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May 2016 Blog Posts (130)

एक ग़ज़ल ओबीओ के नाम

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन/फ़ेलान



ज पर तुझको देखना है मुझे

त्र में उसने ये लिखा है मुझे



स्ल-ए-नव से मदद का तालिब हूँ

बुर्ज नफ़रत का तोड़ना है मुझे



क्या कहूँ ,कब मिलेगा मीठा…

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Added by Samar kabeer on May 2, 2016 at 6:30pm — 43 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
ग़ज़ल - फूल भी बदतमीज़ होने लगे // - सौरभ

2122  1212  22/112

ग़ज़ल

=====

आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये

और मासूम-सा दिखा जाये

 

केतली फिर चढ़ा के चूल्हे पर

चाय नुकसान है, कहा जाये

 

उसकी हर बात में अदा है तो

क्या ज़रूरी है, तमतमा जाये ?

 

फूल भी बदतमीज़ होने लगे

सोचती पोर ये, लजा जाये

 

रात होंठों से नज़्म लिखती हो,

कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ? 

 

रात होंठों से नज़्म लिखती रही 

चाँद औंधा पड़ा घुला…

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Added by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 5:30pm — 44 Comments

जब से पिया गए परदेस ...



जब से पिया गए परदेस ...

प्रेम हीन अब

इस जीवन में

कुछ भी नहीं है शेष

जब से पिया गए परदेस//

नयन घट

सब सूख गए

बिखरे घन से केश

जब से पिया गए परदेस//

दर्पण सूना

हुआ शृंगार से

सूना हिया का देस

जब से पिया गए परदेस//

लगे दंश से

बीते मधुपल

दीप जलें अशेष

जब से पिया गए परदेस//

बिरहन का तो

हर पल सूना

रहे अश्रु न शेष

जब से पिया गए…

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Added by Sushil Sarna on May 2, 2016 at 4:54pm — 14 Comments

सूखा सावन

जेठ तपता आषाढ तपता,

सावन भी तपता जा रहा,

जेठ की लू सावन में चलें,

समय बदलता जा रहा।



सावन में जब वर्षा होती,

कोयल कू-कू गाती थी,

मेंढक टर्र-टर्र करते थे,

बहारें राग सुनाती थी।



शीतल फुहारें झर-झर कर,

माथे से टकराती थी,

नई स्फूर्ति तन-मन में,

एकाएक भर जाती थी।



इंद्रधनुष के सात रंग,

जब याद मुझे वो आते हैं,

तीजों के त्योहार को

ताजा तभी कर जाते हैं।



इस सावन को नजर लग गई,

सावन तपता जा… Continue

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 2, 2016 at 4:30pm — 6 Comments

लोकतंत्र की करवट ( लघु-कथा ) - डॉo विजय शंकर

नेता जी क्षेत्र का दौरा करके लौट रहे थे।
कुछ निराश , कुछ हताश। क्षेत्र वाले अपनी सुना रहे थे , नेता जी अपनी लगाए थे। नेता जी को कोई बात बनती नज़र नहीं आ रही थी।
" फिर आते हैं ", कह कर वापस हो लिए।
कार में बड़बड़ाते हुए निजी स्टाफ से बोले ," ये नहीं सुधरेंगे " . थोड़ा रुक कर फिर बोले ," हमारे सुधरने का इंतज़ार करेंगे " .

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2016 at 8:22am — 14 Comments

मज़दूर दिवस (लघुकथा)

 मज़दूर दिवस  – ( लघुकथा )  -

 कारखाने में  मज़दूर दिवस मनाया जा रहा था!  मंच पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री मुख्य अतिथि के रूप में विराजमान थे! उनके दायीं ओर प्रदेश के मुख्य मंत्री और बायीं तरफ़ कारखाने के मालिक सेठ धनपति लाल मौज़ूद थे!

