मैं इतनी धार्मिक प्रवृत्ति की नहीं हूँ लेकिन नास्तिक भी नहीं हूँ . सारे धार्मिक त्योहार पूरी निष्ठा के साथ मनाती हूँ . मुझे भगवान की आरती सुनना बेहद अच्छा लगता है .
पिछ्ले साल की बात है . दिल्ली से हम लखनऊ रहने आ गये . शारदीय नवरात्र चल रहा था . हम पास के एक मंदिर में माँ दुर्गा की पूजा करने गये . आरती जब शुरू हुई तो आँखें बंद कर मैं पूरी तन्मयता से उसमें लीन हो गयी . आरती समाप्त हो गयी लेकिन मैं आँखें मूँदे ध्यानमग्न रही , तभी पण्डाल में हड़कम्प मच गया . मैं कुछ समझ पाती इससे पहले…
Added by coontee mukerji on April 17, 2013 at 12:14am — 7 Comments
Added by Vindu Babu on April 16, 2013 at 11:24pm — 10 Comments
हम कहीं भी महफ़ूज नहीं है
वो कभी भी, कहीं भी, हमारी हत्या कर सकते हैं
हम इंसान हैं
वो आतंकवादी
पर वो नहीं जानते
कि हम पर चलाई गई हर गोली
उनके धर्म की छाती में जाकर धँसती है
हम फिर पैदा हो जायेगें
सौ मरेंगे तो हजार और पैदा हो जायेंगे
पर उनका धर्म एक बार मर गया
तो हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा
धर्म जान लेने या देने से नहीं
जान बचाने से फैलता है
और ख़ुदा,…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 16, 2013 at 11:08pm — 8 Comments
आप ग़लत थे,
मैं सही था |
आप के कहे को
मान दिया था,
अनुचित आदेश को
मान लिया था |
आप पर विश्वास था,
मिला था आशीर्वाद-
एक अफलित आशीर्वाद |
हे पूज्य!
आप ग़लत थे,
मैं सही था |
आपने तोड़ा था विश्वास,
किंचित, मुझे नही मानना था
संकुचित आदेश,
मुझे नही देना था-
अंगूठा,
दिखला देना था-
अंगूठा,
क्या होता ?
नालायक कहलाता !
अल्प काल के…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2013 at 8:30pm — 23 Comments
1-
लड़ती पीट तालियाँ, हज़ार देती गालियाँ,
अच्छे भले दिमाग का, दही कर देती है |
हर पल तंग करे, उल्टे पुल्टे कर्म करे,
मंगल जैसे ग्रह को, शनि कर देती है |
यदि देख लिया पैसा, पूछे नही कि है कैसा,
झट-पट बटुए को, खाली कर देती है…
Added by ram shiromani pathak on April 16, 2013 at 6:13pm — 6 Comments
Added by नादिर ख़ान on April 16, 2013 at 5:52pm — 5 Comments
गजल...
एक नन्हीं प्यारी चिड़िया, आज देखी बाग में।
चोंच से चूज़े को भोजन, कण चुगाती बाग में।
काँप जाती थी वो थर-थर, होती जब आहट कोई,
झाड़ियों के झुंड में, खुद को छिपाती बाग में।
ढूंढती दाना कभी, पानी कभी, तिनका कभी,
एक तरु पर नीड़ अपना, बुन रही थी बाग में।
खेलते बालक भी थे, हैरान उसको देखकर,
आज ही उनको दिखी थी, वो फुदकती बाग में।
नस्ल उसकी देश से अब, लुप्त होती जा रही,
बनके…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on April 16, 2013 at 5:30pm — 5 Comments
मेरी नींदों मे ख्वाब बन कर रहते थे,
वो तुम ही तो थे ,
जिसके सपने मेरी आँखों ने सँजोये थे,
वो तुम ही तो थे ,
जो रहता था मेरे दिल की किसी ,…
ContinueAdded by annapurna bajpai on April 16, 2013 at 4:00pm — 8 Comments
वैसे तो ग़ज़ल का अपना स्वर्णिम इतिहास रहा है , परन्तु आज हिंदी जनमानस में भी ग़ज़लों ने अपनी गहरी पैठ बना ली है । ग़ालिब , मीर , फैज़ , दाग जैसे नाम आज ग़ज़ल को पसंद करने वाले के लिए अनजाने नहीं । साहित्य में भी ग़ज़लों ने नए पुराने लेखकों को अपनी और आकर्षित किया है । आज समकालीन ग़ज़ल लेखन में एक उर्जावान पीढी सक्रिय है । बनारस में नजीर बनारसी हुए तो जयशंकर…
ContinueAdded by Abhinav Arun on April 16, 2013 at 3:00pm — 13 Comments
(1)
सुनो मृगनयनी है चाँद जैसा मुख इसे,
ओढनी ओढ़ा के आज, थोडा शरमाइए
घूरते क्यूँ हमें ऐसे, मैं हूँ जानवर जैसे
लोग सब देख रहे, नज़रें हटाइए
ऐसे ही खड़ी हो काहे, गघरी झुलात कहो
प्रेम है यदि तो फिर, उसे न छुपाइए
और यदि है नहीं तो, काम एक कीजिए जी
मुझे घूरने से अच्छा, नीर भर लाइए ।
(2)
मिले कल नेता जी तो , पूछ लिया हमने ये
कद्दू जैसी तोंद का ये, राज तो बताइए
दुबले थे आप कुर्सी मिलने से पहले तो
हुआ ये कमाल कैसे,…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 16, 2013 at 12:30pm — 14 Comments
दुर्मिल सवैया..........!!!.जय जय बजरंगबली !!!
