For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

February 2023 Blog Posts (29)

ममता ......(लघुकथा )

ममता ....

"सुनिए,  मैं ये कह रही थी कि 5 दिन के बाद अपनी पोती नीलू का जन्म दिन है । नीलू पूरे चार साल की हो जाएगी" पार्वती ने लेटे-लेटे अपने  पति राघव से कहा।

"हाँ वो तो है ।" राघव ने जम्हाई लेते हुए कहा ।

"मैं ये सोच रही थी क्यों न हम  इस मौके पर हम  अपनी तरफ से ग्यारह हजार रुपये का चेक अपने आशीर्वाद के रूप में भेज दें क्योंकि शारीरिक व्याधियों की हम दिल्ली तो जा नहीं सकते ।" पार्वती ने कहा ।

"तेरा विचार सही है । मैं कल ही  बैंक में चेक डाल दूँगा ।…

Continue

Added by Sushil Sarna on February 28, 2023 at 9:46pm — 4 Comments

मैं रोना चाहता हूँ

मैं रोना चाहता हूँ

बस एक बार रोना चाहता हूँ

अपने आँखों को आँसुओं से

खूब भींगोना चाहता हूँ

बस एक बार रोना चाहता हूँ



पता नहीं कब क्यूँ और कैसे

आँसू मेरे सुख गए

दर्द मिला है इतना के अब

दर्द के नाले सुख गए

बस रोकर उनको फिर से मैं

गीला करना चाहता हूँ

बस एक बार रोना चाहता हूँ



याद पड़ा जब छोटा था

बात-बात पर रोता था

थक जाता जब रो-रो कर

माँ के गोद में सोता था

फिर एक बार मैं

उस गोद में सोना चाहता हूँ

बस… Continue

Added by AMAN SINHA on February 27, 2023 at 12:52pm — 4 Comments

तुम मुझसे पहले जैसा प्यार नहीं करते

तुम मुझसे पहले जैसा प्यार नहीं करते

करते भी हो तो इजहार नहीं करते

कहो, क्यों पहले जैसा प्यार नहीं करते?

और करते हो तो क्यों इजहार नहीं करते?



क्यूँ जुबा पर बातें तेरी आते-आते रुक जाती है?

पहले जैसी लबों से तेरी क्यूँ फिसल ना जाती है?

पहले जैसी क्यूँ अब तेरी साँसे तेज़ नहीं चलती?

मेरी जैसी तेरी आहें अब क्यों बात नहीं करती?



क्यूँ अब तुम पहले जैसा कोई शिकवा नहीं करते?

क्यूँ छोटी-छोटी बातों पर तुम मेरे साथ नहीं लड़ते?

क्यूँ अब तेरा हँसना… Continue

Added by AMAN SINHA on February 25, 2023 at 12:31pm — No Comments

गीत(१९)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अपनेपन में विद्व नगर से, अच्छा अनपढ़ गाँव

भरी दुपहरी मिल जाती है, जहाँ पेड़ की छाँव।।

*

नगर हमेशा दुख देकर  ही, माने  अपनी जीत

आँगन चाहे एक नहीं पर, खड़ी बहुत हैं भीत

अपनों की तो बात अलग है, रही गाँव की रीत



किसी पराये का भी दुख में, सहला देता पाँव

अपनेपन में विद्व नगर से, अच्छा अनपढ़ गाँव।।

*

सकी माँगें नहीं असीमित, रोटी कपड़ा गेह

जिसे नगर सा नहीं ठाठ से, होता पलभर नेह

मन में सेवाभाव…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2023 at 6:17pm — 2 Comments

हम तुम तो ऐसे ना थे

वही दिन है वही रातें जैसे वर्षों पहले थे

पर अब जैसे तुम मिले हो पहले तो ऐसे ना थे

अब भी पुरानी तसवीरों में ऐसी है मुस्कान तेरी

जैसे कोई बांध के रख दे नज़रों से जुबान मेरी 

सन्दुक में रखे कपड़े तेरे नए आज भी लगते हैं

तेरी यादों की खुशबू से महके-महके से रहते हैं

हंसी पुरानी गयी कहाँ अब तेरे कपड़े तो ऐसे ना थे

पर अब जैसे तुम मिले…

Continue

Added by AMAN SINHA on February 22, 2023 at 10:00am — No Comments

सब खैरियत

कहाँ रहते वो कैसे रहते

उनसे न होती अपनी बात

वैर भाव की बात नही ये, अब उनसे न कोई दुआ-सलाम।।

 

खैरियत भी वो नहीं पूछते

क्या प्रेमभाव की करूँ मैं बात

अच्छे-खासे रिश्ते उनसे, न जानें क्यूँ वो रहते नाराज।।

 

हसी-मजाक, टिटौली चलती

हमारी कौन सी लगी उन्हें बुरी बात

कल तक थे जो अपनों से बढ़कर, है आज उसने दूरी खास।।

 

आना-जाना लगा रहता था

मिलजुल कर पहले रहते…

Continue

Added by PHOOL SINGH on February 21, 2023 at 9:38am — 4 Comments

इस जीवन में कहाँ मिलेगा( गीत-(१८)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

