ज़िंदगी भी मटर के जैसी है
तह खोलो बिखरने लगती है
कितने दाने महफूज़ रहते हैं उन फलियों की आगोशी में
कुछ टेढ़े से कुछ बुचके से कुछ फुले से कुछ पिचके से
हू ब हू रिश्तों के जैसे लगते हैं
कुनबे से परिवारों से कुछ सगे या रिश्तेदारों से
पर सभी आज़ाद होना चाहते हैं कैद से
रिवायतों से बंदिशों से बागवाँ से साजिशों से
ज़िंदगी भी मटर के जैसी है
तह खोलो बिखरने लगती है
(मौलिक व अप्रकाशित)
आज़ी तमाम
Added by Aazi Tamaam on April 8, 2021 at 2:00pm — 4 Comments
कोई ख़्वाब न होता आँखों में
कोई हूक न उठती सीने में
कितनी आसानी होती
या रब तन्हा जीने में
दिल जब से टूटा चाहत में
रिंद बने पैमानों के
ढलते ढलते ढल गई
सारी उम्र गुजर गई पीने में
यूँ ही सांसें लेते रहना
यूँ ही जीते रहना बस
हर दिन साल के जैसा 'गुजरा
हर इक साल महीने में
दुनिया डूबी लहरों में
हम डूबे यार सफ़ीने में
देखीं कैसी कैसी बातें
अज़ब ग़ज़ब दुनियादारी
वो कितने ना पाक…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 8, 2021 at 11:30am — 2 Comments
2122 2122 2122 212
इक न इक दिन आपसे जब सामना हो जाएगा ।
जो भरम दिल में बचा है खुद रिहा हो जाएगा ।
इतने बुत मौजूद है तेरे खुदा के भेष में,
सजदा करते-करते तू खुद से जुदा हो जाएगा ।
सब पुराने पेड़ों को गर काट दोगे तुम यूं ही,
घर सलामत भी रहा तो लापता हो जाएगा।
ढूंढना अब छोड़ दे उस तक पहुँच का रास्ता,
खुद को पाले तो तू खुद ही रास्ता हो जाएगा ।
छोड़ दूँ शेरों सुखन और तेरी यादों का सफर ,
ऐसा करने…
Added by मनोज अहसास on April 8, 2021 at 12:14am — 3 Comments
2122 1122 2112 2122
जैसे जैसे ही ग़ज़ल रूदाद ए कहानी पड़ेगी
वैसे वैसे ही सनम दिल की फज़ा धानी पड़ेगी
रश्म हर दिल को महब्बत में ये उठानी पड़ेगी
दिल जलाकर भी कसम दिल से ही निभानी पड़ेगी
ख़ुश न होकर भी ख़ुशी दिल में है दिखानी पड़ेगी
कुछ न कहकर भी रज़ा दिल की यूँ सुनानी पड़ेगी
हुस्न वालो की सुनो ना ख़ुद पे भी इतना इतराओ
लम्हा दर लम्हा महंगी तुम्हें न'दानी…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 7, 2021 at 3:00pm — 4 Comments
221 2121 1221 212
बेजान था मैं फिर भी तो मारा गया मुझे
कल घाट मौत के यूँ उतारा गया मुझे (1)
मैं जा रहा था रूठ के लेकिन सदा न दी
था सामने खड़ा तो पुकारा गया मुझे (2)
मैं एक साँस में कभी बाहर न आ सकूँ
दरिया में और गहरे उतारा गया मुझे (3)
अक्सर यही हुआ है मैं जब भी दुरुस्त था
बिगड़ा नहीं था फिर भी सुधारा गया मुझे (4)
देता रहूँ सबूत मैं कब तक वज़ूद का
हर बार हर क़दम पे नक़ारा गया मुझे…
Added by सालिक गणवीर on April 7, 2021 at 1:51pm — 9 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
हमने कहीं पे लौट आ बचपन क्या लिख दिया
बोली जवानी क्रोध में दुश्मन क्या लिख दिया।१।
*
घर के बड़े भी काट के पेड़ों को खुश हुए
बच्चों ने चौड़ा चाहिए आँगन क्या लिख दिया।२।
*
तस्कर तमाम आ गये गुपचुप से मोल को
माटी को यार देश की चन्दन क्या लिख दिया।३।
*
आँखों से उस की धार ये रुकती नहीं है अब
भाता है जब से आपने सावन क्या लिख दिया।४।
*
वो सब विहीन रीड़ के श्वानों से बन …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2021 at 1:00pm — 10 Comments
121 22 121 22 121 22
अगर कभी जो क़रार आये झिझोड़ देना
मेरी उदासी मुझे अकेला न छोड़ देना
बिना तुम्हारे ये ज़िन्दगी अब कटेगी कैसे
जो तू नहीं तो नफ़स की डोरी भी तोड़ देना
जरा सी कोई रहे हरारत न जान बाकी
कि जाते जाते बदन हमारा निचोड़ देना
कभी हमारे ग़मों पे तुझको दुलार आये
वहीं उसी पल कतार भावों की मोड़ देना
तेरे ग़मो का उसे न होगा पता, है मुमकिन
मगर सिरा 'ब्रज' उदासियों का न जोड़…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 7, 2021 at 10:30am — 11 Comments
2122 1212 22/ 112
भारती धर्म अपना क़द करे हैं !
