फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन/फ़ेलान
ओज पर तुझको देखना है मुझे
पत्र में उसने ये लिखा है मुझे
नस्ल-ए-नव से मदद का तालिब हूँ
बुर्ज नफ़रत का तोड़ना है मुझे
क्या कहूँ ,कब मिलेगा मीठा…
Added by Samar kabeer on May 2, 2016 at 6:30pm — 43 Comments
2122 1212 22/112
ग़ज़ल
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आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये
और मासूम-सा दिखा जाये
केतली फिर चढ़ा के चूल्हे पर
चाय नुकसान है, कहा जाये
उसकी हर बात में अदा है तो
क्या ज़रूरी है, तमतमा जाये ?
फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये
रात होंठों से नज़्म लिखती हो,
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ?
रात होंठों से नज़्म लिखती रही
चाँद औंधा पड़ा घुला…
Added by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 5:30pm — 44 Comments
जब से पिया गए परदेस ...
प्रेम हीन अब
इस जीवन में
कुछ भी नहीं है शेष
जब से पिया गए परदेस//
नयन घट
सब सूख गए
बिखरे घन से केश
जब से पिया गए परदेस//
दर्पण सूना
हुआ शृंगार से
सूना हिया का देस
जब से पिया गए परदेस//
लगे दंश से
बीते मधुपल
दीप जलें अशेष
जब से पिया गए परदेस//
बिरहन का तो
हर पल सूना
रहे अश्रु न शेष
जब से पिया गए…
Added by Sushil Sarna on May 2, 2016 at 4:54pm — 14 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 2, 2016 at 4:30pm — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2016 at 8:22am — 14 Comments
मज़दूर दिवस – ( लघुकथा ) -
कारखाने में मज़दूर दिवस मनाया जा रहा था! मंच पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री मुख्य अतिथि के रूप में विराजमान थे! उनके दायीं ओर प्रदेश के मुख्य मंत्री और बायीं तरफ़ कारखाने के मालिक सेठ धनपति लाल मौज़ूद थे!
कारखाने के चुंनिंदा कामगारों को सम्मानित किया जाना था! सर्वश्रेष्ठ कामगार का पुरुस्कार सुखराम को मिलना था! सेठ जी ने माइक पर जैसे ही संबोधित करना शुरू किया! तभी सेठ जी के सैक्रेटरी ने सेठ जी के कान में बताया “आपके कार्यालय के ए सी को जांच करते समय…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 1, 2016 at 3:00pm — 28 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on May 1, 2016 at 1:00pm — 21 Comments
१२१२ /११२२ /१२१२ /२२ (११२)
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कोई चराग़ जला कर खुली हवा में रखो,
जो कश्तियाँ नहीं लौटीं उन्हें दुआ में रखो.
.
ग़ज़ब सितम है इसे यूँ अलग थलग रखना,
शराब ज़ह’र नहीं है इसे दवा में रखो.
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इधर हैं बाढ़ के हालात और उधर सूखा,
हमारी दीदएतर अब, उधर फ़ज़ा में रखो.
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शबाब हुस्न पे आया तो है मगर कम कम,
है मशविरा कि हया भी हर इक अदा में रखो.
.
तमाम फ़ैसले मेरे तुम्हे लगेंगे सही,
अगर जो ख़ुद को कभी तुम मेरी क़बा में रखो.
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ज़बां…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 1, 2016 at 12:28pm — 20 Comments
ग़ज़ल (उल्फत का रंग है )
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221 --2121 --1221 ---212
ऐसा लगे है चढ़ गया उल्फत का रंग है ।
जो कल मेरे ख़िलाफ़ था वह आज संग है ।
वह मेरे पास बैठ गए सब को छोड़ के
यूँ हर कोई न देख के महफ़िल में दंग है ।
तरके वफ़ा का मश्वरा मत दीजिये हमें
सब जानते हैं आपका ये सिर्फ ढंग है ।
जिस दिन से जायदाद गए बाप छोड़ कर
घर तब से बन गया मेरा मैदाने जंग है ।
मैं एक क़दम…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on May 1, 2016 at 9:37am — 16 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 1, 2016 at 9:02am — 4 Comments
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