दिखता है हर ओर  यहाँ  तो केवल दुख का बौर।

इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।

*

घाव कुरेदे पल  पल  दुनिया कर बैठी नासूर।

इस कारण ही घर कर बैठी पीर यहाँ भरपूर।।

औषध कोई काम न  करती मत बोलो अब और।

इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।

*

शीतल छाँव नहीं है वन में दावानल की आग।

तानसेन  की  सुता  न  कोई गाती बादल राग।।

बन्द झरोखों को क्या खोलें उमस भरा जब दौर।।

इस जीवन में कहाँ मिलेगा हमको सुख का ठौर।।

*

अब…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2023 at 7:31am — 2 Comments

गज़ल

2122  1212   22 / 112

कारवाँ प्यार का रुका क्यूँ है

हादसा आज ये हुआ क्यूँ है

गुलदस्ता वो नहीं कोई फूल नहीं

दीवाना दोस्त गुमशुदा क्यूँ है

चलनी है रहगुज़र मुझे और भी

बदगुमाँ फिर वो दिलरुबा क्यूँ है

वो जुनूँ प्यार का हवा हो गया

होंसला बारहा हुआ क्यूँ है

कौन जाने वो मसअला क्या है

राय़गाँ हुस्न अब हुआ क्यूँ है

कोई रिश्ता ठहरता ही नहीं याँ

राबतों को ये बद्दुआ क्यूँ…

Continue

Added by Chetan Prakash on February 17, 2023 at 7:43am — 1 Comment

यूँ कर्म करें

हे जग अभियंता, सृजनहार, 

हे कृपासिंधु, हे गुणागार

हे परब्रह्म, हे पुण्य प्रकाश

हो पूरित तुम से, सही आस

हर छोटे-से छोटा जो कण,

या विश्व सकल विस्तार अनंत

तुम्हीं में समाहित सब कुछ…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 16, 2023 at 7:00pm — 2 Comments

हर जंगल को नित्य मिटाने(गजल)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२२२/२२२२/२२२२/२२२

आँखों में घड़ियाली  आँसू  अधरों पर चिंगारी हो

उन लोगों से बचके रहना जिनमें ढब हुशियारी हो।१।

*

सिर्फ जरूरत भर को लोगो पेड़ काटना अच्छा है

हर जंगल को नित्य मिटाने क्यों हाथों में आरी हो।२।

*

सभी पीढ़ियों कई युगों की यही धरोहर इकलौती

सिर्फ तुम्हारी एक जरूरत क्यों धरती पर भारी हो।३।

*

अल्प जरूरत अति बताकर नष्ट करो मत धरती

आज कहीं तो सुन्दर अच्छे आगत…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2023 at 7:01am — 2 Comments

तज़मीन बर ग़ज़ल उस्ताद-ए-मोहतरम समर कबीर साहिब

221-1221-1221-122

हालाँकि किया आपने इज़हार नहीं है

ये बात समझना कोई दुश्वार नहीं है

अब छोड़िए इज़हार भी दरकार नहीं है

"ख़ामोश है लब पर कोई तकरार नहीं है

मैं जान गया हूँ तुझे इंकार नहीं है"



ये बात अलग है कि दिल-ओ-जान से चाहूँ

पाने को तुम्हें जान मैं क्या कुछ नहीं कर दूँ

ये भी है हक़ीक़त कि कभी होगा नहीं यूँ

"मैं बेच के ग़ैरत को तेरा प्यार ख़रीदूँ

इस बात पे राज़ी दिल-ए-ख़ुद्दार नहीं है"



भाती है ग़ज़ल सब को, जो भाता हो ग़ज़ल…

Continue

Added by Gurpreet Singh jammu on February 15, 2023 at 3:41pm — 5 Comments

14 फरवरी

प्यार-शहादत का दिन ये

क्यूं जज़्बात से किसी के खेले

एक ओर है पुलवामा की घटना

उधर, ले प्रेमियों के दिल हिचकोले।।

कितनों के सुहाग उजड़ गए

दुनियाँ, कितनों के लाल थे छोड़े

भाई बिन कितनी बहनें रोती

कितने, पिता की याद में रोते।।

कोई खुश है प्रेम को पाकर

कोई इंतजार में इत-उत डोले

रात-दिन है कोई जागता

कुछ प्रेमी की याद में रोते।।

बड़ा है दिन ये दोनों का ही

क्यूं अहमियत न इसकी समझें

श्रृद्धा-सुमन तू…

Continue

Added by PHOOL SINGH on February 14, 2023 at 9:30am — No Comments

दिल का दादी होना

दिल का दादी होना 

 तब कोई हैरानी भी नहीं होती थी
जब कागा मुंडेर पर कगराता था
और सांझ तक कोई अतिथि आ भी जाता था


