलसी के चौरा में पानी
बन के रहूँगी राजा की रानी |
हो गया फिर से आत्मा का चीरहरण…
Added by Meena Pathak on January 7, 2014 at 1:15pm — 31 Comments
सुन्दर दृश्य उत्पन्न करती हैं
एक साथ जलती ढेरों मोमबत्तियाँ
भीड़ से घिरी उनकी रोशनी
कसमसाकर दम तोड़ देती है
वातावरण में घुले नारे
खंडहर में पैदा हुई अनुगूँज की तरह
कम्पन पैदा करते हैं
सर्द हवाएँ
काँटों की तरह चुभती हैं
अँधेरा गहराता जा रहा है
___
बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by बृजेश नीरज on January 7, 2014 at 1:00pm — 34 Comments
!!! नवगीत !!!
अंधेरों सी घुटन में, जमीं के टूटते तारे।
सहम कर बुदबुदाते, बिफर कर रो रहे सारे।।
उजालों ने दिए हैं, घोटालों की निशानी।
दिए हैं झूठ के रिश्ते, फरेबी तेल की घानी।
जली है अस्मिता बाती, हुए हैं ताख भी कारे।
नजर की ओट में रहकर, नजर की कोर भी पारे।।1
सलोना चॉद सा मुखड़ा, चॉदनी पाश के पट में।
छले जनतन्त्र अक्सर अब, नदी तरूणी लुटे पथ में।
तड़फती रेत सी समता, पवन में खोट है सारे।
जमे हैं पाव…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on January 7, 2014 at 11:37am — 6 Comments
दुर्मिल सवैया !! मां शारदे !!
सहसा प्रतिभा समभाष करें, तुम आदि-अनादि अनन्त गुणी।
तप से, वर से नित धन्य करें, कवि-लेखक संग महन्त गुणी।।
गुण-दोष समान विचार रखें, नित नूतन कल्प भनन्त गुणी।
भव सागर में जब याद करें, पतवार लिए तुम सन्त गुणी।।
के0पी0सत्यम मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on January 7, 2014 at 11:00am — 7 Comments
पतंगबाजी उर्फ तमन्नाओं की ऊँची उड़ान
तमन्नाओं की ऊँची उड़ान
का आभास हुआ
जब कुछ बच्चों को
घर की मुंडेर
पर चढ़कर
पतंग उड़ाते देखा
अलग अलग रंगों की
छटा बिखेरती,
ऊँची और ऊँची
चढ़ रही थी
आसमान में
परिंदे उड़ते हैं जैसे ।
मेरी पतंग ही रानी है
शायद यही सोचकर
लड़ाया पेंच एक बच्चे ने
दूसरी पतंग…
ContinueAdded by mohinichordia on January 7, 2014 at 10:30am — 8 Comments
जाने वाला साल सब सुख चैन ले गया
नयनों में है नीर दिल में दर्द दे गया /
क्या मनाएं साल उस बिन अब लगे न दिल
एक झटके में सभी अरमान ले गया /
मुस्कराएँ हम क्या तेरे बिन ओ साथी अब
खुशिओ का तू सारा ही सामान ले गया /
उसकी हर आहट का होता है मुझे गुमाँ
खुद को समझायें क्या वो संसार से गया /
याद आती उसकी है अब रात रात भर
यादों का वो इक सफ़र है नाम दे गया /
काटना है अब अकेले उस बिना सफ़र
जिन्दगी भर का गमे…
Added by Sarita Bhatia on January 7, 2014 at 10:00am — 17 Comments
'मैं-तुम’ के शुभ योग से, 'हम’ का आविर्भाव
यही व्यष्टि विस्तार है, यही व्यष्टि अनुभाव
यही व्यष्टि अनुभाव, ’अपर-पर’ का संचेतक
’अस्मि ब्रह्म’ उद्घोष, ’अहं’ का धुर उत्प्रेरक
’ध्यान-धारणा’ योग, सतत…
Added by Saurabh Pandey on January 7, 2014 at 1:00am — 24 Comments
अचानक एक दिन
हुई उसके बचपन की हत्या
विवाह की वेदी ने दिया
एक नया घर-आँगन
एक नया रोल
एक नया अभिनय
एक नया डर...
अचानक एक दिन
ख़त्म हुई नादानियां
दफन हुईं लापरवाहियां
स्याह हुए स्वप्न
भोथरा गईं कल्पनाएँ....
अचानक एक दिन
उठाना पडा भारी-भरकम
संस्कारों का पिटारा
जिम्मेदारियों का बोझ
मानसिक-शारीरिक तब्दीलियाँ
और शिथिल हुए स्नायु-तंत्र...
दीखता नही दूर-दूर तक
इस मायाजाल से…
Added by anwar suhail on January 6, 2014 at 11:40pm — 7 Comments
Added by Abhinav Arun on January 6, 2014 at 7:47pm — 33 Comments
मिसरा-तरह //आखिर तुमने अपना ही नुकसान किया // पर आधारित एक तरही ग़ज़ल
22- 22- 22- 22- 22- 2
सच्चाई को जब अपना ईमान किया
सारी दुनिया को उसने हैरान किया
मुल्क़परस्ती का जज़्बा अब आम नहीं
किसने अपना सब यूँ ही क़ुर्बान किया
चुन-चुन के ग़ज़लों को बाँधा तुमने यूँ
बिखरे औराक़ सहेजे, दीवान किया
छोटी- छोटी बातों में खुशियाँ ढूँढी
अपने छोटे से घर को ऐवान किया
मायूस हुआ तेरी तीखी…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 6, 2014 at 9:00am — 34 Comments
बाप के जूते
***********
जब से
बाप के जूते
बच्चों के पैरों में
आने लगे हैं ,
वो सही ग़लत
बाप को ही
समझाने लगे हैं ।…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 6, 2014 at 8:00am — 42 Comments
दिन उगे का तो पहर लगता है
यों अभी थोड़ी कसर, लगता है..