माँ की खायी कसम न मद करे हैं !
तीरगी को हटाया जाँ हमी ने,
रघुवंशी हम उजालों क़द करे है !
मोमबत्ती भी जिनसे जल न सकी,
सूरज होने का दावा ज़द करे हैं !
जाने क्या वो अँधेरों के हामी
वरिष्ठों के है अदु वो हद करे हैं !
सावन अंधे जुड़ाव हो कैसे ?
है रतौंधी उन्हें अहद करे…
ContinueAdded by Chetan Prakash on April 7, 2021 at 9:30am — No Comments
2212 2212 2222 2
मुझको तेरी आवाज़ से खुशबू आती है
तेरे हर इक अल्फाज़ से खुशबू आती है
आँचल से जैसे इत्र सा झरता रहता है…
Added by Aazi Tamaam on April 7, 2021 at 8:00am — 4 Comments
2122 2122 212
मिर्च कोई आग पर बोता है क्या,
लोन-पानी ज़ख्म को धोता है क्या।
हो रहा जो अब भले होता है क्या,
कोई अपने आप को खोता है क्या।
बेबसी को तू हटा औज़ार बन,
इसका दामन थाम कर रोता है क्या।
इश्क़ करता, सब्ज़ धरती देख ले,
बीज इसका तू कभी बोता है क्या।
'बाल' चुप्पी साध लेना जुर्म पर,
जुर्म से खुद कम कभी होता है क्या।
लोन-नमक
मौलिक अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on April 6, 2021 at 8:06pm — No Comments
२१२२/२१२२/२१२
सादगी से घर सँभाला कीजिए
लालसा को मत उछाला कीजिए।१।
*
यह धरा तो रौंद डाली जालिमों
चाँद का मुँह अब न काला कीजिए।२।
*
करके सूरज से उधारी आब की
चाँद से कहते उजाला कीजिए।३।
*
जब नया देने की कुव्वत ही नहीं
मत फटे में पाँव डाला कीजिए।४।
*
गर तबीयत जाननी है देश की
सबसे पहले ठीक आला कीजिए।५।
*
चाँद तारे सिर्फ महलों को न दो
झोपड़ी में भी उजाला कीजिए।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 6, 2021 at 6:30pm — 4 Comments
2122 1212 22/112
रोयेंगे और मुस्कुरायेंगे
उम्र भर तुम को गुनगुनायेंगे
तुम जो रहते हो बादलों में सनम
तुम को हम कैसे भूल पायेंगे
जब भी देखेंगे आसमानों को
दिल के अरमाँ मचल ही जायेंगे
ग़म की आँधी न रोक पायेंगे
अश्क आँखों से बहते जायेंगे
कैसे रोकेंगे हसरतें दिल की
चीख कर तुम को फ़िर बुलायेंगे
जी न पायेंगे मर न पायेंगे
दिल जलायेंगे…
Added by Aazi Tamaam on April 5, 2021 at 11:00am — No Comments
उस उजाड़ से गांव में बस कुछ टूटीफूटी झोपड़ियां ही मौजूद थीं जो वहाँ के लोगों के आर्थिक दशा और सरकार के विकास के नारे की तल्ख सच्चाई बयान कर रही थीं. उसको थोड़ा अजीब लगा, उसने अपने स्टाफ की बात को गंभीरता से नहीं लिया था. दरअसल जब भी इस गांव के लोगों से वसूली की बात होती, स्टाफ मना कर देता कि वहाँ जाने से कोई फायदा नहीं होगा. "सर, वहाँ लोगों के पास अभी खाने को नहीं है, बैंक की किश्त कैसे चुकाएंगे", अक्सर उसे यही बात सुनने को मिलती थीं.