 कारखाने के  चुंनिंदा कामगारों  को सम्मानित किया जाना था! सर्वश्रेष्ठ कामगार का पुरुस्कार सुखराम को मिलना था! सेठ जी ने माइक पर जैसे ही संबोधित करना शुरू किया! तभी सेठ जी के सैक्रेटरी ने सेठ जी के कान में बताया  “आपके कार्यालय के ए सी को जांच करते समय…

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Added by TEJ VEER SINGH on May 1, 2016 at 3:00pm — 28 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
उस रोज़ हाल मुझसे बताया नहीं गया- ग़ज़ल

221 2121 1221 212

उस रोज़ हाल मुझसे बताया नहीं गया

और उसके बाद रंज छुपाया नहीं गया



जो दर्द से नजात दिला सकता था मुझे

वो लफ़्ज़ अपने होंठों पे लाया नहीं गया



अश्कों की रोशनाई में लम्हे डुबो-डुबो

दिल के वरक़ पे लिक्खा मिटाया नहीं गया



तू तो ग़लत न था ये जहाँ सरगिराँ सही

सर किसलिये बता कि उठाया नहीं गया



इक बोझ मेरे काँधे पे हालात ने रखा

मजबूर इतना था कि गिराया नहीं गया



(रोशनाई- इंक; सरगिराँ- नाखुश)



मौलिक व… Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on May 1, 2016 at 1:00pm — 21 Comments

ग़ज़ल -नूर- कोई चराग़ जला कर खुली हवा में रखो

१२१२ /११२२ /१२१२ /२२ (११२)

.

कोई चराग़ जला कर खुली हवा में रखो,

जो कश्तियाँ नहीं लौटीं उन्हें दुआ में रखो.

.

ग़ज़ब सितम है इसे यूँ अलग थलग रखना,

शराब ज़ह’र नहीं है इसे दवा में रखो.

.

इधर हैं बाढ़ के हालात और उधर सूखा,

हमारी दीदएतर अब, उधर फ़ज़ा में रखो.

.

शबाब हुस्न पे आया तो है मगर कम कम,

है मशविरा कि हया भी हर इक अदा में रखो.

.

तमाम फ़ैसले मेरे तुम्हे लगेंगे सही,

अगर जो ख़ुद को कभी तुम मेरी क़बा में रखो.  

.

ज़बां…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 12:28pm — 20 Comments

ग़ज़ल(उल्फत का रंग है )

ग़ज़ल (उल्फत का रंग है )

------------------------------------

221 --2121 --1221 ---212

ऐसा लगे है चढ़ गया उल्फत का रंग है ।

जो कल मेरे ख़िलाफ़ था वह  आज संग है ।

वह मेरे पास बैठ गए सब को छोड़ के

यूँ हर कोई न देख के महफ़िल में दंग  है ।

तरके वफ़ा का मश्वरा मत दीजिये हमें

सब जानते हैं आपका ये सिर्फ ढंग है ।

जिस दिन से जायदाद गए बाप छोड़ कर

घर तब से बन गया मेरा मैदाने जंग है ।

मैं एक क़दम…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 1, 2016 at 9:37am — 16 Comments

नई राहें

नई-नई राहें होंगी

नए-नए सहारे होंगे।

सूर्योदय से पहले

पक्षी चहचहा रहे होंगे

छोड कर निज नीड

नई तमन्नाओं के साथ

विचरण कर रहे होंगे।

नई-नई राहें होंगी

नए-नए सहारे होंगे।

हम जहाँ भी जाएंगे

तमन्नाओं की राहों पर

कुछ हमसे खुश

कुछ हमसे खफा होंगे

नई तमन्नाओं के साथ

नए इरादे भी बुलन्द होंगे।

नई-नई राहें होंगी

नए-नए सहारे होंगे।

पहाड़ों में-वादियों में

मैदानों में-घाटियों में

कल्याण का ही सहारा होगा

दिलों… Continue

Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 1, 2016 at 9:02am — 4 Comments

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