2212 - 1212 - 2212 - 12
.
मुश्किल सहीह ये फिर भी है महबूब ज़िन्दगी
रब का हसीन तुहफ़ा है क्या ख़ूब ज़िन्दगी
.
आजिज़ हैं ज़िन्दगी से जो वो भी मुरीद हैं
तालिब सभी हैं इसके है मतलूब ज़िन्दगी
.
हर लम्हा शादमाँ है तेरे दम से दिल मेरा
जब से हुई है तुझसे ये मन्सूब ज़िन्दगी
.
जिसने नज़र उठा के भी देखा नहीं मुझे
उस पर हुई है देखिए मरग़ूब ज़िन्दगी
.
लोगों के दिल…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 31, 2021 at 9:22am — 4 Comments
212 1222
1
ज़ार ज़ार रोते हैं
जब वो होश ख़ोते हैं
2
ख़्वान ए इश्क वाले ही
तो फ़कीर होते हैं
3
लोग क्यों अदावत में
हाथ खूँ से धोते हैं
4
डोरी में वो सांसों की
आरज़ू पिरोते हैं
5
चाहतों की गठरी सब
उम्र भर सँजोते हैं
6
क्यों अज़ीज़ अपने ही
अश्कों में डुबोते हैं
7
ख़्वाब देखने वाले
रात भर न सोते हैं
मौलिक व अप्रकाशित
रचना…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on March 30, 2021 at 8:30pm — 2 Comments
221 2121 1221 212
था नाम दिल पे नक़्श मिटाया नहीं गया
मुझसे तुम्हारा प्यार भुलाया नहीं गया
कल को सँवारने में गई बीत ज़िन्दगी
जो सामने था लुत्फ़ उठाया नहीं गया
कोशिश बहुत की, राज़-ए- मुहब्बत अयाँ न हो
अल्फ़ाज़ से मगर ये छिपाया नहीं गया
बीवी बहन बहू न मिलेगी कोई तुम्हें
बेटी को कोख़ में जो बचाया नहीं गया
मंदिर में जाके भोज …
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on March 30, 2021 at 5:30pm — 3 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 30, 2021 at 1:30pm — No Comments
2122 2122 212
कौन कहता है खुशी मिट जाएगी?
हौसले से तीरगी मिट जाएगी।
है भरम बस धूल आँधी के समय,
शांत होते ही कमी मिट जाएगी।
चोर चोरी भी तो मिहनत से करे,
कर ले मिहनत, गंदगी मिट जाएगी।
एक होता दूसरे खातिर फिदा,
फिर कहा क्यों जिंदगी मिट जाएगी?
'बाल' कर अल्फ़ाज़ से तू दोस्ती,
तेरी तन्हा बेबसी मिट जाएगी।
मौलिक अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 29, 2021 at 7:34am — 2 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
कोई गर रंग डाले तो न खाना खार होली में
भिगाना भीगना जी भर बढ़ाना प्यार होली में।१।
*
मिलन का प्रीत का सौहार्द्र का त्योहार है ये तो
न हो ताजा पुरानी एक भी तकरार होली में।२।
*
मँजीरे ढोल की थापें पड़ा करती हैं फीकी सच
करे पायल जो सजनी की मधुर झन्कार होली में।३।
*
जमाना भाँग ठंडायी पिलाये पर सनम तुम तो
दिखाकर मदभरी आँखें करो सरशार होली में।४।
*
चले हैं मारने हम तो दिलों से दुश्मनी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 28, 2021 at 2:00pm — 8 Comments
122 - 122 - 122 - 122
हमें तुम से कोई शिकायत नहीं है
तुम्हें भी तो हम से महब्बत नहीं है
जो शिकवा था हमसे हमें ही बताते
यूँ बदनाम करना शराफ़त नहीं है
किया जो भरोसा तो कर लो यक़ीं भी
तुम्हारे सिवा कोई चाहत नहीं है
ख़फ़ा होके हमसे जुदा होने वाले
ज़रा कह दे हमसे अदावत नहीं है
करोगे वफ़ा जो वफ़ा ही मिलेगी
महब्बत की ऐसी रिवायत नहीं है
तुम्हें दिल के बदले ये जाँ हमने…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 28, 2021 at 12:10pm — 2 Comments
"बाबा, गौर से सुनो, आज फिर मेरे कान्हा की बांसुरी की मधुर स्वर लहरी गूंज रही है।"
बाबा ने अपने दाँये कान के पास हथेली से ओट बनाते हुए सुनने की कोशिश की।
"राधा बेटी मुझे तो कुछ नहीं सुनाई पड़ा ? तू तो बावरी हो गई है उस बहुरूपिया कान्हा के लिये।"
"आप बूढ़े हो गये हो। आपके कान कमजोर हो गये हैं।"
"बिटिया तू क्यों खुद को झूठी तसल्ली दे रही है।अब वह कभी नहीं आने वाला।"
"मेरा कान्हा अवश्य आयेगा।"
"अब वह केवल तेरा कान्हा नहीं है।अब वह द्वारिका का राजा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 27, 2021 at 7:30pm — 4 Comments
तेरे सच्चे बयानों को यहाँ पर कौन समझेगा,
तेरे गम के निशानों को यहाँ पर कौन समझेगा?
