212---212---212---212 |
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तीरगी सा मैं पसरा रहा रात भर |
दीप मन का भी जलता रहा रात भर |
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पा पटक के गया आज पंछी कोई… |
Added by मिथिलेश वामनकर on April 19, 2015 at 10:30am — 15 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on April 19, 2015 at 9:57am — 14 Comments
२२२ /२२२ /२२२
हाँ ये हसीन काम हमने ही किया
खुद को तो तमाम हमने ही किया
आगाजे-बरबादी तेरा करम
अंजाम इंसराम हमने ही किया (अंजाम इंसराम=अंजामिंसराम ) इंसराम = व्यवस्था
हुस्न पे तू सनम न कर यूँ गुमान
जहाँ में तेरा नाम हमने ही किया
रोज ये कहना कि न आयेंगे पर
कू पे तेरी शाम हमने ही किया
हर सुबह न मुँह को लगायेंगे…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 19, 2015 at 9:00am — 4 Comments
चलो
लौट चलो
फिर उसी झील के किनारे
जहां आज तक
लहरों पे चाँद मुस्कुरता है
किनारों की कंकरियां
झील में सुप्त अहसासों को
जगाने के लिए आतुर हैं
वो शिला जिस पर बैठ कर
हमने दृग स्पर्शों से
मौनता का हरण किया था
आज एकान्तता में
उन्ही मधु पलों को जीने के लिए
कसमसा रहा है
हाँ और न के अंतर्द्वंद से
स्वयं को निकालो
प्रणय पलों के स्पंदन से
यूँ आँख न चुराओ
लौट आओ
हम अपने अस्तित्व को
अमर पहचान देंगे
अपने…
Added by Sushil Sarna on April 18, 2015 at 7:01pm — 8 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २
जीवन में कुछ बन पाते
हम इतने चालाक न थे
सच तो इक सा रहता है
मैं बोलूँ या वो बोले
पेट भरा था हम सबका
भूख समझ पाते कैसे
हारेंगे मज़लूम सदा
ये जीते या वो जीते
देख तुझे जीता हूँ मैं
मर जाता हूँ देख तुझे
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 18, 2015 at 4:49pm — 20 Comments
“हमे औरत समझ के कमजोर मत आंकना | आज की औरत मर्दों से कमजोर नहीं है” मिसिज चौबे बस के दरवाजे पर खड़े युवक को हडकाते हुए अंदर घुसी ही थी, कि ठसाठस भरी बस में सामने एक सीट पर बैठे एक बूढ़े आदमी को कमजोर जान चिल्लाते हुए बोली |
“ओ बुढऊ ! कुछ शरम वरम है कि नही, उठो बैठना है हमे, जानते नहीं क्या..लेडीज फर्स्ट”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sudhir Dwivedi on April 18, 2015 at 3:30pm — 6 Comments
एक दिन महानगर के किसी बस स्टाप के पास खड़ी, एक सुन्दर युवती के पास एक कार आकर रुकती है ! कार का दरवाज़ा खुलता है और अन्दर बैठे दो युवकों में से एक,उतर कर लड़की के पास आता है ! दोनों में कुछ बातें होतीं है, और लड़की गाड़ी में सवार हो जाती है !
दूसरे दिन महानगर के किसी बस स्टाप के पास खड़ी, एक सुन्दर सी युवती के पास वही कार आकर रुकती है ! कार का दरवाज़ा खुलता है और अन्दर बैठे दो युवकों में से एक, उतर कर लड़की के पास आता है ! दोनों…
ContinueAdded by rajkumarahuja on April 18, 2015 at 2:00pm — No Comments
दीवारों में
दिये के आले
दीपक का स्वागत करते हैं
रश्मि राग में
मगन हुई
ज्योति
पताका लहराती है
तमस वज्र को तोड़
आलय को रोशनी से भर देते हैं
और
दिये के आले
बदले में
दिये से
काजल के झाले
खुद अन्तस में
धर लेते हैं
@आनन्द 18/04/2015 "मौलिक व अप्रकाशित"
Added by anand murthy on April 18, 2015 at 1:28pm — 5 Comments
१२२२/ १२२२ / १२२
न जानें क्या से क्या जोड़ा करेंगे
तुम्हारे ग़म में दिल थोडा करेंगे.