तब कोई हैरानी भी नहीं होती थी…

Continue

Added by amita tiwari on February 14, 2023 at 4:00am — No Comments

प्यार करने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए ( गीत-१७)-



शोर है चहुँ ओर ,आया प्यार का मौसम, मगर

प्यार करने  के  लिए  मौसम  नहीं मन चाहिए।।

*

भोग का आनन्द क्षण भर तृप्ति का आभास दे।

वह न हो पाया तो मन को हार का अहसास दे।।

कौन शिव सा अब शती की देह थामें डोलता।

ओट पाते  वासना  के  द्वार  पलपल खोलता।।

भोगने को तन तनिक उत्तेजना का पल बहुत।

प्यार करने  के  लिए  तो  पूर्ण जीवन चाहिए।।

*

देखता हर पथ सुगढ़ जाता यहाँ है प्यास तक।

आ सका है कौन अब संभोग से संन्यास तक।।

आज उपमा लिख  रही  उपभोगवादी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 13, 2023 at 6:35pm — 3 Comments

मैं कौन हूँ

मैं कौन हूँ

अब तक मैं अपना  

पहचान ही नहीं पा सका 

भीड़ में दबा कुचला व्यथित मानव 

दड़बे में…

Continue

Added by जगदानन्द झा 'मनु' on February 13, 2023 at 9:16am — 3 Comments

शांति दूत श्री कृष्ण

अज्ञातवास जब समाप्त हुआ

पांडवों में साहस भरा

कनक सदृश तप कर आए

उनमें प्रखर उत्साह का तेज बड़ा।।

कायर दहलता विपत्ति में अक्सर

शूरमा विचलित न कभी हुआ

गले लगाकर हर दुःख-विध्न को

धीरज से उसका तेज हरा।।

कांटो भरी राह पर चलकर

उफ्फ तक न वो कभी किया

धूल के गहने पहन चरण में

साहस के सहारे बढ़ता गया।।

उद्योग निरत नित करता रहता

उसने सब सुख-सुविधाओ का त्याग किया

शूलों के सदा समूल विनाश को

राह स्वयं के विकास की…

Continue

Added by PHOOL SINGH on February 12, 2023 at 8:29am — 2 Comments

यादों ने यादों की खिड़की-(गीत-१६) -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

यादों ने यादों की खिड़की, जब खोली अँगनाई में।

नये वर्ष की  अँखियाँ  भीगी, बीती  जून जुलाई में।।

*

हिचकी आयी भोर भये से,ना रुकने का नाम लिया।

तभी पुरानी राहों ने  फिर, सोचा किसने याद किया।।

पलपल, पगपग जाने कितने, रंगो को था नित्य जिया

कई सूरतें उभरीं  मन  में, गठरी  को जब  खोल दिया।।

*

चुपके-चुपके नभ रोया नित, शरद भरी जुन्हाई में।

यादों ने यादों की खिड़की, जब खोली अँगनाई में।।

*

कितना चाहो भले भूलना, हिर फिर…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 12, 2023 at 5:42am — No Comments

मनमोहन छंद

मनमोहन छंद (प्रथम प्रयास )
8,6-पदान्त 111

कान्हा जी से, लगी लगन ।
पागल मन ये , हुआ मगन ।
मन में जागी, प्रीत  अगन ।
भूल गया मन , धरा गगन ।

***

मनमोहन   तू, बड़ा  चपल ।
तुझे   निहारें ,  नैन   सजल ।
हरदम  लगता , रूप  नवल ।
छलकें नैना , छल छल छल ।

सुशील सरना /

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on February 11, 2023 at 3:22pm — No Comments

पिया का पत्र

आज खुशी से झूमूँ सखि री पत्र पिया का आया है

भाव भरे अक्षर-अक्षर ने ये तन-मन हर्षाया है

लिखते, प्रिये! तुम्हीं से सब कुछ, सुख-दुख की सहभागी तुम

तुमने इस जीवन में खुशियों का सावन बरसाया है 

रहता था निर्वासित सा मन जीवन के निर्जन वन में

पावन प्यार भरा गृह इसको तुमने ही लौटाया है

कहते- पीर भरा यह जीवन जो तपते मरुथल सा था

पाकर तेरा स्नेह सलिल अब हरा भरा हो आया है

नीरव हिय का रंगमहल था साज-बाज सब सूने थे

तेरी पायल…

Continue

Added by रामबली गुप्ता on February 11, 2023 at 9:30am — No Comments

भगवान परशुराम और कर्ण

हवन की अग्नि बुझ चुकी थी

शिक्षा प्राप्ति की आई बात

गुरू द्रोण ने जब इंकार किया तो

भगवान परशुराम की आई याद।।

नीड़ो में था कोलाहल जारी

फूलों से महका उपवन

ज्ञान की जिज्ञासा थी मन में भड़की

निकला खोज में जिसकी कर्ण।।

द्वार तृण-कुटी पर परशु भारी

आभाशाली-भीषण जो भारी भरकम

धनुष-बाण एक ओर टंगे थे

पालाश, कमंडलू, अर्ध अंशुमाली एक पड़ा लौह-दंड।।

अचरज की थी बात निराली

तपोवन में किसनें वीरता पाली

धनुष-कुठार…

Continue

Added by PHOOL SINGH on February 11, 2023 at 7:21am — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service