यहाँ महलों से होती हैं हमेशा बात की कोशिश,
बता कच्चे मकानों को यहाँ पर कौन समझेगा।
हुई है कीमती नफ़रत, बनी व्यापार का सौदा,
मुहब्बत के ठिकानों को यहाँ पर कौन समझेगा।
बदलते पक्ष ये झट-से, फिसलते एक बोटी पर,
अडिग रह लें, उन आनों को यहाँ पर कौन समझेगा।
जिन्होंने 'बाल' सोचा था करें कुछ देश की खातिर,
शहीदों को व जानों को यहाँ पर कौन…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 26, 2021 at 11:02pm — 8 Comments
2122- 2122- 2122- 212
तू वतन की आबरू है तू वतन की शान है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत तुझपे दिल क़ुर्बान है
तेरी जुर्रत से हुआ नाकाम दुश्मन हिन्द का
नाज़ करता आज तुझपे सारा हिन्दुस्तान है
हैं मुबारक तेरी गलियांँ, गाँव तेरा, घर तिरा
मरहबा माँ बाप हैं वो जिनकी तू संतान है
ईद हो या हो दिवाली सरहदों पर ही रहा
मेरी धड़कन मेरी साँसों पर तेरा अहसान है
मुल्क पर होते फ़िदा जो वो कभी मरते…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 26, 2021 at 3:45pm — 8 Comments
2122 1212 22
कोई समझाए माजरा क्या है
तीरगी क्या है यूँ कि रा क्या है
मिटना हर शय का तो मुअय्यन है
ज़िंदगानी में निर्झरा क्या है
इक समंदर के जैसे लगती हैं
नम सी आँखों में दिल भरा क्या है
टूट कर ख़्वाब गिरते रहते हैं
आँख में आईना सरा क्या है
देख कर उनको आरज़ू करना
दिल की हसरत का दिलबरा क्या है
इश्क़ में रूह गर जो महके, तो
मुश्क़ फ़िर क्या है मोगरा क्या…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on March 22, 2021 at 5:30pm — 4 Comments
दूर तक फैला हुआ है, राज सम्यक शान्ति ।
हूर जीवन - धौंकनी है, गूँजता वन शान्ति ।।
नीर सूखा नालियों का, आँख ज्यौं पानी नही ।
लाज जैसे मर गयी हो, आजमा जीवन कहीं ।।
एक चुप पसरा हुआ है, पर्वतों से घाट तक ।
देखिय़े तट सखिविहीना, कृष्ण-राधा ठाठ तक ।।
ज़िन्दगी यदि मर रही है जग, मारता मन आज मद ।
आदमी रहता यहाँ खुश, मन प्रकृति वन मौज- मद ।।
गाँव की शालीनता मिल जायगी क्या शहर में ।
हैं खुशी छोटी मगर सुख,…
ContinueAdded by Chetan Prakash on March 22, 2021 at 12:00am — No Comments
विश्व कविता दिवस की हार्दिक शुभकामना।
32 मात्रिक छंद "रस और कविता"
मोहित होता जब कोई लख, पग पग में बिखरी सुंदरता।
दाँतों तले दबाता अंगुल, देख देख जग की अद्भुतता।।
जग-ज्वाला से या विचलित हो, वैरागी सा शांति खोजता।
ध्यान भक्ति में ही खो कर या, पूर्ण निष्ठ भगवन को भजता।।
या विरहानल जब तड़पाती, धू धू कर के देह जलाती।
पूर्ण घृणा वीभत्स भाव की, या फिर मानव हृदय लजाती।।
जग में भरी भयानकता या, रोम रोम भय से कम्पाती।।
ओतप्रोत…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 21, 2021 at 11:44am — 4 Comments
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22
1
जो सह के ज़ुल्म हज़ारों भी उफ़ किया न करे
दुआ करो कि उसे ग़म कोई मिला न करे
2
मुझे बहार की रंगीनियाँ मिलें न मिलें
मगर ख़िज़ा ही रहे उम्र भर ख़ुदा न करे
3
मुझे वो बज़्म में चाहे मिले नहीं खुल कर
मगर मज़ाक में भी ग़ैर तो कहा न करे
4
मैं ज़र्द पत्ते सा घबरा के काँप जाता हूँ
कहे हवा से कोई तेज़ वो चला न करे
5
नशा किसी प महब्बत…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on March 21, 2021 at 8:30am — 7 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