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तुम्हारे साथ हम पीते रहे हैं
तुम्हारी नाम की छोड़ा करेंगे.
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तुम्हारी आँख का हर एक आँसू
हम अपनी आँख में मोड़ा करेंगे.
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घरौंदे रेत के क्यूँ ग़ैर तोड़े
बनाएंगे, हमीं तोडा करेंगे.
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नपेंगे आज सारे चाँद तारे
हम अपनी फ़िक्र को घोडा करेंगे.
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ख़ुदा को…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2015 at 11:12am — 14 Comments
“ कुछ कीजिये..सर!! आप ने तो भाषण दे दिया कि प्राकृतिक आपदा के कारण, गुणबत्ता रहित अनाज भी समर्थन मूल्य पर खरीद लेंगे. इससे हम लोगों को नुक्सान हो जायगा. चुनावी फंड, रिफंड करने का अच्छा अवसर है..”
“ अरे!! आप लोग व्यापारी हो, इतना भी नही समझते. किसानो को पैसों की बहुत जरुरत है. अभी भाषण ही दिया है , लिखित आदेश की गति बहुत धीमी होती है.."
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on April 18, 2015 at 9:40am — 20 Comments
आज भोपाल के चौक में रौनक जरा कम नजर आ रही थी । सारे दुकानदार सहमे से अतिक्रमण दस्ता के तरफ देख रहे थे । अफरा तफरी का माहौल देख कर वहां खरीदारी करने आये लोग परेशान हो इधर उधर हो रहे थे ।
"अरे भाई , इनको क्या परेशानी है ...? अगर दुकानदार समानों को सजाकर नही दिखाये तो ग्राहक को भी कैसे समझ में आये । " -- बेहद परेशान अजीज भाई कह उठे थे ।
"चौक के अंदर तक गाडियों का प्रवेश वर्जित कर दे , तो जरा बात भी बने । नाहक ही यह प्रसाशन , ग्राहक और दुकानदार दोनों को परेशान कर रहे है । "--- वहीं…
Added by kanta roy on April 18, 2015 at 9:30am — 14 Comments
ग़ज़ल / रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण एवं ओ बी ओ नियमों के अनुपालन के क्रम में प्रबंधन स्तर से हटाई जा रही है.
एडमिन
2014041807
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on April 18, 2015 at 2:00am — 8 Comments
Added by Samar kabeer on April 17, 2015 at 11:58pm — 12 Comments
हरिद्वार से कुल गुरू का आगमन क्या हुआ ...अलका के तो इसबार होश ही फाख्ता हो गये ।
तीन लडकियों को जनने का दर्द कोख में फिर जाग उठा था ।
कुलगुरु के अलौकिक सानिध्य ही उसके पुत्र प्राप्ति का एकमात्र विकल्प सुन कर वह स्तब्ध थी ।
पति की झूकी हुई नजर देख कर अलका का अंतर्मन कराह उठा था ।
सती सावित्री सीता ... माँ दुर्गा ..माँ चंडिका रूप धर कर दुःसाध्य - कार्य करने को आज आतुर थी ।
धर्म के आड़ में समस्त अनाचार जग जाहिर हो गये । ...... खोखले रिश्ते अपने केंचुल आवरण से…
ContinueAdded by kanta roy on April 17, 2015 at 10:30pm — 13 Comments
लोग पहले
रिश्ता बनाते हैं
उसके बाद
रिश्तों की दुहाई देकर
दिल दुखाते हैं।।
मगर मैं
आश्चर्यचकित हूँ
तुम्हारे हुनर से
क्योंकि तुमने
अपनों से भी बढ़कर
दिल दुखाया है मेरा
बिना रिश्ता बनाये
बिना अपना बनाये ।।
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Added by umesh katara on April 17, 2015 at 10:22pm — 10 Comments