साँस लेना भी दूभर लगता है
क्या ये मौसम का असर लगता है
क्या हुआ साथ चलें या न चलें…
Added by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 3:00am — 22 Comments
गुरुकुल बहुत याद आता है
.
नटखट बचपन छूटा मेरा
गुरुकुल के पावन आँगन मे ,
वो अतीत अब भी पलता है
बंजारे अंजाने मन मे ।
निधि जो गुरुकुल से ले आया, छटा नयी नित बिखराता है
गुरुकुल बहुत याद आता है !
अब भी क्या गुरुकुल प्रांगण मे
गूँजे मंत्रों की प्रतिध्वनियाँ ?
निर्मल हो पावन हो जाए
परम ब्रह्म की सारी दुनिया ।
चन्दन सी खुशबू इस जग मे, पावन गुरुकुल बरसाता है
गुरुकुल बहुत याद आता है ।…
Added by S. C. Brahmachari on January 5, 2014 at 10:30pm — 13 Comments
जो पीने को दिल के पैमाने में मिलता है ।
वो जाम मोहब्बत के मैखाने में मिलता है ।
ना होश न खबर कोई मस्ती है खुमारी है ,
ये इल्म फकीरों के अफ़साने में मिलता है ।
सब झूठ ही कहते हैं कि शम्मा जलती है ,
जलने का हुनर फकत परवाने में मिलता है ।
कुछ मज़ा दीवाने को आता है तड़पने में ,
कुछ लुत्फ़ उन्हें भी तो तड़पाने में मिलता है ।
ये समझ ले जो तूने दिल में ही नही पाया ,
वो मन्दिर मस्जिद ना बुतखाने में मिलता है…
Added by Neeraj Nishchal on January 5, 2014 at 9:00pm — 7 Comments
1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2
कभी जीवन में अपने कुछ दुखद से पल भी आते हैं
सभी अपने हमेशा के लिए तब छोड़ जाते हैं /
समय अपना बुरा आया,तमस भी साथ ले आया
करीबी जो रहे अपने वही नजरें चुराते हैं /
किसे फुर्सत हमें देखे हमारा हाल वो जानें
हमें रुसवाइओं में तन्हा अक्सर छोड़ जाते हैं /
मिले ढूंढे नहीं कोई सहारा बन सके जो तब
मुसीबत में कहाँ अब लोग यूँ रिश्ते निभाते हैं /
भला कर तू भला होगा बुरा मत सोचना मन…
Added by Sarita Bhatia on January 5, 2014 at 8:30pm — 20 Comments
वज़न २२१२ २२१२ २२१२ १२
उसने दिया इनकार का पैग़ाम उम्र भर
हाँसिल नहीं कुछ बस हुआ बदनाम उम्र भर
ये मुद्दतों की प्यास है मिटती अबस तभी
अपनी नज़र से जब पिलाती जाम उम्र भर
आग़ाज़ मोहब्बत का था जब दर्द से भरा
लाज़िम मुझे सहना ही था अंजाम उम्र भर
बस एक तिरी ख्वाहिश में खोया वजूद तक
ये ज़िन्दगी भी रह गई बे-नाम उम्र भर
दिल की तिजारत दर्द से बिस्मिल किया किये
उल्फत में बस ये ही रहा एक ख़ाम…
ContinueAdded by Ayub Khan "BismiL" on January 5, 2014 at 8:30pm — 11 Comments
गंगा चुप है ...................
वेगवती गंगा प्रचंड प्रबल
लहराती, बल खाती जाए
रूप चाँदी सा दूधिया धवल
जनमानस तारती जाए
वो गंगा !! आज चुप है ..............
हे ! मानस किञ्च्त जागो
भागीरथी की व्यथा सुनो
तुमको तो जीवन दिया है
किन्तु तुमने क्या दिया है
व्यथित गंगा !! आज चुप है ................
आंचल मैला किए देते हो
मुख मे भी विष दिये देते हो
चाँदी सा रूप हुआ क्लांत
सौम्यता भी हुई…
ContinueAdded by annapurna bajpai on January 5, 2014 at 4:30pm — 9 Comments
दोस्ती
देखता हूँ सहचर मीत मेरे
सहसा, दोस्ती की निगाहें हैं झुकी हुई
पलकें भीगी
घिरते आए संत्रस्त ख़यालों पर
खरोंचते-उतरते संतप्त ख़याल ...
फिसलते भीगे गालों पर
दोस्ती के वह सुनहले रंग
बिखरते गीले काजल-से
कहाँ हैं दोस्ती की रोश्नी की
वह अपरिमय चिनगियाँ
बनावटी थीं क्या ? नहीं, नहीं,
चमकती थीं वह अपेक्षित आँखों में ...
रुको, माप लूँ मैं बची हुई थोड़ी-सी
उस चमक की…
ContinueAdded by vijay nikore on January 5, 2014 at 9:00am — 24 Comments
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