कभी रिश्ते मन से निभाकर तो देखो
जो रूठे हुए हैं मनाकर तो देखो।१।
*
खुशी दौड़कर आप आयेगी साथी
कभी दुख में भी मुस्कराकर तो देखो।२।
*
बदल लेगा रंगत जमाना भी अपनी
कभी झूठी हाँ हाँ मिलाकर तो देखो।३।
*
कभी रंज दुश्मन नहीं दे सकेगा
स्वयं से स्वयं को बचाकर तो देखो।४।
*
सदा पुष्प से खिल उठेंगे ये रिश्ते
कि पाषाण मन को गलाकर तो देखो।५।
*
कोई…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 20, 2021 at 6:15pm — 7 Comments
1212 1122 1212 112
करेगा इश्क़ जो सच्चा कभी जफ़ा न करे,
अगर हो हाथ में किस्मत कोई दगा न करे।
जुदा हो कर कोई भी रब्त फिर रखा न करे,
उसे कहो मेरे घर का वो रास्ता न करे।
उसूल कुछ तो अदावत में भी ज़रूरी है,
बना के दोस्त कोई फिर दगा किया न करे।
गिला नही है कि बस ज़िंदगी में दर्द मिले,
भले हैं दर्द ही झूठी ख़ुशी मिला न करे।
हमें तो इश्क़ ही ज़ख्मों से हो गया है सनम,
है इल्तिज़ा कि कोई इनकी अब दवा न…
Added by Pratibha Sharma on March 20, 2021 at 5:02pm — No Comments
212 1222 212 1222
बात मुख्तसर सी थी गर कही नहीं होती
लाठी एक तनकर थी अब खड़ी नहीं होती (1)
छोटे छोटे ख़्वाबों का रोज़ क़त्ल करती है
बेटी क्यों ये आसानी से बड़ी नहीं होती (2)
आपसे मिलूँ गर मैं तो उदास होता हूँ
और जब नहीं मिलते तो ख़ुशी नहीं होती (3)
बढ़ नहीं सकी आगे कार ही उमीदों की
लाल ही रही बत्ती वो हरी नहीं होती (4)
ज़िंदगी में दोनों तो साथ साथ रहते हैं
पर गुलाब काँटों में दोस्ती नहीं होती…
Added by सालिक गणवीर on March 19, 2021 at 11:01pm — 4 Comments
2122 1212 22/112
देख लीजे ज़नाब बाकी है,
हर सफ़े का हिसाब बाकी है।
जब तलक इंतिसाब बाकी है,
तब तलक इंतिहाब बाकी है।
बर्क़-ए-शम से मिच मिचाए क्यों,
आना जब आफ़ताब बाकी है?
चंद अल्फ़ाज पढ़ के रोते हो,
पढ़ना पूरी क़िताब बाकी है।
रौंदने वाले कर लिया पूरा,
अपना लेकिन ख़्वाब बाकी है।
'बाल' अच्छा कहाँ यूँ चल देना,
जब कि काफ़ी शराब बाकी है।
---
इंतिसाब: उठ खड़े होना।
इंतिहाब: लूटना,…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 19, 2021 at 10:30pm — 3 Comments
मानो उन्हें किसी की प्रतीक्षा थी . उनका मन कुछ बैचैन हो रहा था ,वे अंदर ही अंदर कुछ असहाय सा महसूस कर रहे थे .हाथ पीछे की ओर बांधे वे द्वार पर आकर खड़े हो गए तभी उनकी नजर सामने की और गई .वो धीमे-धीमे चलकर वह आती हुई कुछ दूरी पर खड़ी हो गई . दोनों ने एक दूसरे को देखा .
"तुम ? मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा .कितना बदल गई हो ,ये सफेद केश , ये कृश काया..." वे बोले
"फिर तुमने मुझे पहचाना कैसे ?" उसका प्रतिप्रश्न
" तुम्हारी हँसी का वो नूर, चहरे की निश्चलता आज भी वैसी ही है…
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on March 19, 2021 at 10:00pm — 2 Comments
16,11 मात्रा अंत मे गुरु लघु
1
ले राधा जैसी चंचलता, कृष्णा जैसा प्यार।
बरसाने में खेली जाए,होरी भी लठमार।
जोगिरा सा रा रारा रा,..
2
कृष्ण गए थे हँसी ठिठोली, करने राधा…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on March 19, 2021 at 3:00pm — 5 Comments
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