बजरंगबली सुख शांति मिले, जय राम कहे हरि प्रीति बढ़े।
मन प्रेम रसे अति धीर धरे, उर राम बसे नहि होत बड़े।।
हनुमान कहे मन मान सधे, हम बालक हैं गुन गान अड़े।
सुर रीति सजे नवनीत गहे, हम दीन बड़े अति हीन मढ़े।।1
तुम दीन दयाल सुभाय भली, दर आय सभी सुख पाय चली।
रघुवीर सदा सिर हाथ रखीं, हिय छाप धरीं तन राम कली।।
तुम भूत पिचास भगाय हॅसी, सिय मातु सुजान अशीष फली।
तुम दानव काल समेट सभी, तुम शेषहि वीर जगाय…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 16, 2013 at 7:57am — 13 Comments
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 16, 2013 at 7:30am — 13 Comments
मेरा राम आयेगा
नित्य मुँह अंधेरे फूल चुन चुन
गली आंगन थी रही सजा,
एक आस एक चाह लिये
कही शबरी - '' मेरा राम आएगा ''.
शाम ढल जाती सूरज थकता
देकर अंतिम किरण जाता,
एक अटूट विश्वास बढ़ाता,
कहती शबरी - '' मेरा राम आएगा ''.
बचपन गया , जवानी बीती
पलक बिछाए राह निहारती,
प्रौढ़ा दिनभर मगन रहती
कहती शबरी - '' मेरा राम आएगा ''.
वन उपवन भी थक चले
बोले ' तू बूढ़ी हो गयी , जा
कहीं विश्राम कर , छोड़ ये जिद्द '
शबरी बोली -…
Added by coontee mukerji on April 16, 2013 at 2:35am — 11 Comments
ये प्रेम मिलन का गीत नहीं,
विरह का विवशता-गान सही।
आज तुम मेरे मन के मीत नहीं,
तो प्राणों से बिछुड़ी जान सही।
ये नयन तुम्हारी छवि के दर्पण,
तुम नहीं तो अश्रु का स्थान सही।
ये मन तुम्हारी स्मृतियों का आँगन,
तुम नहीं तो पीड़ा का श्मशान सही।
चाहा था तुमसे मैंने केवल गहन प्रेम,
यदि नही तो उपेक्षा और अपमान सही।
'सावित्री राठौर'
[मौलिक और अप्रकाशित]
Added by Savitri Rathore on April 15, 2013 at 10:52pm — 10 Comments
Added by manoj shukla on April 15, 2013 at 9:04pm — 21 Comments
Added by Kavita Verma on April 15, 2013 at 9:00pm — 8 Comments
माँ तुझे प्रणाम
धरती सी सहनशील
हिमालय सी शालीन
जीवन का द्वार
स्नेह की बौछार
बस दुलार ही दुलार
ममता का साकार रूप
प्रभात की पहली धूप
प्रारब्ध के पुण्य का फल
पहली साँस महसूस कराने वाली
अंगुल पकड़ चलाने वाली
पहली शिक्षा देने वाली
सबसे पहले आंसू पोंछने वाली
आत्मविश्वास जगाने वाली
जो सब है मेरे पास
उसी का दिया है अहसास
मेरी ख़ुशी मे मुझसे ज्यादा ख़ुश
मेरे गम में मुझसे…
ContinueAdded by vijayashree on April 15, 2013 at 8:07pm — 19 Comments
महंगाई ने कमर तोड़ दी, बेरोजगारी ज़िन्दगी लील गयी होगी
जनता के सेवक हो ,पर मदद की उम्मीद, आपसे करेंगे,आपको धोखा हुआ होगा
चारा खा गया, कोयले खिला रहा होगा, खेल खेल में खेल कर गया होगा
वो वफादार देश के लिए मर मिटेगा ,आपको धोखा हुआ होगा
जनता का सेवक हूँ जी जान लगा दूंगा , गिडगिडा रहा होगा…
ContinueAdded by Dr Dilip Mittal on April 15, 2013 at 6:33pm — 7 Comments
(दशकों पहले आदिल लुख्नवी की एक रचना ‘दुम’ पढने में आयी थी, उससे प्रेरित हो कर 1986 में ये रचना की. वैसे आदिल जी की रचना भी अंतर्जाल पर उपलब्ध है. आशा है, सुधी जनो को ये प्रयास भी नाकारा तो नहीं लगेगा. ये भी मेरे पूर्व प्रस्तुतियों की भांति अप्रकाशित रचना है)
दुम
कुदरत की नायाब कारीगरी है…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on April 15, 2013 at 6:30pm — 9 Comments
हिन्दी गजल...
गर्मियों की शान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
धूप में वरदान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
हर पथिक हारा थका, पाता यहाँ विश्राम है,
भेद से अंजान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
नीम, पीपल, हो या वट, रखते हरा संसार को,
मोहिनी, मृदु-गान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
हाँफते विहगों की प्यारी, नीड़ इनकी डालियाँ,
और इनकी जान है, ठंडी हवा हर पेड़ की।
रुख बदलती है मगर, रूठे नहीं मुख मोड़कर,
सृष्टि का…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on April 15, 2013 at 5:30pm — 28 Comments
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