लेकिन उसे लगा कि शायद दूर होने और वहाँ पैदल जाने के…
ContinueAdded by विनय कुमार on April 4, 2021 at 4:30pm — 6 Comments
2122 1122 1122 22 /112
1
अच्छा महफ़िल में तमाशा बना मेरा कल शब
दिल मेरा तोड़ा गया कह के ख़िलौना कल शब
2
ज़ख़्मी दिल पर तेरा जब नाम उकेरा कल शब
हाय रब्बा मेरे तब होंठों से निकला कल शब
3
झूठ की सुब्ह तलक माँग है बाज़ारों में
और मैं एक भी सच बेच न पाया कल शब
4
मेरे हाथों की लकीरें भी बदल जाएँगी
ख़्वाब आँखों ने दिखाया मुझे ऐसा कल शब
5
उस तरफ़ चाँद सितारों की चमक थी "निर्मल"
इस तरफ़ था…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on April 4, 2021 at 7:00am — No Comments
1212 - 1122 - 1212 - (112 / 22)
किसी की याद में ख़ुद को भुला के देखते हैं
निशान ज़ख्मों के हम मुस्कुरा के देखते हैं
निकल तो आए हैं तूफ़ाँ की ज़द से दूर बहुत
भँवर हैं कितने ही जो सर उठा के देखते हैं
चले भी आओ कि अब इंतज़ार होता नहीं
कि अब ये रस्ते हमें मुँह चिढ़ा के देखते हैं
ये ज़िन्दगी भी फ़ना कर दी हमने जिनके लिए
वही तो हैं जो हमें आज़मा के देखते हैं
तेरी जफ़ा …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 3, 2021 at 6:11pm — 18 Comments
एक साल हो गया था माँ से मिले हुए। मिलने का बहुत मन हो रहा था। इसलिए वह होली के अवसर पर गाँव जाना चाहता था। किन्तु छुट्टी का आवेदन अस्वीकार कर दिया गया। घर पहुँचते ही वह सीधे बिस्तर पर गिर पड़ा और सामने दीवार पर लगी स्वर्गीय पिता की तस्वीर को एकटक देखते-देखते कब आँख लग गई, कब वह सपनों में गोते खाने लगा, पता ही न चला।
"बेटा बहुत परेशान लग रहे हो!"
"हाँ पापा, इस कोरोना के कारण माँ से मिले एक साल हो गया, छुट्टी मिल नहीं रही है। क्या नौकरी का मतलब यही होता है कि आदमी घर-परिवार से ही कट…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 3, 2021 at 3:30pm — 8 Comments
ग़ज़ल
22 22 22 22 22 2
जिसने देखा वो ये बोला ओबीओ
कोई नहीं है तेरे जैसा ओबीओ
जब तक ज़िंदा हूँ मैं साथ निभाऊँगा
है ये तुझ से मेरा वादा ओबीओ
'बाग़ी' जी के साथ सभी ने मिलजुल कर
नाज़ों से तुझको है पाला ओबीओ
दुनिया के कोने कोने में फैल गया
तू ने जो भी पाठ पढ़ाया ओबीओ
तेरा नाम शिखर पर दुनिया लिखती थी
मैंने कल शब ख़्वाब में देखा…
ContinueAdded by Samar kabeer on April 1, 2021 at 2:52pm — 18 Comments
नहीं आती हिसाबों में सताती हैं तेरी यादें।
भला ये साथ कैसा जो बताती हैं तेरी यादें।'
.
संभालोगे कहां खुद को गिराने आ गये जब वो,
उठाना हाथ रोको जो सुनाती हैं तेरी यादें।
.
ऐ इंसाँ अब न इतना भी ज़माने का हो कर रहना,
ज़रा दिल झाँक देखा याद आती हैं तेरी यादें।
.
बनाई जिंदगी मेरी कहानी जो सुना देते,
अगर भटके सफ़र में क्यूँ जताती हैं तेरी यादें।
.
ये दिल चाहे कहूं कोई ग़ज़ल अब प्यार में तेरे,
मगर अंदर ही फिर क्यूँ ये दबाती…
Added by मोहन बेगोवाल on April 1, 2021 at 2:00pm — No Comments
कोशिश करो हिम्मत करो
आगे बढ़ो बढ़ते रहो आगे बढ़ो... आगे बढ़ो...
गिरने के डर से मत रुको
गिर जाओ तो फिर से उठो आगे बढ़ो... आगे बढ़ो...
मंज़िल तुम्हें मिल जाएगी
क़िस्मत भी ये खुल जाएगी
मंज़िल के मिलने तक चलो
चलते रहो चलते रहो आगे बढ़ो... आगे बढ़ो...
रुकने से कुछ हासिल नहीं
रुक जाए जो कामिल नहीं
उठते क़दम पीछे न लो
पूरा करो जो …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 1, 2021 at 8:26am — 2 Comments
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