देखने में आ रही है गर्मियों में सर्दियाँ
मौसमों की दोस्ती हैं गर्मियों में सर्दियाँ
आम पर खामोश बैठी,झुरमटों से देखती
कोयलें कुछ सोचती हैं गर्मियों में सर्दियाँ
आओ चिंता सब करें अपने किसानों के लिये
क्यों फसल को लूटती हैं गर्मियों में सर्दिया
बादलों के साथ ओले ले, हवायें आ गई
देखो कितनी साहसी है गर्मियों में सर्दिया।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 9:30pm — 4 Comments
बहुत साल पहले 2006 में पंकज जी लखनऊ आशियाना में एक डिपार्टमेंट स्टोर पर अपने सेल्समेन और डिस्ट्रीब्यूटर के साथ call कर रहे थे। उसकी मालिक एक आंटी जी थी। उनके पति बैंक मैनेजर थे । पंकज जी उनसे काफी देर बातचीत की और जब चलने को हुये तो सेल्समेन को और डिस्ट्रीब्यूटर को इशारा कर दिया कि -- "जाओ आधी जंग लड़ ली है आधी तुम लोग लड़ो । "
उठते समय पंकज जी से एक गलती हो गई। पंकज जी ने उनसे चलते वक़्त ""थैंक यू आँटी जी" कह दिया । और अपनी गाडी पर आकर बैठ गये । थोड़ी देर बाद पंकज जी ने देखा कि उनके…
ContinueAdded by Pankaj Joshi on April 17, 2015 at 8:30pm — 2 Comments
वे झूठ के दाने बोते हैं
वे झूठ की खेती करते हैं
जब झूठ की फसलें पकती हैं
वे सच-मुच में खुश होते हैं
फिर झूठ-मूठ ही मिल-जुलकर
हर आने-जाने वाले को
खाने की दावत देते हैं...
वहां झूठ के लंगर लगते हैं
वहां झूठ के दोना-पत्तल में
भर-भर के परोसी जाती हैं
झूठ-मूठ की पूरी-सब्जी
झूठ-मूठ के माल-पूवे....
इस झूठ के काले धंधे में
कई सेवक मोटे- तगड़े से
लट्ठ- हथियारों से लैस हुए
जब कहते सबसे लो डकार
और करो…
Added by anwar suhail on April 17, 2015 at 6:52pm — 6 Comments
तरही ग़ज़ल -
2122 2122 2122 212
तेज़ रफ़्तारी के सारे जब दिवाने हो गये
दूरियाँ सिमटीं नगर तक आस्ताने हो गये
अहदे नौ में टीव्ही ने तो यूँ मचाया है वबाल
बचपना में ही सभी बच्चे सयाने हो गये
जिस तरह फेरा ग़मों का लग रहा है घर मेरे
यूँ लगा मुझको ग़मों से दोस्ताने हो गये
अब नई तहज़ीब के पेशे नज़र , सारे ज़ईफ
नौजवानों के लिये , कपड़े पुराने हो गये
इंतख़ाबी , इंतज़ामी थे सभी वो वाक़िये
आप ये मत…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 17, 2015 at 5:30pm — 23 Comments
२२२२/२२२२/२२२
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आँखों को सपनीला होते देखा है
ख़्वाबों को रंगीला होते देखा है.
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क़िस्मत ने भी खेल अजब दिखलाए हैं
पत्थर भी चमकीला होते देखा है.
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सादापन ही कौम की थी पहचान जहाँ
पहनावा भड़कीला होते देखा है.
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मुफ़्त में ये तहज़ीब नहीं हमनें पायी
शहरों को भी टीला होते देखा है.
.
कुर्सी की ताक़त है जाने कुछ ऐसी
बूढा, छैल-छबीला होते देखा है.
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आज…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 17, 2015 at 2:50pm — 17 Comments
2024
2023
2022
2021
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